श्रीनगर: लेह ओल्ड टाउन अपनी पारंपरिक लद्दाखी वास्तुकला और ऐतिहासिक प्रासंगिकता के लिए जाना जाता है, यह क्षेत्र की सांस्कृतिक और स्थापत्य पहचान को दर्शाता है. इसकी विशेषता संकरी गलियां, मिट्टी की ईंटों से बने घर और सदियों पुराने मठ और घर हैं जो लद्दाख के समृद्ध इतिहास की गवाही देते हैं. लेह ओल्ड टाउन प्रोजेक्ट 2006 के यूनेस्को एशिया-पैसिफिक हेरिटेज अवार्ड्स में विजेता प्रविष्टियों में से एक था. लेह ओल्ड टाउन के पारंपरिक घर 200-300 साल पुराने बताए जाते हैं.
लेह ओल्ड टाउन इनिशिएटिव (LOTI), जो पहले तिब्बत हेरिटेज फंड का हिस्सा था, इस अनूठी विरासत को संरक्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर काम कर रहा है. 2003 में आंद्रे अलेक्जेंडर द्वारा स्थापित इस पहल की शुरुआत कुछ घरों की बहाली से हुई, जिन्हें ध्वस्त किए जाने और आधुनिक सीमेंट संरचनाओं द्वारा प्रतिस्थापित किए जाने का खतरा था.
लेह हिमालय क्षेत्र के अंतिम संरक्षित शहरों में से एक है और तिब्बती-हिमालयी शहरी बस्ती का एक दुर्लभ उदाहरण है. ऐतिहासिक शहर में लगभग दो सौ इमारतें हैं, जिनमें कई बौद्ध मंदिर और मस्जिदें शामिल हैं. यह चट्टानी पहाड़ी की दक्षिणी ढलान पर स्थित है, जिस पर लेह महल का प्रभुत्व है.
विरासत संरक्षित
हर घर हिमालयी स्थानीय वास्तुकला का एक उदाहरण है और संकरी गलियों की भूलभुलैया लेह पुराने शहर के शहरी ताने-बाने की अनूठी विशेषता है. इसके अलावा पुराना शहर स्थानीय समुदाय का घर है, जो सदियों से अपने पुश्तैनी घरों में रहते हैं. लेह का पुराना शहर अभी भी लद्दाख की जीवित विरासत को संरक्षित करता है और शहर का संरक्षण एक महत्वपूर्ण कार्य है, ताकि इसे अनियोजित आधुनिकीकरण की लहर से मिटने से बचाया जा सके.
ओल्ड टाउन का सर्वे
लेह ओल्ड टाउन इनिशिएटिव (LOTI) के प्रोजेक्ट मैनेजर स्टैनजिन डॉल्कर ने बताया, "संस्थापक आंद्रे अलेक्जेंडर ने 2003 में पहली बार लद्दाख का दौरा किया और ओल्ड टाउन का सर्वे भी किया. उस समय ज़्यादातर स्थानीय लोगों ने अपने पारंपरिक घरों को छोड़कर उन्हें तोड़कर आधुनिक कंक्रीट के घर बनाने की योजना बनाई थी. हमने जिन पहले दो घरों को बहाल किया, वे थे नोचुंग हाउस और सोफी हाउस. जब ये रीस्टोरेशन पूरा हो गया, तो लोगों को एहसास हुआ कि परिणाम सुंदर थे और ज़्यादा परिवारों ने अपने घरों को संरक्षित करने में रुचि दिखाई. 2003 से हमने लेह शहर और आस-पास के गांवों में मठों, संग्रहालयों और मस्जिदों सहित 40 घरों को बहाल किया."
मिट्टी और स्थानीय रूप से उपलब्ध मैटेरियस से बने पारंपरिक लद्दाखी घर, स्वाभाविक रूप से इस क्षेत्र की जलवायु के अनुकूल हैं, जो सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडे रहते हैं. इसके अलावा, उन्होंने उचित जल निकासी व्यवस्था के साथ चूना पत्थर से फुटपाथ बनाए हैं.
पारंपरिक और आधुनिक सीमेंट घरों के बीच अंतर पर चर्चा करते हुए, वह कहती हैं, "आज कई घर सीमेंट से बने हैं, लेकिन यह देखते हुए कि लद्दाख साल के ज़्यादातर समय ठंडा रहता है, यह कुछ चुनौतियां पेश करता है. आधुनिक सीमेंट घरों में रहने वाले लोग अक्सर घुटने के दर्द और पीठ दर्द जैसी समस्याओं का अनुभव करते हैं. इसके विपरीत, मिट्टी और स्थानीय रूप से प्राप्त मैटेरियल से बने हमारे पारंपरिक घर सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडे रहते हैं. सीमेंट के घरों को गर्म करने के लिए बहुत ज़्यादा ऊर्जा की जरूरत होती है, जिससे अनावश्यक ऊर्जा की बर्बादी होती है. दूसरी ओर, पारंपरिक मिट्टी के घरों को गर्म करने के लिए बहुत कम ऊर्जा की जरूरत होती है और वे पर्यावरण के लिए ज़्यादा अनुकूल होते हैं."