मुंबई: दलाल स्ट्रीट पर बुल्स की सांसें थम सी गई हैं. 2024 के अधिकांश समय में शानदार तेजी के बाद, भारतीय शेयर बाजार एक मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं, जिसमें दोनों बेंचमार्क इंडेक्स में गिरावट दर्ज की गई है. सेंसेक्स और निफ्टी अपने हाल के शिखर से लगभग 10 फीसदी नीचे आ गए हैं, जिससे निवेशकों के मन में यह सवाल उठ रहा है. क्या यह सिर्फ एक हेल्दी ब्रेक है, या उन्हें और अधिक उथल-पुथल के लिए तैयार रहना चाहिए?
गिरावट का पैमाना चौंकाने वाला है. सेंसेक्स 29 सितंबर के अपने शिखर 85,978.25 से 8,553 अंक (10 फीसदी) गिर चुका है, जबकि निफ्टी 27 सितंबर को 26,277.35 पर पहुंचने के बाद से 2,744 अंक (10.44 फीसदी) गिर चुका है. फिर भी, 2024 पूरी तरह से बर्बादी नहीं है. सेंसेक्स अभी भी वर्ष-दर-वर्ष 7.34 फीसदी की बढ़त पर है.
आज हम इस खबर के माध्यम से जानेंगे कि बाजार में गिरावट का कारण क्या है और एक्सपर्ट के माध्यम से जानेंगे कि बाजार में गिरावट का सिलसिला कब थमेगा?
इस गिरावट के पीछे क्या है?
- बाजार में इस गिरावट के पीछे सबसे बड़ा कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) का पलायन रहा है. अक्टूबर में एफपीआई ने 94,017 करोड़ रुपये की भारी निकासी की, जबकि नवंबर की पहली छमाही में 22,420 करोड़ रुपये की और निकासी हुई. भारतीय शेयरों में एफपीआई की हिस्सेदारी 12 साल के निचले स्तर पर आ गई है.
- बाजार के प्रीमियम मूल्यांकनों को वास्तविकता का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि कॉर्पोरेट आय गति बनाए रखने में विफल रही है. जेएम फाइनेंशियल और जेफरीज के विश्लेषकों के अनुसार, उनके कवरेज के तहत 60 फीसदी से अधिक कंपनियों ने दूसरी तिमाही के कमजोर नतीजों के बाद FY25 की आय में गिरावट देखी है.
- हालांकि म्यूचुअल फंड बाजार को स्थिर करने वाले के रूप में आगे आए हैं, अक्टूबर में म्यूचुअल फंड ने इक्विटी में 90,000 करोड़ रुपये डाले. इससे एफपीआई से भारी बिकवाली के दबाव को कम करने में मदद मिली.
बाजार की गिरावट कब थमेगी?
निवेश मंथन पत्रिका के संपादक राजीव रंजन झा का कहना है कि शेयर बाजार में पिछले सप्ताह सेंसेक्स और निफ्टी में लगभग 2.5 फीसदी की गिरावट आयी है और अगर सर्वोच्च स्तरों से देखें तो लगभग 10 फीसदी की गिरावट आ चुकी है. यह गिरावट 2 महीने से कम समय के बीच में आयी है. इसमें विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की भारी बिकवाली का एक प्रमुख योगदान है. मगर अब सूचकांकों के 10 फीसदी घट जाने के बाद बाजार में ऊंचे मूल्यांकनों की चिंता भी काफी हद तक कम हो गयी है और वापस काफी शेयरों में उचित मूल्यांकन नजर आने लगे हैं. इसलिए, अब अगर इन स्तरों के आस-पास से ही वापस खरीदारी उभरनी शुरू हो जाये, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी.
हाल के महीनों में हमें वैश्विक निवेशकों का झुकाव चीन के शेयर बाजार की ओर बढ़ता हुआ दिख रहा था, क्योंकि चीन के बाजार काफी पिट जाने के बाद इन निवेशकों को सस्ते लगने लगे थे. वहीं भारतीय बाजार में ऊंचे मूल्यांकन के चलते उन्हें नया निवेश करने में हिचक हो रही थी. अब चीन के बाजार काफी संभल चुके हैं और भारतीय बाजार शीर्ष से 10 फीसदी नीचे आ चुका है. ऐसे में समीकरण वापस भारत की ओर झुक सकता है.
अब कुछ विदेशी ब्रोकिंग फर्मों ने भी कहना शुरू कर दिया है कि वे भारत और चीन को लेकर अपनी निवेश रणनीति पलट रहे हैं. सीएलएसए ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि हमने इस साल अक्टूबर के आरंभ में भारत में अपने कुछ अतिरिक्त निवेश को निकाल कर उस राशि का रणनीतिक निवेश चीन के बाजार में किया था और अब हम उस डील (ट्रेड) को पलट रहे हैं.
मगर यह देखना होगा कि क्या व्यापक रूप से एफपीआई खेमे में अब ऐसी सोच बन रही है, या कुल मिला कर अभी भी एफपीआई की बिकवाली भारतीय बाजार में जारी रहेगी. घरेलू निवेशकों की ओर नया निवेश लगातार आते रहने के चलते हमें घरेलू संस्थाओं, जैसे म्यूचुअल फंडों की ओर से खरीदारी का सहारा मिलता रहा है. अगर एफपीआई बिकवाली पूरी तरह पलट कर खरीदारी में न भी बदले और केवल बिकवाली थम भर जाये, तो भी भारतीय बाजार इन स्तरों पर अपना एक आधार (बेस) बना कर फिर से ऊपर की नयी चाल शुरू कर सकता है.
लेकिन अगर किसी कारण से अभी एफपीआई बिकवाली आगे भी बड़े स्तर पर जारी रही, तो तकनीकी वजहों से भारतीय बाजार और कमजोर होता दिखेगा, जिसमें हमें शायद जून 2024 के स्तर भी वापस देखने पड़ें. फिलहाल, अगले कुछ दिन बाजार की दिशा तय होने के लिहाज से बहुत महत्त्वपूर्ण रहेंगे.