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कोंडागांव में प्यार के देवता, यहां पूरी होती है आशिकों की मन्नतें ! - Love Story in Chhattisgarh

Kondagaon Somi Dhami Love Story: कोंडागांव में सोमी-धामी दो भाई पूजे जाते हैं. इनका प्यार अधूरा रह गया था. हालांकि आज इनके दर पर जो भी आता है और अपने प्यार के पूरे होने की मन्नत मांगता है, उसकी अरदास पूरी हो जाती है.

Kondagaon Somi Dhami
कोंडागांव में पूजे जाते हैं सोमी धामी
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Feb 14, 2024, 10:14 PM IST

सोमी-धामी रुनकी-झुनकी प्रेम कहानी

कोंडागांव: आज वेलेंटाइन डे है, आज के दिन को प्रेमी प्रेमिका खास तरीके से सेलिब्रेट करते हैं. इस मौके पर हम आपको छत्तीसगढ़ की एक लव स्टोरी के बारे में बताने जा रहा है. ये जोड़े खुद तो मिल न सकें, लेकिन अब दूसरे जोड़ों को मिलाने का वरदान देते हैं. दरअसल, हम बात कर रहे हैं कोंडागांव के सोमी-धामी और रुनकी-झुनकी की.

कोंडागांव सोमी-धामी की लव स्टोरी : छत्तीसगढ़ के बस्तर की धरती पर भी प्रेमी-प्रेमिकाओं से जुड़ी कई कहानियां छिपी हुई है, जिसमें अधूरी प्रेम कहानी भी है. झिटकू-मिटकी की अमर प्रेम कथा है तो साथ में सोमी-धामी और रूनकी-झुनकी की अधूरी प्रेम गाथा भी है. भले ही इनका प्रेम परवान नहीं चढ़ पाया हो पर वे आज भी देवी-देवता बनकर लोगों की प्रेम कहानी के साथ ही अन्य मन्नतों को पूरा कर रहे है.

महिलाओं का जाना है वर्जित: कोंडागांव जिला मुख्यालय से तकरीबन 12 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत सोनाबाल है. जहां सेठिया परिवार की संख्या अधिक है. उनके साथ ही अब गांव वाले भी हर तीज-त्यौहार से पहले सोमी-धामी को देवता के रूप में पूजने लगे है. गांव के बाहर ही एक पेड़ के नीचे चबूतरे पर अक्सर विशेष अवसरों पर सोमी-धामी की पूजा ग्रामीणों द्वारा की जाती है. खास बात यह है कि इनके पूजा स्थल के पास महिलाओ का आना वर्जित है.

ऐसे हुई उनके प्यार की शुरुआत: सोमी-धामी और रुनकी-झुनकी की प्रेम कथा के बारे में अधिक जानकारी के लिए ईटीवी भारत ने लोक कला और साहित्यकार खेम वैष्णव से बातचीत की. बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि, "कोंडागांव से लगे ग्राम सम्बलपुर से दो लड़के सोमी और धामी रोजगार की तलाश में सोनाबाल पहुचे थे. ये दोनों सेठिया परिवार के यहां काम करने लगे. काम के दौरान रूनकी और झूनकी नाम की दो युवतियों के साथ सोमी और धामी की नजरें टकराई. इनको एक दूसरे से प्यार हो गया. ये प्यार परवान चढ़ने लगा. इस बीच जब घर वालों के साथ गांव वालों को इस प्यार की खबर लगी, तो इसका विरोध होने लगा. इससे डर से सोमी और धामी एक कोठी में जाकर छुप गए. कोठी में अलसी भरा हुआ था. अलसी की कोठी में छिपे सोमी और धामी की वहीं मौत हो गई थी."

सोमी धामी की याद में सती हो गई रूनकी झुनकी: कई दिनों से लापता सोमी-धामी दोनों भाई की खोज जारी थी. चूंकि अलसी की कोठी के तरफ लोगों का आना-जाना नहीं होता था, इसलिए वहां पर छिपे दोनों भाईयों का पता नहीं चल पाया. सेठिया परिवार के बुजुर्ग गायब हुए सोमी-धामी की तलाश लगातार करते रहे. महीनों बाद पता चला की अलसी की कोठी में छिपे सोमी-धामी की मौत हो गई. जब इस बात की जानकरी रूनकी और झुनकी को लगी, तब अपने प्यार की याद में दोनों सती हो गईं.

भले ही सोमी और धामी का प्यार अधूरा रह गया हो, लेकिन पर आज भी उनके दर पर जो भी फरियाद लेकर आता है उनकी मन्नतें जरूर पूरी होती है. खासकर अपने प्यार को पाने लिए लोग मन्नत मांगते हैं. हालांकि रुनकी-झुनकी सती हुईं थीं. महिलाएं दैवीय प्रकोप से प्रभावित न हो जाए, इसलिए इनके मंदिर में महिलाओं का प्रवेश निषेध है. यहां तक कि इनका प्रसाद भी महिलाए नहीं खाती है. -खेम वैष्णव, लोक कला और साहित्यकार

घरवाले हो गए परेशान: सोमी और धामी दोनों भाइयों की मौत के बाद सेठिया परिवार परेशानियों से घिर गया. परेशानी को दूर करने के लिए सेठिया परिवार के पूर्वजों ने बस्तर रियासत से नरसिंह नाथ सहित अन्य देवी-देवताओं को इस मामले के निराकरण के लिए सोनाबल गांव में आमंत्रित किया था. इन्हीं देवताओं ने बताया कि सोमी और धामी को अब देवता के रूप में पूजना होगा. इसके बाद से उनका परिवार और गांव वाले दशकों से सोमी और धामी की पूजा-अर्चना करते आ रहे है.

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सोमी-धामी रुनकी-झुनकी प्रेम कहानी

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कोंडागांव सोमी-धामी की लव स्टोरी : छत्तीसगढ़ के बस्तर की धरती पर भी प्रेमी-प्रेमिकाओं से जुड़ी कई कहानियां छिपी हुई है, जिसमें अधूरी प्रेम कहानी भी है. झिटकू-मिटकी की अमर प्रेम कथा है तो साथ में सोमी-धामी और रूनकी-झुनकी की अधूरी प्रेम गाथा भी है. भले ही इनका प्रेम परवान नहीं चढ़ पाया हो पर वे आज भी देवी-देवता बनकर लोगों की प्रेम कहानी के साथ ही अन्य मन्नतों को पूरा कर रहे है.

महिलाओं का जाना है वर्जित: कोंडागांव जिला मुख्यालय से तकरीबन 12 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत सोनाबाल है. जहां सेठिया परिवार की संख्या अधिक है. उनके साथ ही अब गांव वाले भी हर तीज-त्यौहार से पहले सोमी-धामी को देवता के रूप में पूजने लगे है. गांव के बाहर ही एक पेड़ के नीचे चबूतरे पर अक्सर विशेष अवसरों पर सोमी-धामी की पूजा ग्रामीणों द्वारा की जाती है. खास बात यह है कि इनके पूजा स्थल के पास महिलाओ का आना वर्जित है.

ऐसे हुई उनके प्यार की शुरुआत: सोमी-धामी और रुनकी-झुनकी की प्रेम कथा के बारे में अधिक जानकारी के लिए ईटीवी भारत ने लोक कला और साहित्यकार खेम वैष्णव से बातचीत की. बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि, "कोंडागांव से लगे ग्राम सम्बलपुर से दो लड़के सोमी और धामी रोजगार की तलाश में सोनाबाल पहुचे थे. ये दोनों सेठिया परिवार के यहां काम करने लगे. काम के दौरान रूनकी और झूनकी नाम की दो युवतियों के साथ सोमी और धामी की नजरें टकराई. इनको एक दूसरे से प्यार हो गया. ये प्यार परवान चढ़ने लगा. इस बीच जब घर वालों के साथ गांव वालों को इस प्यार की खबर लगी, तो इसका विरोध होने लगा. इससे डर से सोमी और धामी एक कोठी में जाकर छुप गए. कोठी में अलसी भरा हुआ था. अलसी की कोठी में छिपे सोमी और धामी की वहीं मौत हो गई थी."

सोमी धामी की याद में सती हो गई रूनकी झुनकी: कई दिनों से लापता सोमी-धामी दोनों भाई की खोज जारी थी. चूंकि अलसी की कोठी के तरफ लोगों का आना-जाना नहीं होता था, इसलिए वहां पर छिपे दोनों भाईयों का पता नहीं चल पाया. सेठिया परिवार के बुजुर्ग गायब हुए सोमी-धामी की तलाश लगातार करते रहे. महीनों बाद पता चला की अलसी की कोठी में छिपे सोमी-धामी की मौत हो गई. जब इस बात की जानकरी रूनकी और झुनकी को लगी, तब अपने प्यार की याद में दोनों सती हो गईं.

भले ही सोमी और धामी का प्यार अधूरा रह गया हो, लेकिन पर आज भी उनके दर पर जो भी फरियाद लेकर आता है उनकी मन्नतें जरूर पूरी होती है. खासकर अपने प्यार को पाने लिए लोग मन्नत मांगते हैं. हालांकि रुनकी-झुनकी सती हुईं थीं. महिलाएं दैवीय प्रकोप से प्रभावित न हो जाए, इसलिए इनके मंदिर में महिलाओं का प्रवेश निषेध है. यहां तक कि इनका प्रसाद भी महिलाए नहीं खाती है. -खेम वैष्णव, लोक कला और साहित्यकार

घरवाले हो गए परेशान: सोमी और धामी दोनों भाइयों की मौत के बाद सेठिया परिवार परेशानियों से घिर गया. परेशानी को दूर करने के लिए सेठिया परिवार के पूर्वजों ने बस्तर रियासत से नरसिंह नाथ सहित अन्य देवी-देवताओं को इस मामले के निराकरण के लिए सोनाबल गांव में आमंत्रित किया था. इन्हीं देवताओं ने बताया कि सोमी और धामी को अब देवता के रूप में पूजना होगा. इसके बाद से उनका परिवार और गांव वाले दशकों से सोमी और धामी की पूजा-अर्चना करते आ रहे है.

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