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पाकिस्तान: अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को वोट देने के खिलाफ जारी 'फतवे' को लेकर चिंताएं बढ़ीं

Pakistan Concerns brew over 'fatwa': पाकिस्तान में अगले महीने आम चुनाव है. इससे पहले दुष्प्रचार बढ़ गया है. सोशल मीडिया पर अल्पसंख्यक का मुद्दा उठाया गया है.

Pakistan Concerns brew over fatwa issued against voting for minority candidates
पाकिस्तान: अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को वोट देने के खिलाफ जारी 'फतवे' को लेकर चिंताएं बढ़ीं
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By ANI

Published : Jan 21, 2024, 8:30 AM IST

इस्लामाबाद: पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाली घृणित और परेशान करने वाली सामग्री का प्रसार शुरू हो गया है. इससे 8 फरवरी के आम चुनाव से पहले चिंताएं बढ़ गई हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस संबंध में कराची स्थित मदरसा द्वारा एक फतवा जारी किया गया. वहीं, फेसबुक और एक्स प्लेटफार्मों पर फिर से एक पोस्ट सामने आया है जिसमें सुझाव दिया गया है कि मतदाता अल्पसंख्यकों के मुकाबले मुस्लिम उम्मीदवारों को प्राथमिकता देते हैं.

द न्यूज इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार फतवा जामिया उलूम इस्लामिया न्यू टाउन द्वारा जारी किया गया था. इसे जामिया बिनोरी टाउन के नाम से जाना जाता है, जो गुरु मंदिर क्षेत्र के पास स्थित है. धार्मिक स्कूल को शहर के सबसे प्रभावशाली मदरसों में से एक माना जाता है. अल्पसंख्यक अधिकार कार्यकर्ता चमन लाल ने फेसबुक पर बिना तारीख वाले फरमान की एक तस्वीर साझा करते हुए कहा, 'एक फतवा जारी किया जाता है कि दस लाख से अधिक अल्पसंख्यकों की आबादी से वोट लेना जायज है, लेकिन आज एक फतवा जारी किया गया है कि आम चुनाव में अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को वोट देने की अनुमति नहीं है.

फतवा इस सवाल के बाद जारी किया गया. क्या इस्लामी कानूनों के तहत गैर-मुस्लिम उम्मीदवार को वोट देने की अनुमति है? प्रश्न में आगे कहा गया कि एक प्रमुख राजनीतिक दल ने बेहतर मुस्लिम उम्मीदवार की उपस्थिति में सामान्य सीट के लिए एक हिंदू को नामांकित किया था, भले ही गैर-मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटें थीं. जनता जानना चाहती है कि क्या इस स्थिति में किसी गैर-मुस्लिम को वोट देना इस्लामी दृष्टिकोण से स्वीकार्य है या नहीं, या क्या कोई तीसरा विकल्प है?

द न्यूज इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार इसके जवाब में फतवे में कहा गया, 'वोट ऐसे उम्मीदवार को दिया जाना चाहिए जिसके पास आवश्यक योग्यता और क्षमता हो. उसकी पार्टी का घोषणापत्र भी सही हो और जिसके बारे में इस बात की संतुष्टि हो कि वह अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के लिए धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष रूप से बेहतर कदम उठा सकता है. क्योंकि गैर-मुस्लिम उम्मीदवार इन मानकों पर खरा नहीं उतरता. इसलिए मुस्लिम उम्मीदवार को वोट देना बेहतर है.

इस मामले पर टिप्पणी करते हुए चमन लाल ने अफसोस जताया: जब संविधान ने समान अधिकार दिए हैं तो उन लोगों को जिन्होंने अपने क्षेत्र की भलाई के लिए काम किया है और पाकिस्तान के लोगों के लिए और अधिक काम करने के इच्छुक हैं, तो लोगों को अपना वोट क्यों नहीं देना चाहिए. उनके पक्ष में वोट देंगे भले ही वे अल्पसंख्यक हों?

द न्यूज इंटरनेशनल ने उनके हवाले से कहा गया कि दुनिया तकनीक के पीछे भाग रही है जबकि पाकिस्तान अभी भी धार्मिक मुद्दों में फंसा हुआ है जो निस्संदेह महत्वपूर्ण है लेकिन यह एक व्यक्तिगत मामला है. जब राज्य की बात आती है तो अच्छे उम्मीदवारों को आगे आना चाहिए, भले ही वे अल्पसंख्यक समुदाय से हों.

ये भी पढ़ें- पाकिस्तान की कार्यवाहक सरकार ने इमरान खान से जुड़े सिफर मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया

इस्लामाबाद: पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाली घृणित और परेशान करने वाली सामग्री का प्रसार शुरू हो गया है. इससे 8 फरवरी के आम चुनाव से पहले चिंताएं बढ़ गई हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस संबंध में कराची स्थित मदरसा द्वारा एक फतवा जारी किया गया. वहीं, फेसबुक और एक्स प्लेटफार्मों पर फिर से एक पोस्ट सामने आया है जिसमें सुझाव दिया गया है कि मतदाता अल्पसंख्यकों के मुकाबले मुस्लिम उम्मीदवारों को प्राथमिकता देते हैं.

द न्यूज इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार फतवा जामिया उलूम इस्लामिया न्यू टाउन द्वारा जारी किया गया था. इसे जामिया बिनोरी टाउन के नाम से जाना जाता है, जो गुरु मंदिर क्षेत्र के पास स्थित है. धार्मिक स्कूल को शहर के सबसे प्रभावशाली मदरसों में से एक माना जाता है. अल्पसंख्यक अधिकार कार्यकर्ता चमन लाल ने फेसबुक पर बिना तारीख वाले फरमान की एक तस्वीर साझा करते हुए कहा, 'एक फतवा जारी किया जाता है कि दस लाख से अधिक अल्पसंख्यकों की आबादी से वोट लेना जायज है, लेकिन आज एक फतवा जारी किया गया है कि आम चुनाव में अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को वोट देने की अनुमति नहीं है.

फतवा इस सवाल के बाद जारी किया गया. क्या इस्लामी कानूनों के तहत गैर-मुस्लिम उम्मीदवार को वोट देने की अनुमति है? प्रश्न में आगे कहा गया कि एक प्रमुख राजनीतिक दल ने बेहतर मुस्लिम उम्मीदवार की उपस्थिति में सामान्य सीट के लिए एक हिंदू को नामांकित किया था, भले ही गैर-मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटें थीं. जनता जानना चाहती है कि क्या इस स्थिति में किसी गैर-मुस्लिम को वोट देना इस्लामी दृष्टिकोण से स्वीकार्य है या नहीं, या क्या कोई तीसरा विकल्प है?

द न्यूज इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार इसके जवाब में फतवे में कहा गया, 'वोट ऐसे उम्मीदवार को दिया जाना चाहिए जिसके पास आवश्यक योग्यता और क्षमता हो. उसकी पार्टी का घोषणापत्र भी सही हो और जिसके बारे में इस बात की संतुष्टि हो कि वह अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के लिए धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष रूप से बेहतर कदम उठा सकता है. क्योंकि गैर-मुस्लिम उम्मीदवार इन मानकों पर खरा नहीं उतरता. इसलिए मुस्लिम उम्मीदवार को वोट देना बेहतर है.

इस मामले पर टिप्पणी करते हुए चमन लाल ने अफसोस जताया: जब संविधान ने समान अधिकार दिए हैं तो उन लोगों को जिन्होंने अपने क्षेत्र की भलाई के लिए काम किया है और पाकिस्तान के लोगों के लिए और अधिक काम करने के इच्छुक हैं, तो लोगों को अपना वोट क्यों नहीं देना चाहिए. उनके पक्ष में वोट देंगे भले ही वे अल्पसंख्यक हों?

द न्यूज इंटरनेशनल ने उनके हवाले से कहा गया कि दुनिया तकनीक के पीछे भाग रही है जबकि पाकिस्तान अभी भी धार्मिक मुद्दों में फंसा हुआ है जो निस्संदेह महत्वपूर्ण है लेकिन यह एक व्यक्तिगत मामला है. जब राज्य की बात आती है तो अच्छे उम्मीदवारों को आगे आना चाहिए, भले ही वे अल्पसंख्यक समुदाय से हों.

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