ग्वालियर: उज्जैन के बाबा महाकाल के दर्शन करने हजारों लाखों श्रद्धालु हर रोज पहुंचते हैं. सावन के महीने में तो यह आंकड़ा और भी बढ़ जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि मध्य प्रदेश के ग्वालियर में भी बाबा महाकाल की तरह ही हूबहू शिवलिंग ग्वालियर दुर्ग पर स्थित है. यहां विराजमान भोलेनाथ का मंदिर विक्रम मंदिर के नाम से जाना जाता है. यह इसलिए भी अनोखा है, क्योंकि यहां भी त्रिनेत्र शिवलिंग विराजमान हैं और यह महाकाल की तरह ही दक्षिण मुखी शिवलिंग है. जिसके दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु भक्त यहां किले की चढ़ाई कर पहुंचते हैं.
यहां प्रकृति करती है भोलेनाथ का अभिषेक
ग्वालियर दुर्ग की चढ़ाई चढ़कर शिव जी के दर्शन करने पहुंचे श्रद्धालुओं का कहना है कि, "सावन के महीने में वे इस शिवलिंग का अभिषेक करने पिछले कुछ वर्षों से आ रहे हैं. यहां आकर एक अलग शांति की अनुभूति होती है. ऐसा लगता है कि मानो स्वयं प्रकृति भगवान शिव का अभिषेक करने आई हो. यहां विराजमान शिवलिंग उज्जैन के भगवान महाकाल का हूबहू स्वरूप है."
श्रद्धालुओं को मिलता हैं भोलेनाथ के दर पर सुकून
दर्शन करने आईं कथावाचक ने भी अपने विचार भगवान के प्रति व्यक्त किए. उनका कहना था, "वह पिछले 2 सालों से यहां अभिषेक करने आ रही हैं. वे खुद कृष्ण भक्त हैं. उन्होंने कहा कि "कृष्ण की भक्ती करते हुए उन्हें भगवान भोलेनाथ की भक्ती भी. स्वाभाविक है अगर आप हरि की पूजा करते हैं, तो आपको हर को पूजना ही पड़ेगा. क्योंकि कहा भी जाता है कि 'हरि-हर दोऊ एक हैं, अंतर नहीं निमेश'." उनका कहना है कि "इस मंदिर में जितना सुकून है वह और कहीं नहीं मिलता."
राजा मानसिंह ने कराई थी शिवलिंग की स्थापना
बात अगर इस मंदिर के अस्तित्व की करें, तो ग्वालियर दुर्ग पर स्थित विक्रम मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन हैं, लेकिन यहां कोई पुजारी नहीं है. यहां शिव जी विक्रम महल के बाहर खुले आसमान के नीचे विराजमान हैं. पुरातत्त्वविद् लाल बहादुर सोमवंशी बताते हैं कि "विक्रम मंदिर में शिवलिंग 800 साल पहले राजा मान सिंह द्वारा स्थापित कराया गया था. राजा मान सिंह एक बड़े शिव भक्त थे. इसलिए पूरे ग्वालियर दुर्ग में शिवलिंग के स्वरूप जगह जगह पर दीवारों में बने दिखेंगे.
भोलेनाथ ने दिया था राजा को स्वप्न
किवदंती है कि, महाराजा मान सिंह को विवाह पश्चात संतान की प्राप्ति नहीं हो रही थी, वे काफी परेशान भी रहते थे. ऐसे में एक रात भोलेनाथ ने उन्हें स्वप्न दिया और कहा कि संतान प्राप्ति के लिए उन्हें एक शिवलिंग की स्थापना करानी होगी और एक शर्त भी थी कि संतान के रूप में पुत्र प्राप्ति होने पर उसका नाम शिवजी के नाम पर विक्रम रखना होगा. इसके बाद राजा मानसिंह ने महाकाल की नगरी उज्जैन से शिवलिंग मंगवाया और दुर्ग पर स्थापित कराया. इसके बाद उनके घर पुत्र ने जन्म लिया. जिसका नाम उन्होंने विक्रम रखा और उसी के नाम पर विक्रम महल बनवाया. इसी विक्रम महल में शिव जी का मंदिर बना था.
औरंगज़ेब भी खंडित नहीं कर पाया था शिवलिंग
कहा यह भी जाता है कि, जब मुगल शासक औरंगजेब ने ग्वालियर दुर्ग पर विजय हासिल की, तो सभी देवताओं की प्रतिमाएं खंडित करा दी थीं. आज भी ग्वालियर दुर्ग पर बने हर देवता की प्रतिमा खंडित हैं. सिर्फ विक्रम महल के शिवलिंग को छोड़कर, क्योंकि उस दौरान वहां के पुजारियों ने शिवलिंग को विक्रम महल से निकाल कर बाहर बने विशाल हवन कुंड में छिपा दिया था. बाद में जब सिंधिया रियासत आयी, तो इसी हवनकुंड में यह शिवलिंग मिला जिसे विक्रम महल के बाहरी परिसर में चबूतरा बनाकर स्थापित कराया गया.
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अपने आराध्य से यहां मिलते हैं भक्त
आज भी सावन के महीने में यहां दर्शन करने कई श्रद्धालु पहुंचते हैं और अपने आराध्य के पास बैठकर जीवन के कष्ट हरने और ख़ुशियों के आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं. आप भी अगर कभी ग्वालियर आयें, तो ग्वालियर किले पर स्थित भोलेनाथ के इस स्वरूप के दर्शन का लाभ जरूर उठायें.