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तीन महीने बीत जाने के बाद भी DRSC का नहीं हुआ गठन - 18th Lok Sabha

Department Related Standing Committees: 18वीं लोकसभा के कार्यकाल के तीन महीने बीत जाने के बाद भी संसद की विभाग संबंधी स्थायी समितियों (DRSC) का गठन नहीं हो पाया है. पढ़िए राज्य सभा पूर्व महासचिव विवेक अग्निहोत्री का लेख

तीन महीने बीत जाने के बाद भी DRSC का नहीं हुआ गठन
तीन महीने बीत जाने के बाद भी DRSC का नहीं हुआ गठन (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 6, 2024, 6:19 AM IST

नई दिल्ली: 18वीं लोकसभा के कार्यकाल के तीन महीने बीत जाने के बाद भी संसद की विभाग संबंधी स्थायी समितियों (DRSC) का गठन नहीं हो पाया है. केंद्र सरकार और विपक्ष के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई है. इस विवाद के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने वित्त, विदेश मामले और रक्षा संबंधी प्रमुख समितियों की अध्यक्षता किसी और को सौंपने में सरकार की अनिच्छा पर निशाना साधा है.

थरूर ने कहा है कि 2014 में जब कांग्रेस के पास सिर्फ 44 सांसद थे, तब उन्होंने विदेश मामलों पर संसदीय समिति की अध्यक्षता की थी, जबकि उनके साथी कांग्रेसी वीरप्पा मोइली ने वित्त संबंधी समिति की अध्यक्षता की थी, लेकिन आज कांग्रेस के 101 सांसदों के बावजूद सरकार तीनों समितियों में से किसी की भी कमान सौंपने में अनिच्छुक दिख रही है.

इन समितियों की सफलता के कारण व्यवस्था का विस्तार हुआ. अप्रैल 1993 में 17 डीआरएससी अस्तित्व में आए, जिनके अंतर्गत केंद्र सरकार के सभी मंत्रालय और विभाग आते थे. जुलाई 2004 में व्यवस्था का पुनर्गठन किया गया, जिसके तहत डीआरएससी की संख्या 17 से बढ़ाकर 24 कर दी गई.

इन DRSC की सदस्यता के संबंध में, यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है कि मंत्रियों को छोड़कर लोकसभा और राज्यसभा के सभी सदस्यों को किसी न किसी समिति में स्थान दिया जाए. जब समितियों की संख्या 17 थी, तो प्रत्येक समिति में 45 सदस्य थे. जब समितियों की संख्या बढ़कर 24 हो गई, तो प्रत्येक समिति में सदस्यों की संख्या घटाकर 31 कर दी गई.

इसके अलावा, चूंकि लोकसभा और राज्यसभा में सदस्यों की कुल संख्या का अनुपात लगभग 2:1 है, इसलिए प्रत्येक समिति में लोकसभा से 21 और राज्यसभा से 10 सदस्य होते हैं.

कौन बन सकता है समितियों का सदस्य?
मंत्रियों के अलावा, जो इन समितियों के सदस्य के रूप में नियुक्त होने के लिए अपात्र हैं, कभी-कभी कुछ राजनीतिक दलों के वरिष्ठ सदस्य अपनी विविध व्यस्तताओं या स्वास्थ्य आदि कारणों से इन समितियों से बाहर हो जाते हैं. इस प्रकार, अक्सर कुछ सदस्य अपनी पार्टी की ओर से दोहरा कर्तव्य निभाते हैं और एक से अधिक समितियों में बैठते हैं.

24 समितियों में से 8 समितियां राज्य सभा सचिवालय द्वारा और 16 समितियां लोक सभा सचिवालय द्वारा संचालित की जाती हैं. तदनुसार, 8 समितियों की अध्यक्षता राज्य सभा के सदस्य करते हैं और 16 समितियों की अध्यक्षता लोक सभा के सदस्य करते हैं. इन समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति क्रमशः राज्य सभा के सभापति और लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा की जाती है.

संसदीय कार्य मंत्री करते हैं प्रमुख दलों के नेताओं के साथ परामर्श
समितियों में सदस्यों को मनोनीत करने और अध्यक्ष पद के आवंटन पर निर्णय लेने की प्रक्रिया, दलों की बड़ी संख्या के कारण जटिल हो जाती है. इस उद्देश्य के लिए संसदीय कार्य मंत्री प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ अनौपचारिक परामर्श करते हैं. मोटे तौर पर, सभी राजनीतिक दल, विशेषकर प्रमुख दलों को सदन में उनकी संख्या के अनुपात में इन समितियों में प्रतिनिधित्व मिलता है.

समितियों में विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्यों की संख्या तय हो जाने के बाद, संबंधित राजनीतिक दलों के नेताओं से अनुरोध किया जाता है कि वे तदनुसार प्रत्येक समिति में शामिल किए जाने वाले अपने सदस्यों के नाम प्रस्तावित करें. इस पूरी प्रक्रिया में लोकसभा के प्रत्येक आम चुनाव के बाद तीन महीने या उससे भी अधिक समय लग जाता है.

क्या काम करती हैं समितियां?
इन समितियों का मुख्य काम संबंधित मंत्रालयों/विभागों की अनुदान मांगों पर विचार करना और लोक सभा में चर्चा के लिए उस पर रिपोर्ट देना है. वे ऐसे विधेयकों की भी जांच करते हैं और उन पर रिपोर्ट देते हैं, जिन्हें किसी भी सदन में पेश किए जाने के बाद संबंधित पीठासीन अधिकारी द्वारा उन्हें भेजा जाता है. समितियों को मंत्रालयों/विभागों की वार्षिक रिपोर्टों पर विचार करने और उन पर रिपोर्ट देने का भी अधिकार है. साथ ही सदनों में प्रस्तुत नेशनल लॉन्ग टर्म पॉलिसी पर विचार करने और उन पर रिपोर्ट देने का भी अधिकार है.

नियमों ने समितियों के कार्यों पर निम्नलिखित दो प्रतिबंध लगाए हैं. यानी कोई भी समिति संबंधित मंत्रालयों/विभागों के दिन-प्रतिदिन के प्रशासन के मामलों पर विचार नहीं करेगी और कोई समिति सामान्यतः किसी अन्य संसदीय समिति के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले मामलों पर विचार नहीं करेगी.

हालांकि, DRSC की रिपोर्ट केवल प्रेरक मूल्य रखती है और इसे समिति द्वारा दी गई सलाह के रूप में माना जाएगा. अनुदानों की मांगों, विधेयकों और अन्य विषयों पर रिपोर्टों के संबंध में, संबंधित मंत्रालय या विभाग को उनमें निहित सिफारिशों और निष्कर्षों पर कार्रवाई करने और उन पर की गई कार्रवाई के जवाब प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है.

मंत्रालयों/विभागों से प्राप्त की गई कार्रवाई टिप्पणियों की समितियों द्वारा जांच की जाती है और उन पर की गई कार्रवाई रिपोर्ट सदन में प्रस्तुत की जाती है. समितियों द्वारा जिन विधेयकों पर रिपोर्ट की जाती है, उन पर सदनों द्वारा समितियों की रिपोर्टों के आलोक में विचार किया जाता है.

यह भी पढ़ें- हिमालय पर जलवायु परिवर्तन एक उभरता हुआ जोखिम, ग्लेशियल झीलों का फटना विनाश का कारण

नई दिल्ली: 18वीं लोकसभा के कार्यकाल के तीन महीने बीत जाने के बाद भी संसद की विभाग संबंधी स्थायी समितियों (DRSC) का गठन नहीं हो पाया है. केंद्र सरकार और विपक्ष के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई है. इस विवाद के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने वित्त, विदेश मामले और रक्षा संबंधी प्रमुख समितियों की अध्यक्षता किसी और को सौंपने में सरकार की अनिच्छा पर निशाना साधा है.

थरूर ने कहा है कि 2014 में जब कांग्रेस के पास सिर्फ 44 सांसद थे, तब उन्होंने विदेश मामलों पर संसदीय समिति की अध्यक्षता की थी, जबकि उनके साथी कांग्रेसी वीरप्पा मोइली ने वित्त संबंधी समिति की अध्यक्षता की थी, लेकिन आज कांग्रेस के 101 सांसदों के बावजूद सरकार तीनों समितियों में से किसी की भी कमान सौंपने में अनिच्छुक दिख रही है.

इन समितियों की सफलता के कारण व्यवस्था का विस्तार हुआ. अप्रैल 1993 में 17 डीआरएससी अस्तित्व में आए, जिनके अंतर्गत केंद्र सरकार के सभी मंत्रालय और विभाग आते थे. जुलाई 2004 में व्यवस्था का पुनर्गठन किया गया, जिसके तहत डीआरएससी की संख्या 17 से बढ़ाकर 24 कर दी गई.

इन DRSC की सदस्यता के संबंध में, यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है कि मंत्रियों को छोड़कर लोकसभा और राज्यसभा के सभी सदस्यों को किसी न किसी समिति में स्थान दिया जाए. जब समितियों की संख्या 17 थी, तो प्रत्येक समिति में 45 सदस्य थे. जब समितियों की संख्या बढ़कर 24 हो गई, तो प्रत्येक समिति में सदस्यों की संख्या घटाकर 31 कर दी गई.

इसके अलावा, चूंकि लोकसभा और राज्यसभा में सदस्यों की कुल संख्या का अनुपात लगभग 2:1 है, इसलिए प्रत्येक समिति में लोकसभा से 21 और राज्यसभा से 10 सदस्य होते हैं.

कौन बन सकता है समितियों का सदस्य?
मंत्रियों के अलावा, जो इन समितियों के सदस्य के रूप में नियुक्त होने के लिए अपात्र हैं, कभी-कभी कुछ राजनीतिक दलों के वरिष्ठ सदस्य अपनी विविध व्यस्तताओं या स्वास्थ्य आदि कारणों से इन समितियों से बाहर हो जाते हैं. इस प्रकार, अक्सर कुछ सदस्य अपनी पार्टी की ओर से दोहरा कर्तव्य निभाते हैं और एक से अधिक समितियों में बैठते हैं.

24 समितियों में से 8 समितियां राज्य सभा सचिवालय द्वारा और 16 समितियां लोक सभा सचिवालय द्वारा संचालित की जाती हैं. तदनुसार, 8 समितियों की अध्यक्षता राज्य सभा के सदस्य करते हैं और 16 समितियों की अध्यक्षता लोक सभा के सदस्य करते हैं. इन समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति क्रमशः राज्य सभा के सभापति और लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा की जाती है.

संसदीय कार्य मंत्री करते हैं प्रमुख दलों के नेताओं के साथ परामर्श
समितियों में सदस्यों को मनोनीत करने और अध्यक्ष पद के आवंटन पर निर्णय लेने की प्रक्रिया, दलों की बड़ी संख्या के कारण जटिल हो जाती है. इस उद्देश्य के लिए संसदीय कार्य मंत्री प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ अनौपचारिक परामर्श करते हैं. मोटे तौर पर, सभी राजनीतिक दल, विशेषकर प्रमुख दलों को सदन में उनकी संख्या के अनुपात में इन समितियों में प्रतिनिधित्व मिलता है.

समितियों में विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्यों की संख्या तय हो जाने के बाद, संबंधित राजनीतिक दलों के नेताओं से अनुरोध किया जाता है कि वे तदनुसार प्रत्येक समिति में शामिल किए जाने वाले अपने सदस्यों के नाम प्रस्तावित करें. इस पूरी प्रक्रिया में लोकसभा के प्रत्येक आम चुनाव के बाद तीन महीने या उससे भी अधिक समय लग जाता है.

क्या काम करती हैं समितियां?
इन समितियों का मुख्य काम संबंधित मंत्रालयों/विभागों की अनुदान मांगों पर विचार करना और लोक सभा में चर्चा के लिए उस पर रिपोर्ट देना है. वे ऐसे विधेयकों की भी जांच करते हैं और उन पर रिपोर्ट देते हैं, जिन्हें किसी भी सदन में पेश किए जाने के बाद संबंधित पीठासीन अधिकारी द्वारा उन्हें भेजा जाता है. समितियों को मंत्रालयों/विभागों की वार्षिक रिपोर्टों पर विचार करने और उन पर रिपोर्ट देने का भी अधिकार है. साथ ही सदनों में प्रस्तुत नेशनल लॉन्ग टर्म पॉलिसी पर विचार करने और उन पर रिपोर्ट देने का भी अधिकार है.

नियमों ने समितियों के कार्यों पर निम्नलिखित दो प्रतिबंध लगाए हैं. यानी कोई भी समिति संबंधित मंत्रालयों/विभागों के दिन-प्रतिदिन के प्रशासन के मामलों पर विचार नहीं करेगी और कोई समिति सामान्यतः किसी अन्य संसदीय समिति के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले मामलों पर विचार नहीं करेगी.

हालांकि, DRSC की रिपोर्ट केवल प्रेरक मूल्य रखती है और इसे समिति द्वारा दी गई सलाह के रूप में माना जाएगा. अनुदानों की मांगों, विधेयकों और अन्य विषयों पर रिपोर्टों के संबंध में, संबंधित मंत्रालय या विभाग को उनमें निहित सिफारिशों और निष्कर्षों पर कार्रवाई करने और उन पर की गई कार्रवाई के जवाब प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है.

मंत्रालयों/विभागों से प्राप्त की गई कार्रवाई टिप्पणियों की समितियों द्वारा जांच की जाती है और उन पर की गई कार्रवाई रिपोर्ट सदन में प्रस्तुत की जाती है. समितियों द्वारा जिन विधेयकों पर रिपोर्ट की जाती है, उन पर सदनों द्वारा समितियों की रिपोर्टों के आलोक में विचार किया जाता है.

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