चरखी दादरी: पेरिस ओलंपिक के बाद अब पैरा ओलंपिक में भी हरियाणा के खिलाड़ियों का जलवा जारी है. चरखी दादरी के नितेश कुमार ने बैडमिंटन में गोल्ड मेडल (Nitesh Gold Medal Paralympics) जीतकर इतिहास रच दिया है. नितेश कुमार चरखी दादरी के नांदा गांव से ताल्लुक रखते हैं. उनकी इस उपलब्धि से नांदा गांव में खुशी का माहौल है. पैरालंपिक बैडमिंटन पुरुष एकल एसएल 3 वर्ग के फाइनल में नितेश कुमार का सामना ग्रेट ब्रिटेन के डेनियल बेथेल से हुआ है. जिसमें नितेश ने डेनियल बेथेल को 21-14, 18-21, 23-21 के स्कोर से मात देकर गोल्ड पर कब्जा किया.
नितेश के गांव में खुशी का माहौल: चरखी दादरी जिले के नांदा गांव निवासी नितेश लुहाच (Badminton player Nitesh) फुटबॉल के अच्छे खिलाड़ी थे. जब वो 15 साल के थे. तब विशाखापट्टनम में रेल की चपेट में आने से उन्होंने अपना बांया पैर गंवा दिया. जिसके कुछ समय बाद उन्होंने बैडमिंटन खेलना शुरू किया. जिसमें महारत हासिल कर पैरा ओलंपिक में बड़ा मुकाम हासिल किया है. उनकी इस उपलब्धि पर गांव में खुशी का माहौल है और लड्डू बांटकर खुशी का इजहार किया जा रहा है.
पहले फुटबॉल के खिलाड़ी थे नितेश: बता दें कि नितेश के पिता इंडियन नेवी से रिटायर्ड हैं. वो जयपुर में रहते हैं. नितेश ने प्रारंभिक शिक्षा आठ साल तक गांव में ही पूरी की. इस दौरान वो अपने ताऊ गुणपाल के पास रहे. उसके बाद पिता की पोस्टिंग के अनुसार अलग-अलग शहरों में जाना पड़ा. नितेश के चाचा सत्येंद्र ने बताया कि नितेश जब करीब 15 साल के थे. उस दौरान उनके पिता बिजेंद्र सिंह की विशाखापट्टनम में पोस्टिंग थी.
ट्रेन हादसे में कट गई थी टांग: हादसे से पहले नितेश फुटबॉल के अच्छे खिलाड़ी थे. एक रोज शाम को नितेश फुटबॉल खेलने के लिए गए हुए थे. उस दिन उनके एक दोस्त का जन्मदिन था. नितेश रेलवे यार्ड के समीप अपने दोस्त के घर जन्मदिन मनाने गया. वापस आते समय रेलवे यार्ड में रेल खड़ी थी. नितेश रेलवे के नीचे से पटरी पार कर रहा था. उस दौरान अचानक रेल चल पड़ी. जिससे वो चपेट में आ गया और उसका पैर जांघ के समीप से अलग हो गया. रिकवर होने के लिए नितेश ने बेड रेस्ट किया.
रिकवर होने के बाद बैडमिंटन खेलना शुरू किया: पैर गंवाने के साथ नितेश का फुटबॉल भी छूट गया. बाद में नितेश ने टाइम पास करने के लिए बैडमिंटन (Badminton player Nitesh) खेलना शुरू किया. उसकी प्रतिभा को कॉलेज में कोच ने पहचाना और उसे निखारने का काम किया. जिसके बाद से वो आगे बढ़ता चला गया और आज देश के लिए गोल्ड जीतकर साबित कर दिया है कि बिना पैर के भी दुनिया नापी जा सकती है.
बीजिंग पैरा ओलंपिक में जीता था सिल्वर: नितेश ने बीजिंग पैरा ओलंपिक में भी कमाल का प्रदर्शन किया था और उन्होंने सिल्वर मेडल हासिल किया था, लेकिन उसकी तमन्ना देश के लिए गोल्ड जीतने की थी. जिसके चलते उन्होंने और अधिक कड़ी मेहनत की और जो सपना बीजिंग में अधूरा रह गया था. उसे पेरिस में पूरा करके दिखाया है.
नितेश के घर बांटी जा रही मिठाईयां: नितेश के ताऊ गुणपाल सिंह ने कहा कि उसकी इस उपलब्धि पर पूरे देश और गांव को गर्व है. उन्होंने कहा "नितेश करीब आठ साल की उम्र तक मेरे साथ रहा है. इस दौरान उसे ये भी नहीं पता था कि उसका पापा कौन है. वो मुझको ही अपना पापा कहता था. बाद में जब वो बड़ा हुआ, तो उसे पता चला कि उसका पापा बाहर काम कर रहा है और वो अपने पापा के साथ रहने लगा." गुणपाल सिंह ने कहा कि बेटे की इस उपलब्धि पर उन्हें पूरा नाज है.