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रेलवे में टीटीई से ओलंपिक मेडलिस्ट तक, धोनी जैसी है स्वप्निल कुसाले की प्रेरणादायक कहानी - Paris Olympics 2024

Swapnil Kusale Biography : पेरिस ओलंपिक 2024 में 50 मीटर राइफल 3 पोजिशन में कांस्य पदक जीतने वाले भारत के युवा शूटर स्वप्निल कुसाले की लाइव जर्नी क्रिकेटर एमएस धोनी से मिलती-जुलती है. पढे़ं पूरी खबर.

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By ETV Bharat Sports Team

Published : Aug 1, 2024, 4:36 PM IST

मुंबई (महाराष्ट्र) : पेरिस ओलंपिक 2024 में 50 मीटर राइफल 3 पोजिशन में कांस्य पदक जीतने वाले स्वप्निल कुसाले की कहानी महेंद्र सिंह धोनी से मिलती-जुलती है. कुसाले ने खेलों में अपने करियर के लिए धोनी से प्रेरणा ली. दिलचस्प बात यह है कि उन्हीं की तरह स्वप्निल भी अपने करियर की शुरुआत में रेलवे में टिकट कलेक्टर थे.

स्वप्निल कुसाले ने रचा इतिहास
भारत के युवा शूटर स्वप्निल कुसले ने पेरिस ओलंपिक 2024 में पुरुषों की 50 मीटर राइफल 3 पोजिशन फाइनल में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया. पहली बार किसी भारतीय निशानेबाज ने ओलंपिक में 50 मीटर राइफल 3 पोजिशन स्पर्धा में पदक जीता. इसके साथ ही कुसाले ने भारत को तीसरा पदक दिलाया. दिलचस्प बात यह है कि इस ओलंपिक में भारत ने निशानेबाजी खेलों में तीनों पदक जीते हैं.

धोनी से मिलती-जुलती है कुसाले की कहानी
कुसाले की सफलता की कहानी महान क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी से मिलती-जुलती है. धोनी की तरह कुसाले भी सेंट्रल रेलवे में टिकट कलेक्टर हैं. स्वप्निल कुसाले आज (21 अगस्त) दोपहर 1 बजे फाइनल खेलने उतरे. कुसाले इस इवेंट के फाइनल में खेलने वाले पहले भारतीय थे. उन्होंने अपने पहले ओलंपिक में भारत के लिए पदक जीता.

मां सरपंच और पिता शिक्षक
महाराष्ट्र का जिला कोल्हापुर, जहां सबसे ज्यादा फुटबॉल का क्रेज है. यहां हर पेठा और गांव में एक फुटबॉल खिलाड़ी है. हालांकि, राधानगरी तालुका के कम्बलवाड़ी के मूल निवासी 29 वर्षीय स्वप्निल सुरेश कुसाले अपवाद थे. स्वप्निल के पिता सुरेश कुसाले जिला परिषद स्कूल में प्रिंसिपल के पद पर कार्यरत हैं. मां गांव की सरपंच हैं और वारकरी समुदाय से हैं. स्वप्निल का एक छोटा भाई सूरज भी है जो खेल शिक्षक हैं.

स्वप्निल के बचपन से ही परिवार में एक धार्मिक शैक्षणिक माहौल था क्योंकि उनकी मां वारकरी संप्रदाय की धार्मिक थीं और उनके पिता शिक्षक थे. स्वप्निल की पहली से चौथी तक की शिक्षा राधानगरी तालुका के 1200 लोगों की आबादी वाले छोटे से गांव कम्बलवाड़ी के जिला परिषद स्कूल में हुई. इसके बाद उन्होंने 5वीं से 7वीं कक्षा तक पढ़ाई भोगावती पब्लिक स्कूल से की. इस दौरान उनकी रुचि खेलों में हुई. उन्हें पुणे के बालेवाड़ी खेल परिसर में सांगली में प्रशिक्षण के लिए एक केंद्र मिला. इसके चलते उन्होंने सांगली में ही अपनी आगे की शिक्षा का अभ्यास शुरू किया.

बिंद्रा को देखने के लिए छोड़ी 12वीं की परीक्षा
घर में निशानेबाजी का कोई पूर्व अनुभव न होने के कारण स्वप्निल की रुचि खेल में विकसित हुई. इसके चलते वे 9 साल की उम्र में आगे की ट्रेनिंग के लिए नासिक चले गए. इस समय उनकी उम्र महज 15 से 16 वर्ष थी. यहां ट्रेनिंग के बाद 10वीं की पढ़ाई पूरी की. वे सुबह और शाम यहीं प्रैक्टिस करते थे. इसके बाद वे दोपहर में स्कूल जाते थे. इसके बाद 2008 के ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा को खेलते देखने के लिए स्वप्निल ने 12वीं की परीक्षा छोड़ दी.

सेंट्रल रेलवे में कार्यरत
स्वप्निल 2015 से सेंट्रल रेलवे में कार्यरत हैं. उनके पिता और भाई जिला स्कूल में शिक्षक हैं. मां गांव की सरपंच हैं. स्वप्निल ने एक साक्षात्कार में कहा, 'अब तक का अनुभव बहुत अच्छा रहा है. मुझे शूटिंग बहुत पसंद है. मैं बहुत खुश हूं कि मैं इतने लंबे समय तक ऐसा कर पाया. मैं शूटिंग में किसी खास खिलाड़ी को फॉलो नहीं करता. लेकिन दूसरे खेलों में धोनी मेरे पसंदीदा हैं. मैं अपने खेल में शांत रहना चाहता हूं. यह जरूरी है. वह हमेशा मैदान पर शांत रहते थे. वह एक बार टीसी भी रह चुके हैं और मैं भी'.

निशानेबाजी में भारत के पदक विजेता :-

  • राज्यवर्धन सिंह राठौर : रजत पदक, एथेंस ओलंपिक (2004)
  • अभिनव बिंद्रा : स्वर्ण पदक, बीजिंग ओलंपिक (2008)
  • गगन नारंग : कांस्य पदक, लंदन ओलंपिक (2012)
  • विजय कुमार : रजत पदक, लंदन ओलंपिक (2012)
  • मनु भाकर : कांस्य पदक, पेरिस ओलंपिक (2024)
  • मनु भाकर-सरबजोत सिंह : कांस्य पदक, पेरिस ओलंपिक (2024)
  • स्वप्नील कुसाले : कांस्य पदक, पेरिस ओलंपिक (2024)

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स्वप्निल कुसाले ने रचा इतिहास
भारत के युवा शूटर स्वप्निल कुसले ने पेरिस ओलंपिक 2024 में पुरुषों की 50 मीटर राइफल 3 पोजिशन फाइनल में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया. पहली बार किसी भारतीय निशानेबाज ने ओलंपिक में 50 मीटर राइफल 3 पोजिशन स्पर्धा में पदक जीता. इसके साथ ही कुसाले ने भारत को तीसरा पदक दिलाया. दिलचस्प बात यह है कि इस ओलंपिक में भारत ने निशानेबाजी खेलों में तीनों पदक जीते हैं.

धोनी से मिलती-जुलती है कुसाले की कहानी
कुसाले की सफलता की कहानी महान क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी से मिलती-जुलती है. धोनी की तरह कुसाले भी सेंट्रल रेलवे में टिकट कलेक्टर हैं. स्वप्निल कुसाले आज (21 अगस्त) दोपहर 1 बजे फाइनल खेलने उतरे. कुसाले इस इवेंट के फाइनल में खेलने वाले पहले भारतीय थे. उन्होंने अपने पहले ओलंपिक में भारत के लिए पदक जीता.

मां सरपंच और पिता शिक्षक
महाराष्ट्र का जिला कोल्हापुर, जहां सबसे ज्यादा फुटबॉल का क्रेज है. यहां हर पेठा और गांव में एक फुटबॉल खिलाड़ी है. हालांकि, राधानगरी तालुका के कम्बलवाड़ी के मूल निवासी 29 वर्षीय स्वप्निल सुरेश कुसाले अपवाद थे. स्वप्निल के पिता सुरेश कुसाले जिला परिषद स्कूल में प्रिंसिपल के पद पर कार्यरत हैं. मां गांव की सरपंच हैं और वारकरी समुदाय से हैं. स्वप्निल का एक छोटा भाई सूरज भी है जो खेल शिक्षक हैं.

स्वप्निल के बचपन से ही परिवार में एक धार्मिक शैक्षणिक माहौल था क्योंकि उनकी मां वारकरी संप्रदाय की धार्मिक थीं और उनके पिता शिक्षक थे. स्वप्निल की पहली से चौथी तक की शिक्षा राधानगरी तालुका के 1200 लोगों की आबादी वाले छोटे से गांव कम्बलवाड़ी के जिला परिषद स्कूल में हुई. इसके बाद उन्होंने 5वीं से 7वीं कक्षा तक पढ़ाई भोगावती पब्लिक स्कूल से की. इस दौरान उनकी रुचि खेलों में हुई. उन्हें पुणे के बालेवाड़ी खेल परिसर में सांगली में प्रशिक्षण के लिए एक केंद्र मिला. इसके चलते उन्होंने सांगली में ही अपनी आगे की शिक्षा का अभ्यास शुरू किया.

बिंद्रा को देखने के लिए छोड़ी 12वीं की परीक्षा
घर में निशानेबाजी का कोई पूर्व अनुभव न होने के कारण स्वप्निल की रुचि खेल में विकसित हुई. इसके चलते वे 9 साल की उम्र में आगे की ट्रेनिंग के लिए नासिक चले गए. इस समय उनकी उम्र महज 15 से 16 वर्ष थी. यहां ट्रेनिंग के बाद 10वीं की पढ़ाई पूरी की. वे सुबह और शाम यहीं प्रैक्टिस करते थे. इसके बाद वे दोपहर में स्कूल जाते थे. इसके बाद 2008 के ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा को खेलते देखने के लिए स्वप्निल ने 12वीं की परीक्षा छोड़ दी.

सेंट्रल रेलवे में कार्यरत
स्वप्निल 2015 से सेंट्रल रेलवे में कार्यरत हैं. उनके पिता और भाई जिला स्कूल में शिक्षक हैं. मां गांव की सरपंच हैं. स्वप्निल ने एक साक्षात्कार में कहा, 'अब तक का अनुभव बहुत अच्छा रहा है. मुझे शूटिंग बहुत पसंद है. मैं बहुत खुश हूं कि मैं इतने लंबे समय तक ऐसा कर पाया. मैं शूटिंग में किसी खास खिलाड़ी को फॉलो नहीं करता. लेकिन दूसरे खेलों में धोनी मेरे पसंदीदा हैं. मैं अपने खेल में शांत रहना चाहता हूं. यह जरूरी है. वह हमेशा मैदान पर शांत रहते थे. वह एक बार टीसी भी रह चुके हैं और मैं भी'.

निशानेबाजी में भारत के पदक विजेता :-

  • राज्यवर्धन सिंह राठौर : रजत पदक, एथेंस ओलंपिक (2004)
  • अभिनव बिंद्रा : स्वर्ण पदक, बीजिंग ओलंपिक (2008)
  • गगन नारंग : कांस्य पदक, लंदन ओलंपिक (2012)
  • विजय कुमार : रजत पदक, लंदन ओलंपिक (2012)
  • मनु भाकर : कांस्य पदक, पेरिस ओलंपिक (2024)
  • मनु भाकर-सरबजोत सिंह : कांस्य पदक, पेरिस ओलंपिक (2024)
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