हैदराबादः हिंदू धर्म में पूजा-पाठ हो या हवन. इसमें कपूर की जरूरत पड़ती है. अब सवाल उठता है कि कपूर कहां से आता है. कपूर के दो स्रोत हैं. पहला प्राकृतिक, दूसरा औद्योगिक. कपूर मूल रूप से बाइसाइक्लिक मोनोटेरपीन कीटोन है. प्राकृतिक कपूर, सिनामोमम कपूरा (सिनामोमम कैम्फोरा) नामक पेड़ से उत्पादित होता है. सामान्य भाषा में इसे कपूर का पेड़ भी कहा जाता है. यह पेड़ लॉरेली परिवार का सदस्य है. पेड़ की छाल या पत्तियों से कपूर तैयार किया जाता है.
कहां पाया जाता है प्राकृतिक कपूर
मुख्य रूप से प्राकृतिक कपूर ताइवान, चीन, जापान के दक्षिणी भागों, कोरिया, फॉर्मोसा और वियतनाम में पाए जाते हैं. भारत में कपूर का पेड़ देहरादून, सहारनपुर, मैसूर और नीलगिरी सहित अन्य इलाके में पाया जाता है. कपूर के पेड़ से साल में कई बार-बार पत्ते तोड़े जाते हैं. इस कारण ये झाड़ियों के रूप में विकसित हो जाते हैं. सिनामोमम कपूर की पत्तियों और छाल को आसवित (Distilled) करके निकाला जाता है. वहीं कुछ जगहों पर इसे कृत्रिम रूप से भी उत्पादित किया जाता है.
कपूर के पेड़ की लंबाई सामान्य तौर 50-60 फीट तक हो सकती है. इसके पत्ते गोलाकार और करीबन 4 इंच तक चौड़े होते हैं. कपूर के पेड़ की छाल के टुकड़ों को गर्म करके भाप के ज़रिए चूर्ण बनाया जाता है. इसी चूर्ण से असली कपूर बनता है. मार्केट डिमांड के अनुसार इसे अलग-अलग आकार दिया जाता है. द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार कपूर के पेड़ की लकड़ी, जड़ के तने और शाखाओं को भाप से निकाला जाता है. इसके बाद इसे वैक्यूम में शुद्ध किया जाता है. फिर फिल्टर प्रेस किया जाता है.
औषधीय गुणों से भरपूर है कपूर
कपूर के औषधीय उपयोगों की एक विस्तृत श्रृंखला है. आयुर्वेद के अनुसार कपूर में दर्द निवारक गुण होते हैं. मांसपेशियों की ऐंठन को दूर करने के लिए कुछ बाहरी तेलों में इसका इस्तेमाल किया जाता है. इसमें हल्का म्यूकोलाईटिक गुण भी होता है और यह ब्रोन्कोस्पाज्म को कम कर सकता है. इसका इस्तेमाल आंतरिक दवाओं में भी हल्की खुराक में किया जाता है.
कपूरयुक्त तेल को संयुक्त राज्य अमेरिका में है प्रतिबंधित
यूएसए की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार कपूर एक बाइसाइक्लिक मोनोटेरपीन कीटोन है जो पौधों में व्यापक रूप से पाया जाता है. इसका उपयोग त्वचा की खुजली को दूर करने और संक्रमण-रोधी एजेंट के रूप में किया जाता है. जब इसे निगला जाता है, तो कपूर का विषैला प्रभाव तेजी से शुरू होता है.
कपूरयुक्त तेल इसकी विषाक्तता के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार उत्पाद है. FDA ने फैसला सुनाया कि कपूरयुक्त तेल को संयुक्त राज्य अमेरिका में नहीं बेचा जा सकता है और किसी भी उत्पाद में 11 फीसदी से अधिक सांद्रता नहीं होनी चाहिए. यह सुरक्षा या प्रभावशीलता के लिए बाजार से वापस लिए गए या हटाए गए दवा उत्पादों की सूची में दिखाई देता है.
केरल में कपूर की तेज गंध वाले पौधे की हुई खोजः
भारतीय वैज्ञानिकों ने कपूर की खुशबू वाली एक नई पौधे की प्रजाति को वैज्ञानिकों ने खोज निकाला है. यह केरल के कोल्लम जिले के रोजमाला के घाट क्षेत्र में पाई गई है, जिसका नाम सिनामोमम अगस्त्यमालयनम रखा गया है. यह प्रजाति केरल स्थित घाट क्षेत्र में पाई जाती है, इसका नाम सिनामोमम अगस्त्यमालयनम रखा गया है, क्योंकि यह अगस्त्यमाल पहाड़ियों में पाई जाती है.
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार दक्षिणी पश्चिमी घाट में एक नई पेड़ की प्रजाति पाई गई है, जिसके पत्तों और तने को कुचलने पर कपूर की तेज गंध आती है. यह खोज इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे कपूर की गंध देने वाली एकमात्र स्थानिक प्रजाति माना जा रहा है. वैज्ञानिकों के सामने एक चुनौती है कि अब यह पता लगाया जाए कि क्या व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य स्तर पर पौधे से कपूर को आसवित किया जा सकता है.
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एडवांस्ड रिसर्च में प्रकाशित
केरल वन अनुसंधान संस्थान त्रिशूर से जुड़े वैज्ञानिक के ए.जे. रोबी, पी. सुजनापाल और पी.एस. उदयन ने सिनामोमम अगस्थ्यमालयनम की पहचान की है. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एडवांस्ड रिसर्च में प्रकाशित हुई लेख के अनुसार सिनामोमम कैम्फोरा भारतीय जलवायु परिस्थितियों में उग सकता है, लेकिन यह व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य स्तरों पर कपूर पैदा करने के लिए आवश्यक नहीं है. वैज्ञानिकों ने कहा कि नई प्रजाति घाट के घने नम सदाबहार जंगलों में 500 मीटर से 1400 मीटर की ऊंचाई पर 8 मीटर तक बढ़ सकती है.
क्यों कहा जाता है ब्लैक गोल्ड
कपूर बेशकीमती पौधों में शामिल है. इसके उत्पादों का उपयोग धार्मिक आयोजनों में आरती, हवन, दवाइयों के निर्माण में, साबुन, इत्र, एसेंशियल ऑयल में किया जाता है. यही नहीं कपूर के पेड़ में 6 तरह के रसायन पाये जाते हैं. इसे केमोटाइप्स के नाम से जाता है. केमोटाइप्स में कपूर, सिनिओल, लिनालूल, सैफ्रोल, नेरोलिडोल और बोर्नियोल पाया जाता हैं. इस कारण कपूर के पेड़ को ब्लैक गोल्ड के नाम से भी जाना जाता है.
क्यों मामूली ताप पर जलने लगता है कपूर
हाईड्रोजन और कार्बन की मात्रा कपूर में काफी अधिक होती है. इस कारण इसका ज्वलन ताप काफी कम होता है या कहें कि मामूली ताप पर यह आसानी से जल उठता है. यह तेजी से वाष्पशील होने वाला तत्व है. जैसे ही कपूर को हल्के से भी गर्म किया जाता है तो यह काफी तेजी से वाष्पित हो जाता है. इसकी खुशबू आसपास फैलने लगती है.