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लक्ष्मी और विष्णु का राखी से है अटूट संबंध, पहले किसे बांधा था रक्षासूत्र, रक्षाबंधन का रहस्य - RAKSHA BANDHAN 2024 - RAKSHA BANDHAN 2024

आने वाले 19 अगस्त को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाएगा. बहने इस दिन अपने भाई की कलाई में रक्षासूत्र बांधकर अपनी रक्षा का वचन लेती हैं. क्या आप जानते हैं कि राखी के त्योहार की शुरुआत कब हुई थी और पहली राखी किसने बांधी थी.

RAKSHA BANDHAN 2024
रक्षाबंधन की कथा (ETV Bharat Graphics)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 16, 2024, 12:32 PM IST

Updated : Aug 16, 2024, 1:11 PM IST

RAKSHA BANDHAN 2024: हर साल भारत समेत दुनिया के कई देशों में रह रहे लोग भारतीय भाई बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का त्योहार मनाते हैं. इस साल भी सोमवार यानी 19 अगस्त को राखी का त्योहार मनाया जाएगा. हालांकि एक सवाल हर किसी के मन में आता है कि आखिर इस त्योहार की शुरुआत कैसे हुई? लेकिन इतिहास में इस बात का सटीक उल्लेख कहीं नहीं मिलता. अलग अलग हिंदू पुराणों में इस त्योहार के मनाये जाने के अंश मिलते हैं जिनसे कई कहानियां जानी जाती है. लेकिन हिंदू मान्यताओं के अनुसार पहली बार राखी सतयुग में यानी लगभग 38 लाख 80 हजार वर्ष पूर्व बंधी गई थी. रक्षा बंधन की सबसे प्रचलित कथा माँ लक्ष्मी और राजा बली की है, जो सतयुग के प्रमाण हैं.

वामन रूप में राजा बली के पास गये थे विष्णु
पंडित सुरेंद्र शर्मा कहते हैं कि, मान्यता है कि, सतयुग में प्रह्लाद का पौत्र असुर राजा बली हुआ करता था, जो अपने दादा की तरह ही विष्णु भगवान का बड़ा भक्त था और दानवीर माना जाता था. राजा बलि ने असर गुरु शुक्राचार्य की मदद से स्वर्ग लोक पर विजय हासिल कर ली थी और बाद में तीनों लोकों पर भी अपना अधिकार जमा लिया था. इसके बाद राजा बली ने जब कालांतर में अंतिम अश्वमेघ यज्ञ किया तो उसके समापन के समय भगवान विष्णु वामन अवतार में उसके द्वार पर पहुंचे और भिक्षा में बली से तीन पद भूमि की माँग की थी. वचन देने के बाद वामन अवतार भगवान विष्णु ने अपने स्वरूप में आकर दो पग में स्वर्ग और धरती को नाप दिया लेकिन जब तीसरा पग रखने की जगह नहीं मिली तो बली ने अपना वचन पूर्ण करने के लिए भगवान का तीसरा पग अपने सर पर रखवा दिया था. इस बात से भगवान विष्णु अत्यधिक प्रसन्न हुए उन्होंने बली को पाताल लोक का राजा बना दिया.''

राजा बली ने बनाया था माता लक्ष्मी को बहन
भगवान विष्णु के दर्शन मिलने पर बली ने उनसे प्रार्थना कर एक वरदान मांगा जिसमें उन्होंने भगवान विष्णु को उनकी रक्षा करने के लिए कहा. इस बात से भगवान अचरज में पड़ गए और अंत में खुद राजा बली के द्वारपाल बनकर उनके महल में तैनात हो गए. उधर माता लक्ष्मी अपने पति विष्णु भगवान की राह देखती रहीं, लेकिन जब भगवान विष्णु लंबे समय तक नहीं लौटे तो माता लक्ष्मी एक साधारण स्त्री का रूप धारण कर पाताल लोक में राजा बली के महल पहुंची और रुदन करने लगी. जब राजा बली को इस बात का पता चला तो वे उसे स्त्री के पास गए और उससे रोने का कारण पूछा. तब मनुष्य रूप में आयी माता लक्ष्मी ने उन्हें बताया कि उनका कोई भाई नहीं हैं उनकी व्यथा सुन राजा बली का दिल पिघल गया और बली ने उन्हें अपनी धर्म बहन बना लिया. इस रिश्ते को मजबूती देने के लिए माता लक्ष्मी ने राजा बली को एक धागे का रक्षासूत्र पहनाया था.

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रक्षा सूत्र के बदले वचन में मांगी थी विष्णु भगवान की मुक्ति
अपनी कलाई पर बहन के हाथ का रक्षासूत्र देख राजा का मन विभोर हो गया और उन्होंने लक्ष्मी माता से एक वचन मांगने की बात कही. तब माता लक्ष्मी अपने असली स्वरूप में आ गईं और उन्होंने बली से अपने पति भगवान विष्णु को उनकी सुरक्षा के दायित्व से मुक्त करने का वचन मांगा. इसके बाद बली ने अपने वचन का पालन करते हुए भगवान विष्णु को अपने वरदान के वचन से मुक्त कर दिया और इस तरह पहली बार रक्षासूत्र यानी राखी अस्तित्व में मानी गई और तब से ही बहने अपने भाई की रक्षा के लिए कलाई पर रक्षा सूत्र के रूप में राखी बांधती आ रही हैं.

डिसक्लेमर- इस लेख में दी गई जानकारी मान्यताओं, किंवदंतियों और ज्योतिषविदों के बताये अनुसार है. ईटीवी भारत इसके पूर्ण सत्य होने का दावा नहीं करता है

RAKSHA BANDHAN 2024: हर साल भारत समेत दुनिया के कई देशों में रह रहे लोग भारतीय भाई बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का त्योहार मनाते हैं. इस साल भी सोमवार यानी 19 अगस्त को राखी का त्योहार मनाया जाएगा. हालांकि एक सवाल हर किसी के मन में आता है कि आखिर इस त्योहार की शुरुआत कैसे हुई? लेकिन इतिहास में इस बात का सटीक उल्लेख कहीं नहीं मिलता. अलग अलग हिंदू पुराणों में इस त्योहार के मनाये जाने के अंश मिलते हैं जिनसे कई कहानियां जानी जाती है. लेकिन हिंदू मान्यताओं के अनुसार पहली बार राखी सतयुग में यानी लगभग 38 लाख 80 हजार वर्ष पूर्व बंधी गई थी. रक्षा बंधन की सबसे प्रचलित कथा माँ लक्ष्मी और राजा बली की है, जो सतयुग के प्रमाण हैं.

वामन रूप में राजा बली के पास गये थे विष्णु
पंडित सुरेंद्र शर्मा कहते हैं कि, मान्यता है कि, सतयुग में प्रह्लाद का पौत्र असुर राजा बली हुआ करता था, जो अपने दादा की तरह ही विष्णु भगवान का बड़ा भक्त था और दानवीर माना जाता था. राजा बलि ने असर गुरु शुक्राचार्य की मदद से स्वर्ग लोक पर विजय हासिल कर ली थी और बाद में तीनों लोकों पर भी अपना अधिकार जमा लिया था. इसके बाद राजा बली ने जब कालांतर में अंतिम अश्वमेघ यज्ञ किया तो उसके समापन के समय भगवान विष्णु वामन अवतार में उसके द्वार पर पहुंचे और भिक्षा में बली से तीन पद भूमि की माँग की थी. वचन देने के बाद वामन अवतार भगवान विष्णु ने अपने स्वरूप में आकर दो पग में स्वर्ग और धरती को नाप दिया लेकिन जब तीसरा पग रखने की जगह नहीं मिली तो बली ने अपना वचन पूर्ण करने के लिए भगवान का तीसरा पग अपने सर पर रखवा दिया था. इस बात से भगवान विष्णु अत्यधिक प्रसन्न हुए उन्होंने बली को पाताल लोक का राजा बना दिया.''

राजा बली ने बनाया था माता लक्ष्मी को बहन
भगवान विष्णु के दर्शन मिलने पर बली ने उनसे प्रार्थना कर एक वरदान मांगा जिसमें उन्होंने भगवान विष्णु को उनकी रक्षा करने के लिए कहा. इस बात से भगवान अचरज में पड़ गए और अंत में खुद राजा बली के द्वारपाल बनकर उनके महल में तैनात हो गए. उधर माता लक्ष्मी अपने पति विष्णु भगवान की राह देखती रहीं, लेकिन जब भगवान विष्णु लंबे समय तक नहीं लौटे तो माता लक्ष्मी एक साधारण स्त्री का रूप धारण कर पाताल लोक में राजा बली के महल पहुंची और रुदन करने लगी. जब राजा बली को इस बात का पता चला तो वे उसे स्त्री के पास गए और उससे रोने का कारण पूछा. तब मनुष्य रूप में आयी माता लक्ष्मी ने उन्हें बताया कि उनका कोई भाई नहीं हैं उनकी व्यथा सुन राजा बली का दिल पिघल गया और बली ने उन्हें अपनी धर्म बहन बना लिया. इस रिश्ते को मजबूती देने के लिए माता लक्ष्मी ने राजा बली को एक धागे का रक्षासूत्र पहनाया था.

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अपनी कलाई पर बहन के हाथ का रक्षासूत्र देख राजा का मन विभोर हो गया और उन्होंने लक्ष्मी माता से एक वचन मांगने की बात कही. तब माता लक्ष्मी अपने असली स्वरूप में आ गईं और उन्होंने बली से अपने पति भगवान विष्णु को उनकी सुरक्षा के दायित्व से मुक्त करने का वचन मांगा. इसके बाद बली ने अपने वचन का पालन करते हुए भगवान विष्णु को अपने वरदान के वचन से मुक्त कर दिया और इस तरह पहली बार रक्षासूत्र यानी राखी अस्तित्व में मानी गई और तब से ही बहने अपने भाई की रक्षा के लिए कलाई पर रक्षा सूत्र के रूप में राखी बांधती आ रही हैं.

डिसक्लेमर- इस लेख में दी गई जानकारी मान्यताओं, किंवदंतियों और ज्योतिषविदों के बताये अनुसार है. ईटीवी भारत इसके पूर्ण सत्य होने का दावा नहीं करता है

Last Updated : Aug 16, 2024, 1:11 PM IST
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