बेंगलुरु: कर्नाटक की 15 महीने पुरानी कांग्रेस सरकार को बड़ा झटका देते हुए राज्यपाल थावर चंद गहलोत ने शनिवार को कथित मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) भूमि आवंटन घोटाले के संबंध में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी. इस फैसले के बाद विपक्षी बीजेपी-जेडीएस ने नैतिक आधार पर सिद्धारमैया से पद छोड़ने की मांग की, जिससे कांग्रेस नेतृत्व में चिंता पैदा हो गई.
एक्टिविस्ट प्रदीप कुमार एसपी, टीजे अब्राहम और स्नेहमयी कृष्णा की ओर से प्रस्तुत याचिकाओं के बाद राज्यपाल की मंजूरी 'भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17ए और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218' के तहत दी गई है.
याचिकाकर्ताओं के आने वाले सप्ताह में अदालत का दरवाजा खटखटाने की उम्मीद है. शिकायतकर्ताओं में से एक टीजे अब्राहम ने राज्यपाल की मंजूरी को स्वीकार करने के लिए जनप्रतिनिधियों के लिए विशेष अदालत की मांग करने की अपनी मंशा भी व्यक्त की.
MUDA घोटाला विवाद क्या है?
यह विवाद मुआवजा स्थलों के आवंटन में कथित अनियमितताओं के इर्द-गिर्द घूमता है. घोटाला 3.2 एकड़ जमीन से जुड़ा है, जिसे मुख्यमंत्री की पत्नी पार्वती को उनके भाई मल्लिकार्जुनस्वामी ने 2010 में उपहार में दिया था. MUDA द्वारा जमीन अधिग्रहण के बाद पार्वती ने मुआवजे की मांग की और इसके बाद उन्हें 14 प्लॉट आवंटित किए गए. कहा जाता है कि ये प्लॉट मूल भूमि के टुकड़े से काफी अधिक कीमत के हैं. विपक्षी दलों का दावा है कि घोटाले का कुल मूल्य संभावित रूप से 3,000 करोड़ रुपये से 4,000 करोड़ रुपये के बीच हो सकता है.
विवाद की पूरी टाइमलाइन
दिसंबर 2023 को शहरी विकास विभाग ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) को नियमों के गंभीर उल्लंघन के कारण 50:50 योजना के तहत साइट आवंटन रोकने का निर्देश दिया.मार्च 2024 को पहले के निर्देशों के बावजूद मुदा ने आवंटन जारी रखा, जिसके कारण विभाग को एक और पत्र जारी करना पड़ा.
अप्रैल 2024 में मुडा ने लोकसभा चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता का हवाला देते हुए अपना जवाब देने में देरी की. मई 2024 में मुडा के अध्यक्ष के मैरीगौड़ा ने 50:50 योजना के तहत आवंटन की जांच करने के लिए विभाग अनुरोध किया.
जून 2024 को स्थानीय न्यूज पेपर ने प्रमुख स्थानों पर वैकल्पिक स्थलों के आवंटन में अनियमितताओं और संभावित रैकेट को उजागर करने वाले आर्टिकल पब्लिश करना शुरू कर दिया. इसके बाद एक आरटीआई कार्यकर्ता ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती सहित राजनेताओं की कथित संलिप्तता का खुलासा किया.
इसी महीने एक आरटीआई कार्यकर्ता ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती सहित राजनेताओं की कथित संलिप्तता का खुलासा किया. इसके बाद राज्य सरकार ने मामले की जांच के लिए चार सदस्यीय अधिकारियों की समिति नियुक्त की.
जुलाई 2024 में बीजेपी एमएलसी एएच विश्वनाथ ने दावा किया कि सीएम की पत्नी को पॉश इलाके में कई साइटें मिली हैं. इसके बाद राज्य सरकार ने मामले की जांच के लिए चार सदस्यीय अधिकारियों की एक समिति नियुक्त की.
इसके बाद सिद्धारमैया ने जवाब देते हुए कहा कि उनकी पत्नी को वैकल्पिक जगहें इसलिए आवंटित की गई थीं, क्योंकि मुदा ने उनके भाई द्वारा उपहार में दी गई जमीन पर अतिक्रमण कर लिया था और वहां एक लेआउट विकसित किया था.
इसी महीने सिद्धारमैया ने मुदा द्वारा 62 करोड़ रुपये का मुआवजा दिए जाने पर साइट वापस करने की पेशकश की. इस बीच सरकार ने रिटायर हाई कोर्ट के जज जस्टिस पीएन देसाई के नेतृत्व में एक जांच आयोग का गठन किया.
15 से 26 जुलाई के बीच मानसून सत्र के दौरान भाजपा और जेडीएस ने इस ज्वलंत मुद्दे पर बहस की मांग की, जिसकी अनुमति स्पीकर ने देने से इनकार कर दिया. 18 जुलाई 2024 को सामाजिक कार्यकर्ता टीजे अब्राहम ने मैसूर में लोकायुक्त पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और 21 जुलाई को उन्होंने मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगने के लिए राज्यपाल के समक्ष याचिका दायर की. इसके साथ ही अभियोजन की मांग वाली दो अतिरिक्त याचिकाएं भी दायर की गईं. 26 जुलाई 2024 को राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को कारण बताओ नोटिस जारी किया.
1 अगस्त को कैबिनेट ने राज्यपाल को कारण बताओ नोटिस वापस लेने की सलाह दी और दावा किया कि यह अवैध है और अब्राहम की याचिका को खारिज कर दिया. 3 से 10 अगस्त के बीच विपक्ष के सदस्य विरोध प्रदर्शन करने और मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग करने के लिए बेंगलुरु से मैसूर तक पदयात्रा पर निकले, जबकि कांग्रेस ने जवाबी रैलियां कीं.
इसके बाद मैसूर की कार्यकर्ता शेहमयी कृष्णा ने स्वतंत्र जांच की मांग करते हुए जनप्रतिनिधियों के लिए विशेष अदालत का रुख किया.17 अगस्त 2024 को राज्यपाल ने सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दी.
घोटाले में मुकद्दमे का सामने करने वाले दूसरे सीएम
कर्नाटक के 76 वर्षीय मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पद पर रहते हुए मुकदमे का सामना कर रहे हैं, जिससे वे राज्य के इतिहास में ऐसे आरोपों का सामना करने वाले दूसरे मुख्यमंत्री बन गए हैं. सबसे पहले 2011 में बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा पर मुकदमा चलाया गया था. विडंबना यह है कि सिद्धारमैया, जिन्होंने 2011 में विपक्ष के नेता के रूप में येदियुरप्पा के इस्तीफे की मांग की थी, अब इसी तरह के आरोपों का सामना कर रहे हैं और अब उनके इस्तीफे की मांग बढ़ रही है. मौजूदा स्थिति 2011 की घटनाओं से मिलती जुलती है.
येदियुरप्पा के खिलाफ अभियोजन
येदियुरप्पा के मामले में, तत्कालीन राज्यपाल एचआर भारद्वाज ने अधिवक्ता सिराजिन बाशा और केएन बलराज की याचिका के आधार पर 12 दिसंबर, 2010 को अभियोजन को मंजूरी दी थी. यह मंजूरी "भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 19(1) और दंड प्रक्रिया संहिता-1973 की धारा 197" के तहत दी गई थी. इस निर्णय के कारण विवाद हुआ और भाजपा ने व्यापक विरोध प्रदर्शन किया. दबाव के बावजूद, येदियुरप्पा ने तुरंत इस्तीफा नहीं दिया.
उन्होंने राज्यपाल के फैसले की निंदा करने के लिए कैबिनेट की बैठक की और लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी. उन्होंने अंततः कई महीनों के राजनीतिक दबाव और अवैध खनन घोटाले में तत्कालीन लोकायुक्त संतोष हेगड़े द्वारा अभियोग लगाए जाने के बाद इस्तीफा दे दिया
सिद्धारमैया के खिलाफ मंजूरी भारतीय राजनीतिक इतिहास में दुर्लभ लेकिन महत्वपूर्ण उदाहरणों की सूची में जुड़ गई है, जहां राज्यपालों ने मुख्यमंत्रियों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की है. इसी तरह के परिदृश्य अन्य राज्यों में भी हुए हैं, जैसे जे जयललिता, एआर अंतुले और लालू प्रसाद यादव के मामले, जिनमें से सभी ने अपने खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी के बाद इस्तीफा दे दिया था.
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