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ओली के प्रधानमंत्री रहते हुए भारत-नेपाल संबंध को लेकर क्या उम्मीदें हैं? - India Nepal ties

India-Nepal ties: प्रधानमंत्री के रूप में केपी शर्मा ओली के चौथे कार्यकाल में भारत-नेपाल संबंध कैसे होंगे? क्या फिर से नेपाल झुकाव चीन की तरफ होगा या भारत के साथ उसके रिश्ते मजबूत होंगे. पढ़ें पूरी खबर...

Nepal ties under Oli's previous stints as PM and what to expect now
ओली के प्रधानमंत्री रहते हुए भारत-नेपाल संबंध को लेकर क्या उम्मीदें हैं? (ETV Bharat)
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By Aroonim Bhuyan

Published : Jul 16, 2024, 1:34 PM IST

Updated : Jul 16, 2024, 1:41 PM IST

नई दिल्ली: नेपाली कांग्रेस के सहयोग से गठित नई गठबंधन सरकार के तहत नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी-यूनिफाइड मार्क्सवादी लेनिनवादी (CPN-UML) प्रमुख केपी शर्मा ओली ने चौथी बार प्रधानमंत्री का पद संभाल लिया है. इसके साथ ही सबकी नजरे इस बात केंद्रित हो जाएंगी कि नई दिल्ली और काठमांडू के बीच संबंध कैसे आगे बढ़ेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओली के पदभार ग्रहण करने का स्वागत करते हुए कहा कि भारत, नेपाल के साथ अपनी दोस्ती को मजबूत करने और मिलकर काम करने के लिए तत्पर है.

पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "नेपाल के प्रधानमंत्री बनने पर केपी शर्मा ओली को बधाई. दोनों देशों के बीच दोस्ती को मजबूत करने, अपने लोगों की प्रगति और समृद्धि, हमारे लाभकारी सहयोग को आगे बढ़ाने और मिलकर काम करने के लिए तत्पर हूं." हालांकि, तथ्य यह है कि भारत और नेपाल के बीच गहरे सांस्कृतिक, आर्थिक, विकास और लोगों के बीच आपसी संबंध होने के बावजूद, ओली के प्रधानमंत्री के रूप में पिछले तीन कार्यकालों के दौरान नई दिल्ली और काठमांडू के बीच संबंधों में उतार-चढ़ाव बना रहा, क्योंकि उनका झुकाव चीन की ओर रहा है.

72 वर्षीय ओली को 2015 के नेपाल नाकाबंदी के दौरान और उसके बाद भारत सरकार के संबंध में अधिक सख्त रुख अपनाने के लिए जाना जाता है. उन्होंने भारत के साथ नेपाल के पारंपरिक घनिष्ठ व्यापारिक संबंधों के विकल्प के रूप में चीन के साथ संबंधों को मजबूत किया और भारत के साथ विवादित क्षेत्रों को शामिल करते हुए संवैधानिक संशोधन द्वारा नेपाल के मानचित्र को अपडेट किया, जिसके लिए उन्हें कुछ घरेलू प्रशंसा और राष्ट्रवादी के रूप में प्रतिष्ठा मिली. पद पर रहते हुए, ओली अक्सर व्यंग्यात्मक टिप्पणियों के इस्तेमाल, आलोचकों और मीडिया के प्रति शत्रुता, सहकर्मियों और व्यावसायिक सहयोगियों द्वारा भ्रष्टाचार पर चुप्पी, आर्थिक विकास को पूरा करने में विफल रहने और 2017 के चुनाव में ऐतिहासिक बहुमत के बावजूद वादा किए गए बजटीय व्यय से भटकने के लिए विवादों में घिरे रहे.

प्रधानमंत्री के रूप में ओली के पहले कार्यकाल के दौरान क्या हुआ?
ओली 11 अक्टूबर 2015 को पहली बार प्रधानमंत्री बने. तभी देश ने सितंबर 2015 में एक नया संविधान अपनाया. उन्हें विधानमंडल संसद में 597 सदस्यों में से 338 वोट मिले. ओली की उम्मीदवारी को नेपाल की यूनिफाइड कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी), राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी नेपाल और मधेसी जन अधिकार मंच के साथ-साथ 13 अन्य छोटी पार्टियों ने समर्थन दिया.

उनकी सरकार को तुरंत नए संविधान के प्रावधानों को लागू करने का काम सौंपा गया, जिसमें संघीय पुनर्गठन और विभिन्न जातीय समूहों की मांगों को संबोधित करना शामिल था. उनका पहला कार्यकाल नेपाल के संविधान की घोषणा के बाद भारत द्वारा लगाए गए आर्थिक नाकेबंदी से प्रभावित था.

इस नाकेबंदी के साथ-साथ तराई क्षेत्र में मधेसी समुदाय के आंतरिक विरोध के कारण ईंधन और दवा सहित आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी हो गई. नाकेबंदी से निपटने के लिए ओली के तरीके में मजबूत राष्ट्रवादी बयानबाजी और नाकेबंदी के प्रभाव को कम करने के लिए चीन की ओर झुकाव की विशेषता थी. उन्होंने संविधान में संशोधन करने के भारत के रुख के खिलाफ एक विद्रोही रुख अपनाया और भारतीय निर्भरता का मुकाबला करने के लिए चीन के साथ व्यापार और पारगमन संधियों पर हस्ताक्षर किए.

13 जुलाई 2016 को नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी केंद्र (सीपीएन-माओवादी केंद्र) ने गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले लिया और उसके बाद 14 जुलाई, 2016 को पार्टी ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद, सीपीएन-यूएमएल के नेतृत्व वाली सरकार और प्रधानमंत्री ओली अल्पमत में सिमट गए, जिससे उन पर इस्तीफा देने का दबाव पड़ा.

हालांकि, सीपीएन-यूएमएल ने सदन में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा करने का फैसला किया, जिसके कारण संबंधित दलों की तीन दिवसीय संसदीय बैठक हुई. इस प्रक्रिया के दौरान, दो अन्य प्रमुख दलों, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी और मधेशी जन अधिकार मंच ने भी गठबंधन से अपना समर्थन वापस ले लिया. तीसरे दिन 24 जुलाई, 2016 को संसद में विपक्षी दलों को संबोधित करने के बाद, ओली ने अपने इस्तीफे की घोषणा की. 4 अगस्त, 2016 को ओली ने औपचारिक रूप से सीपीएन-माओवादी केंद्र के नए प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल को सत्ता सौंप दी.

ओली के दूसरे प्रधानमंत्रित्व काल में भारत-नेपाल संबंध कैसे रहे?
15 फरवरी 2018 को ओली को दूसरी बार प्रधानमंत्री बने. मई 2020 में ओली सरकार ने भारत सरकार की ओर से लिपुलेख दर्रे पर एक सड़क के उद्घाटन के जवाब में कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा के विवादित क्षेत्रों सहित देश का नया मैप पेश किया. इससे दो दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच 'कार्टोग्राफिक युद्ध' छिड़ गया था. ओली की सरकार ने संसद में देश के आधिकारिक मानचित्र और प्रतीक को संशोधित करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन विधेयक लाया, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी द्वारा प्रमाणित किए जाने से पहले दोनों सदनों में सर्वसम्मति से पारित किया गया था.

ओली की सरकार ने 'समृद्ध नेपाल, सुखी नेपाली' के बैनर तले महत्वाकांक्षी विकास परियोजनाएं शुरू कीं. प्रमुख पहलों में सड़क निर्माण, जलविद्युत विकास और लुंबिनी में गौतम बुद्ध अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे और पोखरा क्षेत्रीय अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का निर्माण पूरा होना जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शामिल थीं. इन दोनों हवाई अड्डों का निर्माण चीनी ठेकेदारों ने किया था.

हालांकि, ओली ने चीन के साथ संबंधों को मजबूत करना जारी रखा, कनेक्टिविटी और व्यापार को बढ़ाने के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए और उनकी सरकार ने भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने पर भी काम किया. भारत नेपाल को बड़े विकास और बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए पर्याप्त वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करता है, साथ ही पूरे देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई, ग्रामीण बुनियादी ढांचे और आजीविका विकास के प्रमुख क्षेत्रों में छोटे विकास परियोजनाओं/उच्च प्रभाव वाले सामुदायिक विकास परियोजनाओं के लिए भी सहायता प्रदान करता है.

भारत सरकार की अनुदान सहायता से रेल संपर्क, सड़क, इंटिग्रेटिड चेक पोस्ट जैसी कई सीमा पार कनेक्टिविटी परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं. अपने महत्वाकांक्षी एजेंडे के बावजूद, ओली को विकास परियोजनाओं पर धीमी प्रगति और अपने प्रशासन के भीतर कथित भ्रष्टाचार के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा.

इस बीच पार्टी के अंदरूनी विवाद भी सामने आने लगे, खास तौर पर ओली और एनसीपी के पूर्व माओवादी गुट के नेताओं के बीच. 20 दिसंबर, 2020 को ओली ने राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से प्रतिनिधि सभा को भंग करने की सिफारिश की, जिन्होंने इस फैसले को मंजूरी दे दी. इस कदम की व्यापक रूप से असंवैधानिक के रूप में आलोचना की गई और पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए. संसद के विघटन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. 23 फरवरी, 2021 को कोर्ट ने फैसला सुनाया कि विघटन असंवैधानिक था और प्रतिनिधि सभा को बहाल करने का आदेश दिया. कोर्ट के फैसले के बाद ओली को संसद में विश्वास मत हासिल करना था. 10 मई, 2021 को, वह 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में आवश्यक 136 वोट हासिल करने में विफल रहे.

ओली तीसरी बार प्रधानमंत्री कैसे बने और उनके सामने चुनौतियां क्या थीं?
विश्वास मत हारने के बावजूद ओली को संसद में सबसे बड़ी पार्टी के नेता के रूप में 13 मई, 2021 को तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में फिर से नियुक्त किया गया. हालांकि, बहुमत का समर्थन हासिल करने में असमर्थ होने पर उन्होंने 21 मई, 2021 को प्रतिनिधि सभा को भंग करने की फिर से सिफारिश की, जिसे राष्ट्रपति भंडारी ने मंजूरी दे दी.

प्रतिनिधि सभा को भंग करने को फिर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. 12 जुलाई, 2021 को कोर्ट ने एक बार फिर विघटन को असंवैधानिक करार दिया और प्रतिनिधि सभा को बहाल करने का आदेश दिया. ओली का तीसरा कार्यकाल कोविड-19 महामारी से काफी प्रभावित रहा. उनकी सरकार की प्रतिक्रिया में लॉकडाउन, संगरोध उपाय और टीके सुरक्षित करने के प्रयास शामिल थे. हालांकि, खराब प्रबंधन, अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचे और मेडिकल सप्लाई की खरीद से संबंधित भ्रष्टाचार घोटालों के लिए प्रतिक्रिया की व्यापक रूप से आलोचना की गई थी.

ओली का तीसरा कार्यकाल भी तीव्र राजनीतिक अस्थिरता से प्रभावित रहा. एनसीपी के भीतर विवादों के कारण विभाजन हुआ, मार्च 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-माओवादी सेंटर का विलय अवैध है, जिससे दोनों मूल पार्टियां फिर से जीवित हो गईं. इस फैसले से और अधिक विखंडन हुआ और ओली की राजनीतिक स्थिति कमजोर हुई.

ओली ने अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान दो बार प्रतिनिधि सभा को भंग किया, पहली बार दिसंबर 2020 में और फिर मई 2021 में. दोनों बार उन्होंने सहयोग की कमी और अस्थिरता का हवाला दिया. दोनों बार विघटन के बाद व्यापक विरोध और कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, सुप्रीम कोर्ट ने प्रत्येक विघटन के बाद संसद को बहाल कर दिया.

ओली का तीसरा कार्यकाल 13 जुलाई, 2021 को समाप्त हो गया, जब सुप्रीम कोर्ट ने उनके कार्यों को असंवैधानिक बताते हुए उन्हें हटाने का आदेश दिया. उसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने विपक्षी दलों और ओली की पार्टी के असंतुष्ट सदस्यों से मिले समर्थन के आधार पर नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा को नया प्रधानमंत्री नियुक्त करने का आदेश जारी किया.

विदेश नीति के मामले में ओली के तीसरे कार्यकाल में क्या उम्मीद की जा सकती है?
मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के रिसर्च फेलो और नेपाल से जुड़े मुद्दों के विशेषज्ञ निहार आर नायक ने ईटीवी से कहा, "इस बार ओली की सरकार को नेपाली कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का समर्थन प्राप्त है. ऐसे में गठबंधन सरकार ज़्यादातर समय आंतरिक समस्याओं को ठीक करने में व्यस्त रहेगी.

नायक ने बताया कि नेपाल गंभीर आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहा है और ओली और उनकी अगुआई वाली गठबंधन सरकार ज्यादातर समय इन मुद्दों को सुलझाने में व्यस्त रहेगी. मानसून के मौसम के कारण आई भूस्खलन और बाढ़ में भारी जनहानि हुई है. ये सब नई सरकार को भी व्यस्त रखेगा.

नायक ने कहा, "सरकार अभी विदेश नीति पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी. ज्यादा से ज्यादा वह आर्थिक कार्यों के लिए भारत और चीन के साथ बातचीत जारी रखेगी." उन्होंने कहा कि नेपाल में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पसंदीदा बेल्ट रोड पहल (बीआरआई) का कार्यान्वयन भी आगे नहीं बढ़ेगा क्योंकि सीपीएन-यूएमएल और नेपाली कांग्रेस दोनों ही इसके तहत परियोजनाओं के लिए बीजिंग से ऋण लेने के खिलाफ हैं. सीपीएन-माओवादी सेंटर के पूर्व पुष्प कमल दहल के नेतृत्व वाली पिछली वामपंथी गठबंधन सरकार ने हिमालयी राष्ट्र में बीआरआई परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए बीजिंग के साथ बातचीत फिर से शुरू की थी, जो भारत के हितों के खिलाफ जाता.

नायक ने यह भी बताया कि नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष देउबा की पत्नी आरज़ू राणा को ओली की कैबिनेट में विदेश मंत्री नियुक्त किया गया है. नेपाली कांग्रेस विदेश नीति के संचालन में वामपंथी राजनीतिक दलों द्वारा किसी भी तरह की अतिक्रमण को रोकने के लिए काम करेगी. सरकार को विदेश नीति के मामले में कोई खुली छूट नहीं होगी.

यह भी पढ़ें- क्या नेपाल के प्रधानमंत्री प्रासंगिक बने रहने के लिए बिल्ली और चूहे का संवैधानिक खेल खेल रहे हैं?

नई दिल्ली: नेपाली कांग्रेस के सहयोग से गठित नई गठबंधन सरकार के तहत नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी-यूनिफाइड मार्क्सवादी लेनिनवादी (CPN-UML) प्रमुख केपी शर्मा ओली ने चौथी बार प्रधानमंत्री का पद संभाल लिया है. इसके साथ ही सबकी नजरे इस बात केंद्रित हो जाएंगी कि नई दिल्ली और काठमांडू के बीच संबंध कैसे आगे बढ़ेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओली के पदभार ग्रहण करने का स्वागत करते हुए कहा कि भारत, नेपाल के साथ अपनी दोस्ती को मजबूत करने और मिलकर काम करने के लिए तत्पर है.

पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "नेपाल के प्रधानमंत्री बनने पर केपी शर्मा ओली को बधाई. दोनों देशों के बीच दोस्ती को मजबूत करने, अपने लोगों की प्रगति और समृद्धि, हमारे लाभकारी सहयोग को आगे बढ़ाने और मिलकर काम करने के लिए तत्पर हूं." हालांकि, तथ्य यह है कि भारत और नेपाल के बीच गहरे सांस्कृतिक, आर्थिक, विकास और लोगों के बीच आपसी संबंध होने के बावजूद, ओली के प्रधानमंत्री के रूप में पिछले तीन कार्यकालों के दौरान नई दिल्ली और काठमांडू के बीच संबंधों में उतार-चढ़ाव बना रहा, क्योंकि उनका झुकाव चीन की ओर रहा है.

72 वर्षीय ओली को 2015 के नेपाल नाकाबंदी के दौरान और उसके बाद भारत सरकार के संबंध में अधिक सख्त रुख अपनाने के लिए जाना जाता है. उन्होंने भारत के साथ नेपाल के पारंपरिक घनिष्ठ व्यापारिक संबंधों के विकल्प के रूप में चीन के साथ संबंधों को मजबूत किया और भारत के साथ विवादित क्षेत्रों को शामिल करते हुए संवैधानिक संशोधन द्वारा नेपाल के मानचित्र को अपडेट किया, जिसके लिए उन्हें कुछ घरेलू प्रशंसा और राष्ट्रवादी के रूप में प्रतिष्ठा मिली. पद पर रहते हुए, ओली अक्सर व्यंग्यात्मक टिप्पणियों के इस्तेमाल, आलोचकों और मीडिया के प्रति शत्रुता, सहकर्मियों और व्यावसायिक सहयोगियों द्वारा भ्रष्टाचार पर चुप्पी, आर्थिक विकास को पूरा करने में विफल रहने और 2017 के चुनाव में ऐतिहासिक बहुमत के बावजूद वादा किए गए बजटीय व्यय से भटकने के लिए विवादों में घिरे रहे.

प्रधानमंत्री के रूप में ओली के पहले कार्यकाल के दौरान क्या हुआ?
ओली 11 अक्टूबर 2015 को पहली बार प्रधानमंत्री बने. तभी देश ने सितंबर 2015 में एक नया संविधान अपनाया. उन्हें विधानमंडल संसद में 597 सदस्यों में से 338 वोट मिले. ओली की उम्मीदवारी को नेपाल की यूनिफाइड कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी), राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी नेपाल और मधेसी जन अधिकार मंच के साथ-साथ 13 अन्य छोटी पार्टियों ने समर्थन दिया.

उनकी सरकार को तुरंत नए संविधान के प्रावधानों को लागू करने का काम सौंपा गया, जिसमें संघीय पुनर्गठन और विभिन्न जातीय समूहों की मांगों को संबोधित करना शामिल था. उनका पहला कार्यकाल नेपाल के संविधान की घोषणा के बाद भारत द्वारा लगाए गए आर्थिक नाकेबंदी से प्रभावित था.

इस नाकेबंदी के साथ-साथ तराई क्षेत्र में मधेसी समुदाय के आंतरिक विरोध के कारण ईंधन और दवा सहित आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी हो गई. नाकेबंदी से निपटने के लिए ओली के तरीके में मजबूत राष्ट्रवादी बयानबाजी और नाकेबंदी के प्रभाव को कम करने के लिए चीन की ओर झुकाव की विशेषता थी. उन्होंने संविधान में संशोधन करने के भारत के रुख के खिलाफ एक विद्रोही रुख अपनाया और भारतीय निर्भरता का मुकाबला करने के लिए चीन के साथ व्यापार और पारगमन संधियों पर हस्ताक्षर किए.

13 जुलाई 2016 को नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी केंद्र (सीपीएन-माओवादी केंद्र) ने गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले लिया और उसके बाद 14 जुलाई, 2016 को पार्टी ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद, सीपीएन-यूएमएल के नेतृत्व वाली सरकार और प्रधानमंत्री ओली अल्पमत में सिमट गए, जिससे उन पर इस्तीफा देने का दबाव पड़ा.

हालांकि, सीपीएन-यूएमएल ने सदन में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा करने का फैसला किया, जिसके कारण संबंधित दलों की तीन दिवसीय संसदीय बैठक हुई. इस प्रक्रिया के दौरान, दो अन्य प्रमुख दलों, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी और मधेशी जन अधिकार मंच ने भी गठबंधन से अपना समर्थन वापस ले लिया. तीसरे दिन 24 जुलाई, 2016 को संसद में विपक्षी दलों को संबोधित करने के बाद, ओली ने अपने इस्तीफे की घोषणा की. 4 अगस्त, 2016 को ओली ने औपचारिक रूप से सीपीएन-माओवादी केंद्र के नए प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल को सत्ता सौंप दी.

ओली के दूसरे प्रधानमंत्रित्व काल में भारत-नेपाल संबंध कैसे रहे?
15 फरवरी 2018 को ओली को दूसरी बार प्रधानमंत्री बने. मई 2020 में ओली सरकार ने भारत सरकार की ओर से लिपुलेख दर्रे पर एक सड़क के उद्घाटन के जवाब में कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा के विवादित क्षेत्रों सहित देश का नया मैप पेश किया. इससे दो दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच 'कार्टोग्राफिक युद्ध' छिड़ गया था. ओली की सरकार ने संसद में देश के आधिकारिक मानचित्र और प्रतीक को संशोधित करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन विधेयक लाया, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी द्वारा प्रमाणित किए जाने से पहले दोनों सदनों में सर्वसम्मति से पारित किया गया था.

ओली की सरकार ने 'समृद्ध नेपाल, सुखी नेपाली' के बैनर तले महत्वाकांक्षी विकास परियोजनाएं शुरू कीं. प्रमुख पहलों में सड़क निर्माण, जलविद्युत विकास और लुंबिनी में गौतम बुद्ध अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे और पोखरा क्षेत्रीय अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का निर्माण पूरा होना जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शामिल थीं. इन दोनों हवाई अड्डों का निर्माण चीनी ठेकेदारों ने किया था.

हालांकि, ओली ने चीन के साथ संबंधों को मजबूत करना जारी रखा, कनेक्टिविटी और व्यापार को बढ़ाने के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए और उनकी सरकार ने भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने पर भी काम किया. भारत नेपाल को बड़े विकास और बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए पर्याप्त वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करता है, साथ ही पूरे देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई, ग्रामीण बुनियादी ढांचे और आजीविका विकास के प्रमुख क्षेत्रों में छोटे विकास परियोजनाओं/उच्च प्रभाव वाले सामुदायिक विकास परियोजनाओं के लिए भी सहायता प्रदान करता है.

भारत सरकार की अनुदान सहायता से रेल संपर्क, सड़क, इंटिग्रेटिड चेक पोस्ट जैसी कई सीमा पार कनेक्टिविटी परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं. अपने महत्वाकांक्षी एजेंडे के बावजूद, ओली को विकास परियोजनाओं पर धीमी प्रगति और अपने प्रशासन के भीतर कथित भ्रष्टाचार के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा.

इस बीच पार्टी के अंदरूनी विवाद भी सामने आने लगे, खास तौर पर ओली और एनसीपी के पूर्व माओवादी गुट के नेताओं के बीच. 20 दिसंबर, 2020 को ओली ने राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से प्रतिनिधि सभा को भंग करने की सिफारिश की, जिन्होंने इस फैसले को मंजूरी दे दी. इस कदम की व्यापक रूप से असंवैधानिक के रूप में आलोचना की गई और पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए. संसद के विघटन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. 23 फरवरी, 2021 को कोर्ट ने फैसला सुनाया कि विघटन असंवैधानिक था और प्रतिनिधि सभा को बहाल करने का आदेश दिया. कोर्ट के फैसले के बाद ओली को संसद में विश्वास मत हासिल करना था. 10 मई, 2021 को, वह 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में आवश्यक 136 वोट हासिल करने में विफल रहे.

ओली तीसरी बार प्रधानमंत्री कैसे बने और उनके सामने चुनौतियां क्या थीं?
विश्वास मत हारने के बावजूद ओली को संसद में सबसे बड़ी पार्टी के नेता के रूप में 13 मई, 2021 को तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में फिर से नियुक्त किया गया. हालांकि, बहुमत का समर्थन हासिल करने में असमर्थ होने पर उन्होंने 21 मई, 2021 को प्रतिनिधि सभा को भंग करने की फिर से सिफारिश की, जिसे राष्ट्रपति भंडारी ने मंजूरी दे दी.

प्रतिनिधि सभा को भंग करने को फिर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. 12 जुलाई, 2021 को कोर्ट ने एक बार फिर विघटन को असंवैधानिक करार दिया और प्रतिनिधि सभा को बहाल करने का आदेश दिया. ओली का तीसरा कार्यकाल कोविड-19 महामारी से काफी प्रभावित रहा. उनकी सरकार की प्रतिक्रिया में लॉकडाउन, संगरोध उपाय और टीके सुरक्षित करने के प्रयास शामिल थे. हालांकि, खराब प्रबंधन, अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचे और मेडिकल सप्लाई की खरीद से संबंधित भ्रष्टाचार घोटालों के लिए प्रतिक्रिया की व्यापक रूप से आलोचना की गई थी.

ओली का तीसरा कार्यकाल भी तीव्र राजनीतिक अस्थिरता से प्रभावित रहा. एनसीपी के भीतर विवादों के कारण विभाजन हुआ, मार्च 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-माओवादी सेंटर का विलय अवैध है, जिससे दोनों मूल पार्टियां फिर से जीवित हो गईं. इस फैसले से और अधिक विखंडन हुआ और ओली की राजनीतिक स्थिति कमजोर हुई.

ओली ने अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान दो बार प्रतिनिधि सभा को भंग किया, पहली बार दिसंबर 2020 में और फिर मई 2021 में. दोनों बार उन्होंने सहयोग की कमी और अस्थिरता का हवाला दिया. दोनों बार विघटन के बाद व्यापक विरोध और कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, सुप्रीम कोर्ट ने प्रत्येक विघटन के बाद संसद को बहाल कर दिया.

ओली का तीसरा कार्यकाल 13 जुलाई, 2021 को समाप्त हो गया, जब सुप्रीम कोर्ट ने उनके कार्यों को असंवैधानिक बताते हुए उन्हें हटाने का आदेश दिया. उसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने विपक्षी दलों और ओली की पार्टी के असंतुष्ट सदस्यों से मिले समर्थन के आधार पर नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा को नया प्रधानमंत्री नियुक्त करने का आदेश जारी किया.

विदेश नीति के मामले में ओली के तीसरे कार्यकाल में क्या उम्मीद की जा सकती है?
मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के रिसर्च फेलो और नेपाल से जुड़े मुद्दों के विशेषज्ञ निहार आर नायक ने ईटीवी से कहा, "इस बार ओली की सरकार को नेपाली कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का समर्थन प्राप्त है. ऐसे में गठबंधन सरकार ज़्यादातर समय आंतरिक समस्याओं को ठीक करने में व्यस्त रहेगी.

नायक ने बताया कि नेपाल गंभीर आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहा है और ओली और उनकी अगुआई वाली गठबंधन सरकार ज्यादातर समय इन मुद्दों को सुलझाने में व्यस्त रहेगी. मानसून के मौसम के कारण आई भूस्खलन और बाढ़ में भारी जनहानि हुई है. ये सब नई सरकार को भी व्यस्त रखेगा.

नायक ने कहा, "सरकार अभी विदेश नीति पर ध्यान केंद्रित नहीं करेगी. ज्यादा से ज्यादा वह आर्थिक कार्यों के लिए भारत और चीन के साथ बातचीत जारी रखेगी." उन्होंने कहा कि नेपाल में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पसंदीदा बेल्ट रोड पहल (बीआरआई) का कार्यान्वयन भी आगे नहीं बढ़ेगा क्योंकि सीपीएन-यूएमएल और नेपाली कांग्रेस दोनों ही इसके तहत परियोजनाओं के लिए बीजिंग से ऋण लेने के खिलाफ हैं. सीपीएन-माओवादी सेंटर के पूर्व पुष्प कमल दहल के नेतृत्व वाली पिछली वामपंथी गठबंधन सरकार ने हिमालयी राष्ट्र में बीआरआई परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए बीजिंग के साथ बातचीत फिर से शुरू की थी, जो भारत के हितों के खिलाफ जाता.

नायक ने यह भी बताया कि नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष देउबा की पत्नी आरज़ू राणा को ओली की कैबिनेट में विदेश मंत्री नियुक्त किया गया है. नेपाली कांग्रेस विदेश नीति के संचालन में वामपंथी राजनीतिक दलों द्वारा किसी भी तरह की अतिक्रमण को रोकने के लिए काम करेगी. सरकार को विदेश नीति के मामले में कोई खुली छूट नहीं होगी.

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Last Updated : Jul 16, 2024, 1:41 PM IST
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