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पीएम मोदी की ब्रूनेई-सिंगापुर यात्रा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संतुलन बनाने की कोशिश, जानें AEP का महत्व - PM Modi Brunei Singapore Visit - PM MODI BRUNEI SINGAPORE VISIT

PM Modi Brunei Singapore Visit : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 से 5 सितंबर तक ब्रूनेई और सिंगापुर का दौरा किया. उन्होंने दोनों देशों के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की और सिंगापुर में वैश्विक कंपनियों के सीईओ को भी संबोधित किया. इस यात्रा ने दोनों देशों के साथ भारत के संबंधों को मजबूत किया. पीएम मोदी की इन यात्राओं का क्या महत्व है... पढ़ें पूरा लेख.

PM Modi Brunei Singapore Visit
प्रधानमंत्री मोदी सिंगापुर में बैठक करते हुए. (X / @MEAIndia)
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By DR Ravella Bhanu Krishna Kiran

Published : Sep 7, 2024, 6:59 PM IST

नई दिल्ली: बांग्लादेश और म्यांमार में संघर्ष और अशांति तथा दक्षिण चीन सागर में चीन व फिलीपींस में तनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 3 से 5 सितंबर, 2024 तक ब्रूनेई और सिंगापुर की द्विपक्षीय यात्रा भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी (AEP) के लिए काफी महत्वपूर्ण है. यह यात्रा व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एईपी के रणनीतिक महत्व को रेखांकित करती है, जो रक्षा, ऊर्जा, व्यापार और निवेश जैसे क्षेत्रों में आपसी सहयोग और समर्थन को आकार देने और बढ़ाने के जरिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ब्रूनेई और सिंगापुर के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को बढ़ावा देने की कूटनीतिक पहल है.

ब्रूनेई यात्रा के महत्व और तथ्य
भारत और ब्रूनेई ने बुधवार को द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत किया. प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रूनेई की यात्रा के दौरान सुल्तान हाजी हसनल बोल्किया के साथ बातचीत की और रक्षा, अंतरिक्ष, एलएनजी की लंबे समय तक आपूर्ति और व्यापार सहित आपसी हित के सभी क्षेत्रों में साझेदारी को और मजबूत करने की अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की. दोनों नेताओं ने सुरक्षा मामलों में साथ मिलकर काम करने के लिए रक्षा सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए एक संयुक्त कार्य समूह स्थापित करने पर भी सहमति जताई, मुख्य रूप से क्षेत्रीय स्थिरता और समुद्री सुरक्षा के संदर्भ में. भारत और ब्रूनेई ने क्षेत्र की समुद्री सुरक्षा और संरक्षा, नौवहन और उड़ान की स्वतंत्रता, निर्बाध व्यापार को बढ़ावा देने का फैसला किया, जो अंतरराष्ट्रीय कानून विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन 1982 (यूएनसीएलओएस) के अनुरूप है.

ब्रूनेई के साथ 2018 का अंतरिक्ष समझौता इस क्षेत्र में चीनी आक्रामकता के बावजूद भारत के लिए बड़ी उपलब्धि है. पीएम मोदी और सुल्तान बोल्किया की बैठक के बाद दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष समझौते की एक और घोषणा की उम्मीद है, क्योंकि दोनों नेताओं ने अंतरिक्ष सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर करने पर चर्चा की, जो अंतरिक्ष खोज और उपग्रह प्रौद्योगिकी में तकनीकी सहयोग के साथ आगे बढ़ने में साझा रुचि को दर्शाता है.

ब्रूनेई-भारत द्विपक्षीय व्यापार हाल के वर्षों में गिरकर 500 मिलियन डॉलर के आसपास रहा है, क्योंकि भारत ने रूस से तेल आयात करना शुरू कर दिया और ब्रूनेई से तेल खरीदना छोड़ दिया. साथ ही भारत वर्तमान में अपनी दीर्घकालिक एलएनजी आपूर्ति का बड़ा हिस्सा कतर से आयात करता है. दोनों नेताओं की बैठक के दौरान ब्रूनेई ने भारत को एलएनजी की दीर्घकालिक आपूर्ति के क्षेत्र में सहयोग करने पर सहमति जताई.

व्यापार संबंधों और वाणिज्यिक संपर्कों को बढ़ाने के लिए उन्होंने निवेश क्षेत्र में सहयोग के नए रास्ते तलाशने पर सहमति जताई है. उन्होंने खाद्य सुरक्षा पर भी चर्चा की और कृषि तथा खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई. वार्ता के दौरान दोनों नेताओं ने क्षमता निर्माण, संपर्क, संस्कृति, वित्त, स्वास्थ्य और फार्मास्यूटिकल्स, प्रौद्योगिकी और पर्यटन में दोनों देशों के बीच मजबूत संबंधों का आह्वान किया.

इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, फिलीपींस और वियतनाम से घिरे दक्षिण-पूर्व एशिया के बोर्नियो द्वीप पर रणनीतिक रूप से स्थित ब्रूनेई की पीएम मोदी की यात्रा भारत की एईपी के लिए महत्वपूर्ण है. ब्रूनेई में एक भारतीय नौसैनिक स्टेशन भारत के लिए बड़ी उपलब्धि होगी, जिससे नई दिल्ली को चीन का मुकाबला करने के लिए हिंद-प्रशांत में क्षेत्र के देशों के साथ अपने संबंधों को गहरा करने की अनुमति मिलेगी.

सिंगापुर यात्रा के महत्व

पिछले 15 वर्षों में, भारत और सिंगापुर के बीच संबंध कई क्षेत्रों में बेहतर हुए हैं. अब नई दिल्ली और सिंगापुर ने इन संबंधों को 'व्यापक रणनीतिक साझेदारी' के रूप में अगले स्तर पर ले जाने की प्रतिबधता जताई है, जो मौजूदा व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (CECA) का अपग्रेड है, जिसके तहत भारत को सिंगापुर के 81 प्रतिशत निर्यात पर टैरिफ हटा दिया गया था.

अब, दोनों देशों ने डिजिटल प्रौद्योगिकी, सेमीकंडक्टर, स्वास्थ्य सहयोग और शैक्षिक सहयोग तथा कौशल विकास के क्षेत्रों में चार प्रमुख समझौता ज्ञापनों (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके अलावा, दोनों देशों ने उन्नत विनिर्माण, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, कनेक्टिविटी, साइबर-सुरक्षा, रक्षा और सुरक्षा, शिक्षा, फिनटेक, ग्रीन कॉरिडोर परियोजनाओं, ज्ञान साझेदारी, समुद्री डोमेन जागरूकता, नई प्रौद्योगिकी डोमेन, लोगों से लोगों के बीच संबंध, विज्ञान और प्रौद्योगिकी और स्थिरता के मौजूदा क्षेत्रों का व्यापक मूल्यांकन किया.

दोनों देश सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य क्षेत्र में सहयोग करने को सहमत हुए हैं. सिंगापुर वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला का अभिन्न हिस्सा है, जो वैश्विक स्तर पर उत्पादित सभी चिप्स का 10 प्रतिशत और सेमीकंडक्टर विनिर्माण उपकरणों के वैश्विक उत्पादन का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा साझा करता है. सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र साझेदारी पर समझौता ज्ञापन भारत के सेमीकंडक्टर बाजार का विस्तार करने का वादा करता है, जिसे भारत 2026 तक 63 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद करता है. यह भारत में सिंगापुर के निवेश को भी सुविधाजनक बनाएगा और टाटा समूह और सीजी पावर सहित कंपनियों द्वारा 15 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के तीन सेमीकंडक्टर संयंत्रों के निर्माण के साथ आगे बढ़कर ताइवान जैसे देशों के साथ भविष्य में प्रतिस्पर्धा करने के लिए उद्योग के अभियान को बढ़ावा देगा.

स्वास्थ्य और चिकित्सा पर समझौता ज्ञापन का उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा और फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्र में मानव संसाधन विकास के क्षेत्रों में मजबूत सहयोग को बढ़ावा देना है. यह सिंगापुर में भारतीय स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों को प्रोत्साहित करेगा. डिजिटल प्रौद्योगिकियों पर समझौता ज्ञापन साइबर-सुरक्षा, 5G, सुपर-कंप्यूटिंग, क्वांटम कंप्यूटिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्रों में घनिष्ठ सहयोग को सुविधाजनक बनाने में मदद करेगा. शैक्षिक सहयोग और कौशल विकास पर समझौता ज्ञापन तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देता है.

सिंगापुर ने पिछले 24 वर्षों में भारत में लगभग 160 बिलियन डॉलर का निवेश किया है. अधिक निवेश को बढ़ावा देने और आकर्षित करने के लिए पीएम मोदी ने ब्लैकस्टोन सिंगापुर, टेमासेक होल्डिंग्स, सेम्बकॉर्प इंडस्ट्रीज लिमिटेड, कैपिटलैंड इन्वेस्टमेंट, एसटी टेलीमीडिया ग्लोबल डेटा सेंटर, सिंगापुर एयरवेज के सीईओ के साथ बैठक की और उन्हें भारत में विमानन, ऊर्जा और कौशल विकास में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया.

एक्ट ईस्ट पॉलिसी और इंडो-पैसिफिक रणनीति

बांग्लादेश और म्यांमार एक्ट ईस्ट पॉलिसी के केंद्र में हैं, जहां विभिन्न कनेक्टिविटी परियोजनाएं भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ने के उद्देश्य से हैं, जो दोनों देशों से होकर गुजरती हैं. चूंकि दोनों देश अशांति और राजनीतिक संघर्ष से जूझ रहे हैं, इसलिए नई दिल्ली के लिए ब्रूनेई जैसे आसियान देशों और विशेष रूप से सिंगापुर के साथ अपने संबंधों को पुनर्जीवित करना जरूरी है, जो आसियान के साथ संबंधों को गहरा करने के भारत के प्रयासों के लिए एक सहज भागीदार है. साथ ही दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों में से एक पूर्व-पश्चिम शिपिंग मार्ग में भारत की रणनीतिक स्थिति भी मजबूत होगी. सिंगापुर भारत के लिए आसियान-भारत शिखर सम्मेलन, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) और आसियान क्षेत्रीय मंच (एआरएफ) जैसे बहुपक्षीय मंचों में सहयोग के लिए भी महत्वपूर्ण है.

मलक्का जलडमरूमध्य के पूर्व में भारत की कोई महत्वपूर्ण आर्थिक या सैन्य उपस्थिति नहीं है. इस क्षेत्र के सामरिक महत्व का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया कि पूर्व में मलक्का जलडमरूमध्य और दक्षिण चीन सागर भारत को प्रशांत क्षेत्र और भारत के अधिकांश प्रमुख सामरिक साझेदारों- आसियान, जापान, कोरिया, चीन और अमेरिका से जोड़ते हैं. ब्रूनेई और सिंगापुर के साथ भारत के कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य एकीकरण में तेजी लाने से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन को बनाए रखने में नई दिल्ली को समर्थन मिलेगा.

सिंगापुर आसियान क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जबकि ब्रूनेई का भारत के साथ व्यापार सबसे कम है. भारत को 2009 के आसियान भारत वस्तु व्यापार समझौते (एआईटीआईजीए) की समीक्षा करके आर्थिक एकीकरण में सुधार करना होगा, विशेष रूप से टैरिफ को कम करने के संदर्भ में. 'दक्षिण पूर्व एशिया की स्थिति' 2024 सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, आसियान डायलॉग के भागीदारों में भारत का आर्थिक और राजनीतिक-रणनीतिक प्रभाव बहुत कम रहा है. नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर (एनयूएस) में इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज (आईएसएएस) के सीनियर रिसर्च फेलो अमितेंदु पालित ने उम्मीद जताई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह यात्रा इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉस्पेरिटी (IPEF) को अधिक महत्व दे सकती है, जिसका भारत, सिंगापुर और ब्रूनेई हिस्सा हैं.

निष्कर्श

कुल मिलाकर, ब्रूनेई और सिंगापुर के साथ मोदी की भागीदारी से पता चलता है कि नई दिल्ली का ध्यान दक्षिण-पूर्व एशिया पर है और एईपी के उसके लक्ष्य, क्षेत्र में चीन के बढ़ते आर्थिक और सैन्य प्रभाव को संतुलित करने के लिए क्षेत्रीय गठबंधनों के साथ स्थिर और अनुकूल हिंद-प्रशांत परिदृश्य को आकार देने के व्यापक लक्ष्यों के साथ जुड़े हैं. क्षेत्र के जटिल और पेचीदा शक्ति संतुलन को नियंत्रित करने में ब्रूनेई और सिंगापुर के साथ भारत का निरंतर संपर्क भविष्य में एईपी के लिए और एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में हिंद-प्रशांत में अपने निरंतर हितों को सुरक्षित करने के लिए आवश्यक है. वैश्विक शक्ति और ग्लोबल साउथ का प्रमुख भागीदार बनने के अलावा इंडो-पैसिफिक में बड़ी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए अधिक सशक्त एईपी की आवश्यकता है.

यह भी पढ़ें- पीएम मोदी बिजनेस लीडर्स से मिले, भारत में 5 लाख करोड़ का निवेश करेंगी सिंगापुर की कंपनियां

नई दिल्ली: बांग्लादेश और म्यांमार में संघर्ष और अशांति तथा दक्षिण चीन सागर में चीन व फिलीपींस में तनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 3 से 5 सितंबर, 2024 तक ब्रूनेई और सिंगापुर की द्विपक्षीय यात्रा भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी (AEP) के लिए काफी महत्वपूर्ण है. यह यात्रा व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एईपी के रणनीतिक महत्व को रेखांकित करती है, जो रक्षा, ऊर्जा, व्यापार और निवेश जैसे क्षेत्रों में आपसी सहयोग और समर्थन को आकार देने और बढ़ाने के जरिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ब्रूनेई और सिंगापुर के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को बढ़ावा देने की कूटनीतिक पहल है.

ब्रूनेई यात्रा के महत्व और तथ्य
भारत और ब्रूनेई ने बुधवार को द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत किया. प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रूनेई की यात्रा के दौरान सुल्तान हाजी हसनल बोल्किया के साथ बातचीत की और रक्षा, अंतरिक्ष, एलएनजी की लंबे समय तक आपूर्ति और व्यापार सहित आपसी हित के सभी क्षेत्रों में साझेदारी को और मजबूत करने की अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की. दोनों नेताओं ने सुरक्षा मामलों में साथ मिलकर काम करने के लिए रक्षा सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए एक संयुक्त कार्य समूह स्थापित करने पर भी सहमति जताई, मुख्य रूप से क्षेत्रीय स्थिरता और समुद्री सुरक्षा के संदर्भ में. भारत और ब्रूनेई ने क्षेत्र की समुद्री सुरक्षा और संरक्षा, नौवहन और उड़ान की स्वतंत्रता, निर्बाध व्यापार को बढ़ावा देने का फैसला किया, जो अंतरराष्ट्रीय कानून विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन 1982 (यूएनसीएलओएस) के अनुरूप है.

ब्रूनेई के साथ 2018 का अंतरिक्ष समझौता इस क्षेत्र में चीनी आक्रामकता के बावजूद भारत के लिए बड़ी उपलब्धि है. पीएम मोदी और सुल्तान बोल्किया की बैठक के बाद दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष समझौते की एक और घोषणा की उम्मीद है, क्योंकि दोनों नेताओं ने अंतरिक्ष सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर करने पर चर्चा की, जो अंतरिक्ष खोज और उपग्रह प्रौद्योगिकी में तकनीकी सहयोग के साथ आगे बढ़ने में साझा रुचि को दर्शाता है.

ब्रूनेई-भारत द्विपक्षीय व्यापार हाल के वर्षों में गिरकर 500 मिलियन डॉलर के आसपास रहा है, क्योंकि भारत ने रूस से तेल आयात करना शुरू कर दिया और ब्रूनेई से तेल खरीदना छोड़ दिया. साथ ही भारत वर्तमान में अपनी दीर्घकालिक एलएनजी आपूर्ति का बड़ा हिस्सा कतर से आयात करता है. दोनों नेताओं की बैठक के दौरान ब्रूनेई ने भारत को एलएनजी की दीर्घकालिक आपूर्ति के क्षेत्र में सहयोग करने पर सहमति जताई.

व्यापार संबंधों और वाणिज्यिक संपर्कों को बढ़ाने के लिए उन्होंने निवेश क्षेत्र में सहयोग के नए रास्ते तलाशने पर सहमति जताई है. उन्होंने खाद्य सुरक्षा पर भी चर्चा की और कृषि तथा खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई. वार्ता के दौरान दोनों नेताओं ने क्षमता निर्माण, संपर्क, संस्कृति, वित्त, स्वास्थ्य और फार्मास्यूटिकल्स, प्रौद्योगिकी और पर्यटन में दोनों देशों के बीच मजबूत संबंधों का आह्वान किया.

इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, फिलीपींस और वियतनाम से घिरे दक्षिण-पूर्व एशिया के बोर्नियो द्वीप पर रणनीतिक रूप से स्थित ब्रूनेई की पीएम मोदी की यात्रा भारत की एईपी के लिए महत्वपूर्ण है. ब्रूनेई में एक भारतीय नौसैनिक स्टेशन भारत के लिए बड़ी उपलब्धि होगी, जिससे नई दिल्ली को चीन का मुकाबला करने के लिए हिंद-प्रशांत में क्षेत्र के देशों के साथ अपने संबंधों को गहरा करने की अनुमति मिलेगी.

सिंगापुर यात्रा के महत्व

पिछले 15 वर्षों में, भारत और सिंगापुर के बीच संबंध कई क्षेत्रों में बेहतर हुए हैं. अब नई दिल्ली और सिंगापुर ने इन संबंधों को 'व्यापक रणनीतिक साझेदारी' के रूप में अगले स्तर पर ले जाने की प्रतिबधता जताई है, जो मौजूदा व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (CECA) का अपग्रेड है, जिसके तहत भारत को सिंगापुर के 81 प्रतिशत निर्यात पर टैरिफ हटा दिया गया था.

अब, दोनों देशों ने डिजिटल प्रौद्योगिकी, सेमीकंडक्टर, स्वास्थ्य सहयोग और शैक्षिक सहयोग तथा कौशल विकास के क्षेत्रों में चार प्रमुख समझौता ज्ञापनों (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके अलावा, दोनों देशों ने उन्नत विनिर्माण, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, कनेक्टिविटी, साइबर-सुरक्षा, रक्षा और सुरक्षा, शिक्षा, फिनटेक, ग्रीन कॉरिडोर परियोजनाओं, ज्ञान साझेदारी, समुद्री डोमेन जागरूकता, नई प्रौद्योगिकी डोमेन, लोगों से लोगों के बीच संबंध, विज्ञान और प्रौद्योगिकी और स्थिरता के मौजूदा क्षेत्रों का व्यापक मूल्यांकन किया.

दोनों देश सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य क्षेत्र में सहयोग करने को सहमत हुए हैं. सिंगापुर वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला का अभिन्न हिस्सा है, जो वैश्विक स्तर पर उत्पादित सभी चिप्स का 10 प्रतिशत और सेमीकंडक्टर विनिर्माण उपकरणों के वैश्विक उत्पादन का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा साझा करता है. सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र साझेदारी पर समझौता ज्ञापन भारत के सेमीकंडक्टर बाजार का विस्तार करने का वादा करता है, जिसे भारत 2026 तक 63 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद करता है. यह भारत में सिंगापुर के निवेश को भी सुविधाजनक बनाएगा और टाटा समूह और सीजी पावर सहित कंपनियों द्वारा 15 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के तीन सेमीकंडक्टर संयंत्रों के निर्माण के साथ आगे बढ़कर ताइवान जैसे देशों के साथ भविष्य में प्रतिस्पर्धा करने के लिए उद्योग के अभियान को बढ़ावा देगा.

स्वास्थ्य और चिकित्सा पर समझौता ज्ञापन का उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा और फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्र में मानव संसाधन विकास के क्षेत्रों में मजबूत सहयोग को बढ़ावा देना है. यह सिंगापुर में भारतीय स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों को प्रोत्साहित करेगा. डिजिटल प्रौद्योगिकियों पर समझौता ज्ञापन साइबर-सुरक्षा, 5G, सुपर-कंप्यूटिंग, क्वांटम कंप्यूटिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्रों में घनिष्ठ सहयोग को सुविधाजनक बनाने में मदद करेगा. शैक्षिक सहयोग और कौशल विकास पर समझौता ज्ञापन तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देता है.

सिंगापुर ने पिछले 24 वर्षों में भारत में लगभग 160 बिलियन डॉलर का निवेश किया है. अधिक निवेश को बढ़ावा देने और आकर्षित करने के लिए पीएम मोदी ने ब्लैकस्टोन सिंगापुर, टेमासेक होल्डिंग्स, सेम्बकॉर्प इंडस्ट्रीज लिमिटेड, कैपिटलैंड इन्वेस्टमेंट, एसटी टेलीमीडिया ग्लोबल डेटा सेंटर, सिंगापुर एयरवेज के सीईओ के साथ बैठक की और उन्हें भारत में विमानन, ऊर्जा और कौशल विकास में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया.

एक्ट ईस्ट पॉलिसी और इंडो-पैसिफिक रणनीति

बांग्लादेश और म्यांमार एक्ट ईस्ट पॉलिसी के केंद्र में हैं, जहां विभिन्न कनेक्टिविटी परियोजनाएं भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ने के उद्देश्य से हैं, जो दोनों देशों से होकर गुजरती हैं. चूंकि दोनों देश अशांति और राजनीतिक संघर्ष से जूझ रहे हैं, इसलिए नई दिल्ली के लिए ब्रूनेई जैसे आसियान देशों और विशेष रूप से सिंगापुर के साथ अपने संबंधों को पुनर्जीवित करना जरूरी है, जो आसियान के साथ संबंधों को गहरा करने के भारत के प्रयासों के लिए एक सहज भागीदार है. साथ ही दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों में से एक पूर्व-पश्चिम शिपिंग मार्ग में भारत की रणनीतिक स्थिति भी मजबूत होगी. सिंगापुर भारत के लिए आसियान-भारत शिखर सम्मेलन, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) और आसियान क्षेत्रीय मंच (एआरएफ) जैसे बहुपक्षीय मंचों में सहयोग के लिए भी महत्वपूर्ण है.

मलक्का जलडमरूमध्य के पूर्व में भारत की कोई महत्वपूर्ण आर्थिक या सैन्य उपस्थिति नहीं है. इस क्षेत्र के सामरिक महत्व का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया कि पूर्व में मलक्का जलडमरूमध्य और दक्षिण चीन सागर भारत को प्रशांत क्षेत्र और भारत के अधिकांश प्रमुख सामरिक साझेदारों- आसियान, जापान, कोरिया, चीन और अमेरिका से जोड़ते हैं. ब्रूनेई और सिंगापुर के साथ भारत के कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य एकीकरण में तेजी लाने से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन को बनाए रखने में नई दिल्ली को समर्थन मिलेगा.

सिंगापुर आसियान क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जबकि ब्रूनेई का भारत के साथ व्यापार सबसे कम है. भारत को 2009 के आसियान भारत वस्तु व्यापार समझौते (एआईटीआईजीए) की समीक्षा करके आर्थिक एकीकरण में सुधार करना होगा, विशेष रूप से टैरिफ को कम करने के संदर्भ में. 'दक्षिण पूर्व एशिया की स्थिति' 2024 सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, आसियान डायलॉग के भागीदारों में भारत का आर्थिक और राजनीतिक-रणनीतिक प्रभाव बहुत कम रहा है. नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर (एनयूएस) में इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज (आईएसएएस) के सीनियर रिसर्च फेलो अमितेंदु पालित ने उम्मीद जताई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह यात्रा इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉस्पेरिटी (IPEF) को अधिक महत्व दे सकती है, जिसका भारत, सिंगापुर और ब्रूनेई हिस्सा हैं.

निष्कर्श

कुल मिलाकर, ब्रूनेई और सिंगापुर के साथ मोदी की भागीदारी से पता चलता है कि नई दिल्ली का ध्यान दक्षिण-पूर्व एशिया पर है और एईपी के उसके लक्ष्य, क्षेत्र में चीन के बढ़ते आर्थिक और सैन्य प्रभाव को संतुलित करने के लिए क्षेत्रीय गठबंधनों के साथ स्थिर और अनुकूल हिंद-प्रशांत परिदृश्य को आकार देने के व्यापक लक्ष्यों के साथ जुड़े हैं. क्षेत्र के जटिल और पेचीदा शक्ति संतुलन को नियंत्रित करने में ब्रूनेई और सिंगापुर के साथ भारत का निरंतर संपर्क भविष्य में एईपी के लिए और एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में हिंद-प्रशांत में अपने निरंतर हितों को सुरक्षित करने के लिए आवश्यक है. वैश्विक शक्ति और ग्लोबल साउथ का प्रमुख भागीदार बनने के अलावा इंडो-पैसिफिक में बड़ी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए अधिक सशक्त एईपी की आवश्यकता है.

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