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'डिजिटल हाउस अरेस्ट', कहीं अगला नंबर आपका तो नहीं? सुरक्षा एजेंसियों के लिए भी बना बुरा सपना - Digital House Arrest

Digital House Arrest : साइबर अपराधियों द्वारा गढ़ा गया एक नया शब्द 'डिजिटल हाउस अरेस्ट' कानून लागू करने वाली एजेंसियों के लिए बड़ा सिरर्दद बन गया है. इसे देखते हुए भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र I4C ने हाल ही में वित्तीय धोखाधड़ी के पीड़ितों की सहायता के लिए एक टोल-फ्री नंबर 1930 जारी है. पढ़ें पूरी खबर...

Digital House Arrest
डिजिटल हाउस अरेस्ट (IANS)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 9, 2024, 7:35 PM IST

Updated : May 9, 2024, 8:00 PM IST

नई दिल्ली: डिजिटल हाउस अरेस्ट साइबर अपराधियों द्वारा गढ़ा गया एक नया शब्द है जो तेजी से बढ़ती डिजिटल दुनिया में लोगों को धोखा देने के लिए लगातार नए तरीके खोज रहे हैं. इस नए तरीके में घोटालेबाज पुलिस अधिकारी, सीबीआई या सीमा शुल्क अधिकारी होने का नाटक करते हैं और लोगों को घर पर बंधक बनाकर रखने के लिए बुलाते हैं. फिर वे पीड़ित का बैंक खाता खाली कर देते हैं. हाल ही में इस तरह की जालसाजी के कई मामले सामने आए हैं.

वहीं, कानून लागू करने वाली एजेंसियों द्वारा शुरू किए गए व्यापक जागरूकता अभियान के तहत साइबर अपराधियों का यह नया टर्म 'डिजिटल गिरफ्तारी' एक बड़ा सिरदर्द बन गया है. विशेष रूप से साइबर अपराधियों से लड़ने के लिए नियुक्त साइबर एजेंसियों के लिए. इस मुद्दे पर बात करते हुए भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) के निदेशक निशांत कुमार ने ईटीवी भारत से कहा कि 'डिजिटल गिरफ्तारी' के जरीए काफी ठगी हो रही है.

उन्होंने कहा कि हम इस मामले से अवगत हैं. साइबर अपराधी नकली पुलिस या नकली सीबीआई अधिकारी बनकर भोले-भाले नागरिकों को ऑनलाइन ठग रहे हैं. हम इस मुद्दे को लेकर काफा गंभीरता से काम किया जा रहा है. कुमार ने कहा कि इस मामाले की गंभीरता को देखते हुए, सरकार ने सभी ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी की रिपोर्ट करने के लिए एक टोल-फ्री नंबर 1930 लॉन्च किया है. इसके साथ ही उन्होंने आगे कहा कि इस मामले में नागरिक जागरूकता भी बहुत जरूरी है ताकि साइबर अपराधी उन्हें अपना शिकार न बना सकें.

क्या होता है डिजिटल हाउस अरेस्ट?
डिजिटल हाउस अरेस्ट एक नया शब्द है जिसे ऐसी स्थिति का वर्णन करने के लिए गढ़ा गया है जहां साइबर अपराधी पुलिस अधिकारी, ट्राई अधिकारी, सीबीआई या सीमा शुल्क अधिकारी होने का दिखावा करके लोगों को डराते हैं, इसके साथ ही उनके बैंक खाते खाली करने की कार्यवाही से पहले उन्हें घर पर बंधक बनाकर रखते हैं. घोटालेबाज कानून प्रवर्तन का दिखावा करके नकली स्काइप अकाउंट बना लेते है और बाद में पीड़ित के बैंक खातों से सारा पैसा उड़ा लेते हैं.

डिजिटल हाउस अरेस्ट की ताजा घटनाएं
मार्च के बाद से, दिल्ली, मुंबई और उत्तर प्रदेश से डिजिटल हाउस अरेस्ट के चार अलग-अलग मामले सामने आए हैं, जहां साइबर अपराधियों ने सेवानिवृत्त कर्मियों सहित विभिन्न लोगों से करोड़ों रुपये की ठगी की. वहीं, वाराणसी की साइबर क्राइम पुलिस ने अप्रैल के पहले भाग के दौरान इस तरह के डिजिटल हाउस अरेस्ट धोखाधड़ी में शामिल आठ अपराधियों को गिरफ्तार किया है और उनके पास से 3.70 लाख रुपये नकद, मोबाइल फोन, चेक बुक और एटीएम कार्ड भी बरामद किए .

I4C द्वारा किया गया हस्तक्षेप
साइबर अपराध के खिलाफ लड़ाई में राष्ट्रीय स्तर पर एक नोडल बिंदु के रूप में कार्य करने के लिए गृह मंत्रालय (एमएचए) के तहत भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) की स्थापना की गई है. I4C का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है, जो साइबर अपराधों की रोकथाम, पता लगाने, जांच और अभियोजन में शिक्षा, उद्योग, जनता और सरकार को एक साथ लाता है.

बता दें, नई दिल्ली में MHA द्वारा भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) की स्थापना की गई थी. I4C ने हाल ही में वित्तीय धोखाधड़ी के पीड़ितों की सहायता के लिए एक टोल-फ्री नंबर 1930 लॉन्च किया है. जानकारी के मुताबिक, डीपफेक तकनीक के उपयोग से, ऐसे अपराधी पीड़ित को समझाने के लिए आवाज और छवि बदलते हैं. कई मौकों पर डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल कर अपराधी पीड़ितों को व्हाट्सएप कॉलिंग करते हैं.

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नई दिल्ली: डिजिटल हाउस अरेस्ट साइबर अपराधियों द्वारा गढ़ा गया एक नया शब्द है जो तेजी से बढ़ती डिजिटल दुनिया में लोगों को धोखा देने के लिए लगातार नए तरीके खोज रहे हैं. इस नए तरीके में घोटालेबाज पुलिस अधिकारी, सीबीआई या सीमा शुल्क अधिकारी होने का नाटक करते हैं और लोगों को घर पर बंधक बनाकर रखने के लिए बुलाते हैं. फिर वे पीड़ित का बैंक खाता खाली कर देते हैं. हाल ही में इस तरह की जालसाजी के कई मामले सामने आए हैं.

वहीं, कानून लागू करने वाली एजेंसियों द्वारा शुरू किए गए व्यापक जागरूकता अभियान के तहत साइबर अपराधियों का यह नया टर्म 'डिजिटल गिरफ्तारी' एक बड़ा सिरदर्द बन गया है. विशेष रूप से साइबर अपराधियों से लड़ने के लिए नियुक्त साइबर एजेंसियों के लिए. इस मुद्दे पर बात करते हुए भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) के निदेशक निशांत कुमार ने ईटीवी भारत से कहा कि 'डिजिटल गिरफ्तारी' के जरीए काफी ठगी हो रही है.

उन्होंने कहा कि हम इस मामले से अवगत हैं. साइबर अपराधी नकली पुलिस या नकली सीबीआई अधिकारी बनकर भोले-भाले नागरिकों को ऑनलाइन ठग रहे हैं. हम इस मुद्दे को लेकर काफा गंभीरता से काम किया जा रहा है. कुमार ने कहा कि इस मामाले की गंभीरता को देखते हुए, सरकार ने सभी ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी की रिपोर्ट करने के लिए एक टोल-फ्री नंबर 1930 लॉन्च किया है. इसके साथ ही उन्होंने आगे कहा कि इस मामले में नागरिक जागरूकता भी बहुत जरूरी है ताकि साइबर अपराधी उन्हें अपना शिकार न बना सकें.

क्या होता है डिजिटल हाउस अरेस्ट?
डिजिटल हाउस अरेस्ट एक नया शब्द है जिसे ऐसी स्थिति का वर्णन करने के लिए गढ़ा गया है जहां साइबर अपराधी पुलिस अधिकारी, ट्राई अधिकारी, सीबीआई या सीमा शुल्क अधिकारी होने का दिखावा करके लोगों को डराते हैं, इसके साथ ही उनके बैंक खाते खाली करने की कार्यवाही से पहले उन्हें घर पर बंधक बनाकर रखते हैं. घोटालेबाज कानून प्रवर्तन का दिखावा करके नकली स्काइप अकाउंट बना लेते है और बाद में पीड़ित के बैंक खातों से सारा पैसा उड़ा लेते हैं.

डिजिटल हाउस अरेस्ट की ताजा घटनाएं
मार्च के बाद से, दिल्ली, मुंबई और उत्तर प्रदेश से डिजिटल हाउस अरेस्ट के चार अलग-अलग मामले सामने आए हैं, जहां साइबर अपराधियों ने सेवानिवृत्त कर्मियों सहित विभिन्न लोगों से करोड़ों रुपये की ठगी की. वहीं, वाराणसी की साइबर क्राइम पुलिस ने अप्रैल के पहले भाग के दौरान इस तरह के डिजिटल हाउस अरेस्ट धोखाधड़ी में शामिल आठ अपराधियों को गिरफ्तार किया है और उनके पास से 3.70 लाख रुपये नकद, मोबाइल फोन, चेक बुक और एटीएम कार्ड भी बरामद किए .

I4C द्वारा किया गया हस्तक्षेप
साइबर अपराध के खिलाफ लड़ाई में राष्ट्रीय स्तर पर एक नोडल बिंदु के रूप में कार्य करने के लिए गृह मंत्रालय (एमएचए) के तहत भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) की स्थापना की गई है. I4C का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है, जो साइबर अपराधों की रोकथाम, पता लगाने, जांच और अभियोजन में शिक्षा, उद्योग, जनता और सरकार को एक साथ लाता है.

बता दें, नई दिल्ली में MHA द्वारा भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) की स्थापना की गई थी. I4C ने हाल ही में वित्तीय धोखाधड़ी के पीड़ितों की सहायता के लिए एक टोल-फ्री नंबर 1930 लॉन्च किया है. जानकारी के मुताबिक, डीपफेक तकनीक के उपयोग से, ऐसे अपराधी पीड़ित को समझाने के लिए आवाज और छवि बदलते हैं. कई मौकों पर डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल कर अपराधी पीड़ितों को व्हाट्सएप कॉलिंग करते हैं.

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Last Updated : May 9, 2024, 8:00 PM IST
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