प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आपराधिक इतिहास छिपाकर अग्रिम जमानत पाने वाले वकील की जमानत रद्द कर दी. कोर्ट ने कहा कि जमानत आदेश प्राप्त करने में स्वच्छ हाथों से अदालत आने के सिद्धांत का पालन नहीं किया गया. हाईकोर्ट ने कहा कि कानून मकड़ी के जाले की तरह है. इसमें छोटी मक्खी ही फंसती हैं.
रामपुर के विनोद सिंह की ओर से दाखिल जमानत निरस्त करने की अर्जी पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने एंग्लो आयरिश लेखक की एक टिप्पणी का उल्लेख किया. इसमें कहा गया है कि "कानून मकड़ी के जाले की तरह हैं जो छोटी मक्खियों को पकड़ सकते हैं, लेकिन ततैया और सींगों को घुसने देते हैं.
कोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत देने में महत्वपूर्ण कारकों में से एक आरोपी का आपराधिक इतिहास है और इसका सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाना चाहिए. कहा कि यदि अभियुक्त का आपराधिक इतिहास है तो यह अग्रिम जमानत देने के निर्णय पर प्रभाव डाल सकता है. मौजूदा मामले में आवेदक कानूनी पेशेवर होने के नाते, आपराधिक पृष्ठभूमि की व्याख्या करने के लिए अधिक जिम्मेदार था.
याचिका में कहा गया कि विपक्षी वकील के खिलाफ कोतवाली रामपुर में धारा 420, 467, 468, 471, 386, 397, 115 व आइपीसी के 323, 504, 506 के तहत दर्ज है. इसमें उसे सत्र न्यायालय ने अग्रिम जमानत दी है, क्योंकि उसने अपना अपराधिक इतिहास छिपाकर जमानत अर्जी दाखिल की थी.
कोर्ट ने अधिवक्ता को संबंधित ट्रायल कोर्ट में 3 तीन सप्ताह के अंदर आत्मसमर्पण करने का समय दिया है. सत्र न्यायाधीश रामपुर ने वकील की जमानत मंजूर की थी. अब हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया है. वहीं आरोपी वकील ने तर्क रखा कि उसने अपने आपराधिक इतिहास के बारे में बताया था. दोनों मामलों में क्लोजर रिपोर्ट दायर की गई थी. लिहाजा उसने इस तथ्य का उल्लेख नहीं किया.
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