नई दिल्ली: इजरायल और हमास संघर्ष (Israel and hamas conflict) ने गाजा (Gaza) का हाल बुरा कर दिया है. यहां जंग का ऐसा असर हुआ कि लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं. गाजा की जनता के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा है. वे भुखमरी की कगार पर पहुंच चुके हैं. वहीं जंग से तबाह लोगों के लिए अरब-अमेरिका समेत दूसरे देश राहत सामग्री पहुंचा रहे हैं. इजरायल-हमास संघर्ष में तबाह हो चुके लोगों के लिए प्लेन की मदद से खाने के पैकेट गिराए जा रहे हैं. यहां भुखमरी का आलम यह है कि लोग जान जोखिम में डालकर खाना लेने के लिए गहरे और विशाल समुद्र में कूदने से भी नहीं कतरा रहे हैं. यह दृश्य पत्थर दिलवालों के आंखों में भी एक कतरा आंसू लाने देने के लिए काफी हैं. गाजा में अब भोजन के लिए संघर्ष हो रहा है. या कहे तो यहां बम और बंदूक के बाद भोजन को भूखे पेट तक पहुंचाने के लिए जंग हो रही है. गाजा पट्टी को ठीक से समझने के लिए ग्राउंड जीरो से जाकर समझने की जरूरत है. इस विषय पर प्रतिष्ठित मेडिकल जनरल द लैंसेट ने गाजा और अन्य संघर्षरत इलाकों में भुखमरी को खत्म करने के लिए उचित कार्रवाई किए जाने का आह्वान किया है.
भुखमरी युद्ध का हथियार, किसके लिए?
द लैंसेट ने अपने आह्वान में गाजा में भुखमरी को युद्ध के हथियार को तौर पर इस्तेमाल करने पर रोक लगाए जाने की मांग की है. गाजा की स्थिति पर नजर रख रही संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने वहां किसी भी वक्त अकाल की स्थिति उत्पन्न होने की चेतावनी भी जारी की है. The Lancet का आरोप है कि इजरायल युद्ध में भुखमरी का हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है. The Lancet ने यह भी कहा कि गाजा में लोग भुखे मरने की कगार पर हैं, वे भुख से मर जाएं उससे पहले उन्हें जल्द से जल्द सहायता मिलनी चाहिए.
इजरायल-हमास जंग की गाथा
बता दें कि हमास ने 7 अक्टूबर 2023 को अचानक इजरायल पर हमला कर दिया था. उस समय कम से कम 1400 इजरायली नागरिक मारे गए थे. हमले के बाद हमास लड़ाकों ने सैकड़ों लोगों को बंधक बना लिया था. इस हमले के बाद इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने जंग का ऐलान कर दिया था. इजरायली ने हमास के अस्तित्व को मिटा देने की कसम खाई थी. उसके बाद से इजरायली सेना गाजा पट्टी में घुसकर हमास के ठिकानों को निशाना बना रही है. दुनिया ने देखा कि कैसे इजरायली सेना ने गाजा पट्टी पर असंख्य बम बरसाए, जिसमें अनगिनत संख्या में फिलिस्तीनी मारे गए. अब गाजा पट्टी में लोग भुखमरी की दंश झेलने को मजबूर हैं. वे खाना का पैकेट लेने के लिए समुद्र में भी छलांग लगाने से नहीं हिचक रहे हैं. भुख से संघर्ष कर रहे गाजा निवासियों के लिए सिर्फ भोजन चाहिए, जिसके लिए वे अपनी जान की बाजी तक लगाने को तैयार हैं.
गाजा में आखिर क्यों मर रहे लोग?
वहीं The Lancet ने जंग से गाजा की बदतर हो चुकी स्थिति पर गौर फरमाते हुए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायोग के वोल्कर तुर्क से बड़ा सवाल कर दिया. The Lancet ने पूछा आखिर क्यों भूख से मरने वालों की संख्या क्यों बढ़ रही है... आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? उन्होंने सवाल पूछा कि देश और संयुक्त राष्ट्र इसे जारी रखने की अनुमति देते हैं? अग्रणी मानवीय एजेंसियों की अकाल समीक्षा समिति (FRC) के अनुसार, गाजा IPC तीव्र खाद्य असुरक्षा चरण V (आपदा) की सीमा से ऊपर था.
गाजा में भूखमरी को मापने का क्या पैमाना है?
संपादकीय में गाजा में भूख से मर रहे लोगों को पर्याप्त सहायता नहीं पहुंच पाने को लेकर विस्तृत तौर पर सवाल किए गए. संपादकीय में आईपीसी विश्लेषण की अकाल समीक्षा समिति (एफआरसी) से गाजा में भुखमरी को लेकर लेकर सवाल पूछे गए. जैसे एफआरसी के भूखमरी को मापने का क्या पैमाना है? अगर किसी देश के लोग भूखे मर रहे हैं तो हम यह कैसे माने कि वहां की स्थिति नाजुक है. एफआरसी भूख को मापने के लिए मानक पांच अंक का पैमाना लागू करता है. किसी भी इलाके में कम से कम 20 प्रतिशत परिवार भोजन की अत्यधिक कमी से जूझ रहे हों, कम से कम 30 प्रतिशत बच्चे गंभीर कुपोषण से पीड़ित हों. इसके साथ ही प्रत्येक 10 हजार में से दो लोग हर दिन भुखमरी, बीमारी या कुपोषण के कारण मर रहे हों. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक गाजा में मई 2024 तक किसी भी समय अकाल की स्थिति पैदा हो सकती है. वहीं, आईपीसी वर्गीकरण के अनुसार, आधी आबादी,लगभग 1.1 मिलियन लोग भूख से मर रहे हैं. वहीं रमजान के महीने में भुखमरी पर बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि, 7 अक्टूबर के हमास हमलों के जवाब में इजरायली हमले ने गाजा के खाद्य बुनियादी ढांचा और कृषि भूमि को नष्ट कर दिया. वहीं गाजा में सहायता पहुंचाने वाली एजेंसियों का कहना है कि इजरायल गाजा में भुख से मर रहे लोगों तक सहायता पहुंचाने में बाधा उत्पन्न कर रही है.
इजरायल-हमास जंग की दंश झेल रहा गाजा
बता दें कि The Lancet संपादकीय का थीम 'मेरा स्वास्थ्य मेरा अधिकार' है, जो संयुक्त राष्ट्र के इस दावे को रेखांकित करता है कि प्रत्येक इंसान को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार है. The Lancet का कहना है कि संघर्ष क्षेत्रों में 158 मिलियन लोगों में करीब 60 प्रतिशत लोग भूखे रहते हैं. ऐसे इलाकों की अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे नष्ट हो गए होते हैं. इसके अलावा खाद्य आपूर्ति को जानबूझकर खत्म किया जाता है ताकि लोगों को युद्ध के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सके. ऐसी परिस्थितियां 2010 के बाद से आम हो गई हैं. संपादकीय में The Lancet ने लिखा, सूडान संघर्ष के कारण अकाल का सामना कर रहा है. यहां लगभग 18 मिलियन लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं. इसी तरह यूक्रेन में, रूसी आक्रमण के कारण यूक्रेनी बंदरगाहों और अनाज उत्पादन क्षेत्र नष्ट हो गए. जिसके कारण 11 मिलियन लोग भुखमरी के शिकार हो गए.
गर्भवती महिलाएं, बच्चों पर बुरा असर
वहीं यूएनडीपी के अनुमान के मुताबिक 2022 तक संघर्ष के कारण 3 लाख 77 हजार से अधिक लोगों की जान चली गई. इनमें से 60 प्रतिशत वैसे लोग थे जिनकी मौत भूख, खराब स्वास्थ्य और गंदे पानी पीने की वजह से हुईं. संपादकीय में नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन का हवाला देते हुए कहा गया है कि, 'मौजूदा आर्थिक प्रणाली कुछ लोगों को भोजन का हकदार बनाती है. जबकि अन्य को भूखे मरने के लिए छोड़ दिया जाता है. संघर्ष वाले इलाकों में जिन लोगों के पास पर्याप्त साधन हैं, वे वहां से पलायन कर खुद को सुरक्षित कर लेते हैं. वहीं सबसे कमजोर लोगों में गर्भवती और नवजात शिशु को जन्म देने वाली महिलाओं के बच्चों को संघर्ष का सबसे अधिक दंश झेलना पड़ता है.
जवाबदेही कौन तय करेगा?
The Lancet ने अपने संपादकीय में आगे लिखा है कि संघर्ष के दौरान सबसे अधिक जवाबदेही होनी चाहिए. इजरायल और हमास जंग ने मानवता पर गहरे घाव छोड़े हैं. अंतरराष्ट्रीय एड्स सोसाइटी-लैंसेट आयोग ने सही ढंग से बताया है,संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संघर्ष स्थितियों में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून को असंगत रूप से संबोधित करती है और शायद ही कभी लागू करती है. वास्तविकता यह है कि भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता दुष्ट सरकारों द्वारा अमानवीय और अवैध कार्यों को रोकने के लिए सामूहिक राजनीतिक कार्रवाई को रोकती है. जैसे-जैसे युद्ध बदतर होते जा रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नैतिक चेतना पर गहरे घाव छोड़ रहे हैं. ऐसे में स्वास्थ्य से जुड़े बड़े नेताओं, संस्थाओं को चाहिए कि वे ऐसे देश जहां पर संघर्ष चरम पर है, वहां लोगों की मानवाधिकारों की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए. युद्ध के हथियार के रूप में भुखमरी का उपयोग एक अपराध है. ऐसे करने वालों को दंडित किया जाना चाहिए.
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