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JJP कर सकती है बीजेपी के साथ 'खेला', कांग्रेस का नुकसान कम, पिछले दो चुनावों के आंकड़े गवाह - BJP AND JJP Alliance

BJP AND JJP Alliance: एक पुराना फिल्मी गाना है. वो अफ्साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन/उसे इक खूब-सूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा. बीजेपी और जेजेपी का पिछले साढ़े चार साल का गठबंधन भी कुछ ऐसा ही था. राजनीति समझने वालों को मालुम था कि चुनाव आने तक इस रिश्ते का अंजाम यही होगा. क्योंकि जेजेपी और बीजेपी के सियासी वजूद में 36 का आंकड़ा है और सत्ता की दोस्ती पार्टी की कीमत पर नहीं हो सकती. आइये आपको बताते हैं कि कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी के लिए जेजेपी क्यों खतरा है. और वोट पाने के लिए बीजेपी विरोध ही जेजेपी की मजबूरी क्यों है.

BJP AND JJP Alliance
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Mar 18, 2024, 3:49 PM IST

Updated : Mar 18, 2024, 8:19 PM IST

चंडीगढ़: बीजेपी और जेजेपी का गठबंधन (BJP AND JJP Alliance) साढ़े चार साल साथ सरकार चलाने के बाद 12 मार्च को टूट गया. दोनों पार्टियां चुनाव में एकला चलो की नीति पर आगे बढ़ रही हैं. राजनीतिक गलियारे में इस बात का विश्लेषण हो रहा है किा आखिर बीजेपी-जेजेपी गठबंधन टूटने से किसको फायदा होगा और किसको ज्यादा नुकसान है. जेजेपी से गठबंधन टूटने के पीछे ये चर्चा रही कि बीजेपी जाट वोट के बिखरने का फायदा उठाना चाह रही है. हलांकि अगर इसके विश्लेषण में जाएं तो बीजेपी के लिए जेजेपी ज्यादा टेंशन साबित हुई है.

प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस पहले से कहती आ रही है कि दोनों में अघोषित समझौता है. गठबंधन तोड़ना भी इनकी साजिश है. कांग्रेस और जेजेपी, दोनों का प्रमुख जनाधार जाट वोट बैंक माना जाता है. और बीजेपी नॉन जाट फैक्टर पर चुनाव लड़ती है. शायद यही वजह है कि बीजेपी, जेजेपी के सहारे जाट वोट बैंक तोड़कर फायदा उठाना चाहती है. जेजेपी को उसके मतदाताओं ने 2019 में बीजेपी के विरोध में वोट किया. और बीजेपी को गैर जाट वोटरों ने जाट आंदोलन से उपजे गुस्से के में ज्यादा मतदान किया. यानि चुनाव के बाद सत्ता के लिए जेजेपी भले ही बीजेपी के साथ हो जाए लेकिन चुनावी मुद्दे और विचारधारा पर उसका बीजेपी के साथ 36 का संबंध है. इसकी कई बानगी हैं.

BJP AND JJP Alliance
लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में सभी दलों के वोट प्रतिशत और सीटें.
  1. जेजेपी के बावजूद बढ़ा कांग्रेस का वोट बैंक- पिछले दो चुनावों (2014 और 2019) के आंकड़े देखें तो जेजेपी से कांग्रेस को कोई नुकसान नहीं हुआ. जेजेपी केवल इनेलो के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब रही, जबकि कांग्रेस का वोट बैंक लोकसभा चुनाव 2014 की तुलना में 2019 में बढ़ गया. यहीं हाल विधानसभा चुनाव में भी रहा. जेजेपी के चुनाव लड़ने के बावजू द कांग्रेस 2019 विधानसभा चुनाव में 31 सीट जीतने में कामयाब रही, जबकि 2014 में उसे केवल 15 सीटें मिली थी. 2014 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल 20.7 प्रतिशत वोट मिला था जबकि 2019 में जेजेपी के लड़ने के बावजूद ये बढ़कर 28.2 प्रतिशत हो गया.
  2. बीजेपी का वोट बैंक नहीं तोड़ पाई जेजेपी- बीजेपी ने 2014 के विधानसभा चुनाव बीजेपी ने 33.7 प्रतिशत वोट हासिल किया था और 47 सीटें जीती थी. जबकि 2019 में उसका वोट प्रतिशत करीब 3 फीसदी बढ़कर 36.3 फीसदी हो गया. हलांकि बीजेपी को 2019 में 7 सीट का नुकसान हुआ और केवल 40 सीट मिली. वहीं लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी को 34.8 प्रतिशत वोट के साथ 7 सीटें मिली थी. और 2019 में 58.2 फीसदी वोट लेकर बीजेपी ने सभी 10 सीटें जीती.
  3. जेजेपी को बड़ी जीत के लिए बीजेपी का गैर-जाट वोट चाहिए- इनेलो का पूरा वोट जेजेपी को नहीं बल्कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों में ट्रांसफर हुआ. इसकी गवाही आंकड़े भी दे रहे हैं. इनेलो ने 2014 विधानसभा चुनाव में 24.2 फीसदी वोट के साथ 19 सीटें हासिल की थी. लेकिन 2019 में जेजेपी के आने के बाद उसका वोट केवल 2.5 प्रतिशत रह गया और केवल एक सीट जीत पाई. लेकिन यहां गौर करने वाली बात ये है कि इनेलो का 24.2 प्रतिशत वोट जेजेपी को नहीं मिला. जेजेपी को विधानसभा चुनाव 2019 में केवल 14.9 फीसदी वोट मिले. बाकी का वोट कांग्रेस और बीजेपी दोनों में ट्रांसफर हुआ. कांग्रेस और बीजेपी दोनों का वोट प्रतिशत 2019 में बढ़ गया. यानि जेजेपी इनेलो का भी पूरा वोट हासिल करने में कामयाब नहीं रही.
  4. बीजेपी की गैर-जाट राजनीति जेजेपी के लिए मुश्किल- राजनीतिक जानकार कहते हैं कि हरियाणा में 2014 से बीजेपी खुलेआम गैर जाट वोट की राजनीति कर रही है. उसका जनाधार गैर जाट वोट बैंक है. इसकी बड़ी वजह है. जाट आरक्षण आंदोलन में हुई हिंसा और किसान आंदोलन के चलते ये खाई और ज्यादा बढ़ गई. इसलिए बीजेपी जाट से ज्यादा ओबीसी, पंजाबी, ब्राह्मण और दलित वोट पर फोकस कर रही है. इसलिए अगर जेजेपी को बड़ी जीत हासिल करना है तो जाट वोट के अलावा गैर जाट वोट में भी सेंध लगानी पड़ेगी. क्योंकि इनेलो को जाट के साथ बाकी वर्गों का भी समर्थन था.
  5. नाराज जाट वर्ग जेजेपी को पड़ सकता है भारी- हरियाणा की सियासत को जानने वाले कहते हैं कि बीजेपी से गठबंधन करके जेजेपी नाराज जाट मतदाताओं के निशाने पर आ गई है. 2019 में जेजेपी पहली बार चुनाव में उतरी थी, इसलिए उसके कोर वोटर उसे विकल्प के रूप में देखते थे. लेकिन अब उसके मतदाताओं में ये बात साफ हो गई है कि चुनाव के बाद जेजेपी फिर से बीजेपी के साथ गठबंधन करेगी, जो कि जाट विरोधी है. यही नाराजगी जेजेपी को भारी पड़ सकती है और जेजेपी का नाराज वोटर कांग्रेस की तरफ रुख कर सकता है.
  6. 2019 में जेजेपी को बीजेपी से नाराजगी का फायदा- 2019 का विधानसभा चुनाव जेजेपी पूरी तरह से बीजेपी सरकार के खिलाफ लड़ी थी. जेजेपी के विधायकों ने सीधे मुकाबले में बीजेपी के दिग्गज नेताओं को हराया था. ये नतीजे बताते हैं कि बीजेपी के खिलाफ उनमें कितना गुस्सा था. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके सुभाष बराला, वित्त मंत्री रहे कैप्टन अभिमन्यु और राज्यमंत्री कृष्ण बेदी जैसे बड़े नेताओं को जेजेपी के उम्मीदवारों ने हराया था. इसलिए बीजेपी के साथ गठबंधन को लेकर अपने मतदातओं को समझाना जेजेपी के लिए इस चुनाव में मुश्किल होगा.
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पिछले दो विधानसभा चुनाव में सभी पार्टियों के वोट प्रतिशत.

7. 2019 में बीजेपी से लड़कर जीती थी जेजेपी- 2019 में जेजेपी ने 10 विधानसभा सीटें जीती. इनमें से 8 पर सीधे मुकाबले में उनके उम्मीदवारों ने बीजेपी के दिग्गज नेताओं को हराया. यानि बीजेपी के खिलाफ नाराजगी का जेजेपी को फायदा हुआ. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रहे सुभाष बराला, वित्त मंत्री रहे कैप्टन अभिमन्यु, चौधरी बीरेंद्र की पत्नी प्रेमलता को जेजेपी उम्मीदवारों ने मात दी. जाहिर बात है बीजेपी से गठबंधन उसको नुकसान पहुंचा सकता है. देखिए जेजेपी की 10 में से वो 8 सीटें जहां उसने बीजेपी को हराया.

  • शाहबाद से रामकरन काला ने बीजेपी में मंत्री रहे कृष्ण बेदी को हराया
  • बरवाला से जेजेपी के जोगीराम सिहाग ने बीजेपी के सुरेंद्र पुनिया को हराया
  • जुलाना से जेजेपी के अमरजीत ढांडा ने बीजेपी के परमिंदर ढुल को हराया
  • नारनौंद से जेजेपी के रामकुमार गौतम ने बीजेपी के वित्त मंत्री रहे कैप्टन अभिमन्यु को हराया
  • टोहाना से जेजेपी के देवेंदर सिंह बबली ने बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके सुभाष बराला को 50 हजार से ज्यादा वोट से हराया
  • उचाना से दुष्यंत चौटाला ने बीजेपी उम्मीदवार और चौधरी बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता को हराया.
  • नरवाना से जेजेपी के रामनिवास ने बीजेपी के संतोष रानी को 30 हजार से ज्यादा वोट से हराया.
  • उकलाना से अनूप धानक ने बीजेपी की आशा खेदड़ को 23 हजार से ज्यादा वोट से हराया

8. जेजेपी को लगाना होगा बीजेपी वोट बैंक में सेंध- 2019 के विधानसभा चुनाव में जेजेपी के 10 उम्मीदवार दूसरे नंबर पर थे. इनमें से एक सीट छोड़कर 9 सीटों पर उसका मुकाबला सीधे बीजेपी से हुआ था. 9 सीटों पर बीजेपी उम्मीदवार जीते और जेजेपी उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे. जाहिर सी बात है कि अगर जेजेपी को अपनी सीटें बढ़ानी है तो बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगानी होगी. क्योंकि कांग्रेस के वोट बैंक पर ज्यादा असर नहीं पड़ा.

  • भिवानी में बीजेपी के घनश्याम सर्राफ जीते और जेजेपी दूसरे नंबर पर रही
  • दादरी से निर्दलीय सोमबीर सांगवान जीते और जेजेपी के सतपाल सांगवान दूसरे नंबर पर रहे.
  • फतेहाबाद से बीजेपी के दुराराम जीते और जेजेपी के वीरेंद्र सिवाच दूसरे नंबर पर रहे.
  • हांसी से बीजेपी के विनोद भयाना जीते और जेजेपी के उम्मीदवार राहुल मक्कर दूसरे नंबर पर रहे.
  • जींद में बीजेपी के कृष्ण मिढा जीते. जेजेपी के महाबीर गुप्ता दूसरे नंबर पर रहे.
  • नांगल चौधरी से बीजेपी के अभय सिंह यादव जीते और जेजेपी के मुलाराम दूसरे नंबर पर
  • नारनौल से बीजेपी के ओम प्रकाश यादव जीते, जेजेपी के कमलेश सैनी दूसरे नंबर पर.
  • पानीपत ग्रामीण से बीजेपी के महिपाल ढांडा जीते. जेजेपी के देवेंदर कादियान दूसरे नंबर पर रहे.
  • सोहना से बीजेपी के संजय सिंह जीते और जेजेपी के रोहतास सिंह दूसे नंबर पर रहे.

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प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस पहले से कहती आ रही है कि दोनों में अघोषित समझौता है. गठबंधन तोड़ना भी इनकी साजिश है. कांग्रेस और जेजेपी, दोनों का प्रमुख जनाधार जाट वोट बैंक माना जाता है. और बीजेपी नॉन जाट फैक्टर पर चुनाव लड़ती है. शायद यही वजह है कि बीजेपी, जेजेपी के सहारे जाट वोट बैंक तोड़कर फायदा उठाना चाहती है. जेजेपी को उसके मतदाताओं ने 2019 में बीजेपी के विरोध में वोट किया. और बीजेपी को गैर जाट वोटरों ने जाट आंदोलन से उपजे गुस्से के में ज्यादा मतदान किया. यानि चुनाव के बाद सत्ता के लिए जेजेपी भले ही बीजेपी के साथ हो जाए लेकिन चुनावी मुद्दे और विचारधारा पर उसका बीजेपी के साथ 36 का संबंध है. इसकी कई बानगी हैं.

BJP AND JJP Alliance
लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में सभी दलों के वोट प्रतिशत और सीटें.
  1. जेजेपी के बावजूद बढ़ा कांग्रेस का वोट बैंक- पिछले दो चुनावों (2014 और 2019) के आंकड़े देखें तो जेजेपी से कांग्रेस को कोई नुकसान नहीं हुआ. जेजेपी केवल इनेलो के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब रही, जबकि कांग्रेस का वोट बैंक लोकसभा चुनाव 2014 की तुलना में 2019 में बढ़ गया. यहीं हाल विधानसभा चुनाव में भी रहा. जेजेपी के चुनाव लड़ने के बावजू द कांग्रेस 2019 विधानसभा चुनाव में 31 सीट जीतने में कामयाब रही, जबकि 2014 में उसे केवल 15 सीटें मिली थी. 2014 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल 20.7 प्रतिशत वोट मिला था जबकि 2019 में जेजेपी के लड़ने के बावजूद ये बढ़कर 28.2 प्रतिशत हो गया.
  2. बीजेपी का वोट बैंक नहीं तोड़ पाई जेजेपी- बीजेपी ने 2014 के विधानसभा चुनाव बीजेपी ने 33.7 प्रतिशत वोट हासिल किया था और 47 सीटें जीती थी. जबकि 2019 में उसका वोट प्रतिशत करीब 3 फीसदी बढ़कर 36.3 फीसदी हो गया. हलांकि बीजेपी को 2019 में 7 सीट का नुकसान हुआ और केवल 40 सीट मिली. वहीं लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी को 34.8 प्रतिशत वोट के साथ 7 सीटें मिली थी. और 2019 में 58.2 फीसदी वोट लेकर बीजेपी ने सभी 10 सीटें जीती.
  3. जेजेपी को बड़ी जीत के लिए बीजेपी का गैर-जाट वोट चाहिए- इनेलो का पूरा वोट जेजेपी को नहीं बल्कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों में ट्रांसफर हुआ. इसकी गवाही आंकड़े भी दे रहे हैं. इनेलो ने 2014 विधानसभा चुनाव में 24.2 फीसदी वोट के साथ 19 सीटें हासिल की थी. लेकिन 2019 में जेजेपी के आने के बाद उसका वोट केवल 2.5 प्रतिशत रह गया और केवल एक सीट जीत पाई. लेकिन यहां गौर करने वाली बात ये है कि इनेलो का 24.2 प्रतिशत वोट जेजेपी को नहीं मिला. जेजेपी को विधानसभा चुनाव 2019 में केवल 14.9 फीसदी वोट मिले. बाकी का वोट कांग्रेस और बीजेपी दोनों में ट्रांसफर हुआ. कांग्रेस और बीजेपी दोनों का वोट प्रतिशत 2019 में बढ़ गया. यानि जेजेपी इनेलो का भी पूरा वोट हासिल करने में कामयाब नहीं रही.
  4. बीजेपी की गैर-जाट राजनीति जेजेपी के लिए मुश्किल- राजनीतिक जानकार कहते हैं कि हरियाणा में 2014 से बीजेपी खुलेआम गैर जाट वोट की राजनीति कर रही है. उसका जनाधार गैर जाट वोट बैंक है. इसकी बड़ी वजह है. जाट आरक्षण आंदोलन में हुई हिंसा और किसान आंदोलन के चलते ये खाई और ज्यादा बढ़ गई. इसलिए बीजेपी जाट से ज्यादा ओबीसी, पंजाबी, ब्राह्मण और दलित वोट पर फोकस कर रही है. इसलिए अगर जेजेपी को बड़ी जीत हासिल करना है तो जाट वोट के अलावा गैर जाट वोट में भी सेंध लगानी पड़ेगी. क्योंकि इनेलो को जाट के साथ बाकी वर्गों का भी समर्थन था.
  5. नाराज जाट वर्ग जेजेपी को पड़ सकता है भारी- हरियाणा की सियासत को जानने वाले कहते हैं कि बीजेपी से गठबंधन करके जेजेपी नाराज जाट मतदाताओं के निशाने पर आ गई है. 2019 में जेजेपी पहली बार चुनाव में उतरी थी, इसलिए उसके कोर वोटर उसे विकल्प के रूप में देखते थे. लेकिन अब उसके मतदाताओं में ये बात साफ हो गई है कि चुनाव के बाद जेजेपी फिर से बीजेपी के साथ गठबंधन करेगी, जो कि जाट विरोधी है. यही नाराजगी जेजेपी को भारी पड़ सकती है और जेजेपी का नाराज वोटर कांग्रेस की तरफ रुख कर सकता है.
  6. 2019 में जेजेपी को बीजेपी से नाराजगी का फायदा- 2019 का विधानसभा चुनाव जेजेपी पूरी तरह से बीजेपी सरकार के खिलाफ लड़ी थी. जेजेपी के विधायकों ने सीधे मुकाबले में बीजेपी के दिग्गज नेताओं को हराया था. ये नतीजे बताते हैं कि बीजेपी के खिलाफ उनमें कितना गुस्सा था. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके सुभाष बराला, वित्त मंत्री रहे कैप्टन अभिमन्यु और राज्यमंत्री कृष्ण बेदी जैसे बड़े नेताओं को जेजेपी के उम्मीदवारों ने हराया था. इसलिए बीजेपी के साथ गठबंधन को लेकर अपने मतदातओं को समझाना जेजेपी के लिए इस चुनाव में मुश्किल होगा.
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पिछले दो विधानसभा चुनाव में सभी पार्टियों के वोट प्रतिशत.

7. 2019 में बीजेपी से लड़कर जीती थी जेजेपी- 2019 में जेजेपी ने 10 विधानसभा सीटें जीती. इनमें से 8 पर सीधे मुकाबले में उनके उम्मीदवारों ने बीजेपी के दिग्गज नेताओं को हराया. यानि बीजेपी के खिलाफ नाराजगी का जेजेपी को फायदा हुआ. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रहे सुभाष बराला, वित्त मंत्री रहे कैप्टन अभिमन्यु, चौधरी बीरेंद्र की पत्नी प्रेमलता को जेजेपी उम्मीदवारों ने मात दी. जाहिर बात है बीजेपी से गठबंधन उसको नुकसान पहुंचा सकता है. देखिए जेजेपी की 10 में से वो 8 सीटें जहां उसने बीजेपी को हराया.

  • शाहबाद से रामकरन काला ने बीजेपी में मंत्री रहे कृष्ण बेदी को हराया
  • बरवाला से जेजेपी के जोगीराम सिहाग ने बीजेपी के सुरेंद्र पुनिया को हराया
  • जुलाना से जेजेपी के अमरजीत ढांडा ने बीजेपी के परमिंदर ढुल को हराया
  • नारनौंद से जेजेपी के रामकुमार गौतम ने बीजेपी के वित्त मंत्री रहे कैप्टन अभिमन्यु को हराया
  • टोहाना से जेजेपी के देवेंदर सिंह बबली ने बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके सुभाष बराला को 50 हजार से ज्यादा वोट से हराया
  • उचाना से दुष्यंत चौटाला ने बीजेपी उम्मीदवार और चौधरी बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता को हराया.
  • नरवाना से जेजेपी के रामनिवास ने बीजेपी के संतोष रानी को 30 हजार से ज्यादा वोट से हराया.
  • उकलाना से अनूप धानक ने बीजेपी की आशा खेदड़ को 23 हजार से ज्यादा वोट से हराया

8. जेजेपी को लगाना होगा बीजेपी वोट बैंक में सेंध- 2019 के विधानसभा चुनाव में जेजेपी के 10 उम्मीदवार दूसरे नंबर पर थे. इनमें से एक सीट छोड़कर 9 सीटों पर उसका मुकाबला सीधे बीजेपी से हुआ था. 9 सीटों पर बीजेपी उम्मीदवार जीते और जेजेपी उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे. जाहिर सी बात है कि अगर जेजेपी को अपनी सीटें बढ़ानी है तो बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगानी होगी. क्योंकि कांग्रेस के वोट बैंक पर ज्यादा असर नहीं पड़ा.

  • भिवानी में बीजेपी के घनश्याम सर्राफ जीते और जेजेपी दूसरे नंबर पर रही
  • दादरी से निर्दलीय सोमबीर सांगवान जीते और जेजेपी के सतपाल सांगवान दूसरे नंबर पर रहे.
  • फतेहाबाद से बीजेपी के दुराराम जीते और जेजेपी के वीरेंद्र सिवाच दूसरे नंबर पर रहे.
  • हांसी से बीजेपी के विनोद भयाना जीते और जेजेपी के उम्मीदवार राहुल मक्कर दूसरे नंबर पर रहे.
  • जींद में बीजेपी के कृष्ण मिढा जीते. जेजेपी के महाबीर गुप्ता दूसरे नंबर पर रहे.
  • नांगल चौधरी से बीजेपी के अभय सिंह यादव जीते और जेजेपी के मुलाराम दूसरे नंबर पर
  • नारनौल से बीजेपी के ओम प्रकाश यादव जीते, जेजेपी के कमलेश सैनी दूसरे नंबर पर.
  • पानीपत ग्रामीण से बीजेपी के महिपाल ढांडा जीते. जेजेपी के देवेंदर कादियान दूसरे नंबर पर रहे.
  • सोहना से बीजेपी के संजय सिंह जीते और जेजेपी के रोहतास सिंह दूसे नंबर पर रहे.

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Last Updated : Mar 18, 2024, 8:19 PM IST
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