हैदराबाद: दास्तानगोई में माहिर महमूद फारूकी चर्चा में हैं. दरअसल, बीत शनिवार को उनका आईआईटी-बॉम्बे में 'दास्तान-ए-कर्ण-एजेड महाभारत' (Dastan-e-Karn - AZ Mahabharat) नामक कार्यक्रम होना था, लेकिन कार्यक्रम से पहले छात्रों के एक वर्ग ने उनका विरोध किया, जिसके बाद आईआईटी प्रशासन की तरफ से फारूकी के शो को रद्द कर दिया गया.
दास्तानगोई शो के लिए मशहूर फारूकी को 25-27 अक्टूबर तक आईआईटी-बॉम्बे में भारतीय भाषा क्लब वाणी द्वारा आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम इजहार 2024 के तहत शो करने के लिए आमंत्रित किया गया था. कार्यक्रम से कुछ घंटे पहले 'आईआईटी-बी फॉर भारत' नाम के समूह ने फारूकी के शो का विरोध करते हुए एक सार्वजनिक बयान जारी किया.
'आईआईटी-बी फॉर भारत' के आरोप
इस समूह में संस्थान के छात्र, कर्मचारी और पूर्व छात्र शामिल हैं. सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए बयान में फारूकी के साथ संस्थान के संबंध पर सवाल उठाया गया. छात्रों ने दावा किया कि फारूकी को पहले यौन उत्पीड़न के एक मामले में दोषी ठहराया गया था.
Concerned students at @IITBombay urge the administration to cancel Mahmood Farooqui's campus performance.
— IIT B for Bharat (@IITBforBharat) October 26, 2024
Hosting Mahmood Farooqui at #IITBombay is a direct insult to survivors and dismisses the values of consent and safety. An institute of excellence shouldn't provide a… pic.twitter.com/S8BlIwTxns
हालांकि, 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा था. फिल्म 'पीपली लाइव' के सह-निर्देशक महमूद फारूकी पर 28 मार्च 2015 को अपने आवास पर एक अमेरिकी शोधकर्ता के साथ दुष्कर्म करने का आरोप लगाया गया था.
मैं आईआईटी प्रशासन के फैसले से स्तब्ध हूं...
फारूकी ने दावा किया, "इस शो को इसके समावेशी संदेश के कारण सराहना मिली है. मैं इस बात से स्तब्ध हूं कि आईआईटी-बी ने एक ऐसे समूह के दबाव के आगे घुटने टेक दिए, जिसके बारे में मैंने कभी सुना ही नहीं था."
महमूद फारूकी कौन हैं ?
महमूद फारूकी लेखक, कलाकार और फिल्म निर्देशक हैं. वह दास्तानगोई के जरिये कहानी सुनाने की कला में माहिर हैं. फारूकी के चाचा शम्सुर रहमान फारूकी उर्दू के प्रसिद्ध कवि और साहित्यिक आलोचक रहे हैं. उन्होंने अपने चाचा के साथ मिलकर उर्दू कहानी कहने की प्राचीन कला दास्तानगोई को पुनर्जीवित किया. इसके लिए उन्हें 2010 में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
महमूद फारूकी की पुस्तकें
महमूद फारूकी की पुस्तकों में 1857 के विद्रोह पर बेसिज्ड: वॉयस फ्रॉम दिल्ली- 1857 (Besieged: Voices From Delhi-1857) शामिल है, जिसे 2010 की सर्वश्रेष्ठ गैर-काल्पनिक पुस्तक के लिए राम नाथ गोयनका पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, और ए रिक्विम फॉर पाकिस्तान: द वर्ल्ड ऑफ इंतिजार हुसैन. इसके अलावा हिंदी और उर्दू में दास्तानगोई पर दो किताबें भी हैं.
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पढ़ाई
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार स्कूली शिक्षा दून स्कूल से पूरी करने के बाद फारूकी ने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज में इतिहास की पढ़ाई की. उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सेंट पीटर्स कॉलेज में इतिहास पढ़ने के लिए इंडियन रोड्स स्कॉलरशिप से सम्मानित किया गया था. उन्होंने इतिहास में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में शीर्ष स्थान हासिल किया था.
2004 से कर रहे दास्तानगोई
फारूकी ने 2004 में दास्तानगोई के क्षेत्र में कदम रखा था. तब से उन्होंने दुनिया भर में हजारों शो किए हैं. दास्तान-ए-अमीर हमजा के पुराने महाकाव्य को जीवंत करने के अलावा उन्होंने आधुनिक कहानियों को बताने के लिए इसे एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल करके दास्तानगोई का नवाचार किया है.
महमूद फारूकी 2004 से उर्दू में कहानी कहने की 16वीं सदी की पारंपरिक कला दास्तानगोई से जुड़े हुए हैं. उन्होंने दुनिया भर में हजारों शो किए हैं. उनका काम मुख्य रूप से आधुनिक भारत की सबसे लंबी काल्पनिक कहानी दास्तान-ए-अमीर हमजा पर लिखना और प्रदर्शन करना है. आधुनिक कहानियों को बताने के लिए दास्तानगोई पर नए-नए प्रयोग करते हैं.
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