राजनांदगांव: विश्व विख्यात जैन मुनि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का देवलोक गमन हो गया है. राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ स्थित जैन तीर्थ स्थल चंद्रगिरी पर्वत में वे ब्रह्मलीन हो गए हैं. जैन परंपरा अनुसार उन्होंने विधिवत सल्लेखना धारण किया और 3 दिन के उपवास व मौन धारण किया था. इससे पहले उन्होंने उसी दिन आचार्य का पद भी त्याग दिया था. जिसके बाद आज देर रात ढाई बजे करीब वे ब्रह्मलीन हो गए.
क्या है सल्लेखना विधि: विश्व विख्यात आचार्य विद्यासागर जी महाराज ब्रह्मलीन हो गए हैं. देवलोक गमन से पहले उन्होंने जैन परंपरा अनुसार सल्लेखना धारण किया था. दरअसल, जैन धर्म की अपनी कई विशेषताएं हैं. उसके साथ ही जैन धर्म में सल्लेखना विधि का खास महत्व है. सल्लेखना विधि, मृत्यु को निकट जानकर अपनाया जाने वाला एक जैन प्रथा है. इसमें जब व्यक्ति को लगता है कि वह मृत्यु के करीब है, तो वह खुद खाना-पीना त्याग देता है. दिगंबर जैन शास्त्र अनुसार, समाधि या सल्लेखना इसे कहा जाता है. धर्म का पालन करते हुए सल्लेखना विधि के जरिए व्यक्ति अपना प्राण त्याग देता है. सुख के साथ और बिना किसी दुख के मृत्यु को धारण करना सल्लेखना है.
सल्लेखना, जैन दर्शन में इसे साधु मरण कहते हैं. व्यक्ति जब मरणनसान होता है, जब उसको लगता है कि अब मैं नहीं रहूंगा, तब वह सब कुछ छोड़ देता है. अन्ना-जल सब कुछ छोड़कर वह परमात्मा के प्रति अपना ध्यान लगता है और देवलोक को प्राप्त हो जाता है. सल्लेखना उसी को कहते हैं, जब व्यक्ति सब कुछ छोड़कर देवलोक जाने की स्थिति में रहता है. तब उसे स्थिति को साधु मरण या सल्लेखना कहते हैं. - पद्मश्री डॉ पुखराज बाफना, सामाजिक कार्यकर्ता और जैन समाज सदस्य
समयसागर जी महाराज को चुना उत्तराधिकारी: आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने सल्लेखना धारण करने से पूर्व आचार्य पद के लिए योग्य प्रथम मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण मुनिश्री समयसागर जी महाराज को योग्य समझा और उन्हें आचार्य पद दिए जाने की घोषणा की.