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बदलते मौसम के साथ खूंखार हो रहे जंगली जानवर, इंसानों को बना रहे निवाला, घरों में घुसकर कर रहे शिकार! - Climate Change Effect on Wildlife

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Aug 6, 2024, 6:03 AM IST

Wildlife Behaviour Change in Uttarakhand मौसमीय चक्र में बदलाव का असर न केवल इंसानों बल्कि, जंगल के जीवों को भी प्रभावित कर रहा है. हालात ये हैं कि इन परिस्थितियों के चलते इंसानों पर हमले बढ़ रहे हैं. वन्यजीवों के सामान्य व्यवहार में भी चिंताजनक बदलाव देखा गया है. हालांकि, वन्यजीव विशेषज्ञ भी इन स्थितियों पर नजर रखे हुए हैं, लेकिन मौसम चक्र में बदलाव के अलावा इंसानी गतिविधियां भी जंगल के संसार को डिस्टर्ब कर रही है. पढ़िए खास रिपोर्ट..

Wildlife Behaviour Change Uttarakhand
मानव वन्यजीव संघर्ष (फोटो- ETV Bharat GFX)
बदलते मौसम के साथ खूंखार हो रहे जंगली जानवर (ETV Bharat)

देहरादून: अनियोजित विकास और प्रदूषित वातावरण न केवल इंसानों पर बुरा असर डाल रहा है. बल्कि, जंगलों में जानवरों के व्यवहार को भी बदलने का काम कर रहा है. स्थिति ये है कि इंसानों पर हमलों का समय और वन्यजीवों की गतिविधियां भी बदल रही है. वन्यजीव विशेषज्ञ इन स्थितियों पर नजर बनाए हुए हैं और आंकड़ों के आधार पर बदलते जंगल के परिवेश को समझने की भी कोशिश कर रहे हैं.

उत्तराखंड वन विभाग में वाइल्डलाइफ कार्यालय ने पिछले कुछ समय में बेहद महत्वपूर्ण आंकड़े एकत्रित किए हैं. जो वन्यजीव के बदलते व्यवहार को समझने के लिए भी काम आ रहे हैं. पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ समीर सिन्हा बताते हैं कि विश्लेषण से मानव वन्यजीव संघर्ष की स्थितियों को समझने की कोशिश की जा रही है. इस साल फरवरी का महीना मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं के लिए बेहद संवेदनशील रहा है. ये भी स्पष्ट हुआ है कि मौसम चक्र में बदलाव मानव वन्यजीव संघर्ष पर भी असर डाल रहा है.

कभी अचानक बढ़ रहे तो कभी कम हो रहे मानव वन्यजीव संघर्ष: वन विभाग के पास मौजूद आंकड़े अगस्त महीने को भी संवेदनशील बयां कर रहे हैं. उत्तराखंड में ये भी देखा जा रहा है कि मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं साल भर में कभी अचानक बढ़ जाती हैं और कुछ महीनो में यह आंकड़े अपने आप कम भी हो जाते हैं. इन स्थितियों और आंकड़ों को भी लगातार वन विभाग मॉनिटर कर रहा है.

उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष के आंकड़े: मानव वन्यजीव संघर्ष के लिहाज से जनवरी से जून तक के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. साल 2023 में मानव वन्यजीव संघर्ष में इन महीनों 22 लोगों की जान चली गई और 103 लोग घायल हो गए. साल 2024 में इन्हीं 6 महीनों के दौरान 24 लोगों की मौत हुई और 109 लोग घायल हुए. जनवरी महीने में साल 2023 में 22 तो 2024 में 21 घटनाएं हुई.

Wildlife Behaviour Change Uttarakhand
उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष के आंकड़े (फोटो- ETV Bharat GFX)

इसी तरह फरवरी में साल 2023 में 13 तो साल 2024 में 37 घटनाएं हुई. वहीं, मार्च महीने में साल 2023 में 10 तो 2024 में 14 घटनाएं हुईं. अप्रैल महीने में साल 2023 और 2024 में भी 17-17 घटनाएं हुईं. इसके अलावा मई महीने में साल 2023 में 35 तो साल 2024 में 28 घटनाएं हुईं. जबकि, जून महीने में साल 2023 में 28 तो साल 2024 में करीब 20 घटनाएं दर्ज की गई है.

सर्दी और बरसात में क्यों बढ़ते हैं वन्यजीवों के हमले: उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष के लिए साल के 12 महीना में से दो सीजन ऐसे होते हैं, जब इसको लेकर सबसे ज्यादा घटनाएं रिकॉर्ड की जाती है. मानव वन्यजीव विशेषज्ञ कहते हैं कि सर्दी के महीने में अचानक वन्यजीवों के इंसानों पर हमले बढ़ जाते हैं. इसी तरह से बरसात के सीजन में सबसे ज्यादा घटनाएं होती हैं. इसके पीछे भी वन विभाग के अधिकारी वजह बताते हुए कहते हैं कि बारिश के सीजन में घरों के आसपास झाड़ियां बढ़ जाती है और इसके चलते वन्यजीवों के हमले की संभावना भी बढ़ जाती है.

वन्यजीव दिखाई देने पर इन नंबरों पर करें फोन: वन विभाग में मानव वन्यजीव संघर्ष को लेकर एक टोल फ्री नंबर भी जारी किया है. किसी भी वन्यजीव के क्षेत्र में दिखाई देने पर इस टोल फ्री नंबर पर संपर्क कर वन विभाग को जानकारी दी जा सकती है. टोल फ्री नंबर 18008909715 पर 24 घंटे सूचना दी जा सकती है. वन विभाग इस मामले में लोगों को घरों के आसपास सफाई रखने की भी सलाह दे रहा है और अंधेरे में घर से बाहर निकलते वक्त विशेष सावधानी बरतने के भी सुझाव दिए गए हैं. फिलहाल, जुलाई, अगस्त महीने में भी ऐसी घटनाओं की संभावना बेहद ज्यादा लगाई जा रही है.

मानव वन्यजीव संघर्ष मौसमीय चक्र में बदलाव का असर: वहीं, मौसमीय चक्र में हो रहे बदलाव के कारण मानव वन्यजीव संघर्ष बढ़ने की बात कही जा रही है. उधर, विशेषज्ञ ये भी मानते हैं कि ऐसे बदलाव वन्य जीवों के व्यवहार को भी बदल रहे हैं. हाल ही में भालुओं के भी इंसानी बस्तियों के पास पहुंचने और साल भर सक्रिय रहने की बात सामने आई है. जबकि, भालू के हाइबरनेशन यानी शीत निद्रा में जाने की प्रकृति में बदलाव महसूस किया जा रहा है. इससे उनकी ब्रीडिंग पर भी असर पड़ने की संभावना लगाई जा रही है.

इसी तरह जंगलों में कभी अकेले रहने वाला टाइगर कई तस्वीरों में बाकी बाघों के साथ भी दिखाई दिया है, जो उसके प्राकृतिक स्वभाव में बदलाव को दिखाता है. वन्यजीवों पर काम करने वाले विशेषज्ञों को भी यह लगता है कि इंसानी डिस्टरबेंस और मौसम में बदलाव के कारण वन्यजीव आक्रामक हो रहे हैं. इसी आक्रामकता के कारण घटनाओं में भी बढ़ोतरी हो रही है.

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बदलते मौसम के साथ खूंखार हो रहे जंगली जानवर (ETV Bharat)

देहरादून: अनियोजित विकास और प्रदूषित वातावरण न केवल इंसानों पर बुरा असर डाल रहा है. बल्कि, जंगलों में जानवरों के व्यवहार को भी बदलने का काम कर रहा है. स्थिति ये है कि इंसानों पर हमलों का समय और वन्यजीवों की गतिविधियां भी बदल रही है. वन्यजीव विशेषज्ञ इन स्थितियों पर नजर बनाए हुए हैं और आंकड़ों के आधार पर बदलते जंगल के परिवेश को समझने की भी कोशिश कर रहे हैं.

उत्तराखंड वन विभाग में वाइल्डलाइफ कार्यालय ने पिछले कुछ समय में बेहद महत्वपूर्ण आंकड़े एकत्रित किए हैं. जो वन्यजीव के बदलते व्यवहार को समझने के लिए भी काम आ रहे हैं. पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ समीर सिन्हा बताते हैं कि विश्लेषण से मानव वन्यजीव संघर्ष की स्थितियों को समझने की कोशिश की जा रही है. इस साल फरवरी का महीना मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं के लिए बेहद संवेदनशील रहा है. ये भी स्पष्ट हुआ है कि मौसम चक्र में बदलाव मानव वन्यजीव संघर्ष पर भी असर डाल रहा है.

कभी अचानक बढ़ रहे तो कभी कम हो रहे मानव वन्यजीव संघर्ष: वन विभाग के पास मौजूद आंकड़े अगस्त महीने को भी संवेदनशील बयां कर रहे हैं. उत्तराखंड में ये भी देखा जा रहा है कि मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं साल भर में कभी अचानक बढ़ जाती हैं और कुछ महीनो में यह आंकड़े अपने आप कम भी हो जाते हैं. इन स्थितियों और आंकड़ों को भी लगातार वन विभाग मॉनिटर कर रहा है.

उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष के आंकड़े: मानव वन्यजीव संघर्ष के लिहाज से जनवरी से जून तक के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. साल 2023 में मानव वन्यजीव संघर्ष में इन महीनों 22 लोगों की जान चली गई और 103 लोग घायल हो गए. साल 2024 में इन्हीं 6 महीनों के दौरान 24 लोगों की मौत हुई और 109 लोग घायल हुए. जनवरी महीने में साल 2023 में 22 तो 2024 में 21 घटनाएं हुई.

Wildlife Behaviour Change Uttarakhand
उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष के आंकड़े (फोटो- ETV Bharat GFX)

इसी तरह फरवरी में साल 2023 में 13 तो साल 2024 में 37 घटनाएं हुई. वहीं, मार्च महीने में साल 2023 में 10 तो 2024 में 14 घटनाएं हुईं. अप्रैल महीने में साल 2023 और 2024 में भी 17-17 घटनाएं हुईं. इसके अलावा मई महीने में साल 2023 में 35 तो साल 2024 में 28 घटनाएं हुईं. जबकि, जून महीने में साल 2023 में 28 तो साल 2024 में करीब 20 घटनाएं दर्ज की गई है.

सर्दी और बरसात में क्यों बढ़ते हैं वन्यजीवों के हमले: उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष के लिए साल के 12 महीना में से दो सीजन ऐसे होते हैं, जब इसको लेकर सबसे ज्यादा घटनाएं रिकॉर्ड की जाती है. मानव वन्यजीव विशेषज्ञ कहते हैं कि सर्दी के महीने में अचानक वन्यजीवों के इंसानों पर हमले बढ़ जाते हैं. इसी तरह से बरसात के सीजन में सबसे ज्यादा घटनाएं होती हैं. इसके पीछे भी वन विभाग के अधिकारी वजह बताते हुए कहते हैं कि बारिश के सीजन में घरों के आसपास झाड़ियां बढ़ जाती है और इसके चलते वन्यजीवों के हमले की संभावना भी बढ़ जाती है.

वन्यजीव दिखाई देने पर इन नंबरों पर करें फोन: वन विभाग में मानव वन्यजीव संघर्ष को लेकर एक टोल फ्री नंबर भी जारी किया है. किसी भी वन्यजीव के क्षेत्र में दिखाई देने पर इस टोल फ्री नंबर पर संपर्क कर वन विभाग को जानकारी दी जा सकती है. टोल फ्री नंबर 18008909715 पर 24 घंटे सूचना दी जा सकती है. वन विभाग इस मामले में लोगों को घरों के आसपास सफाई रखने की भी सलाह दे रहा है और अंधेरे में घर से बाहर निकलते वक्त विशेष सावधानी बरतने के भी सुझाव दिए गए हैं. फिलहाल, जुलाई, अगस्त महीने में भी ऐसी घटनाओं की संभावना बेहद ज्यादा लगाई जा रही है.

मानव वन्यजीव संघर्ष मौसमीय चक्र में बदलाव का असर: वहीं, मौसमीय चक्र में हो रहे बदलाव के कारण मानव वन्यजीव संघर्ष बढ़ने की बात कही जा रही है. उधर, विशेषज्ञ ये भी मानते हैं कि ऐसे बदलाव वन्य जीवों के व्यवहार को भी बदल रहे हैं. हाल ही में भालुओं के भी इंसानी बस्तियों के पास पहुंचने और साल भर सक्रिय रहने की बात सामने आई है. जबकि, भालू के हाइबरनेशन यानी शीत निद्रा में जाने की प्रकृति में बदलाव महसूस किया जा रहा है. इससे उनकी ब्रीडिंग पर भी असर पड़ने की संभावना लगाई जा रही है.

इसी तरह जंगलों में कभी अकेले रहने वाला टाइगर कई तस्वीरों में बाकी बाघों के साथ भी दिखाई दिया है, जो उसके प्राकृतिक स्वभाव में बदलाव को दिखाता है. वन्यजीवों पर काम करने वाले विशेषज्ञों को भी यह लगता है कि इंसानी डिस्टरबेंस और मौसम में बदलाव के कारण वन्यजीव आक्रामक हो रहे हैं. इसी आक्रामकता के कारण घटनाओं में भी बढ़ोतरी हो रही है.

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