ETV Bharat / opinion

भारत की अंतरिक्ष सहयोग पहल में ब्रुनेई का महत्व - Brunei India Ties - BRUNEI INDIA TIES

Space Cooperation Initiatives: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रुनेई यात्रा से पहले सचिव (पूर्व) जयदीप मजूमदार ने भारत और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच अंतरिक्ष सहयोग के महत्व पर प्रकाश डाला.

भारत की अंतरिक्ष सहयोग पहल में ब्रुनेई का महत्व
भारत की अंतरिक्ष सहयोग पहल में ब्रुनेई का महत्व (X@narendramodi)
author img

By Aroonim Bhuyan

Published : Sep 4, 2024, 3:32 PM IST

नई दिल्ली: पूर्व सचिव जयदीप मजूमदार से जब पूछा गया कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंगलवार से शुरू हो रही दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश की यात्रा के दौरान भारत और ब्रुनेई के बीच स्पेस कोओपरेशन पर कोई बड़ी घोषणा होगी तो उन्होंने कहा कि 'वेट एंड वॉच दिस स्पेस'. मजूमदार ने सोमवार को मोदी के ब्रुनेई रवाना होने से पहले मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, "हमें अपने स्पेस प्रोग्राम में ब्रुनेई से बहुमूल्य समर्थन मिला है."

गौरतलब है कि यह दक्षिण पूर्व एशियाई देश की किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली द्विपक्षीय यात्रा है. उन्होंने जिन तीन समझौता ज्ञापनों का उल्लेख किया उनमें सैटेलाइट और लॉन्चिंग व्हीकल के लिए TT&C सेंटर के संचालन और स्पेस रिसर्च, विज्ञान और अनुप्रयोगों के क्षेत्र में सहयोग शामिल है.

मजूमदार ने कहा कि हम टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड में निरंतर सहयोग कर रहे हैं और हम इसे आगे ले जाएंगे. जैसे-जैसे तकनीक विकसित हो रही है, वैसे-वैसे हमारी जरूरतें विकसित होती हैं. इसी तरह हमारे टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड के लिए दुनिया भर में मौजूद विभिन्न केंद्रों में उन क्षमताओं को बढ़ाने की जरूरत भी बढ़ती या बदलती रहती है. मैं यहां जल्दबाजी नहीं करना चाहता, लेकिन आप इस पर कुछ चर्चाएं और परिणाम भी देखेंगे. 'वेट एंड वॉच दिस स्पेस'

अंतरिक्ष सहयोग में ब्रुनेई को एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में क्यों देखा जाता है?
ब्रुनेई एक छोटा राष्ट्र है, लेकिन यह दक्षिण पूर्व एशिया में बोर्नियो द्वीप पर रणनीतिक रूप से स्थित है. भूमध्य रेखा के पास इसकी भौगोलिक स्थिति इसे सैटेलाइट ग्राउंड स्टेशनों और अंतरिक्ष निगरानी बुनियादी ढांचे के लिए एक आकर्षक स्थल बनाती है.

भूमध्यरेखीय स्थान भूस्थिर सैटेलाइट को लॉन्च करने और निगरानी करने के लिए आदर्श हैं, क्योंकि ये सैटेलाइट भूमध्यरेखीय तल के साथ परिक्रमा करते हैं, जो विशिष्ट क्षेत्रों की स्थिर और निरंतर कवरेज प्रदान करते हैं. भूमध्य रेखा के पास स्थित ग्राउंड स्टेशन इन ,सैटेलाइट के साथ प्रभावी ढंग से संचार कर सकते हैं, जिससे बेहतर ट्रैकिंग, डेटा रिसेप्शन और नियंत्रण मिलता है.

ब्रुनेई की लोकेशन भविष्य के स्पेसपोर्ट विकास की संभावना रखती है, विशेष रूप से भूस्थिर और ध्रुवीय कक्षाओं में रॉकेट लॉन्च करने के लिए. भूमध्य रेखा के करीब रॉकेट लॉन्च करने के लिए पृथ्वी के रोटेशनल वेलोसिटी के कारण कम ईंधन की आवश्यकता होती है, जिससे यह एक लागत प्रभावी लॉन्च साइट बन जाती है. हालांकि, ब्रुनेई ने अभी तक ऐसा बुनियादी ढांचा विकसित नहीं किया है, लेकिन इसकी राजनीतिक स्थिरता, ओपन अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय भागीदारी में शामिल होने की इच्छा इसे भविष्य के स्पेसपोर्ट निवेशों के लिए एक संभावित उम्मीदवार बनाती है.

ब्रुनेई सक्रिय रूप से अपनी डिजिटल अर्थव्यवस्था और अपनी तकनीकी क्षमताओं को बढ़ा रहा है. इसमें एडवांस कम्युनिकेशन इंफ्रास्ट्रक्चर, साइबर सिक्योरिटी और डेटा एनालिटिक्स में निवेश शामिल हैं. जैसे-जैसे अंतरिक्ष गतिविधियां सैटेलाइट कम्युनिकेशन, अर्थ ओब्जर्वेशन और डेटा-संचालित सेवाओं के माध्यम से डिजिटल अर्थव्यवस्था के साथ जुड़ती जा रही हैं. ब्रुनेई का टेक्नोलॉजी पर ध्यान इसे एक मूल्यवान भागीदार के रूप में स्थापित कर रहा है.

अपने डिजिटल इकोसिस्टम को आगे बढ़ाने में देश की रुचि स्पेस-बेस्ड डेटा को आर्थिक और विकासात्मक पहलों में एकीकृत करने के इच्छुक अंतरिक्ष-आधारित देशों के हितों के अनुरूप है. इस प्रकार ब्रुनेई की डिजिटल तत्परता अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष सहयोग प्रयासों को पूरक बनाती है, विशेष रूप से सैटेलाइट इंटरनेट, रिमोट सेंसिंग और पर्यावरण निगरानी जैसे क्षेत्रों में.

भारत और ब्रुनेई अंतरिक्ष क्षेत्र में कब से सहयोग कर रहे हैं और अब इसकी स्थिति क्या है?
भारत और ब्रुनेई ने अगस्त 1997 में ब्रुनेई में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के टीटीएंडसी स्टेशन की स्थापना के लिए एक द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. यह वर्ष 2000 में स्थापित किया गया था और तब से काम कर रहा है.

जुलाई 2018 को नई दिल्ली में एक और समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए, जो भारत को स्पेस लॉन्चिंग और सैटेलाइट संचालन का समर्थन करने के लिए एक ग्राउंड स्टेशन को संचालित करने, बनाए रखने और बढ़ाने की अनुमति देता है. बदले में, भारत स्पेस और सेटेलाइट टेक्नोलॉजी इम्पलीकेशन पर ब्रुनेई के अधिकारियों, वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के प्रशिक्षण के माध्यम से अंतरिक्ष गतिविधियों में अपने अनुभव और विशेषज्ञता को साझा करेगा.

इस समझौते को नई दिल्ली के लिए एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि इस क्षेत्र में चीनी आधिपत्य के सामने भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया सहित क्वाड नामक उभरते हुए हिंद-प्रशांत गठबंधन ने एक बड़ा कदम उठाया है.

स्पेसवॉच ग्लोबल वेबसाइट के अनुसार ब्रुनेई के साथ सहयोग समझौता, सैटेलाइट टीटीएंडसी ग्राउंड स्टेशन स्थापित करने के साथ-साथ भारतीय पृथ्वी अवलोकन और सैटेलाइट के लिए रिसीविंग स्टेशन स्थापित करने के लिए भारत द्वारा अन्य देशों के साथ की गई कई व्यवस्थाओं में लेटेस्ट है. वेबसाइट पर पोस्ट की गई जानकारी के अनुसार, इन देशों में इंडोनेशिया, मध्य अफ्रीका के पश्चिमी तट से दूर साओ टोम और प्रिंसिपे द्वीप और दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के उपयोग के लिए वियतनाम में स्थित एक सुदूर संवेदन रिसीविंग स्टेशन शामिल हैं.

यह भी पढ़ें- भारत और जापान मिलकर रोकेंगे चीन का रास्ता, क्या है प्लानिंग, जानें

नई दिल्ली: पूर्व सचिव जयदीप मजूमदार से जब पूछा गया कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंगलवार से शुरू हो रही दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश की यात्रा के दौरान भारत और ब्रुनेई के बीच स्पेस कोओपरेशन पर कोई बड़ी घोषणा होगी तो उन्होंने कहा कि 'वेट एंड वॉच दिस स्पेस'. मजूमदार ने सोमवार को मोदी के ब्रुनेई रवाना होने से पहले मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, "हमें अपने स्पेस प्रोग्राम में ब्रुनेई से बहुमूल्य समर्थन मिला है."

गौरतलब है कि यह दक्षिण पूर्व एशियाई देश की किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली द्विपक्षीय यात्रा है. उन्होंने जिन तीन समझौता ज्ञापनों का उल्लेख किया उनमें सैटेलाइट और लॉन्चिंग व्हीकल के लिए TT&C सेंटर के संचालन और स्पेस रिसर्च, विज्ञान और अनुप्रयोगों के क्षेत्र में सहयोग शामिल है.

मजूमदार ने कहा कि हम टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड में निरंतर सहयोग कर रहे हैं और हम इसे आगे ले जाएंगे. जैसे-जैसे तकनीक विकसित हो रही है, वैसे-वैसे हमारी जरूरतें विकसित होती हैं. इसी तरह हमारे टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड के लिए दुनिया भर में मौजूद विभिन्न केंद्रों में उन क्षमताओं को बढ़ाने की जरूरत भी बढ़ती या बदलती रहती है. मैं यहां जल्दबाजी नहीं करना चाहता, लेकिन आप इस पर कुछ चर्चाएं और परिणाम भी देखेंगे. 'वेट एंड वॉच दिस स्पेस'

अंतरिक्ष सहयोग में ब्रुनेई को एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में क्यों देखा जाता है?
ब्रुनेई एक छोटा राष्ट्र है, लेकिन यह दक्षिण पूर्व एशिया में बोर्नियो द्वीप पर रणनीतिक रूप से स्थित है. भूमध्य रेखा के पास इसकी भौगोलिक स्थिति इसे सैटेलाइट ग्राउंड स्टेशनों और अंतरिक्ष निगरानी बुनियादी ढांचे के लिए एक आकर्षक स्थल बनाती है.

भूमध्यरेखीय स्थान भूस्थिर सैटेलाइट को लॉन्च करने और निगरानी करने के लिए आदर्श हैं, क्योंकि ये सैटेलाइट भूमध्यरेखीय तल के साथ परिक्रमा करते हैं, जो विशिष्ट क्षेत्रों की स्थिर और निरंतर कवरेज प्रदान करते हैं. भूमध्य रेखा के पास स्थित ग्राउंड स्टेशन इन ,सैटेलाइट के साथ प्रभावी ढंग से संचार कर सकते हैं, जिससे बेहतर ट्रैकिंग, डेटा रिसेप्शन और नियंत्रण मिलता है.

ब्रुनेई की लोकेशन भविष्य के स्पेसपोर्ट विकास की संभावना रखती है, विशेष रूप से भूस्थिर और ध्रुवीय कक्षाओं में रॉकेट लॉन्च करने के लिए. भूमध्य रेखा के करीब रॉकेट लॉन्च करने के लिए पृथ्वी के रोटेशनल वेलोसिटी के कारण कम ईंधन की आवश्यकता होती है, जिससे यह एक लागत प्रभावी लॉन्च साइट बन जाती है. हालांकि, ब्रुनेई ने अभी तक ऐसा बुनियादी ढांचा विकसित नहीं किया है, लेकिन इसकी राजनीतिक स्थिरता, ओपन अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय भागीदारी में शामिल होने की इच्छा इसे भविष्य के स्पेसपोर्ट निवेशों के लिए एक संभावित उम्मीदवार बनाती है.

ब्रुनेई सक्रिय रूप से अपनी डिजिटल अर्थव्यवस्था और अपनी तकनीकी क्षमताओं को बढ़ा रहा है. इसमें एडवांस कम्युनिकेशन इंफ्रास्ट्रक्चर, साइबर सिक्योरिटी और डेटा एनालिटिक्स में निवेश शामिल हैं. जैसे-जैसे अंतरिक्ष गतिविधियां सैटेलाइट कम्युनिकेशन, अर्थ ओब्जर्वेशन और डेटा-संचालित सेवाओं के माध्यम से डिजिटल अर्थव्यवस्था के साथ जुड़ती जा रही हैं. ब्रुनेई का टेक्नोलॉजी पर ध्यान इसे एक मूल्यवान भागीदार के रूप में स्थापित कर रहा है.

अपने डिजिटल इकोसिस्टम को आगे बढ़ाने में देश की रुचि स्पेस-बेस्ड डेटा को आर्थिक और विकासात्मक पहलों में एकीकृत करने के इच्छुक अंतरिक्ष-आधारित देशों के हितों के अनुरूप है. इस प्रकार ब्रुनेई की डिजिटल तत्परता अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष सहयोग प्रयासों को पूरक बनाती है, विशेष रूप से सैटेलाइट इंटरनेट, रिमोट सेंसिंग और पर्यावरण निगरानी जैसे क्षेत्रों में.

भारत और ब्रुनेई अंतरिक्ष क्षेत्र में कब से सहयोग कर रहे हैं और अब इसकी स्थिति क्या है?
भारत और ब्रुनेई ने अगस्त 1997 में ब्रुनेई में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के टीटीएंडसी स्टेशन की स्थापना के लिए एक द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. यह वर्ष 2000 में स्थापित किया गया था और तब से काम कर रहा है.

जुलाई 2018 को नई दिल्ली में एक और समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए, जो भारत को स्पेस लॉन्चिंग और सैटेलाइट संचालन का समर्थन करने के लिए एक ग्राउंड स्टेशन को संचालित करने, बनाए रखने और बढ़ाने की अनुमति देता है. बदले में, भारत स्पेस और सेटेलाइट टेक्नोलॉजी इम्पलीकेशन पर ब्रुनेई के अधिकारियों, वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के प्रशिक्षण के माध्यम से अंतरिक्ष गतिविधियों में अपने अनुभव और विशेषज्ञता को साझा करेगा.

इस समझौते को नई दिल्ली के लिए एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि इस क्षेत्र में चीनी आधिपत्य के सामने भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया सहित क्वाड नामक उभरते हुए हिंद-प्रशांत गठबंधन ने एक बड़ा कदम उठाया है.

स्पेसवॉच ग्लोबल वेबसाइट के अनुसार ब्रुनेई के साथ सहयोग समझौता, सैटेलाइट टीटीएंडसी ग्राउंड स्टेशन स्थापित करने के साथ-साथ भारतीय पृथ्वी अवलोकन और सैटेलाइट के लिए रिसीविंग स्टेशन स्थापित करने के लिए भारत द्वारा अन्य देशों के साथ की गई कई व्यवस्थाओं में लेटेस्ट है. वेबसाइट पर पोस्ट की गई जानकारी के अनुसार, इन देशों में इंडोनेशिया, मध्य अफ्रीका के पश्चिमी तट से दूर साओ टोम और प्रिंसिपे द्वीप और दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के उपयोग के लिए वियतनाम में स्थित एक सुदूर संवेदन रिसीविंग स्टेशन शामिल हैं.

यह भी पढ़ें- भारत और जापान मिलकर रोकेंगे चीन का रास्ता, क्या है प्लानिंग, जानें

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.