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जनसंघ के जमाने में UCC बना चुनावी मुद्दा, बीजेपी ने घोषणापत्र में किया शामिल, जानिये कैसा रहा यूनिफॉर्म सिविल कोड का सफर

Uniform Civil Code Journey, Uniform Civil Code in BJP politics उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल विधानसभा में पास हो चुका था. अब इसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल चुकी है. जिसके बाद उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की तैयारी कर दी गई है. मगर क्या आपको पता है भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड कहां से आया? बीजेपी ने इसे कब अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया? इसे लेकर कब क्या हुआ? आइये आपको बताते हैं.

Journey to Uniform Civil Code
यूनिफॉर्म सिविल कोड का सफर
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 2, 2024, 7:37 PM IST

Updated : Mar 13, 2024, 2:17 PM IST

देहरादून(उत्तराखंड): देशभर में इन दिनों यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर चर्चाएं आम हैं. पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में धामी सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की तैयारी में है. उत्तराखंड विधानसभा में यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल पास हो गया है. जिसके बाज उत्तराखंड का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है. यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल को राज्यपाल की मंजूरी के बाद राष्ट्रपति के पास भेजा गया था. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है जहां यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने जा रहा है.

हिंदू कोड बिल ने ली यूसीसी की जगह: यूनिफॉर्म सिविल कोड के सबसे बड़े पक्षधर बाबा साहब अंबेडकर थे. वे इसे लागू करना चाहते थे. जिससे कारण बाबा साहब अंबेडकर को संसद में काफी विरोध हुआ. इसके बाद उन्होंने इस्तीफा भी दिया. जवाहरलाल नेहरू और उनकी महिला समर्थक भी यूसीसी के पक्ष में थे, मगर विरोध के कारण उन्होंने भी इसे लागू नहीं किया. इसकी जगह तब हिंदू कोड बिल का खाका तैयार किया गया.

जनसंघ ने उठाया यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा: आगामी लोकसभा चुनाव से पहले यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू कर बीजेपी बड़ा संदेश देना चाहती है. यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा आज का नहीं है. ये मुद्दा कई दशकों से चल रहा है. 1962 में जनसंघ ने हिंदू मैरिज एक्ट और हिंदू उत्तराधिकार विधेयक वापस लेने की बात कही. इसके बाद जनसंघ ने 1967 के उत्तराधिकार और गोद लेने के लिए एक समान कानून की बात की. 1971 में भी वादा दोहराया. 1977 और 1980 में इस मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई.

1980 में हुआ बीजेपी का गठन: 1967 के आम चुनाव में जनसंघ ने चुनाव जीतने पर देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का वादा किया था लेकिन 1967 के आम चुनाव में जनसंघ की हार हुई. इसके बाद कुछ सालों तक यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा गायब रहा. इसके बाद साल 1980 जनता पार्टी टूटी. इसी साल जनता पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ, जिसमें 17-14 के बहुमत से जनसंघ से आये नेताओं को पार्टी के बाहर करने का फैसला लिया गया और इसके बाद बीजेपी का गठन हुआ. बीजेपी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी बने. तब संगठन की जिम्मेदारी लाल कृष्ण आडवानी से संभाली. तब अटल बिहारी के दिए 'सूरज उगेगा, अंधेरा छटेगा, कमल खिलेगा' स्लोगन के साथ बीजेपी ने 1984 में पहली बार चुनाव लड़ा. हालांकि तब बीजेपी की केवल 2 सीटें आई.

शाह बानो प्रकरण के बाद फिर यूसीसी चर्चाओं में आया: इसी बीच शाह बानो प्रकरण हुआ. जिसके बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे ने रफ्तार पकड़ी. 1986-87 में लालकृष्ण आडवानी ने बीजेपी को मजबूत करने की कोशिशें की. उन्हें इसमें संघ और विहिप का साथ मिला. ये वो समय था जब देश में राम जन्मभूमि का आंदोलन जोर पकड़ रहा था. इसके बाद देश में 1989 में 9वां लोकसभा चुनाव हुआ, जिसमें बीजेपी ने राम मंदिर, यूनिफॉर्म सिविल कोड को अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया. 1989 में बीजेपी की सीटों की संख्या बढ़कर 85 पहुंची. इस चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला लेकिन कांग्रेस 197 सीटों के साथ सबसे बड़े पार्टी रही. हालांकि, जनता दल और दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों की मदद से नेशनल फ्रंट की सरकार बनी. हालांकि, ये सरकार 16 महीने ही चल सकी और साल 1991 में देश में 10वां मध्यावधि चुनाव हुआ.

1991 को लोकसभा चुनाव में बीजेपी के घोषणापत्र में शामिल: 1991 में बीजेपी को और लाभ हुआ और उनकी सीटों की संख्या बढ़कर 100 के पार हो गई. इन लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड, राम मंदिर, धारा 370 के मुद्दों को जमकर उठाया. ये सभी मुद्दे बीजेपी के चुनावी घोषणापत्र में शामिल थे, मगर संख्या बल के कारण ये पूरे नहीं हो पाए थे.

आती-जाती रही गठबंधन की सरकारें: इसके बाद 1996 में बीजेपी ने 13 दिन के लिए सरकार बनाई. 1998 में बीजेपी ने 13 महीने सरकार चलाई. 1999 में बीजेपी ने अपने सहयोगियों के साथ बहुमत से सरकार बनाई. तब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने. इस बीच बीजेपी के मुद्दे रह रह कर उछाले जाते रहे. इसके बाद 2005 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की हार हुई. तब कांग्रेस ने सहयोगियों के साथ सरकार बनाई.

2014 में मोदी सरकार ने लिया एक्शन: इसके बाद साल 2014 में पहली बार बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई और केंद्र में मोदी सरकार आई. मोदी सरकार ने पूरे जोर-शोर से अपने चुनावी वादों पर काम करना शुरू किया. इसमें सबसे पहले मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को खत्म किया. इसके बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड और राम मंदिर को लेकर आंदोलन तेज किया गया. बता दें कि, यूसीसी बीजेपी के मुख्‍य तीन एजेंडों में हमेशा ही शामिल रहा है. जम्‍मू-कश्‍मीर से अनुच्‍छेद-370 को हटाने और अयोध्‍या राममंदिर निर्माण के बाद अब बीजेपी देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए काम कर रही है.

2024 लोकसभा चुनाव का मुद्दा है यूसीसी: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले यूसीसी लागू करवाना बीजेपी के एजेंडा का सबसे मुख्य हिस्सा है. पीएम मोदी खुद कई बार समान नागरिक संहिता को लेकन बयान दे चुके हैं. कई चुनावी रैलियों से लेकर वक्तव्यों के दौरान पीएम देश की दोहरी व्‍यवस्‍था पर सवाल उठा चुके हैं. पीएम कह चुके हैं कि भारत देश को समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है क्योंकि देश 'अलग-अलग समुदायों के लिए अलग कानून' की दोहरी प्रणाली के साथ नहीं चल सकता है.

उत्तराखंड में यूसीसी लागू करने की तैयारी: इसी बीच उत्तराखंड में साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने यूसीसी के मुद्दे को सर्वोपरि रखते हुए वादा किया था कि सरकार बनते ही इसपर काम किया जाएगा. हुआ भी ऐसा ही, चुनाव में बीजेपी की बंपर जीत हुई और जीत होते ही उत्तराखंड बीजेपी की धामी सरकार ने यूसीसी के लिए कमेटी का गठन किया. जिसमें डेढ साल में यूसीसी का ड्राफ्ट तैयार किया. अब विधानसभा में प्रस्तुत करने के बाद उत्तराखंड में यूसीसी लागू किए जाने की औपचारिकताओं पर काम किया जाएगा और सबकुछ पूरा होने के बाद यूसीसी लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन जाएगा.

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देहरादून(उत्तराखंड): देशभर में इन दिनों यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर चर्चाएं आम हैं. पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में धामी सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की तैयारी में है. उत्तराखंड विधानसभा में यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल पास हो गया है. जिसके बाज उत्तराखंड का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है. यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल को राज्यपाल की मंजूरी के बाद राष्ट्रपति के पास भेजा गया था. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है जहां यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने जा रहा है.

हिंदू कोड बिल ने ली यूसीसी की जगह: यूनिफॉर्म सिविल कोड के सबसे बड़े पक्षधर बाबा साहब अंबेडकर थे. वे इसे लागू करना चाहते थे. जिससे कारण बाबा साहब अंबेडकर को संसद में काफी विरोध हुआ. इसके बाद उन्होंने इस्तीफा भी दिया. जवाहरलाल नेहरू और उनकी महिला समर्थक भी यूसीसी के पक्ष में थे, मगर विरोध के कारण उन्होंने भी इसे लागू नहीं किया. इसकी जगह तब हिंदू कोड बिल का खाका तैयार किया गया.

जनसंघ ने उठाया यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा: आगामी लोकसभा चुनाव से पहले यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू कर बीजेपी बड़ा संदेश देना चाहती है. यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा आज का नहीं है. ये मुद्दा कई दशकों से चल रहा है. 1962 में जनसंघ ने हिंदू मैरिज एक्ट और हिंदू उत्तराधिकार विधेयक वापस लेने की बात कही. इसके बाद जनसंघ ने 1967 के उत्तराधिकार और गोद लेने के लिए एक समान कानून की बात की. 1971 में भी वादा दोहराया. 1977 और 1980 में इस मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई.

1980 में हुआ बीजेपी का गठन: 1967 के आम चुनाव में जनसंघ ने चुनाव जीतने पर देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का वादा किया था लेकिन 1967 के आम चुनाव में जनसंघ की हार हुई. इसके बाद कुछ सालों तक यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा गायब रहा. इसके बाद साल 1980 जनता पार्टी टूटी. इसी साल जनता पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ, जिसमें 17-14 के बहुमत से जनसंघ से आये नेताओं को पार्टी के बाहर करने का फैसला लिया गया और इसके बाद बीजेपी का गठन हुआ. बीजेपी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी बने. तब संगठन की जिम्मेदारी लाल कृष्ण आडवानी से संभाली. तब अटल बिहारी के दिए 'सूरज उगेगा, अंधेरा छटेगा, कमल खिलेगा' स्लोगन के साथ बीजेपी ने 1984 में पहली बार चुनाव लड़ा. हालांकि तब बीजेपी की केवल 2 सीटें आई.

शाह बानो प्रकरण के बाद फिर यूसीसी चर्चाओं में आया: इसी बीच शाह बानो प्रकरण हुआ. जिसके बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे ने रफ्तार पकड़ी. 1986-87 में लालकृष्ण आडवानी ने बीजेपी को मजबूत करने की कोशिशें की. उन्हें इसमें संघ और विहिप का साथ मिला. ये वो समय था जब देश में राम जन्मभूमि का आंदोलन जोर पकड़ रहा था. इसके बाद देश में 1989 में 9वां लोकसभा चुनाव हुआ, जिसमें बीजेपी ने राम मंदिर, यूनिफॉर्म सिविल कोड को अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया. 1989 में बीजेपी की सीटों की संख्या बढ़कर 85 पहुंची. इस चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला लेकिन कांग्रेस 197 सीटों के साथ सबसे बड़े पार्टी रही. हालांकि, जनता दल और दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों की मदद से नेशनल फ्रंट की सरकार बनी. हालांकि, ये सरकार 16 महीने ही चल सकी और साल 1991 में देश में 10वां मध्यावधि चुनाव हुआ.

1991 को लोकसभा चुनाव में बीजेपी के घोषणापत्र में शामिल: 1991 में बीजेपी को और लाभ हुआ और उनकी सीटों की संख्या बढ़कर 100 के पार हो गई. इन लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड, राम मंदिर, धारा 370 के मुद्दों को जमकर उठाया. ये सभी मुद्दे बीजेपी के चुनावी घोषणापत्र में शामिल थे, मगर संख्या बल के कारण ये पूरे नहीं हो पाए थे.

आती-जाती रही गठबंधन की सरकारें: इसके बाद 1996 में बीजेपी ने 13 दिन के लिए सरकार बनाई. 1998 में बीजेपी ने 13 महीने सरकार चलाई. 1999 में बीजेपी ने अपने सहयोगियों के साथ बहुमत से सरकार बनाई. तब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने. इस बीच बीजेपी के मुद्दे रह रह कर उछाले जाते रहे. इसके बाद 2005 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की हार हुई. तब कांग्रेस ने सहयोगियों के साथ सरकार बनाई.

2014 में मोदी सरकार ने लिया एक्शन: इसके बाद साल 2014 में पहली बार बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई और केंद्र में मोदी सरकार आई. मोदी सरकार ने पूरे जोर-शोर से अपने चुनावी वादों पर काम करना शुरू किया. इसमें सबसे पहले मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को खत्म किया. इसके बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड और राम मंदिर को लेकर आंदोलन तेज किया गया. बता दें कि, यूसीसी बीजेपी के मुख्‍य तीन एजेंडों में हमेशा ही शामिल रहा है. जम्‍मू-कश्‍मीर से अनुच्‍छेद-370 को हटाने और अयोध्‍या राममंदिर निर्माण के बाद अब बीजेपी देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए काम कर रही है.

2024 लोकसभा चुनाव का मुद्दा है यूसीसी: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले यूसीसी लागू करवाना बीजेपी के एजेंडा का सबसे मुख्य हिस्सा है. पीएम मोदी खुद कई बार समान नागरिक संहिता को लेकन बयान दे चुके हैं. कई चुनावी रैलियों से लेकर वक्तव्यों के दौरान पीएम देश की दोहरी व्‍यवस्‍था पर सवाल उठा चुके हैं. पीएम कह चुके हैं कि भारत देश को समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है क्योंकि देश 'अलग-अलग समुदायों के लिए अलग कानून' की दोहरी प्रणाली के साथ नहीं चल सकता है.

उत्तराखंड में यूसीसी लागू करने की तैयारी: इसी बीच उत्तराखंड में साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने यूसीसी के मुद्दे को सर्वोपरि रखते हुए वादा किया था कि सरकार बनते ही इसपर काम किया जाएगा. हुआ भी ऐसा ही, चुनाव में बीजेपी की बंपर जीत हुई और जीत होते ही उत्तराखंड बीजेपी की धामी सरकार ने यूसीसी के लिए कमेटी का गठन किया. जिसमें डेढ साल में यूसीसी का ड्राफ्ट तैयार किया. अब विधानसभा में प्रस्तुत करने के बाद उत्तराखंड में यूसीसी लागू किए जाने की औपचारिकताओं पर काम किया जाएगा और सबकुछ पूरा होने के बाद यूसीसी लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन जाएगा.

यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की तैयारी में धामी सरकार, उत्तराखंड में मचा घमासान, एक क्लिक में जानें यूसीसी ड्राफ्ट से जुड़ी सभी बातें

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Last Updated : Mar 13, 2024, 2:17 PM IST
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