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सरिस्का के जंगल से दूरी बना रहे भालू, वनकर्मी कर रहे बार बार ट्रेंकुलाइज - sariska tiger reserve alwar

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jul 19, 2024, 4:50 PM IST

माउंट आबू और जालौर के जंगलों से भालुओं को अलवर के सरिस्का टाइगर रिजर्व का जंगल रास नहीं आ रहा है. यही कारण है कि भालू सरिस्का का जंगल छोड़ आबादी क्षेत्रों में पहुंच रहे हैं.

sariska tiger reserve alwar
सरिस्का के जंगल से दूरी बना रहे भालू (PHOTO ETV Bharat Alwar)
सरिस्का के जंगल से दूरी बना रहे भालू (ETV Bharat Alwar)

अलवर: सरिस्का टाइगर रिजर्व में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए करीब दो साल पहले माउंट आबू व जालौर से चार भालू लाए गए थे. सरिस्का में आने के बाद भालू जंगल में अपना ठिकाना बनाने के बजाय गांवों एवं आबादी क्षेत्रों में पहुंच रहे हैं. ये भालू बानसूर, विराटनगर, राजगढ़, अलवर के पास एवं करौली तक अपनी पहुंच बना चुके हैं. भालुओं की आबादी क्षेत्रों में घुसपैठ वनकर्मियों के लिए परेशानी का कारण बनी है.

भालू इसलिए जा रहे आबादी की ओर: वन्य जीव प्रेमी लोकेश खंडेलवाल ने कहा कि सरिस्का में लाए गए भालुओं का आबादी की ओर रुख करने के पीछे कई कारण रहे हैं. इनमें सबसे बड़ा कारण भालुओं को सरिस्का क्षेत्र में मानवीय भोजन देना माना जा रहा है. वहीं, जालौर, माउंट आबू और सरिस्का के भौगोलिक वातावरण भी अंतर होना है. वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि भालू ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्रों में रहने के आदी हैं, लेकिन इन्हें सरिस्का के खुले जंगल में छोड़ा गया. भालुओं का प्रिय भोजन मधुमक्खी का छत्ता, गूलर सहित जंगली फल और पौधे रहे हैं, लेकिन भालुओं को सरिस्का लाते समय विराट नगर की कुल्फी, तरबूज सहित मानवीय भोजन दिया गया. इसी का परिणाम है कि कई बार भालुओं को आबादी क्षेत्रों में शादी आदि के बचे खाने को खाते भी देखा गया.

पढ़ें: सरिस्का में गांव खाली हुए तो बढ़ी बाघों की संख्या, दुलर्भ वन्यजीव भी दिखे

बाघों से ज्यादा भालुओं की मॉनिटरिंग: लोकेश खंडेलवाल ने कहा सरिस्का के वनकर्मी भालूओं की मॉनिटरिंग लगातार कर रहे हैं, लेकिन भालुओं का आबादी क्षेत्रों की ओर जाने पर रोक नहीं लग पा रही है. वनकर्मियों का मानना है कि भालुओं की मॉनिटरिंग करना बाघों से भी मुश्किल हो रहा है. भालुओं के बार- बार आबादी क्षेत्रों में जाने के कारण वनकर्मियों को उन्हें ट्रेंकुलाइज कर वापस जंगल में लाना पड़ रहा है.

भालुओं से पर्यटन कम और परेशानी ज्यादा बढ़ी: सरिस्का में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए लाए गए भालुओं की पर्यटकों को साइटिंग नहीं हुई. इसका कारण उनका जंगल के बजाय आबादी क्षेत्रों में ज्यादा घूमना रहा. भालुओं को बाघों से दूर रखा गया है, जबकि सरिस्का के ज्यादातर सफारी रूट बाघों वाले क्षेत्रों में हैं. सरिस्का में भालुओं की साइटिंग के लिए अलग से कोई रूट नहीं बनाया गया. इस कारण पर्यटकों को भालुओं की साइटिंग नहीं हो पा रही है.

ये भी पढ़ें:ये है सरिस्का में बाघों की लंबी आयु का राज, सामान्य से डेढ़ गुना तक जी चुके जीवन

तालवृक्ष रेंज में छोड़े थे भालू: लोकेश खंडेलवाल ने कहा कि जालौर व माउंट आबू से लाए गए भालुओं को सरिस्का के ताल वृक्ष रेंज में छोड़ गया था. इसके बाद जंगलों में विचरण करते हुए ये भालू कभी आबादी तो कभी पहाड़ी क्षेत्रों पर पहुंच जाते हैं. सरिस्का के भालू हरसौरा की पहाड़ियों, इंदोक की पहाड़ी तक भी पहुंच चुके हैं.

सरिस्का के जंगल से दूरी बना रहे भालू (ETV Bharat Alwar)

अलवर: सरिस्का टाइगर रिजर्व में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए करीब दो साल पहले माउंट आबू व जालौर से चार भालू लाए गए थे. सरिस्का में आने के बाद भालू जंगल में अपना ठिकाना बनाने के बजाय गांवों एवं आबादी क्षेत्रों में पहुंच रहे हैं. ये भालू बानसूर, विराटनगर, राजगढ़, अलवर के पास एवं करौली तक अपनी पहुंच बना चुके हैं. भालुओं की आबादी क्षेत्रों में घुसपैठ वनकर्मियों के लिए परेशानी का कारण बनी है.

भालू इसलिए जा रहे आबादी की ओर: वन्य जीव प्रेमी लोकेश खंडेलवाल ने कहा कि सरिस्का में लाए गए भालुओं का आबादी की ओर रुख करने के पीछे कई कारण रहे हैं. इनमें सबसे बड़ा कारण भालुओं को सरिस्का क्षेत्र में मानवीय भोजन देना माना जा रहा है. वहीं, जालौर, माउंट आबू और सरिस्का के भौगोलिक वातावरण भी अंतर होना है. वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि भालू ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्रों में रहने के आदी हैं, लेकिन इन्हें सरिस्का के खुले जंगल में छोड़ा गया. भालुओं का प्रिय भोजन मधुमक्खी का छत्ता, गूलर सहित जंगली फल और पौधे रहे हैं, लेकिन भालुओं को सरिस्का लाते समय विराट नगर की कुल्फी, तरबूज सहित मानवीय भोजन दिया गया. इसी का परिणाम है कि कई बार भालुओं को आबादी क्षेत्रों में शादी आदि के बचे खाने को खाते भी देखा गया.

पढ़ें: सरिस्का में गांव खाली हुए तो बढ़ी बाघों की संख्या, दुलर्भ वन्यजीव भी दिखे

बाघों से ज्यादा भालुओं की मॉनिटरिंग: लोकेश खंडेलवाल ने कहा सरिस्का के वनकर्मी भालूओं की मॉनिटरिंग लगातार कर रहे हैं, लेकिन भालुओं का आबादी क्षेत्रों की ओर जाने पर रोक नहीं लग पा रही है. वनकर्मियों का मानना है कि भालुओं की मॉनिटरिंग करना बाघों से भी मुश्किल हो रहा है. भालुओं के बार- बार आबादी क्षेत्रों में जाने के कारण वनकर्मियों को उन्हें ट्रेंकुलाइज कर वापस जंगल में लाना पड़ रहा है.

भालुओं से पर्यटन कम और परेशानी ज्यादा बढ़ी: सरिस्का में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए लाए गए भालुओं की पर्यटकों को साइटिंग नहीं हुई. इसका कारण उनका जंगल के बजाय आबादी क्षेत्रों में ज्यादा घूमना रहा. भालुओं को बाघों से दूर रखा गया है, जबकि सरिस्का के ज्यादातर सफारी रूट बाघों वाले क्षेत्रों में हैं. सरिस्का में भालुओं की साइटिंग के लिए अलग से कोई रूट नहीं बनाया गया. इस कारण पर्यटकों को भालुओं की साइटिंग नहीं हो पा रही है.

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तालवृक्ष रेंज में छोड़े थे भालू: लोकेश खंडेलवाल ने कहा कि जालौर व माउंट आबू से लाए गए भालुओं को सरिस्का के ताल वृक्ष रेंज में छोड़ गया था. इसके बाद जंगलों में विचरण करते हुए ये भालू कभी आबादी तो कभी पहाड़ी क्षेत्रों पर पहुंच जाते हैं. सरिस्का के भालू हरसौरा की पहाड़ियों, इंदोक की पहाड़ी तक भी पहुंच चुके हैं.

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