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G20 शिखर सम्मेलन: विकासशील देशों की वास्तविक समस्याओं पर नहीं हुई चर्चा

G20 समिट ने CBAM जैसे एकतरफा कदमों पर न तो कोई ठोस विरोध दर्ज किया और न ही कोई विकल्प सुझाया. सीमा जावेद का लेख.

g20 summit rio de janeiro missed concrete action frustration of developing countries cbam tax
रियो डी जनेरियो में जी-20 शिखर सम्मेलन में शामिल नेता (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 3 hours ago

रियो डी जनेरियो में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन से बड़ी उम्मीदें थीं. दुनिया में बढ़ते व्यापारिक तनाव, जलवायु परिवर्तन की चुनौती और वैश्विक असमानता के बीच, यह मंच विकासशील देशों की आवाज उठाने के लिए आदर्श साबित हो सकता था. लेकिन जब सम्मेलन का समापन हुआ, तो यह स्पष्ट हो गया कि जी-20 ने अपनी कूटनीतिक भाषा में कुछ कहा, लेकिन ठोस कार्रवाई से चूक गया.

CBAM: हरित कर या व्यापार संरक्षणवाद?

इस सम्मेलन में यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) चर्चा का केंद्र रहा. यह नीति स्टील, एल्युमीनियम और सीमेंट जैसे उत्पादों पर टैक्स लगाती है, जो यूरोपीय बाजारों में आयात होते हैं. इसे जलवायु संरक्षण के कदम के रूप में पेश किया जा रहा है, लेकिन यह विकासशील देशों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ डालता है.

भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों के लिए, जो अपने निर्यात पर निर्भर हैं, CBAM एक नया व्यापारिक अवरोध बन गया है. यूरोपीय संघ इसे 'न्यायसंगत प्रतिस्पर्धा' का साधन कहता है, लेकिन असल में यह ग्लोबल साउथ की अर्थव्यवस्थाओं के लिए चुनौती बनकर उभरा है.

G20 की चुप्पी और विकासशील देशों की हताशा
G20 ने CBAM जैसे एकतरफा कदमों पर न तो कोई ठोस विरोध दर्ज किया और न ही कोई विकल्प सुझाया. सम्मेलन के बयान में 'न्यायपूर्ण, समावेशी और टिकाऊ व्यापार' की बात तो की गई, लेकिन उन वास्तविक समस्याओं पर चर्चा नहीं हुई, जिनका सामना विकासशील देश कर रहे हैं.

CBAM के प्रभाव से भारतीय कंपनियों के लिए यूरोपीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा करना महंगा हो जाएगा. 2022 में, भारत ने लगभग 27 प्रतिशत लौह, स्टील और एल्युमीनियम का निर्यात यूरोपीय संघ को किया था, जिसकी कुल कीमत 8.2 बिलियन डॉलर थी. लेकिन अब इन उत्पादों पर अतिरिक्त टैक्स लगाने से भारतीय कंपनियों को बड़े नुकसान का सामना करना पड़ सकता है.

नेतृत्व की कमी का सवाल
G20 की चुप्पी यह सवाल खड़ा करती है कि क्या यह मंच वास्तव में विकासशील देशों के हितों की रक्षा कर सकता है? G20 के पास मौका था कि वह कॉमन बट डिफरेंशिएटेड रिस्पॉन्सिबिलिटीज (CBDR) जैसे सिद्धांतों के तहत एक वैश्विक ढांचा तैयार करने की मांग करता. यह ढांचा यह सुनिश्चित कर सकता था कि जलवायु परिवर्तन के लिए उठाए गए कदम आर्थिक असमानता को और न बढ़ाएं.

लेकिन इसके बजाय, G20 ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में सुधार जैसे दीर्घकालिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया, जो CBAM जैसी तात्कालिक समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता.

विकासशील देशों के लिए संदेश
G20 की इस निष्क्रियता के बाद अब विकासशील देशों को अपनी आवाज मजबूत करनी होगी. WTO जैसे मंचों पर एकजुट होकर CBAM जैसी नीतियों का विरोध करना होगा. दक्षिण-दक्षिण सहयोग और क्षेत्रीय गठबंधन बनाने होंगे, ताकि उनकी आर्थिक प्रगति बाधित न हो.

G20 के लिए सबक
यह शिखर सम्मेलन G20 के लिए भी एक सीख है. अगर यह मंच वास्तव में वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना चाहता है, तो इसे सिर्फ बयानबाजी से आगे बढ़कर ठोस कार्रवाई करनी होगी. जलवायु परिवर्तन और आर्थिक असमानता की चुनौती का समाधान केवल एकतरफा नीतियों से नहीं हो सकता. G20 को याद रखना चाहिए कि उसकी सफलता उसकी सदस्यता की विविधता में नहीं, बल्कि उसमें निहित चुनौतियों को हल करने की उसकी क्षमता में है.

G20 का रियो सम्मेलन एक खोया हुआ अवसर था. सवाल यह है कि क्या यह मंच अपनी भूमिका को निभाने का साहस दिखाया, या फिर विकासशील देश अपने हकों के लिए अकेले संघर्ष करते रहेंगे?

(लेखक- डॉ. सीमा जावेद, पर्यावरणविद & साइंस, जलवायु परिवर्तन & साफ ऊर्जा की कम्युनिकेशन विशेषज्ञ)

यह भी पढ़ें- COP29 में CBAM पर टकराव: विकासशील और विकसित देशों में व्यापारिक नीतियों पर मतभेद

रियो डी जनेरियो में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन से बड़ी उम्मीदें थीं. दुनिया में बढ़ते व्यापारिक तनाव, जलवायु परिवर्तन की चुनौती और वैश्विक असमानता के बीच, यह मंच विकासशील देशों की आवाज उठाने के लिए आदर्श साबित हो सकता था. लेकिन जब सम्मेलन का समापन हुआ, तो यह स्पष्ट हो गया कि जी-20 ने अपनी कूटनीतिक भाषा में कुछ कहा, लेकिन ठोस कार्रवाई से चूक गया.

CBAM: हरित कर या व्यापार संरक्षणवाद?

इस सम्मेलन में यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) चर्चा का केंद्र रहा. यह नीति स्टील, एल्युमीनियम और सीमेंट जैसे उत्पादों पर टैक्स लगाती है, जो यूरोपीय बाजारों में आयात होते हैं. इसे जलवायु संरक्षण के कदम के रूप में पेश किया जा रहा है, लेकिन यह विकासशील देशों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ डालता है.

भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों के लिए, जो अपने निर्यात पर निर्भर हैं, CBAM एक नया व्यापारिक अवरोध बन गया है. यूरोपीय संघ इसे 'न्यायसंगत प्रतिस्पर्धा' का साधन कहता है, लेकिन असल में यह ग्लोबल साउथ की अर्थव्यवस्थाओं के लिए चुनौती बनकर उभरा है.

G20 की चुप्पी और विकासशील देशों की हताशा
G20 ने CBAM जैसे एकतरफा कदमों पर न तो कोई ठोस विरोध दर्ज किया और न ही कोई विकल्प सुझाया. सम्मेलन के बयान में 'न्यायपूर्ण, समावेशी और टिकाऊ व्यापार' की बात तो की गई, लेकिन उन वास्तविक समस्याओं पर चर्चा नहीं हुई, जिनका सामना विकासशील देश कर रहे हैं.

CBAM के प्रभाव से भारतीय कंपनियों के लिए यूरोपीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा करना महंगा हो जाएगा. 2022 में, भारत ने लगभग 27 प्रतिशत लौह, स्टील और एल्युमीनियम का निर्यात यूरोपीय संघ को किया था, जिसकी कुल कीमत 8.2 बिलियन डॉलर थी. लेकिन अब इन उत्पादों पर अतिरिक्त टैक्स लगाने से भारतीय कंपनियों को बड़े नुकसान का सामना करना पड़ सकता है.

नेतृत्व की कमी का सवाल
G20 की चुप्पी यह सवाल खड़ा करती है कि क्या यह मंच वास्तव में विकासशील देशों के हितों की रक्षा कर सकता है? G20 के पास मौका था कि वह कॉमन बट डिफरेंशिएटेड रिस्पॉन्सिबिलिटीज (CBDR) जैसे सिद्धांतों के तहत एक वैश्विक ढांचा तैयार करने की मांग करता. यह ढांचा यह सुनिश्चित कर सकता था कि जलवायु परिवर्तन के लिए उठाए गए कदम आर्थिक असमानता को और न बढ़ाएं.

लेकिन इसके बजाय, G20 ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में सुधार जैसे दीर्घकालिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया, जो CBAM जैसी तात्कालिक समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता.

विकासशील देशों के लिए संदेश
G20 की इस निष्क्रियता के बाद अब विकासशील देशों को अपनी आवाज मजबूत करनी होगी. WTO जैसे मंचों पर एकजुट होकर CBAM जैसी नीतियों का विरोध करना होगा. दक्षिण-दक्षिण सहयोग और क्षेत्रीय गठबंधन बनाने होंगे, ताकि उनकी आर्थिक प्रगति बाधित न हो.

G20 के लिए सबक
यह शिखर सम्मेलन G20 के लिए भी एक सीख है. अगर यह मंच वास्तव में वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना चाहता है, तो इसे सिर्फ बयानबाजी से आगे बढ़कर ठोस कार्रवाई करनी होगी. जलवायु परिवर्तन और आर्थिक असमानता की चुनौती का समाधान केवल एकतरफा नीतियों से नहीं हो सकता. G20 को याद रखना चाहिए कि उसकी सफलता उसकी सदस्यता की विविधता में नहीं, बल्कि उसमें निहित चुनौतियों को हल करने की उसकी क्षमता में है.

G20 का रियो सम्मेलन एक खोया हुआ अवसर था. सवाल यह है कि क्या यह मंच अपनी भूमिका को निभाने का साहस दिखाया, या फिर विकासशील देश अपने हकों के लिए अकेले संघर्ष करते रहेंगे?

(लेखक- डॉ. सीमा जावेद, पर्यावरणविद & साइंस, जलवायु परिवर्तन & साफ ऊर्जा की कम्युनिकेशन विशेषज्ञ)

यह भी पढ़ें- COP29 में CBAM पर टकराव: विकासशील और विकसित देशों में व्यापारिक नीतियों पर मतभेद

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