मुंबई: भारत में पैसे और नाम कमाने के बावजूद रतन टाटा कभी भी अरबपतियों की सूची में नहीं थे. अविश्वसनीय लगता है, है ना? लेकिन यह सच है. वह व्यक्ति जो 100 से अधिक देशों में 30 कंपनियों को कंट्रोल करता था. वह कभी भी अरबपतियों की सूची में नहीं था. टाटा समूह के मानद चेयरमैन का इस सूची में कभी भी स्थान न पाने का मुख्य कारण उनके परोपकारी काम हैं. टाटा परिवार टाटा ट्रस्ट्स के माध्यम से अपने परोपकारी प्रयासों के लिए प्रसिद्ध है. टाटा ने अपनी कंपनियों में महत्वपूर्ण शेयर नहीं रखे हैं. जब से जमशेदजी टाटा ने इसे स्थापित किया है. टाटा संस की अधिकांश कमाई इन ट्रस्टों की ओर निर्देशित की गई है.
रतन टाटा का नाम अमीरों के लिस्ट में क्यों नहीं है?
यह उम्मीद करना तर्कसंगत हो सकता है कि एक व्यक्ति जिसने लगभग छह दशकों तक भारत में सबसे बड़ा व्यापारिक साम्राज्य चलाया है और अभी भी इसकी कंपनियों पर बहुत बड़ा प्रभाव रखता है. वह टॉप 10 या 20 सबसे अमीर भारतीयों में से एक होगा. लेकिन ऐसा नहीं है. और इसका कारण टाटा ट्रस्ट के माध्यम से टाटा द्वारा किया जाने वाला विशाल परोपकारी काम हो सकता है.
लेकिन टाटा के पास अपनी कंपनी के बहुत ज्यादा शेयर नहीं थे. क्योंकि जमशेदजी टाटा ने खुद ही संविधान बनाया था कि टाटा संस में उन्होंने जो भी कमाया, उसका ज्यादातर हिस्सा टाटा ट्रस्ट को दान कर दिया गया. बिल गेट्स जैसे लोगों के आने से बहुत पहले से ही टाटा सबसे बड़े परोपकारी रहे हैं.
उद्योगपति रतन टाटा, जिनका 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया. भारत के टाटा समूह को सॉफ्टवेयर से लेकर स्पोर्ट्स कारों तक के पोर्टफोलियो वाले विश्व स्तर पर प्रसिद्ध समूह में बदलने का श्रेय दिया जाता है.
आज के तेज-तर्रार माहौल में, जहां व्यापार अक्सर सिद्धांतों से ज्यादा मुनाफे को प्राथमिकता देता है. नवल टाटा के बेटे रतन टाटा को उनके नैतिक दृष्टिकोण और लोगों के प्रति प्रतिबद्धता के लिए दुनिया भर में सम्मान मिला. उन्होंने बुद्धि, करुणा और राष्ट्र-प्रथम दृष्टिकोण के साथ टाटा साम्राज्य का नेतृत्व किया.
28 दिसंबर 1937 को मुंबई में जन्मे रतन टाटा को भारत के सबसे प्रतिष्ठित औद्योगिक परिवारों में से एक की विरासत मिली. वे नवल टाटा के बेटे थे, जिन्हें टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा के बेटे रतनजी टाटा ने गोद लिया था.