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बीसीसीआई और बायजूस विवाद में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कंपनी को मिली राहत - BCCI vs BYJUS - BCCI VS BYJUS

BCCI vs BYJU'S : बीसीसीआई और बायजूस के बीच विवाद भारतीय क्रिकेट टीम को जर्सी प्रदान करने के लिए प्रायोजन अनुबंध से संबंधित था. इस पर अब सर्वोच्च न्यायालय ने बायजूस को राहत देते हुए एक बड़ा फैसला सुनाया है. पढ़िए पूरी खबर...

BCCI and BYJU'S
बीसीसीआई और बायजूस (IANS PHOTO)
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By ETV Bharat Sports Team

Published : Sep 25, 2024, 10:20 PM IST

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने एड-टेक प्रमुख बायजूस के खिलाफ दिवाला कार्यवाही को खारिज कर दिया और बीसीसीआई के साथ 158.9 करोड़ रुपये के बकाया निपटान को मंजूरी दे दी. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ जिसमें न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल थे. उन्होंने पूछा, 'कंपनी 15,000 करोड़ रुपये के कर्ज में है. जब कर्ज की मात्रा इतनी बड़ी है, तो क्या एक लेनदार (बीसीसीआई) यह कहकर पीछे हट सकता है कि एक प्रमोटर मुझे भुगतान करने के लिए तैयार है'.

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट है कि राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने बायजूस के खिलाफ दिवालियेपन की कार्यवाही बंद करते समय अपना दिमाग नहीं लगाया. पीठ ने कहा, 'बीसीसीआई को क्यों चुना और केवल अपनी व्यक्तिगत संपत्तियों से उनके साथ समझौता किया. एनसीएलएटी ने बिना दिमाग लगाए यह सब स्वीकार कर लिया है'.

वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी और एन के कौल बायजूस की ओर से पेश हुए. वहीं, कपिल सिब्बल और श्याम दीवान ने अमेरिकी फर्म का प्रतिनिधित्व किया. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता बीसीसीआई की ओर से पेश हुए. इस महीने की शुरुआत में अमेरिकी फर्म ने शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि इसे अंतरिम समाधान पेशेवर (आईआरपी) द्वारा लेनदारों की समिति (सीओसी) से गलत तरीके से हटा दिया गया था.

एनसीएलएटी के फैसले पर सवाल उठाते हुए, अमेरिकी फर्म के वकील ने तर्क दिया कि बीसीसीआई द्वारा राशि के निपटारे के बाद बायजूस के खिलाफ दिवालियापन की कार्यवाही को रोकने में न्यायाधिकरण गलत था. सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष यह तर्क दिया गया कि बीसीसीआई को बायजूस रवींद्रन के भाई रिजू रवींद्रन द्वारा भुगतान किया गया था और यह पैसा 'दागी' था.

इस तर्क का विरोध करते हुए, सिंघवी और कौल ने कहा कि यह पैसा रिजू रवींद्रन ने अपनी निजी संपत्ति से भुगतान किया था और अमेरिकी फर्म ने डेलावेयर कोर्ट में कार्यवाही के दौरान इसका विज्ञापन किया है. वकील ने जोर देकर कहा कि न्यायाधिकरण के मामले को बंद करने के आदेश में कुछ भी गलत नहीं था.

मेहता ने कहा कि क्रिकेट बोर्ड के कहने पर शुरू की गई दिवालियापन की कार्यवाही को बंद करने में कुछ भी गलत नहीं था और बीसीसीआई ने एक व्यक्ति की निजी संपत्ति से अपना दावा प्राप्त किया. सर्वोच्च न्यायालय ने संकेत दिया कि वह पैसे के स्रोत पर विचार करके मामले को नए सिरे से निर्णय के लिए दिवालियापन अपील न्यायाधिकरण को वापस भेज सकता है.

सर्वोच्च न्यायालय में गुरुवार को भी मामले की सुनवाई जारी रहेगी. अमेरिकी फर्म के वकील ने दलील दी थी कि वह एक गारंटर है, जिसकी फर्म (बायजूस) में 12,000 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी है. फर्म के वकील ने तर्क दिया था, 'मेरी हिस्सेदारी 99.41 प्रतिशत है और इसे आईआरपी ने शून्य कर दिया है. 2 अगस्त को, एनसीएलएटी ने बीसीसीआई के साथ 158.9 करोड़ रुपये के बकाया निपटान को मंजूरी देने के बाद एड-टेक फर्म के खिलाफ दिवालियेपन की कार्यवाही को अलग रखा था.

यह फैसला बायजूस के लिए एक बड़ी राहत के रूप में आया क्योंकि इसने प्रभावी रूप से इसके संस्थापक बायजू रवींद्रन को फिर से नियंत्रण में ला दिया था. बायजूस द्वारा बीसीसीआई को भुगतान की गई 158 करोड़ रुपये की निपटान राशि को एक अलग खाते में रखा जाना चाहिए.

एनसीएलएटी के आदेश पर रोक लगाते हुए पीठ ने कहा, 'इस बीच, बीसीसीआई को निपटान के रूप में प्राप्त 158 करोड़ रुपये एक अलग खाते में रखने होंगे'. बीसीसीआई और बायजूस के बीच विवाद भारतीय क्रिकेट टीम को जर्सी प्रदान करने के लिए स्पोंसर अनुबंध से संबंधित था.

ये खबर भी पढ़ें : T20 सीरीज में इन 2 खतरनाक खिलाड़ियों की होगी वापसी ! जानिए किस विस्फोटक बल्लेबाज की लेंगे जगह

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने एड-टेक प्रमुख बायजूस के खिलाफ दिवाला कार्यवाही को खारिज कर दिया और बीसीसीआई के साथ 158.9 करोड़ रुपये के बकाया निपटान को मंजूरी दे दी. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ जिसमें न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल थे. उन्होंने पूछा, 'कंपनी 15,000 करोड़ रुपये के कर्ज में है. जब कर्ज की मात्रा इतनी बड़ी है, तो क्या एक लेनदार (बीसीसीआई) यह कहकर पीछे हट सकता है कि एक प्रमोटर मुझे भुगतान करने के लिए तैयार है'.

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट है कि राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने बायजूस के खिलाफ दिवालियेपन की कार्यवाही बंद करते समय अपना दिमाग नहीं लगाया. पीठ ने कहा, 'बीसीसीआई को क्यों चुना और केवल अपनी व्यक्तिगत संपत्तियों से उनके साथ समझौता किया. एनसीएलएटी ने बिना दिमाग लगाए यह सब स्वीकार कर लिया है'.

वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी और एन के कौल बायजूस की ओर से पेश हुए. वहीं, कपिल सिब्बल और श्याम दीवान ने अमेरिकी फर्म का प्रतिनिधित्व किया. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता बीसीसीआई की ओर से पेश हुए. इस महीने की शुरुआत में अमेरिकी फर्म ने शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि इसे अंतरिम समाधान पेशेवर (आईआरपी) द्वारा लेनदारों की समिति (सीओसी) से गलत तरीके से हटा दिया गया था.

एनसीएलएटी के फैसले पर सवाल उठाते हुए, अमेरिकी फर्म के वकील ने तर्क दिया कि बीसीसीआई द्वारा राशि के निपटारे के बाद बायजूस के खिलाफ दिवालियापन की कार्यवाही को रोकने में न्यायाधिकरण गलत था. सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष यह तर्क दिया गया कि बीसीसीआई को बायजूस रवींद्रन के भाई रिजू रवींद्रन द्वारा भुगतान किया गया था और यह पैसा 'दागी' था.

इस तर्क का विरोध करते हुए, सिंघवी और कौल ने कहा कि यह पैसा रिजू रवींद्रन ने अपनी निजी संपत्ति से भुगतान किया था और अमेरिकी फर्म ने डेलावेयर कोर्ट में कार्यवाही के दौरान इसका विज्ञापन किया है. वकील ने जोर देकर कहा कि न्यायाधिकरण के मामले को बंद करने के आदेश में कुछ भी गलत नहीं था.

मेहता ने कहा कि क्रिकेट बोर्ड के कहने पर शुरू की गई दिवालियापन की कार्यवाही को बंद करने में कुछ भी गलत नहीं था और बीसीसीआई ने एक व्यक्ति की निजी संपत्ति से अपना दावा प्राप्त किया. सर्वोच्च न्यायालय ने संकेत दिया कि वह पैसे के स्रोत पर विचार करके मामले को नए सिरे से निर्णय के लिए दिवालियापन अपील न्यायाधिकरण को वापस भेज सकता है.

सर्वोच्च न्यायालय में गुरुवार को भी मामले की सुनवाई जारी रहेगी. अमेरिकी फर्म के वकील ने दलील दी थी कि वह एक गारंटर है, जिसकी फर्म (बायजूस) में 12,000 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी है. फर्म के वकील ने तर्क दिया था, 'मेरी हिस्सेदारी 99.41 प्रतिशत है और इसे आईआरपी ने शून्य कर दिया है. 2 अगस्त को, एनसीएलएटी ने बीसीसीआई के साथ 158.9 करोड़ रुपये के बकाया निपटान को मंजूरी देने के बाद एड-टेक फर्म के खिलाफ दिवालियेपन की कार्यवाही को अलग रखा था.

यह फैसला बायजूस के लिए एक बड़ी राहत के रूप में आया क्योंकि इसने प्रभावी रूप से इसके संस्थापक बायजू रवींद्रन को फिर से नियंत्रण में ला दिया था. बायजूस द्वारा बीसीसीआई को भुगतान की गई 158 करोड़ रुपये की निपटान राशि को एक अलग खाते में रखा जाना चाहिए.

एनसीएलएटी के आदेश पर रोक लगाते हुए पीठ ने कहा, 'इस बीच, बीसीसीआई को निपटान के रूप में प्राप्त 158 करोड़ रुपये एक अलग खाते में रखने होंगे'. बीसीसीआई और बायजूस के बीच विवाद भारतीय क्रिकेट टीम को जर्सी प्रदान करने के लिए स्पोंसर अनुबंध से संबंधित था.

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