नई दिल्ली : भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि यह भारत जैसे देशों के लिए वाणिज्यिक मध्यस्थता की संस्कृति को बढ़ावा देने का समय है. उन्होंने जोर देकर कहा, 'सिर्फ संस्थानों का निर्माण पर्याप्त नहीं है, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि ये नए संस्थान किसी स्व-उत्पीड़न गुट द्वारा नियंत्रित न हो.'
यूनाइटेड किंगडम के सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार शाम को बोलते हुए, सीजेआई ने कहा कि पारदर्शिता और जवाबदेही, वे मूल्य जिनके द्वारा पारंपरिक अदालतों के काम का मूल्यांकन और आलोचना की जाती है, मध्यस्थता की दुनिया से अलग नहीं हो सकते. उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि भारत जैसे देशों को वाणिज्यिक मध्यस्थता की संस्कृति बनाने और बढ़ावा देने के लिए आगे आना चाहिए और मध्यस्थता का मजबूत संस्थागतकरण वैश्विक दक्षिण में मध्यस्थता की संस्कृति को आगे बढ़ाएगा.
उन्होंने कहा कि 'लेकिन केवल संस्थाओं का निर्माण ही पर्याप्त नहीं है. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि ये नए संस्थान किसी स्वयं-उत्पीड़ित गुट द्वारा नियंत्रित न हों. ये संस्थान मजबूत व्यावसायिकता की नींव और लगातार मध्यस्थता प्रक्रियाओं को उत्पन्न करने की क्षमता पर आधारित होने चाहिए.'
सीजेआई ने पूरक विवाद समाधान तंत्र से दुनिया भर में वाणिज्यिक संस्थाओं के लिए प्राथमिक पसंद के रूप में मध्यस्थता के विकास पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि 'मध्यस्थता अब कोई विकल्प नहीं है. यह वास्तव में व्यावसायिक न्याय पाने का पसंदीदा तरीका है.'
कार्यक्रम के दौरान, यूके सुप्रीम कोर्ट के प्रेसिडेंट लॉर्ड रीड ने सीजेआई को अपने भाषण के दौरान अध्यक्ष की सीट पर बैठने का अनूठा विशेषाधिकार दिया. सीजेआई ने कहा कि 2023 में उच्च न्यायालयों द्वारा 21 लाख मामलों का निपटारा करने और जिला न्यायालयों द्वारा 4.4 करोड़ मामलों का निपटारा करने के बावजूद भारत में अदालतों पर अत्यधिक बोझ है. उन्होंने कहा कि ये आंकड़े दिखाते हैं कि भारत के लोगों को अपनी न्यायपालिका और 'हमारी न्यायपालिका' पर कितना भरोसा है. जो इस मंत्र पर काम करता है कि कोई भी मामला छोटा या बड़ा नहीं होता.'