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गौरेला में बैगा आदिवासियों के साथ धोखा, पीएम आवास चार साल में हुए जर्जर - PM AWAS YOJANA

BETRAYAL OF BAIGA TRIBALS छत्तीसगढ़ में मॉनसून की एंट्री हो चुकी है. लोग बारिश के फुहारों का लुत्फ कुछ दिनों में उठाएंगे.लेकिन उन परिवारों का क्या जिनके सिर पर पक्की छत नहीं है.उनके लिए तो तेज बारिश किसी बुरे सपने से कम नहीं है.कच्ची दीवारे जब बारिश में भींगती हैं तो हर वक्त जान का खतरा सिर पर मंडराता है.ऊपर से बरसाती कीड़ों का डर अलग. यानी आगे कुंआ और पीछे खाई. गरीबों को पक्के देने के लिए केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना अमल में लाई थी.लेकिन प्रदेश में जितने लोगों का पंजीयन इस योजना के तहत मकान के लिए हुआ,तय समय में मकान बनकर नहीं मिला और जो मकान बने भी वो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए.PM AWASH YOJANA

BETRAYAL OF BAIGA TRIBALS
गौरेला में बैगा आदिवासियों के साथ धोखा (ETV Bharat Chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jun 21, 2024, 8:08 PM IST

Updated : Jun 22, 2024, 11:32 AM IST

गौरेला पेंड्रा मरवाही : गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में आदिवासी विकास और बैगा विकास के नाम पर गंदा मजाक देखने को मिला है. जिले में ना तो बैगा आदिवासियों को शुद्ध पानी ही मिल रहा है ना ही पहुंच मार्ग है. और तो और शासकीय सुविधाओं के नाम पर उन्हें मिले पक्के मकान जिले में आदिवासी विकास के नाम पर हुए भ्रष्टाचार की पोल खोल रहे हैं. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जिले के बैगा आदिवासियों के लिए आवास स्वीकृत हुए थे.लेकिन जो मकान बनाकर आदिवासियों को दिए गए उसकी हालत देखकर आप खुद अंदाजा लगा लेंगे कि ये मकान हैं या मौत का सामान.

गौरेला में बैगा आदिवासियों के साथ धोखा (ETV Bharat Chhattisgarh)

चार साल में ही खंडहर हुए मकान : प्रधानमंत्री आवास निर्माण के चार साल बाद ही जर्जर अवस्था में पहुंच चुके हैं. कंक्रीट के मकान पूरी तरह जर्जर हो चुके हैं. फर्श पर बड़े-बड़े गड्ढे, छत और दीवारों में बड़ी दरारें पड़ चुकी हैं. कुल मिलाकर मकान का एक भी हिस्सा रहने लायक नहीं है.

''पक्के कंक्रीट के मकान से ज्यादा मजबूत हमारे मिट्टी के मकान हैं. इन मकानों रहने में डर लगता है, इसलिए इसे छोड़कर वापस अपने मिट्टी के मकान में रहने लग गए हैं.''- रामप्यारी बैगा, हितग्राही

किसने किया धोखा : बैगाओं को पता है कि सरकारी आवास के नाम पर उनके साथ धोखा हुआ है. अधिकारियों से साठ गांठ करके ठेकेदारों ने बैगाओं के नाम पर आई योजनाओं से अपना पेट भरा और निर्माण में कोताही बरती. विशेष संरक्षित जनजाति और राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले अनुसूचित बैगा आदिवासियों को राष्ट्रपति के गोद पुत्र का दर्जा हासिल है. बैगा आदिवासियों के आवास निर्माण में हुए भ्रष्टाचार पर जब हमने जिला पंचायत के सीईओ से बात की गई तो उन्होंने पूरे मामले पर जांच की बात कही है. साथ ही बैगा आदिवासियों को नए मकान दिलवाने की बात भी कही है.

''बैगा आदिवासियों को पीएम आवास के तहत जो मकान उपलब्ध कराएं गए थे,उसमें गुणवत्ता की कमी की शिकायत मिली है.जांच के बाद दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी.आदिवासियों को योजना के तहत नए मकान दिए जाएंगे. '' - कौशल तेंदुलकर, सीईओ

इन मकानों को देखकर पता लग जाता है कि किस तरह से इनका निर्माण किया गया है. बैगा आदिवासी आज बारिश के समय कच्चे मकानों में रहने को मजबूर है.क्योंकि उन्हें भरोसा है कि ये मकान कब मिट्टी में मिल जाए इसका कोई ठिकाना नहीं. इसलिए वो खुद के बनाएं मिट्टी के पुराने मकानों में आसरा लिए हैं.लेकिन उन ठेकेदारों और अफसरों का क्या जिन्होंने सरकारी पैसे से सिर्फ अपनी जेबें गर्म की है.

हितग्राहियों को तीन महीने से नहीं मिला राशन, बाजार से चावल खरीदकर खाने को मजबूर

गौरेला पेंड्रा मरवाही : गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में आदिवासी विकास और बैगा विकास के नाम पर गंदा मजाक देखने को मिला है. जिले में ना तो बैगा आदिवासियों को शुद्ध पानी ही मिल रहा है ना ही पहुंच मार्ग है. और तो और शासकीय सुविधाओं के नाम पर उन्हें मिले पक्के मकान जिले में आदिवासी विकास के नाम पर हुए भ्रष्टाचार की पोल खोल रहे हैं. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जिले के बैगा आदिवासियों के लिए आवास स्वीकृत हुए थे.लेकिन जो मकान बनाकर आदिवासियों को दिए गए उसकी हालत देखकर आप खुद अंदाजा लगा लेंगे कि ये मकान हैं या मौत का सामान.

गौरेला में बैगा आदिवासियों के साथ धोखा (ETV Bharat Chhattisgarh)

चार साल में ही खंडहर हुए मकान : प्रधानमंत्री आवास निर्माण के चार साल बाद ही जर्जर अवस्था में पहुंच चुके हैं. कंक्रीट के मकान पूरी तरह जर्जर हो चुके हैं. फर्श पर बड़े-बड़े गड्ढे, छत और दीवारों में बड़ी दरारें पड़ चुकी हैं. कुल मिलाकर मकान का एक भी हिस्सा रहने लायक नहीं है.

''पक्के कंक्रीट के मकान से ज्यादा मजबूत हमारे मिट्टी के मकान हैं. इन मकानों रहने में डर लगता है, इसलिए इसे छोड़कर वापस अपने मिट्टी के मकान में रहने लग गए हैं.''- रामप्यारी बैगा, हितग्राही

किसने किया धोखा : बैगाओं को पता है कि सरकारी आवास के नाम पर उनके साथ धोखा हुआ है. अधिकारियों से साठ गांठ करके ठेकेदारों ने बैगाओं के नाम पर आई योजनाओं से अपना पेट भरा और निर्माण में कोताही बरती. विशेष संरक्षित जनजाति और राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले अनुसूचित बैगा आदिवासियों को राष्ट्रपति के गोद पुत्र का दर्जा हासिल है. बैगा आदिवासियों के आवास निर्माण में हुए भ्रष्टाचार पर जब हमने जिला पंचायत के सीईओ से बात की गई तो उन्होंने पूरे मामले पर जांच की बात कही है. साथ ही बैगा आदिवासियों को नए मकान दिलवाने की बात भी कही है.

''बैगा आदिवासियों को पीएम आवास के तहत जो मकान उपलब्ध कराएं गए थे,उसमें गुणवत्ता की कमी की शिकायत मिली है.जांच के बाद दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी.आदिवासियों को योजना के तहत नए मकान दिए जाएंगे. '' - कौशल तेंदुलकर, सीईओ

इन मकानों को देखकर पता लग जाता है कि किस तरह से इनका निर्माण किया गया है. बैगा आदिवासी आज बारिश के समय कच्चे मकानों में रहने को मजबूर है.क्योंकि उन्हें भरोसा है कि ये मकान कब मिट्टी में मिल जाए इसका कोई ठिकाना नहीं. इसलिए वो खुद के बनाएं मिट्टी के पुराने मकानों में आसरा लिए हैं.लेकिन उन ठेकेदारों और अफसरों का क्या जिन्होंने सरकारी पैसे से सिर्फ अपनी जेबें गर्म की है.

हितग्राहियों को तीन महीने से नहीं मिला राशन, बाजार से चावल खरीदकर खाने को मजबूर

Last Updated : Jun 22, 2024, 11:32 AM IST
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