बाड़मेर. देश की सबसे चर्चित सीटों में शुमार बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट पर 26 अप्रैल को दूसरे चरण में मतदान हुआ था. केंद्रीय मंत्री और भाजपा प्रत्याशी कैलाश चौधरी और कांग्रेस के उम्मेदाराम बेनीवाल के अलावा निर्दलीय रविंद्र सिंह भाटी के चुनावी मैदान में उतरने से यह सीट त्रिकोणीय मुकाबले में फंस गई है. अब सबकी नजर इस सीट पर टिकी है कि आखिर 2024 के रण में कौन बाजी मारेगा? राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यहां त्रिकोणीय मुकाबला न रहकर बल्कि एक राजनीतिक पार्टी और निर्दलीय प्रत्याशी रविंद्र सिंह भाटी के बीच मुकाबला रह गया है. इस सीट पर सत्तारूढ़ पार्टी के केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी की साख दांव पर है. अब 4 जून को मतगणना के दिन तस्वीर साफ होगी.
देश की दूसरी सबसे बड़ी लोकसभा सीट : बाड़मेर जैसलमेर लोकसभा देश की दूसरी सबसे बड़ी लोकसभा सीट है. इस सीट पर 22 लाख 6 हजार मतदाता हैं. इस सीट के लोकसभा क्षेत्र में बाड़मेर जिले की बाड़मेर, चौहटन, शिव, गुड़ामालानी, बायतु, पचपदरा, सिवाना और जैसलमेर जिले की जैसलमेर सीट शामिल हैं. इन आठ विधानसभा सीटों में से वर्तमान में 5 पर बीजेपी और 1 पर कांग्रेस, जबकि 2 पर निर्दलीय का कब्जा है. इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा माना जाता है, लेकिन पिछले दो बार के 2014 और 2019 के चुनावों में भाजपा ने जीत हासिल की है.
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2014 ओर 2019 में भाजपा का दबदबा कायम: पिछले दो बार के लोकसभा चुनाव में बाड़मेर-जैसलमेर सीट की बात की जाए तो इस सीट का इतिहास बड़ा रोचक रहा है. यहां पर 2014 में भाजपा ने कद्दावर नेता जसवंत सिंह को दरकिनार करके कांग्रेस से आए कर्नल सोनाराम को प्रत्याशी बनाया गया था. टिकट कटने से नाराज जसवंत सिंह ने स्वाभिमान का नारा देते हुए निर्दलीय ताल ठोक दी. चुनाव कांग्रेस और भाजपा के बीच होने की बजाय निर्दलीय और भाजपा के बीच रह गया. हालांकि, भाजपा के कर्नल सोनाराम चौधरी ने 80 हजार वोटों से चुनाव जीत लिया, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी हरीश चौधरी तीसरे नंबर पर रहे. वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो पूर्व केंद्रीय जसवंत सिंह जसोल के बेटे मानवेंद्र सिंह ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस से चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा से चुनाव लड़ रहे कैलाश चौधरी ने 3 लाख से अधिक वोटों से उन्हें शिकस्त दी थी. चुनाव जीतने के बाद कैलाश चौधरी को केंद्र की मोदी सरकार में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री बनाया गया.
10 साल बाद फिर त्रिकोणय मुकाबले में फंस यह सीट : 10 साल बाद एक बार फिर से त्रिकोणीय मुकाबले में यह सीट फंस गई है. दोनों राजनीतिक दलों ने जाट चेहरे पर दांव खेला है. भाजपा ने कैलाश चौधरी और कांग्रेस ने उम्मेदाराम बेनीवाल को प्रत्याशी बनाया है. वहीं, राजपूत समाज से आने वाले 26 वर्षीय रविंद्र सिंह भाटी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी रण में उतरे हैं. इसकी वजह से यह सीट न केवल देशभर में चर्चा में आई, बल्कि त्रिकोणीय मुकाबले में भी फंस गई है.
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कैलाश चौधरी की चुनौती बढ़ी : बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भी इस सीट पर ऐसी ही परिस्थिति बनी थी. उस वक्त भी भाजपा और कांग्रेस के दोनों प्रत्याशी जाट थे और निर्दलीय जसवंत सिंह राजपूत थे. जसवंत सिंह इस चुनाव में 87 हजार से अधिक वोटों से हार गए थे, लेकिन उनके समर्थक आज तक उस हार को पचा नहीं पाए हैं. जसवंत सिंह जसोल के बेटे मानवेंद्र सिंह अब भाजपा में आ गए. इस बार भी यही माना जा रहा है कि 2024 का चुनाव भी दो पार्टियों के बीच नहीं रहकर बल्कि निर्दलीय रविंद्र सिंह भाटी और एक पार्टी के बीच रहेगा. बता दें कि 2014 में भाजपा के प्रत्याशी रहे कर्नल सोनाराम अब कांग्रेस में हैं. यहां पर भाजपा प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी की चुनौती बढ़ी हुई है.