देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का महकमा खुद पारदर्शी तबादला नीति से अछूता है. यहां ऊर्जा विभाग के अंतर्गत उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPCL) में ना तो किसी ट्रांसफर पॉलिसी का पालन किया जा रहा है और ना ही तबादलों में कोई पारदर्शिता दिखाई देती है. ऐसा सालों से एक ही पद पर जमे उन अभियंताओं की सूची को देखकर कहा जा रहा है, जो मजबूत तबादला नीति के रहते तो कतई इस पर काबिज नहीं हो सकते थे. बहरहाल UPCL में ट्रांसफर पॉलिसी को लेकर क्या है स्थिति, और पॉलिसी होते हुए भी क्यों नहीं हो पा रही पारदर्शी व्यवस्था, आइए जानते हैं.
ऊर्जा विभाग में लागू नहीं हो रही ट्रांसफर पॉलिसी! उत्तराखंड में पारदर्शी तबादला नीति और निष्पक्ष तबादले हमेशा एक बड़ा मुद्दा रहे हैं. लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि सीएम धामी के ऊर्जा विभाग में ही पूरी तरह से इस नीति को लागू नहीं किया जा सका है. ऊर्जा निगम में तबादलों को लेकर तमाम कर्मचारी संगठन भी सवाल खड़े करते रहे हैं. चहेते अधिकारी और कर्मचारियों को मनमाफिक पोस्टिंग की बात भी कही जाती रही है. इन तमाम आरोपों के बावजूद तमाम कर्मियों को सालों तक एक ही जगह पर जमे रहने का मौका मिल रहा है.
15 साल से एक जगह जमे हैं इंजीनियर: ईटीवी भारत के पास मौजूद एक्सक्लूसिव जानकारी के अनुसार उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) में दर्जनों अभियंता लंबे समय से एक ही पोस्टिंग का आनंद ले रहे हैं. ऊर्जा निगम द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, राज्य भर में कुल 357 अभियंताओं में से 96 अभियंता ऐसे हैं जो 5 साल या इससे भी ज्यादा समय से एक ही जगह पर तैनाती लिए हुए हैं. इन आंकड़ों को और विस्तृत रूप में देखें तो 28 अभियंता ऐसे हैं, जो 10 साल या इससे भी ज्यादा समय से एक तैनाती पर डटे हैं. 07 अभियंता 15 साल या इससे भी अधिक समय से एक ही जगह पर अपना खूंटा गाड़े हुए हैं.
क्या कहते हैं ऊर्जा निगम के कर्मचारी नेता? दरअसल, यूपीसीएल से ईटीवी भारत को 357 एग्जीक्यूटिव इंजीनियर (EE) और असिस्टेंट इंजीनियर (AE) की जानकारी मिली है. इसमें बड़ी संख्या में इन अभियंताओं को सालों साल तक स्थानांतरित नहीं किए जाने की बात सामने आई है.
इस मामले में ऊर्जा निगम के ही कर्मचारी नेता राकेश शर्मा कहते हैं कि ऊर्जा निगम प्रबंधन मजबूत ट्रांसफर नीति को लागू ही नहीं कर रहा है. निगम में कोई भी पारदर्शी तबादला नीति लागू नहीं होने के कारण मनमाफिक तबादले किए जा रहे हैं. इतना ही नहीं, निगम में चहेते कर्मचारी और अधिकारियों को महत्वपूर्ण पोस्टिंग दी जा रही है. कई सालों से ऐसे कर्मचारी एक ही पोस्टिंग पर जमे रहते हैं.
ऊर्जा निगम ने लागू नहीं की अपने राज्य की तबादला नीति! ऐसा नहीं है कि राज्य के पास पारदर्शी तबादला नीति ना हो. प्रदेश भर के लिए राज्य सरकार ने पारदर्शी और समयबद्धता वाली तबादला नीति तैयार की है. लेकिन ऊर्जा निगम इसे खुद पर लागू नहीं मानता. हालांकि ऊर्जा निगम ने उत्तर प्रदेश की तबादला नीति को संशोधित रूप में लागू किया है. यानी ऊर्जा निगम की अपनी 2003 की तबादला नीति मौजूद है और इसके निगम में लागू होने की बात भी कही जाती है. इस नीति के अनुसार-
सुगम, दुर्गम और कम सुगम तीन तरह की पोस्टिंग ऊर्जा निगम के लिए चिन्हित की गई हैं. इसमें बारी बारी तबादले का प्रावधान है. नीति में स्पष्ट है कि सेवाकाल में कर्मी को दुर्गम/कम सुगम वाली 2 तैनाती लेनी होगी. इसमें न्यूनतम 6 साल काम करना होगा.
इसके साथ ही साल में एक बार तबादले होंगे और जून पहले हफ्ते तक तबादला प्रक्रिया को पूरा कर लिया जाएगा. निदेशकों की समिति अधिकारियों की तैनाती का अध्ययन करेगी. एक ही जगह कई सालों से तैनात अधिकारियों के मामले में कार्रवाई भी करेगी. एक खंड में 3 साल से ज्यादा समय तक तैनाती नहीं रखी जाएगी.
इसलिए कमजोर है ट्रांसफर पॉलिसी: वैसे तो इस पॉलिसी में तबादले को लेकर स्थितियां स्पष्ट की गई हैं, लेकिन ऊर्जा निगम की यह तबादला पॉलिसी कई जगहों पर प्रबंधन को तबादले के लिए ऐसी छूट दे देती है, जो अनिवार्य तबादले के लिए ट्रांसफर पॉलिसी को कमजोर कर देती है. इस बिनाह पर तबादलों में मनमर्जी का मौका जिम्मेदारों को मिल जाता है.
ऊर्जा सचिव ने क्या कहा? इस मामले पर ईटीवी भारत ने ऊर्जा सचिव से भी बात की. कई सालों से एक ही जगह पर अभियंताओं के टिके रहने के सवाल पर ऊर्जा सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम ने कहा कि-
इस मामले का परीक्षण करवाया जाएगा. ऊर्जा निगम के प्रबंध निदेशक से बात करने के बाद निगम में मौजूद पॉलिसी पर मौजूदा स्थिति की भी जानकारी ली जाएगी. साथ ही पॉलिसी के अनुसार नियम फॉलो करवाए जाएंगे.
ऊर्जा निगम के कर्मचारी कर रहे पारदर्शी ट्रांसफर पॉलिसी की मांग: बात केवल एग्जीक्यूटिव इंजीनियर या अस्सिटेंट इंजीनियर की नहीं है, बल्कि जूनियर इंजीनियर से लेकर अकाउंट सेक्शन और निगम मुख्यालय तक में भी ऐसे कर्मचारियों की बड़ी फौज मौजूद है, जो 5 साल या इससे अधिक समय से एक ही जगह पर तैनाती लिए हुए है. यह बात सबसे ज्यादा चिंताजनक इसलिए है, क्योंकि ऊर्जा विभाग खुद मुख्यमंत्री संभाले हुए हैं. यदि उनके विभाग में ही पारदर्शी तबादला नीति लागू नहीं होती है, तो इससे कई सवाल भी खड़े होते हैं. उधर उत्तर प्रदेश से ली गई तबादला नीति में मामूली संशोधन के बजाय निगम में एक मजबूत और पारदर्शी ट्रांसफर पॉलिसी लागू होने की पहल खुद निगम के कर्मचारी भी करते रहे हैं.
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