शिमला: देवभूमि हिमाचल प्रदेश में गौ-सदनों में 2021-22 से लेकर अब तक 17,767 गोवंश की मौत हो चुकी है. इनकी मौत का कारण लंपी वायरस, कमजोरी, बीमारी और प्लास्टिक-लोहा आदि खाने के कारण हुई है. ये जानकारी हिमाचल विधानसभा के मानसून सेशन में पूछे गए सवाल के लिखित जवाब में सामने आई है. सबसे अधिक 4047 गौवंश की मौत जिला कांगड़ा में हुई है. उसके बाद 2907 गोवंश की मौत मंडी जिला में हुई है. पिछले साल से लेकर जुलाई 2024 तक गो-तस्करी के 7 मामले पंजीकृत हुए हैं.
कांग्रेस सदस्यों सुरेश कुमार व भुवनेश्वर गौड़ के संयुक्त सवाल के लिखित जवाब में कृषि व पशुपालन मंत्री की तरफ से ये जानकारी दी गई. संयुक्त सवाल में दोनों सदस्यों ने प्रदेश में गौ सदनों की जांच, सुधार व रखरखाव सहित 2021-22 से लेकर अब तक हुई मौतों की जानकारी मांगी थी. लिखित जवाब में जो जानकारी सामने आई है, वो चिंताजनक और दुखद है. देवभूमि कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश में गो-सदनों में गोवंश की हालत दयनीय है.
राज्य सरकार की तरफ से बताया गया कि हिमाचल में बेसहारा गोवंश को आश्रय प्रदान करने के लिए गौ सेवा आयोग का गठन किया गया है. आयोग के माध्यम से राज्य सरकार गौ सदनों के निर्माण के लिए प्राक्कलन राशि का 50 फीसदी या दस लाख रुपए से कम जो भी रकम बनती है, वो अनुदान देती है.
कांगड़ा जिला में सबसे अधिक गोवंश की मौत: गौसदनों में 2021-22 से लेकर अब तक 17767 गोधन की मौत हो चुकी है. सबसे अधिक 4047 मौतें जला कांगड़ा के गौ सदनों में हुई हैं. फिर मंडी जिला के गौ सदनों में ये आंकड़ा 2907 गौवंश का है. शिमला जिला में 1511, बिलासपुर में 952, सिरमौर में 1541, किन्नौर जिला के गौ सदनों में 48, हमीरपुर में 1160, कुल्लू में 542, ऊना के गौ सदनों में 2236, सोलन में 2672 और चंबा में 151 गौवंश की मौत हुई है. लाहौल-स्पीति में किसी भी गौवंश की मौत नहीं हुई है.
हिमाचल में 245 गौ सदन: हिमाचल प्रदेश में कुल 245 गौ सदन हैं. इनमें से 159 सदन आयोग में पंजीकृत हैं. गोपाल योजना के तहत बेसहारा गोवंश के पालन-पोषण के लिए सहायता राशि प्रति गोवंश 700 रुपए से बढ़ाकर 1200 रुपए प्रति गोवंश करने की प्रक्रिया चल रही है. अब तक गोवंश के लिए 50.14 करोड़ रुपए की राशि खर्च हो चुकी है. यहां नियमित अंतराल पर पशु चिकित्सक बीमार गोवंश की जांच व चिकित्सा करते हैं.
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