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भारत में टीबी के गायब मामले चिंता का विषय : डॉ. कुलदीप सिंह सचदेवा - World Tuberculosis Day 2024

World Tuberculosis Day : 2025 तक देश से संक्रमण रोग टीबी उन्मूलन का लक्ष्य रखा गया है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने में कई बाधाएं हैं. पढ़ें पूरी खबर..

World Tuberculosis Day 2024
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By IANS

Published : Mar 23, 2024, 4:20 PM IST

नई दिल्ली : भारत में टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के पूर्व प्रमुख डॉ. कुलदीप सिंह सचदेवा ने शनिवार को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में एक कार्यक्रम में कहा कि तपेदिक (टीबी) के लापता मामलों के साथ-साथ निदान और उपचार में देरी 2025 तक देश में घातक संक्रमण को समाप्त करने के भारत के मिशन में प्रमुख बाधाएं हैं.

24 मार्च को विश्व तपेदिक दिवस से पहले द लांसेट इंफेक्शियस डिजीज जर्नल में प्रकाशित नवीनतम वैश्विक शोध के अनुसार, भारत में टीबी की घटनाओं में 2015 और 2020 के बीच केवल 0.5 प्रतिशत की मामूली गिरावट आई है.

अध्ययन में बताया गया है कि 2020 में भारत में टीबी के मामले प्रति एक लाख जनसंख्या पर 213 थे, जबकि मौतें 3.5-5 लाख के बीच थीं - दोनों ही लक्ष्य से काफी ऊपर हैं.

टीबी के लापता मामले निरंतर टीबी संचरण का एक महत्वपूर्ण स्रोत बने हुए हैं. वर्तमान में गोवा स्थित मोल्बियो डायग्नोस्टिक्स के अध्यक्ष और मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. कुलदीप ने एक न्यूज एजेंसी को बताया, समुदाय में सभी मामलों तक पहुंचने, उनका शीघ्र निदान करने और इलाज करने और इलाज में उनका समर्थन किए बिना टीबी को खत्म करना संभव नहीं है.

सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कहा कि जनता में जागरूकता बढ़ाना और स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार को बढ़ावा देना, उसके बाद अल्ट्रापोर्टेबल एक्स-रे जैसे संवेदनशील उपकरणों के साथ स्क्रीनिंग करना, जिन्हें उनके करीब तैनात किया जा सकता है, ऐसे मामलों तक पहुंचने के कुछ तरीके हैं.

उन्होंने कहा, 'जिन लोगों की स्क्रीनिंग पॉजिटिव आती है, उन्हें अत्यधिक संवेदनशील और विशिष्ट आणविक परीक्षणों के साथ अंतिम पुष्टि की आवश्यकता होगी.'

डॉ. कुलदीप ने यह भी बताया कि निदान और उपचार के बीच देरी से घातक बीमारी का प्रसार बढ़ रहा है.

नैदानिक ​​​​और उपचार में देरी अभी भी देखी जा रही है. ये देरी संक्रामक पूलों के निरंतर संचरण, उन्नत बीमारी की संभावना और खराब परिणामों का संकेत देती है.

उन्होंने कहा, 'सभी की स्क्रीनिंग और देखभाल पर त्वरित निदान की तैनाती से रोग प्रक्रिया के आरंभ में ही मामलों का निदान करने की क्षमता है. पहचान के 24-48 घंटों के भीतर उपचार शुरू करने से संचरण बाधित हो सकता है.'

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देशों के अनुसार, टीबी के लक्षण वाले सभी व्यक्तियों में रैपिड आणविक निदान परीक्षण होना चाहिए.

विशेषज्ञ ने कहा, 'हालांकि भारत में आणविक परीक्षणों के उपयोग में कुछ प्रगति हुई है, लेकिन देश को "अभी भी अपनी क्षमता तक पहुंचना बाकी है.'

भले ही भारत का लक्ष्य 2025 तक टीबी का है, लेकिन डब्ल्यूएचओ की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में देश में दुनिया में सबसे ज्यादा टीबी के मामले थे. 2.8 मिलियन टीबी मामलों के साथ, भारत 'विश्व का 27 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करता है.'

डॉ. कुलदीप ने कहा, 'भारत 2025 तक टीबी के लिए सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है.'उन्होंने कहा, 'देश ने मामलों में तेजी से गिरावट लाने के लिए कई नई पहल की है और कार्यान्वयन पटरी पर दिख रहा है. इन प्रयासों को कुछ वर्षों तक जारी रखने की जरूरत है.

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कुपोषण के कारण बढ़ रही टीबी की बीमारी, दुनिया भर में सालाना 16 लाख लोगों की होती है मौत

नई दिल्ली : भारत में टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के पूर्व प्रमुख डॉ. कुलदीप सिंह सचदेवा ने शनिवार को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में एक कार्यक्रम में कहा कि तपेदिक (टीबी) के लापता मामलों के साथ-साथ निदान और उपचार में देरी 2025 तक देश में घातक संक्रमण को समाप्त करने के भारत के मिशन में प्रमुख बाधाएं हैं.

24 मार्च को विश्व तपेदिक दिवस से पहले द लांसेट इंफेक्शियस डिजीज जर्नल में प्रकाशित नवीनतम वैश्विक शोध के अनुसार, भारत में टीबी की घटनाओं में 2015 और 2020 के बीच केवल 0.5 प्रतिशत की मामूली गिरावट आई है.

अध्ययन में बताया गया है कि 2020 में भारत में टीबी के मामले प्रति एक लाख जनसंख्या पर 213 थे, जबकि मौतें 3.5-5 लाख के बीच थीं - दोनों ही लक्ष्य से काफी ऊपर हैं.

टीबी के लापता मामले निरंतर टीबी संचरण का एक महत्वपूर्ण स्रोत बने हुए हैं. वर्तमान में गोवा स्थित मोल्बियो डायग्नोस्टिक्स के अध्यक्ष और मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. कुलदीप ने एक न्यूज एजेंसी को बताया, समुदाय में सभी मामलों तक पहुंचने, उनका शीघ्र निदान करने और इलाज करने और इलाज में उनका समर्थन किए बिना टीबी को खत्म करना संभव नहीं है.

सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कहा कि जनता में जागरूकता बढ़ाना और स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार को बढ़ावा देना, उसके बाद अल्ट्रापोर्टेबल एक्स-रे जैसे संवेदनशील उपकरणों के साथ स्क्रीनिंग करना, जिन्हें उनके करीब तैनात किया जा सकता है, ऐसे मामलों तक पहुंचने के कुछ तरीके हैं.

उन्होंने कहा, 'जिन लोगों की स्क्रीनिंग पॉजिटिव आती है, उन्हें अत्यधिक संवेदनशील और विशिष्ट आणविक परीक्षणों के साथ अंतिम पुष्टि की आवश्यकता होगी.'

डॉ. कुलदीप ने यह भी बताया कि निदान और उपचार के बीच देरी से घातक बीमारी का प्रसार बढ़ रहा है.

नैदानिक ​​​​और उपचार में देरी अभी भी देखी जा रही है. ये देरी संक्रामक पूलों के निरंतर संचरण, उन्नत बीमारी की संभावना और खराब परिणामों का संकेत देती है.

उन्होंने कहा, 'सभी की स्क्रीनिंग और देखभाल पर त्वरित निदान की तैनाती से रोग प्रक्रिया के आरंभ में ही मामलों का निदान करने की क्षमता है. पहचान के 24-48 घंटों के भीतर उपचार शुरू करने से संचरण बाधित हो सकता है.'

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देशों के अनुसार, टीबी के लक्षण वाले सभी व्यक्तियों में रैपिड आणविक निदान परीक्षण होना चाहिए.

विशेषज्ञ ने कहा, 'हालांकि भारत में आणविक परीक्षणों के उपयोग में कुछ प्रगति हुई है, लेकिन देश को "अभी भी अपनी क्षमता तक पहुंचना बाकी है.'

भले ही भारत का लक्ष्य 2025 तक टीबी का है, लेकिन डब्ल्यूएचओ की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में देश में दुनिया में सबसे ज्यादा टीबी के मामले थे. 2.8 मिलियन टीबी मामलों के साथ, भारत 'विश्व का 27 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करता है.'

डॉ. कुलदीप ने कहा, 'भारत 2025 तक टीबी के लिए सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है.'उन्होंने कहा, 'देश ने मामलों में तेजी से गिरावट लाने के लिए कई नई पहल की है और कार्यान्वयन पटरी पर दिख रहा है. इन प्रयासों को कुछ वर्षों तक जारी रखने की जरूरत है.

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