देहरादून: उत्तराखंड में चारधाम यात्रा पर श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा है. साथ ही लोगों में चारधाम दर्शन के लिए गजब का उत्साह देखने को मिल रहा है. वहीं चारधाम यात्रा में आने वाले श्रद्धालुओं को अमूमन यही मालूम होता है कि उन्हें गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ धाम के दर्शन करके वापस आना है. लेकिन इन चार धामों में जाने वाले श्रद्धालुओं को बहुत कम यह मालूम होगा कि चारधाम के साथ-साथ कई ऐसे स्थान हैं, जहां के बारे में यह कहा जाता है कि अगर आपने इन स्थानों के दर्शन नहीं किया तो आपकी यात्रा अधूरी मानी जाएगी. लाखों श्रद्धालु हालांकि इन पड़ाव पर जरूर पहुंचते हैं. लेकिन चारधामों में से दो धाम ऐसे हैं, जहां पर कुछ अलग मान्यताएं और इन धामों से भी कुछ अलग धार्मिक स्थान का बड़ा महत्व है. जिनके बारे में हम आपको विस्तार से बताएंगे.
इस मंदिर में यात्रा से पहले जाना है जरूरी: चारधाम यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं को अपनी यात्रा हरिद्वार से शुरू करनी होती है. हालांकि अब सरकार ने यात्रियों की व्यवस्था को देखते हुए चारधाम यात्रा की शुरुआत ऋषिकेश से भी शुरू की है. लेकिन हरिद्वार और ऋषिकेश के बीच में एक स्थान ऐसा है, जहां के बारे में कहा जाता है कि चारधाम यात्रा शुरू करने से पहले भगवान नारायण से इजाजत जरूर लेनी होती है. मंदिर का लगभग 600 सालों का इतिहास लोगों के पास मौजूद है. लेकिन कहा जाता है कि इस मंदिर की पौराणिकता इससे भी कई वर्षों से है. आज भी चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालु इस मंदिर पर माथा टेक कर अपनी यात्रा की शुरुआत करते हैं. हरिद्वार ऋषिकेश के बीच में स्थित पौराणिक सत्यनारायण मंदिर हरिद्वार से लगभग 17 किलोमीटर दूर मौजूद है.
मंदिर में दूर-दूर से पहुंचते हैं श्रद्धालु: पुराणों में सत्यनारायण मंदिर की महिमा का बखान किया गया है. स्कंद पुराण में इस मंदिर के बारे में भी विस्तार से उल्लेख मिलता है. चारधाम यात्रा शुरू करने से पूर्व यात्री यहां पर विश्राम करके भगवान सत्यनारायण का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते. इसके साथ ही पौराणिक मान्यता के अनुसार इस मंदिर को बदरीनाथ धाम की प्रथम चट्टी के रूप में माना जाता है. 1532 में बाबा काली कमली वाले ने इसकी स्थापना की थी, इसके दस्तावेज आज भी मंदिर के पास मौजूद हैं. चारधाम यात्रा शुरू करने वाले श्रद्धालु भगवान के दर्शन कर आगे की यात्रा पर निकलते हैं. चारधाम के सीजन में रोजाना इस मंदिर में सैकड़ों श्रद्धालु देखने को मिलते हैं. अगर आप भी चारधाम यात्रा पर आ रहे हैं तो हरिद्वार ऋषिकेश राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित भगवान सत्यनारायण मंदिर के दर्शन जरूर करें, यहां पर 600 वर्ष पुरानी मूर्ति भी आपको दिखाई दे जाएगी.
क्या आप ने किए हैं भगवान बदरीनाथ की माता के दर्शन: बदरीनाथ जाने वाले श्रद्धालु अमूमन बदरीनाथ के दर्शन करके ही वापस आ जाते हैं. लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम है कि बदरीनाथ से लगभग 3 किलोमीटर दूरी पर भगवान बदरी-विशाल की माता का मंदिर है. भगवान बदरी-विशाल की माता का मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे मौजूद है. कहा जाता है कि माता मूर्ति ने भगवान विष्णु की तपस्या करने के बाद यह प्रार्थना की थी कि भगवान विष्णु उनकी कोख से जन्म लें, तभी भगवान विष्णु ने नर और नारायण के रूप में माता के गर्भ से जन्म लिया था.
भगवान नर और नारायण की माता का मंदिर: इस मंदिर में बहुत कम लोग जाते हैं, लेकिन मंदिर की महत्ता बदरीनाथ धाम की तरह ही मानी जाती है. हालांकि अष्टमी और चतुर्दशी के दिन इस मंदिर में अत्यधिक भीड़ रहती है. लेकिन बदरीनाथ जाने वाले श्रद्धालुओं में से आज भी बहुत कम लोगों को मालूम है कि बदरीनाथ धाम जाकर इस धाम के दर्शन भी करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही घर में सुख शांति और समृद्धि रहती है. मंदिर समिति से जुड़े और तीर्थ पुरोहित आशुतोष डिमरी कहते हैं कि मान्यता के अनुसार जो भक्त बदरीनाथ आता है, वह माता के मंदिर और व्यास गुफा में जरूर जाए. क्योंकि दोनों ही स्थान का बड़ा महत्व है.
श्रद्धालुओं को हनुमान चट्टी पर रुकना पड़ता है: बदरीनाथ धाम में एक और स्थान ऐसा है, जहां के बारे में यह कहा जाता है कि बदरीनाथ धाम में प्रवेश करने से पहले भगवान हनुमान के मंदिर में माथा जरूर झुकाना पड़ता है. यह मंदिर बदरीनाथ मंदिर से 13 किलोमीटर पहले है. इस मंदिर पर श्रद्धालुओं की यात्रा के दौरान भारी भीड़ उमड़ती है. महाभारत काल में जब पांडव द्रौपदी के साथ वन में वास कर रहे थे, तब द्रौपदी ने भीम को नदी में बहते हुए ब्रह्म कमल को लाने के लिए कहा. जैसे ही भीम नदी से ब्रह्म कमल को निकालने के लिए आगे बढ़े तो वैसे ही एक वानर उनके रास्ते में लेटा हुआ था.
हनुमान जी ने दिए थे भीम को दर्शन: भीम ने उस वानर को हटने के लिए कहा, लेकिन उसने अपनी उम्र का हवाला देते हुए कहा कि अगर आप उसकी पूंछ को एक तरफ कर देंगे तो बेहतर रहेगा. इसके बाद भीम ने जैसे ही उनकी पूंछ को एक तरफ हटाने की कोशिश की तो उस वानर की पूंछ भीम से नहीं हिली. भीम ने प्रार्थना की आप कोई सामान्य वानर नहीं हैं, आप अपने स्वरूप में आकर मुझे दर्शन दें. तब भगवान हनुमान ने भीम को इसी जगह पर दर्शन दिए थे. लिहाजा बदरीनाथ जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह धाम में पहुंचने से पहले एक बड़ा धार्मिक स्थल होता है. कई श्रद्धालु सीधे ही बदरीनाथ धाम निकल जाते हैं, लेकिन जो लोग इस स्थान के महत्व को जानते हैं, वह एक बार माथा टेक कर ही आगे बढ़ते हैं.
केदारनाथ में इन मंदिर का करें दर्शन: भगवान केदारनाथ के धाम में भी एक मंदिर ऐसा है, जहां पर माथा टेकने के बिना यात्रा अधूरी मानी जाती है. यह स्थान केदारनाथ से कुछ दूरी पर स्थित है, जो भगवान भैरवनाथ का मंदिर है. इस मंदिर से केदारनाथ की पूरी वैली आपको बेहद खूबसूरत दिखाई देती है. इस स्थान के बारे में यह भी कहा जाता है कि भगवान भैरव नाथ ही पूरी केदारनाथ घाटी और केदारनाथ मंदिर के संरक्षक देवता हैं. लिहाजा केदारनाथ धाम में दर्शन करने वाले श्रद्धालु मंदिर से आधा किलोमीटर दूर स्थित इस भैरव मंदिर के दर्शन करने के लिए भी पहुंचते हैं.
बाबा भैरवनाथ केदारनाथ के संरक्षक देवता: मान्यता के अनुसार इस मंदिर और भगवान भैरव को यहां पर खुद भगवान शिव ने स्थापित किया था. ताकि इस पूरी घाटी पर बुरी आत्माओं और नकारात्मक शक्तियों की नजर ना पड़ सके और भगवान भैरव इस पूरे क्षेत्र का ध्यान रखें. धर्माचार्य प्रतीक मिश्रा पुरी कहते हैं कि हमारे शास्त्रों और ग्रंथों में भगवान भैरव की व्याख्या बड़े स्तर पर की गई है और भगवान केदारनाथ में स्थित भैरव का मंदिर अपने आप में अलौकिक और पौराणिक हैं. ऐसे में केदारनाथ यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं को भैरव मंदिर के भी दर्शन करने अनिवार्य हैं.
पढ़ें-