नई दिल्ली: बांग्लादेश इस साल अगस्त में प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने वाले जन-विद्रोह से उबर रहा है. हलांकि, इस बीच एक नया विवाद सामने आया है, जिसमें सवाल उठ रहा है कि राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन को पद पर बने रहना चाहिए या नहीं.
यह घटनाक्रम तब सामने आया है, जब शहाबुद्दीन ने एक पत्रकार के साथ एक 'अनौपचारिक साक्षात्कार' में कहा कि, जन-विद्रोह के बाद 5 अगस्त को भारत भाग जाने पहले उन्हें हसीना से कोई औपचारिक इस्तीफा पत्र नहीं मिला था. शहाबुद्दीन ने कहा कि 5 अगस्त की सुबह, देश में अशांति के बीच, उन्हें बताया गया कि हसीना उनके आधिकारिक आवास बंगभवन में उनसे मिलने आएंगी. हालांकि, बाद में उन्हें बताया गया कि वह नहीं आएंगी.
राष्ट्रपति के हवाले से कहा गया, "शायद उनके पास समय नहीं था." इसके बाद एक दिन कैबिनेट सचिव हसीना के त्यागपत्र की प्रति लेने उनके पास आए. शहाबुद्दीन ने जवाब दिया कि वे अभी भी इसकी तलाश कर रहे हैं. शहाबुद्दीन ने पत्रकार के साथ साक्षात्कार में जो कहा, वह हसीना के निष्कासन के समय राष्ट्र के नाम उनके संबोधन के विपरीत था. उस समय उन्होंने कहा था कि हसीना ने अपना इस्तीफा सौंप दिया है, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया है.
इसलिए अब विभिन्न समूहों द्वारा राष्ट्रपति के इस्तीफे की मांग की जा रही है, जिसमें भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन भी शामिल है, जिसने विद्रोह की शुरुआत की. जिसके कारण आखिरकार हसीना को पद से हटाया गया. वास्तव में, मंगलवार शाम को जब छात्रों ने बंगभवन के बाहर प्रदर्शन किया, तो सुरक्षा बलों को गोलीबारी करनी पड़ी.
हालांकि, राष्ट्रपति को इस्तीफा देने के लिए मजबूर करने में संवैधानिक चुनौतियां हैं. हसीना के निष्कासन के बाद, शहाबुद्दीन ने 6 अगस्त को देश की संसद को भंग कर दिया था और 8 अगस्त को नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को मुख्य सलाहकार बनाकर अंतरिम सरकार स्थापित की थी. हालांकि, अंतरिम सरकार स्वयं संविधान से परे है. हालांकि संविधान में पहले भी चुनावों के बीच अंतरिम सरकार बनाने का प्रावधान था, लेकिन 2011 में हसीना के प्रधानमंत्री रहते हुए इस व्यवस्था को खत्म कर दिया गया था.
अंतरिम सरकार में सूचना एवं प्रसारण सलाहकार नाहिद इस्लाम के अनुसार, राष्ट्रपति शहाबुद्दीन का इस्तीफा एक राजनीतिक फैसला है, जो जनता की भावनाओं के आधार पर उचित समय-सीमा के भीतर लिया जाएगा. भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन के नेताओं में से एक इस्लाम ने बुधवार को ढाका में संवाददाताओं से कहा, "हमने राज्य की स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए 8 अगस्त को सरकार बनाई थी." "हालांकि, अगर लोगों को लगता है कि इस व्यवस्था को बदलने की जरूरत है, तो सरकार निश्चित रूप से इस पर विचार करेगी. राष्ट्रपति का इस्तीफा कोई कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि राजनीतिक मुद्दा है."
इस बीच, मुख्य सलाहकार यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल इस्लाम ने कहा कि, सरकार ने राष्ट्रपति के इस्तीफे के बारे में कोई फैसला नहीं किया है. उन्होंने बुधवार को संवाददाताओं से कहा, "विभिन्न क्षेत्रों से अलग-अलग मांगें उठती हैं और हम उन सभी का जवाब नहीं दे सकते." हालांकि, बांग्लादेशी शिक्षाविद और राजनीतिक पर्यवेक्षक शरीन शाजहां नाओमी ने राष्ट्रपति के इस्तीफे के मुद्दे को तकनीकी मामला बताकर खारिज कर दिया.
नाओमी ने ढाका से ईटीवी भारत को फोन पर बताया, "लोगों को इस बात की परवाह नहीं है कि राष्ट्रपति को पद पर बने रहना चाहिए या इस्तीफा देना चाहिए." "राष्ट्रपति के इस्तीफे की मांग को लेकर हो रहे प्रदर्शनों में बहुत से लोग शामिल नहीं हो रहे हैं. इस्तीफा देना राष्ट्रपति के विवेकाधीन अधिकार पर निर्भर करता है." उन्होंने कहा कि लोग हाल ही में आई बाढ़, देश में वित्तीय संकट, आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि और बिगड़ती कानून व्यवस्था जैसे अन्य ज्वलंत मुद्दों को लेकर अधिक चिंतित हैं.
नाओमी ने कहा, "फिलहाल, कुछ लोगों की भावना सेना को सत्ता सौंपने की है." "बांग्लादेश में पहले भी ऐसा हो चुका है. जब भी अराजकता होती है, लोग चाहते हैं कि सेना कमान संभाले. वे एक मजबूत केंद्रीय कमान चाहते हैं." ढाका स्थित पत्रकार सैफुर रहमान तपन के अनुसार, लोग अंतरिम सरकार को निर्वाचित सरकार के रूप में नहीं देखते हैं. तपन ने ईटीवी भारत से कहा, "निर्वाचित सरकार को सत्ता सौंपने की मांग बढ़ रही है." "हालांकि, अंतरिम सरकार बने रहना चाहती है और विभिन्न क्षेत्रों में सुधार लाना चाहती है."
उन्होंने कहा कि, अंतरिम सरकार ने श्रम, अर्थव्यवस्था, बैंकिंग प्रणाली, पुलिस और चुनावी और प्रशासनिक प्रणालियों सहित 10 क्षेत्रों में सुधार लाने के लिए 10 अलग-अलग आयोगों का गठन किया है. उन्होंने कहा, "हालांकि, लोग ऐसे सुधारों के लिए लंबे समय तक इंतजार करने को तैयार नहीं हैं." तपन के अनुसार, हसीना की अवामी लीग पार्टी के सत्ता से बाहर होने के बाद, देश की दूसरी प्रमुख राजनीतिक पार्टी, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) को लग रहा है कि अब उनकी बारी है.
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