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इस बार पीएम नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा अलग क्यों है? - PM Modi Visit to Russia

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By Aroonim Bhuyan

Published : Jul 9, 2024, 4:14 PM IST

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मॉस्को यात्रा यूक्रेन युद्ध छिड़ने के बाद उनकी पहली रूस यात्रा है. यह शिखर सम्मेलन तीन साल के अंतराल के बाद हो रहा है. इस बार की यात्रा कई मायनों में उनकी पिछली यात्राओं से अलग है.

PM Modi's visit to Russia
पीएम मोदी की रूस यात्रा (फोटो - ANI Photo)

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस की दो दिवसीय यात्रा सोमवार से शुरू हुई, जिसमें वे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ भारत-रूस वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे. इसे पहले की यात्राओं की तुलना में एक से अधिक कारणों से अलग नजरिए से देखा जाना चाहिए.

पहला, मोदी ने नई दिल्ली की पड़ोसी प्रथम नीति के तहत नए कार्यकाल के लिए पदभार ग्रहण करने के बाद पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा तत्काल पड़ोसी देश में करने की अपनी पिछली प्रथा से अलग हटकर काम किया है. 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपनी पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा भूटान की की थी.

फिर 2019 में दूसरी बार पदभार ग्रहण करने के बाद उन्होंने अपनी पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा मालदीव की की. हालांकि, इस बार तीसरी बार पदभार ग्रहण करने के बाद उन्होंने अपनी पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा के लिए मास्को को चुना है. दूसरा, यह यात्रा मोदी द्वारा इस महीने की शुरुआत में कजाकिस्तान में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में भाग न लेने के बाद हो रही है.

यह यात्रा लगभग उसी समय हो रही है जब अमेरिका वाशिंगटन में वार्षिक नाटो शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है. इस बार नाटो शिखर सम्मेलन में यूक्रेन सर्वोच्च प्राथमिकता का मुद्दा है. 22वें भारत-रूस वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के दौरान यूक्रेन में युद्ध के कारण पश्चिमी प्रतिबंधों के मद्देनजर रूस चीन के साथ संबंधों को बढ़ावा दे रहा है. यह ऐसे समय हो रहा है जब भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद का चौथा साल चल रहा है.

भारत और रूस, जो एक विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी साझा करते हैं, तीन साल के अंतराल के बाद वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं. पिछली बार ऐसा शिखर सम्मेलन 2021 में आयोजित किया गया था, जब पुतिन भारत आए थे. और पिछली बार दोनों नेताओं की मुलाकात उज्बेकिस्तान में 2022 एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान हुई थी.

2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ने के बाद मोदी की यह पहली रूस यात्रा भी है. तीसरे कार्यकाल के लिए पदभार ग्रहण करने के बाद मोदी ने रूस को अपनी पहली द्विपक्षीय राजकीय यात्रा का गंतव्य क्यों बनाया, इस पर विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने स्पष्ट किया कि यह प्राथमिकता निर्धारित करने का प्रश्न था.

क्वात्रा ने पिछले सप्ताह यहां प्रस्थान से पहले मीडिया ब्रीफिंग में कहा था कि '21वां वार्षिक शिखर सम्मेलन 2021 में आयोजित किया गया था. इसके बाद, पिछले तीन वर्षों से कोई वार्षिक शिखर सम्मेलन नहीं हुआ है, हालांकि दोनों नेता अलग-अलग समय पर मिले हैं और फोन पर बात की है. इसलिए इस बार द्विपक्षीय यात्रा केवल एक शेड्यूलिंग प्राथमिकता है, जिसे हमने अपनाया है और यही है.'

हालांकि भारत ने मोदी के शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के कजाकिस्तान शिखर सम्मेलन में शामिल न होने का कोई आधिकारिक कारण नहीं बताया, जिसके रूस और चीन दोनों सदस्य हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना​है कि ऐसा संगठन पर चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण किया गया है.

मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में एसोसिएट फेलो और रूस और यूक्रेन के मुद्दों की विशेषज्ञ स्वस्ति राव ने ईटीवी भारत से कहा कि 'एससीओ में चीन का दबदबा बढ़ रहा है. पाकिस्तान भी अब एससीओ का सदस्य है. इसलिए भारत को लगा होगा कि एससीओ के पास देने के लिए बहुत कुछ नहीं है.'

इस साल एससीओ शिखर सम्मेलन में मोदी की जगह भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री एस जयशंकर ने किया था. रूस के एक अन्य विशेषज्ञ ने नाम न बताने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया कि 'भारत इस उम्मीद के साथ एससीओ में शामिल हुआ था कि मध्य एशिया में उसका प्रभाव बढ़ेगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. एससीओ चीन का क्षेत्र बन गया है. तो, (मोदी के एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग लेने का) क्या मतलब है?'

विशेषज्ञ ने कहा कि मोदी पुतिन के साथ अपनी वार्ता के दौरान क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के मुद्दे को उठाने का अवसर नहीं चूकेंगे. जहां तक​वाशिंगटन में नाटो शिखर सम्मेलन के साथ ही भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के आयोजन का सवाल है, विशेषज्ञों का मानना​है कि यह सिर्फ समय-सारिणी का मामला है और इसमें ज्यादा कुछ नहीं कहा जाना चाहिए.

राव ने कहा कि 'नाटो हमेशा गर्मियों में अपने वार्षिक शिखर सम्मेलन आयोजित करता है. भारत एक तरफ पश्चिम के साथ और दूसरी तरफ रूस के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ा रहा है. हम अन्य देशों के साथ अपने संबंधों को शून्य योग खेल के रूप में नहीं देखते हैं. हमारी विदेश नीति केवल राष्ट्रीय हित पर आधारित है. रूस के साथ हमारे संबंध पूरी तरह से द्विपक्षीय हैं.'

ऊपर उद्धृत विशेषज्ञ ने सहमति जताते हुए कहा कि भारत-रूस द्विपक्षीय वार्षिक शिखर सम्मेलन मोदी और पुतिन दोनों के कार्यक्रमों से मेल खाने के लिए आयोजित किया जा रहा है. वाशिंगटन में नाटो शिखर सम्मेलन से पहले, नाटो महासचिव जेन स्टोलटेनबर्ग ने कहा कि इस वर्ष सर्वोच्च प्राथमिकता यूक्रेन को दी जाएगी.

स्टोलटेनबर्ग ने कहा कि 'मुझे उम्मीद है कि राष्ट्राध्यक्ष और सरकार यूक्रेन के लिए एक बड़े पैकेज पर सहमत होंगे.' उन्होंने कहा कि 'नाटो अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता के समन्वय और प्रावधान का कार्यभार संभालेगा, जिसकी कमान तीन सितारा जनरल के हाथों में होगी और जर्मनी में नाटो मुख्यालय और गठबंधन के पूर्वी हिस्से में रसद केंद्रों पर कई सौ कर्मचारी काम करेंगे.'

उन्होंने कहा कि 'सहयोगी यूक्रेन के लिए वित्तीय प्रतिज्ञा पर सहमत होंगे और उन्हें यूक्रेन को तत्काल सैन्य सहायता, अधिक द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते और गहन सैन्य अंतर-संचालन पर काम करने की भी उम्मीद है.' महासचिव ने कहा कि 'ये सभी तत्व नाटो सदस्यता के लिए एक पुल का निर्माण करते हैं और शिखर सम्मेलन में यूक्रेन के लिए एक बहुत मजबूत पैकेज बनाते हैं. यूक्रेन नाटो के करीब जा रहा है.'

राव ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के मामले में भारत ने हमेशा तटस्थ रुख अपनाया है. उन्होंने कहा कि 'भारत ने यूक्रेन पर अब तक डेनमार्क, सऊदी अरब, माल्टा और स्विटजरलैंड में आयोजित सभी चार अंतरराष्ट्रीय शांति बैठकों में भाग लिया है. हमने स्विटजरलैंड शांति वार्ता के बाद जारी विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर नहीं किए, क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र महासभा के दो प्रस्तावों से तैयार की गई थी.'

राव के अनुसार, इस वर्ष भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह तीन वर्षों के अंतराल के बाद आयोजित किया जा रहा है. इस दौरान कई ऐसे मुद्दे लंबित रहे हैं, जिनका समाधान उच्चतम स्तर पर बातचीत करके ही सौहार्दपूर्ण ढंग से किया जा सकता है. हालांकि द्विपक्षीय व्यापार बढ़ा है, लेकिन रूस के पक्ष में बहुत बड़ा असंतुलन है.

दूतावास द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि 'वाणिज्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 65.70 बिलियन डॉलर (वित्त वर्ष 2023-24 के लिए कुल द्विपक्षीय व्यापारिक व्यापार: 65.70 बिलियन डॉलर, भारत का निर्यात: 4.26 बिलियन डॉलर, और भारत का आयात: 61.44 बिलियन डॉलर) के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है.'

इसमें कहा गया कि 'भारत से निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में फार्मास्यूटिकल्स, कार्बनिक रसायन, विद्युत मशीनरी और यांत्रिक उपकरण, लोहा और इस्पात शामिल हैं, जबकि रूस से आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में तेल और पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक, खनिज संसाधन, कीमती पत्थर और धातु, वनस्पति तेल आदि शामिल हैं.'

विदेश सचिव क्वात्रा ने मीडिया ब्रीफिंग में कहा था कि जहां तक ​​व्यापार असंतुलन को ठीक करने का सवाल है, भारत सभी क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, चाहे वह कृषि हो, तकनीक हो, फार्मास्यूटिकल्स हो या सेवाएं. उन्होंने कहा था कि 'हम यह सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे कि इन सभी क्षेत्रों में भारत से रूस को निर्यात बढ़े. यह जितनी जल्दी होगा, व्यापार असंतुलन को उतनी ही जल्दी ठीक किया जा सकेगा.'

राव ने बताया कि यूक्रेन में युद्ध से पहले रूस मुख्य रूप से भारत के लिए रक्षा उपकरणों का आपूर्तिकर्ता था. उन्होंने कहा कि 'युद्ध छिड़ने के बाद ही रूस ने बड़ी मात्रा में अपना तेल निर्यात करना शुरू किया. भारत ने रूस से बहुत सारा सस्ता कच्चा तेल आयात किया और इसी वजह से व्यापार असंतुलन बढ़ा. रूस ने इस व्यापार घाटे को कम करने के लिए बहुत कम काम किया है.'

मोदी-पुतिन वार्ता के दौरान प्राथमिकता वाला एक और मुद्दा एस-400 ट्रायम्फ एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम की डिलीवरी है. भारत ने इस सिस्टम के पांच स्क्वाड्रन का ऑर्डर दिया था और अब तक रूस ने तीन स्क्वाड्रन की डिलीवरी की है और तीनों को भारतीय वायुसेना ने तैनात किया है. बाकी दो स्क्वाड्रन की डिलीवरी में देरी हो रही है और रिपोर्ट्स बताती हैं कि ये 2026 की तीसरी तिमाही में ही डिलीवर हो पाएंगी.

राव ने कहा कि 2+2 तंत्र को पुनर्जीवित करना, जिसके तहत दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्री एक साथ मिलते हैं, मोदी-पुतिन वार्ता के एजेंडे में बहुत महत्वपूर्ण होगा. उन्होंने कहा कि 'भारत और रूस ने 2021 में 2+2 तंत्र की स्थापना की. रूस के पास अब एक नया रक्षा मंत्री है. यह बहुत महत्वपूर्ण है कि इस तंत्र को जल्द से जल्द पुनर्जीवित किया जाए.'

राव के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) पर भी चर्चा होगी, क्योंकि कनेक्टिविटी एक अन्य मुद्दा है, जो भारत और रूस दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. INSTC माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्गों का 7,200 किलोमीटर लंबा मल्टी-मोड नेटवर्क है.

भारत, ईरान और रूस ने सितंबर 2000 में INSTC समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, ताकि ईरान और सेंट पीटर्सबर्ग के माध्यम से हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को कैस्पियन सागर से जोड़ने वाला सबसे छोटा मल्टी-मॉडल परिवहन मार्ग प्रदान करने के लिए एक गलियारा बनाया जा सके. सेंट पीटर्सबर्ग से, रूस के माध्यम से उत्तरी यूरोप तक आसानी से पहुंचा जा सकता है.

हाल ही में रूस ने पहली बार INSTC के ज़रिए भारत को कोयला ले जाने वाली दो ट्रेनें भेजी हैं. यह खेप ईरान के बंदर अब्बास बंदरगाह से होते हुए सेंट पीटर्सबर्ग से मुंबई बंदरगाह तक 7,200 किलोमीटर से ज़्यादा की दूरी तय करेगी. जब यह मार्ग पूरी तरह चालू हो जाएगा तो यह भारत और रूस के बीच व्यापार असंतुलन को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस की दो दिवसीय यात्रा सोमवार से शुरू हुई, जिसमें वे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ भारत-रूस वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे. इसे पहले की यात्राओं की तुलना में एक से अधिक कारणों से अलग नजरिए से देखा जाना चाहिए.

पहला, मोदी ने नई दिल्ली की पड़ोसी प्रथम नीति के तहत नए कार्यकाल के लिए पदभार ग्रहण करने के बाद पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा तत्काल पड़ोसी देश में करने की अपनी पिछली प्रथा से अलग हटकर काम किया है. 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपनी पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा भूटान की की थी.

फिर 2019 में दूसरी बार पदभार ग्रहण करने के बाद उन्होंने अपनी पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा मालदीव की की. हालांकि, इस बार तीसरी बार पदभार ग्रहण करने के बाद उन्होंने अपनी पहली द्विपक्षीय विदेश यात्रा के लिए मास्को को चुना है. दूसरा, यह यात्रा मोदी द्वारा इस महीने की शुरुआत में कजाकिस्तान में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में भाग न लेने के बाद हो रही है.

यह यात्रा लगभग उसी समय हो रही है जब अमेरिका वाशिंगटन में वार्षिक नाटो शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है. इस बार नाटो शिखर सम्मेलन में यूक्रेन सर्वोच्च प्राथमिकता का मुद्दा है. 22वें भारत-रूस वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के दौरान यूक्रेन में युद्ध के कारण पश्चिमी प्रतिबंधों के मद्देनजर रूस चीन के साथ संबंधों को बढ़ावा दे रहा है. यह ऐसे समय हो रहा है जब भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद का चौथा साल चल रहा है.

भारत और रूस, जो एक विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी साझा करते हैं, तीन साल के अंतराल के बाद वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं. पिछली बार ऐसा शिखर सम्मेलन 2021 में आयोजित किया गया था, जब पुतिन भारत आए थे. और पिछली बार दोनों नेताओं की मुलाकात उज्बेकिस्तान में 2022 एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान हुई थी.

2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ने के बाद मोदी की यह पहली रूस यात्रा भी है. तीसरे कार्यकाल के लिए पदभार ग्रहण करने के बाद मोदी ने रूस को अपनी पहली द्विपक्षीय राजकीय यात्रा का गंतव्य क्यों बनाया, इस पर विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने स्पष्ट किया कि यह प्राथमिकता निर्धारित करने का प्रश्न था.

क्वात्रा ने पिछले सप्ताह यहां प्रस्थान से पहले मीडिया ब्रीफिंग में कहा था कि '21वां वार्षिक शिखर सम्मेलन 2021 में आयोजित किया गया था. इसके बाद, पिछले तीन वर्षों से कोई वार्षिक शिखर सम्मेलन नहीं हुआ है, हालांकि दोनों नेता अलग-अलग समय पर मिले हैं और फोन पर बात की है. इसलिए इस बार द्विपक्षीय यात्रा केवल एक शेड्यूलिंग प्राथमिकता है, जिसे हमने अपनाया है और यही है.'

हालांकि भारत ने मोदी के शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के कजाकिस्तान शिखर सम्मेलन में शामिल न होने का कोई आधिकारिक कारण नहीं बताया, जिसके रूस और चीन दोनों सदस्य हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना​है कि ऐसा संगठन पर चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण किया गया है.

मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में एसोसिएट फेलो और रूस और यूक्रेन के मुद्दों की विशेषज्ञ स्वस्ति राव ने ईटीवी भारत से कहा कि 'एससीओ में चीन का दबदबा बढ़ रहा है. पाकिस्तान भी अब एससीओ का सदस्य है. इसलिए भारत को लगा होगा कि एससीओ के पास देने के लिए बहुत कुछ नहीं है.'

इस साल एससीओ शिखर सम्मेलन में मोदी की जगह भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री एस जयशंकर ने किया था. रूस के एक अन्य विशेषज्ञ ने नाम न बताने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया कि 'भारत इस उम्मीद के साथ एससीओ में शामिल हुआ था कि मध्य एशिया में उसका प्रभाव बढ़ेगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. एससीओ चीन का क्षेत्र बन गया है. तो, (मोदी के एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग लेने का) क्या मतलब है?'

विशेषज्ञ ने कहा कि मोदी पुतिन के साथ अपनी वार्ता के दौरान क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के मुद्दे को उठाने का अवसर नहीं चूकेंगे. जहां तक​वाशिंगटन में नाटो शिखर सम्मेलन के साथ ही भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के आयोजन का सवाल है, विशेषज्ञों का मानना​है कि यह सिर्फ समय-सारिणी का मामला है और इसमें ज्यादा कुछ नहीं कहा जाना चाहिए.

राव ने कहा कि 'नाटो हमेशा गर्मियों में अपने वार्षिक शिखर सम्मेलन आयोजित करता है. भारत एक तरफ पश्चिम के साथ और दूसरी तरफ रूस के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ा रहा है. हम अन्य देशों के साथ अपने संबंधों को शून्य योग खेल के रूप में नहीं देखते हैं. हमारी विदेश नीति केवल राष्ट्रीय हित पर आधारित है. रूस के साथ हमारे संबंध पूरी तरह से द्विपक्षीय हैं.'

ऊपर उद्धृत विशेषज्ञ ने सहमति जताते हुए कहा कि भारत-रूस द्विपक्षीय वार्षिक शिखर सम्मेलन मोदी और पुतिन दोनों के कार्यक्रमों से मेल खाने के लिए आयोजित किया जा रहा है. वाशिंगटन में नाटो शिखर सम्मेलन से पहले, नाटो महासचिव जेन स्टोलटेनबर्ग ने कहा कि इस वर्ष सर्वोच्च प्राथमिकता यूक्रेन को दी जाएगी.

स्टोलटेनबर्ग ने कहा कि 'मुझे उम्मीद है कि राष्ट्राध्यक्ष और सरकार यूक्रेन के लिए एक बड़े पैकेज पर सहमत होंगे.' उन्होंने कहा कि 'नाटो अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता के समन्वय और प्रावधान का कार्यभार संभालेगा, जिसकी कमान तीन सितारा जनरल के हाथों में होगी और जर्मनी में नाटो मुख्यालय और गठबंधन के पूर्वी हिस्से में रसद केंद्रों पर कई सौ कर्मचारी काम करेंगे.'

उन्होंने कहा कि 'सहयोगी यूक्रेन के लिए वित्तीय प्रतिज्ञा पर सहमत होंगे और उन्हें यूक्रेन को तत्काल सैन्य सहायता, अधिक द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते और गहन सैन्य अंतर-संचालन पर काम करने की भी उम्मीद है.' महासचिव ने कहा कि 'ये सभी तत्व नाटो सदस्यता के लिए एक पुल का निर्माण करते हैं और शिखर सम्मेलन में यूक्रेन के लिए एक बहुत मजबूत पैकेज बनाते हैं. यूक्रेन नाटो के करीब जा रहा है.'

राव ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के मामले में भारत ने हमेशा तटस्थ रुख अपनाया है. उन्होंने कहा कि 'भारत ने यूक्रेन पर अब तक डेनमार्क, सऊदी अरब, माल्टा और स्विटजरलैंड में आयोजित सभी चार अंतरराष्ट्रीय शांति बैठकों में भाग लिया है. हमने स्विटजरलैंड शांति वार्ता के बाद जारी विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर नहीं किए, क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र महासभा के दो प्रस्तावों से तैयार की गई थी.'

राव के अनुसार, इस वर्ष भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह तीन वर्षों के अंतराल के बाद आयोजित किया जा रहा है. इस दौरान कई ऐसे मुद्दे लंबित रहे हैं, जिनका समाधान उच्चतम स्तर पर बातचीत करके ही सौहार्दपूर्ण ढंग से किया जा सकता है. हालांकि द्विपक्षीय व्यापार बढ़ा है, लेकिन रूस के पक्ष में बहुत बड़ा असंतुलन है.

दूतावास द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि 'वाणिज्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 65.70 बिलियन डॉलर (वित्त वर्ष 2023-24 के लिए कुल द्विपक्षीय व्यापारिक व्यापार: 65.70 बिलियन डॉलर, भारत का निर्यात: 4.26 बिलियन डॉलर, और भारत का आयात: 61.44 बिलियन डॉलर) के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है.'

इसमें कहा गया कि 'भारत से निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में फार्मास्यूटिकल्स, कार्बनिक रसायन, विद्युत मशीनरी और यांत्रिक उपकरण, लोहा और इस्पात शामिल हैं, जबकि रूस से आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में तेल और पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक, खनिज संसाधन, कीमती पत्थर और धातु, वनस्पति तेल आदि शामिल हैं.'

विदेश सचिव क्वात्रा ने मीडिया ब्रीफिंग में कहा था कि जहां तक ​​व्यापार असंतुलन को ठीक करने का सवाल है, भारत सभी क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, चाहे वह कृषि हो, तकनीक हो, फार्मास्यूटिकल्स हो या सेवाएं. उन्होंने कहा था कि 'हम यह सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे कि इन सभी क्षेत्रों में भारत से रूस को निर्यात बढ़े. यह जितनी जल्दी होगा, व्यापार असंतुलन को उतनी ही जल्दी ठीक किया जा सकेगा.'

राव ने बताया कि यूक्रेन में युद्ध से पहले रूस मुख्य रूप से भारत के लिए रक्षा उपकरणों का आपूर्तिकर्ता था. उन्होंने कहा कि 'युद्ध छिड़ने के बाद ही रूस ने बड़ी मात्रा में अपना तेल निर्यात करना शुरू किया. भारत ने रूस से बहुत सारा सस्ता कच्चा तेल आयात किया और इसी वजह से व्यापार असंतुलन बढ़ा. रूस ने इस व्यापार घाटे को कम करने के लिए बहुत कम काम किया है.'

मोदी-पुतिन वार्ता के दौरान प्राथमिकता वाला एक और मुद्दा एस-400 ट्रायम्फ एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम की डिलीवरी है. भारत ने इस सिस्टम के पांच स्क्वाड्रन का ऑर्डर दिया था और अब तक रूस ने तीन स्क्वाड्रन की डिलीवरी की है और तीनों को भारतीय वायुसेना ने तैनात किया है. बाकी दो स्क्वाड्रन की डिलीवरी में देरी हो रही है और रिपोर्ट्स बताती हैं कि ये 2026 की तीसरी तिमाही में ही डिलीवर हो पाएंगी.

राव ने कहा कि 2+2 तंत्र को पुनर्जीवित करना, जिसके तहत दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्री एक साथ मिलते हैं, मोदी-पुतिन वार्ता के एजेंडे में बहुत महत्वपूर्ण होगा. उन्होंने कहा कि 'भारत और रूस ने 2021 में 2+2 तंत्र की स्थापना की. रूस के पास अब एक नया रक्षा मंत्री है. यह बहुत महत्वपूर्ण है कि इस तंत्र को जल्द से जल्द पुनर्जीवित किया जाए.'

राव के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) पर भी चर्चा होगी, क्योंकि कनेक्टिविटी एक अन्य मुद्दा है, जो भारत और रूस दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. INSTC माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्गों का 7,200 किलोमीटर लंबा मल्टी-मोड नेटवर्क है.

भारत, ईरान और रूस ने सितंबर 2000 में INSTC समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, ताकि ईरान और सेंट पीटर्सबर्ग के माध्यम से हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को कैस्पियन सागर से जोड़ने वाला सबसे छोटा मल्टी-मॉडल परिवहन मार्ग प्रदान करने के लिए एक गलियारा बनाया जा सके. सेंट पीटर्सबर्ग से, रूस के माध्यम से उत्तरी यूरोप तक आसानी से पहुंचा जा सकता है.

हाल ही में रूस ने पहली बार INSTC के ज़रिए भारत को कोयला ले जाने वाली दो ट्रेनें भेजी हैं. यह खेप ईरान के बंदर अब्बास बंदरगाह से होते हुए सेंट पीटर्सबर्ग से मुंबई बंदरगाह तक 7,200 किलोमीटर से ज़्यादा की दूरी तय करेगी. जब यह मार्ग पूरी तरह चालू हो जाएगा तो यह भारत और रूस के बीच व्यापार असंतुलन को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.

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