नई दिल्ली: इलेक्टोरल बॉन्ड पर सियासी संग्राम जारी है, आम आदमी पार्टी के नेता और कैबिनेट मंत्री सौरभ भारद्वाज ने प्रेस कॉन्फ्रेस कर बीजेपी पर कई सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा है कि जब केंद्र सरकार द्वारा इस देश पर इलेक्टोरल बॉन्ड को जबरदस्ती थोपा गया तो हर जगह, हर स्तर पर इसका पुरजोर विरोध हुआ था. उन्होंने कहा कि ऐसा बताया जाता है, कि इस इलेक्टोरल बॉन्ड का विरोध रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने, लॉ मिनिस्ट्री ने और देश की कई राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ तमाम पॉलिटिकल एक्टिविस्ट ने भी किया था
सौरभ भारद्वाज ने कहा कि अब जब सुप्रीम कोर्ट ने भी इलेक्टोरल बॉन्ड को गैर संवैधानिक कह दिया है, तो सवाल ये उठता है कि वो कौन सी कंपनियां हैं, जिन्होंने हजारों करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद कर राजनीतिक पार्टियों को लाभ पहुंचाया और उनमे सबसे अधिक लाभ केंद्र सरकार चलाने वाली भारतीय जनता पार्टी को मिला. उन्होंने कहा कि जो जानकारियां मिल रही है उसके मुताबिक लगभग 6000 करोड़ से भी अधिक राशि का इलेक्टोरल बॉन्ड भारतीय जनता पार्टी को मिला. उन्होंने कहा कि अगर केंद्र सरकार के पास कुछ भी छुपाने के लिए नहीं है तो आखिर क्यों सुप्रीम कोर्ट को इतनी मेहनत मशक्कत करनी पड़ रही है. इन तमाम गतिविधियों को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है, कि चाहे वह एसबीआई हो, चाहे इलेक्शन कमीशन हो सभी के ऊपर केंद्र सरकार का दबाव है, कि जानकारी को जितना छिपाया जा सकता है छिपाया जाए.
इलेक्टोरल बॉन्ड के संबंध में सौरभ भारद्वाज ने कहा कि मीडिया के माध्यम से ऐसी जानकारियां मिल रही हैं कि बहुत सी ऐसी कंपनियां है जिन पर ईडी ने छापा मारा और मुकदमे दर्ज हुए. इसका अर्थ यह हुआ कि वह कंपनियां मनी लॉन्ड्रिंग कर रही थी. अर्थात उनका पैसा गैरकानूनी पैसा था. उन्होंने कहा कि ईडी के छापे पड़ने के बाद इन कंपनियों ने इलेक्टरल बॉन्ड खरीदे और वह इलेक्टरल बॉन्ड भारतीय जनता पार्टी को पहुंचे. सौरभ भारद्वाज ने कहा कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में इस बात को कहा है, कि जिस किसी के पास भी यह गैरकानूनी धन पहुंचा, उसे भी इन मुकदमों में आरोपी बनाया जाना चाहिए.
सौरभ भारद्वाज ने कहा कि ये बेहद ही चौंकाने वाली बात है, कि जिस कंपनी ने सबसे अधिक कीमत 1368 करोड़ के इलेक्टोरल बान्ड खरीदे वो कोई बहुत बड़ी कंपनी नहीं बल्कि एक फ्यूचर गेमिंग कंपनी है. सिलसिले वार तरीके से ऐसी विभिन्न कंपनियों की जानकारी मीडिया के माध्यम से प्राप्त हो रही है, इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है, कि इस कंपनी पर ईडी ने 2 अप्रैल 2022 को छापा मारा और उसके बाद 7 अप्रैल 2022 को इस कंपनी ने ये इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे.
सौरभ भारद्वाज ने इन कंपनियों का जिक्र किया
- 'इसी तरह एक अन्य कंपनी अरबिंदो फार्मा जिसके बारे में बार-बार ये कहा जाता है, कि यह तथाकथित एक्साइज पॉलिसी मामले में मुख्य आरोपी थी, 10 नवंबर 2022 को इस कंपनी के एमडी की गिरफ्तारी होती है और 15 नवंबर 2022 को यह कंपनी भी करोड़ों रुपए के इलेक्टोरल बान्ड खरीदती है.
- ऐसे ही शिरडी साईं इलेक्ट्रिकल्स के यहां 20 दिसंबर 2023 को इनकम टैक्स का छापा पड़ता है और ये कंपनी भी 11 जनवरी 2024 को इलेक्टोरल बान्ड खरीदती है.
- फ्रंट पावर 10 जनवरी 2024 को करोड़ों रूपए के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदती हैं और 7 मार्च 2024 को उन्हें महाराष्ट्र में 306 मेगावाट का सोलर प्रोजेक्ट मिल जाता है.
- इसी प्रकार से 13 नवंबर 2023 को डॉक्टर रेड्डी के यहां छापा पड़ता है और ठीक 4 दिन बाद 17 नवंबर 2023 को वह भी करोडों रुपए के इलेक्टोरल बान्ड खरीदती है.
- इसी प्रकार कल्पतरु प्रोजेक्ट के यहां 4 अगस्त 2023 को इनकम टैक्स का छापा पड़ता है और 10 अक्टूबर 2023 को वह भी इलेक्टोरल बान्ड खरीदती है. ऐसे ही एवन साइकिल के खिलाफ पार्लियामेंट में गबन की शिकायत आती है और उसके बाद उन्होंने भी करोड़ों रुपए के इलेक्टोरल बान्ड खरीदे.
- माइक्रोलैब्स पर 14 जुलाई 2022 को इनकम टैक्स का छापा पड़ता है और 10 अक्टूबर 2022 को उन्होंने भी करोड़ों रुपए के इलेक्टोरल बान्ड खरीदे.
- हीरो मोटोकॉप पर 31 मार्च 2022 को इनकम टैक्स का छापा पड़ता है और 7 अक्टूबर 2022 को उन्होंने भी करोड़ों रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे.
- एको इंफ्रा ने 10 जनवरी 2022 को करोड़ों रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे और 24 जनवरी 2022 को इस कंपनी को वर्सोवा सी-लिंक का लगभग 9000 करोड रुपए का टेंडर मिला.
- 26 दिसंबर 2020 को यशोदा अस्पताल के यहां छापा पड़ा और अप्रैल 2021 से लेकर अक्टूबर 2021 तक इस कंपनी ने भी करोड़ों रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे. सौरभ भारद्वाज ने कहा कि क्या यह सभी घटनाएं सिर्फ एक इत्तेफाक है ?'
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उन्होंने कहा कि हो सकता है यह सभी बातें एक इत्तेफाक हो, परंतु केंद्र सरकार इस पूरे मामले से क्यों भाग रही है? भारतीय जनता पार्टी खुद से क्यों नहीं बता रही है, कि उन्हें किस-किस कंपनी के द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा मिला था? आखिर क्यों सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में डंडा चलाना पड़ रहा है.
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