हैदराबाद: पाकिस्तान ने बीते सोमवार को तालिबान शासित अफगानिस्तान पर हवाई हमला किया था. लेकिन सवाल यह है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच इस नई शत्रुता का जिम्मेदार कौन है. उस शख्स का नाम है हाफिज गुल बहादुर, जो पाकिस्तान समर्थक आतंकवादी कंमाडर था और अब वह एक नवगठित आतंकवादी समूह जैश-ए-फुरसन-ए-मुहम्मद का प्रमुख भी है.
पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए जानकारी दी थी कि तहरीक-ए-तालिबान-पाकिस्तान के हाफ़िज़ गुल बहादुर समूह के आतंकवादियों पर तब हमला किया गया, जब आतंकी संगठन ने शनिवार को एक सेना चौकी पर हमले की जिम्मेदारी ली, जिसके परिणामस्वरूप दो अधिकारियों सहित सात सैनिक मारे गए थे.
पाकिस्तान का दुश्मन नहीं था हाफिज गुल: बताया जाता है कि मौजूदा समय में हाफिज गुल की उम्र करीब 60 साल की है. उसने अपनी शुरुआत पाकिस्तान के दुश्मन के तौर पर नहीं की थी. साल 1992-96 के अफगान गृहयुद्ध के दौरान गुल बहादुर पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा से लगे जिले उत्तरी वजीरिस्तान में था. हालांकि बाद में वह अफगान तालिबान में शामिल हो गया.
पाकिस्तानी सेना द्वारा समर्थित कमांडर था गुल बहादुर: एक अमेरिकी पब्लिक पॉलिसी थिंक टैंक अमेरिकी उद्यम संस्थान द्वारा गुल बहादुर पर लिखी एक बायोग्राफी के मुताबिक 2000 की शुरुआत में उसने अपने पावरबेस की रक्षा के लिए अमेरिकी ड्रोन हमलों और पाकिस्तान के सैन्य अभियानों का जवाब सीमित हिंसा से दिया था.
हालांकि पाकिस्तानी सेना के खिलाफ उसने युद्ध नहीं छेड़ा था. बिजनेस स्टैंडर्ड ने पाकिस्तानी इंग्लिश साप्ताहिक 'द फ्राइडे टाइम्स' के पत्रकार ज़ल्मय आज़ाद की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए गुल बहादुर के बारे में बताया कि हाफ़िज़ गुल बहादुर को वास्तव में 2006-2009 के बीच इस्लामाबाद और पाकिस्तानी सेना द्वारा पाकिस्तान समर्थक कमांडर के रूप में देखा गया था.
वह समय था, जब वज़ीरिस्तान पाकिस्तानी राज्य और उसके लोगों के खिलाफ आतंकवाद का केंद्र बन गया था. दरअसल, एक समय गुल बहादुर इस्लामवादी राजनीतिक पार्टी जमीयत-ए-उलेमा पाकिस्तान की छात्र शाखा का प्रेस सचिव भी था.
पाकिस्तान के साथ था गुल बहादुर का समझौता: जानकारी के अनुसार गुल बहादुर हक्कानी नेटवर्क का भी बहुत करीबी सहयोगी है. यह नेटवर्क जलालुद्दीन हक्कानी द्वारा स्थापित एक सुन्नी इस्लामी आतंकवादी संगठन है. अमेरिका में 9/11 के हमले के बाद जब अमेरिका ने अफगानिस्तान में आक्रमण किया तो उसके बाद यह उत्तरी वजीरिस्तान में स्थानांतरित हो गया.
जहां गुल बहादुर ने हक्कानी नेटवर्क और अल-कायदा को आश्रय और समर्थन दिया, वहीं उन्होंने समूह के साथ औपचारिक रूप से गठबंधन नहीं करने के बावजूद तहरीक-ए-तालिबान-पाकिस्तान (टीटीपी) को सहायता प्रदान की.
लेकिन पत्रकार आज़ाद के लेख अनुसार टीटीपी के आतंकवादियों को आश्रय देने के बावजूद, गुल बहादुर, जो अपना समूह शूरा मुजाहिदीन-ए-वज़ीरिस्तान चलाता था, ने टीटीपी और पाकिस्तानी सशस्त्र बलों के बीच संघर्ष में ज्यादातर तटस्थ स्थिति बनाए रखी. बता दें कि टीटीपी को साल 2007 में गठित किया गया, जो आतंकवादी समूहों का एक गठबंधन है, जो पाकिस्तानी सेना को निशाना बनाता रहा है.
इस समूह का उद्देश्य पूरे पाकिस्तान में शरिया कानून की उनकी सख्त व्याख्या को लागू करना है और पाकिस्तान की सरकार को उखाड़ फेंककर देश में इस्लामी खिलाफत की स्थापना करना है. दरअसल, पाकिस्तानी सरकार ने 2006 में हाफिज गुल बहादुर के साथ एक समझौता किया था, जिसके तहत वह पाकिस्तान के अंदर कोई हमला नहीं करेगा और अफगानिस्तान में लड़ाके नहीं भेजेगा.
हालांकि गुल बहादुर पाकिस्तान के साथ हुए समझौते पर कायम नहीं रहा और उसने अफगानिस्तान में लड़ाके भेजना जारी रखा, हालांकि बात जब पाकिस्तानी सुरक्षा बलों पर हमले की आती थी, तो वह अपने हाथ पीछे खींच लेता था.
पाकिस्तान का उत्तरी वजीरिस्तान ऑपरेशन था निर्णायक: लेकिन साल 2009 में गुल बहादुर ने पाकिस्तानी सशस्त्र बलों के खिलाफ कार्रवाई करना शुरू कर दिया. उस वर्ष जून माह में, पाकिस्तानी सेना ने टीटीपी के तत्कालीन नेता बैतुल्ला महसूद को मारने के लिए वज़ीरिस्तान में अभियान शुरू किया. लेकिन, गुल बहादुर अभी भी पाकिस्तानी सशस्त्र बलों का उतना कट्टर दुश्मन नहीं था, जितना आज है.
गुल बहादुर ने उस वर्ष जुलाई में दस पाकिस्तानी सैनिकों का अपहरण कर लिया, हालांकि उन्हें दो दिन बाद उन्हें रिहा कर दिया. इसके बाद पाकिस्तान की सेना ने जब उत्तरी वज़ीरिस्तान में सैन्य अभियान चलाया, तो उसने गुल बहादुर को घोषित दुश्मन बना दिया. साल 2014 में शुरू किए गए, ऑपरेशन के बाद ऑपरेशन रद्द-उल-फसाद शुरू हुआ, जो 2017 में शुरू हुआ.
ज़ल्माय आज़ाद बताते हैं कि गुल बहादुर को उम्मीद थी कि पाकिस्तानी सशस्त्र बल उसके साथ नरमी बरतेंगे, लेकिन ऑपरेशन में उसका घर नष्ट हो गया. इस ऑपरेशन के बाद गुल बहादुर अफगानिस्तान भाग गया, लेकिन उसके कई कमांडर और रिश्तेदार मारे गए. एक अन्य कारक ड्रोन हमले थे, जो अमेरिका द्वारा किए गए लेकिन पाकिस्तान की जानकारी में थे. इन हमलों और परिणामी हताहतों ने गुल बहादुर को टीटीपी के करीब धकेल दिया.