हैदराबाद: पूर्व मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव को झटका देते हुए तेलंगाना उच्च न्यायालय ने सोमवार को उनकी रिट याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने पिछले बीआरएस शासन के दौरान बिजली क्षेत्र में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए जांच आयोग के गठन को अवैध घोषित करने की मांग की थी. मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और अनिल कुमार जुकांति की पीठ ने राव द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया.
अपनी याचिका में पूर्व मुख्यमंत्री ने तेलंगाना सरकार द्वारा जारी सरकारी आदेश को अवैध घोषित करने की मांग की है. इस आदेश में तेलंगाना बिजली वितरण कंपनियों द्वारा छत्तीसगढ़ से बिजली की खरीद और टीएस जेनको द्वारा मनुगुरु में भद्राद्री थर्मल पावर प्लांट और दामरचेरला में यदाद्री थर्मल प्लांट के निर्माण पर तत्कालीन सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों की सत्यता और औचित्य पर न्यायिक जांच करने के लिए जांच आयोग का गठन किया गया है.
चंद्रेशेखर राव, जिन्हें केसीआर के नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने जांच आयोग के प्रमुख के रूप में न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एल नरसिम्हा रेड्डी को जारी रखने की मांग की, जिसे अवैध घोषित किया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी आग्रह किया कि गवाहों के खिलाफ सबूत पेश करने के लिए आयोग के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश देने वाला पत्र जारी करना मनमाना है.
आयोग के समक्ष उपस्थित होने के लिए उन्हें जारी पत्र और न्यायमूर्ति नरसिम्हा रेड्डी द्वारा आयोजित मीडिया वार्ता पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए राव ने 15 जून को आरोप लगाया कि पैनल अध्यक्ष का कामकाज निष्पक्ष नहीं रहा है. 12 पृष्ठों के खुले पत्र में राव ने कहा कि आयोग का नेतृत्व कर रहे सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एल नरसिम्हा रेड्डी को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए.
न्यायमूर्ति रेड्डी को संबोधित पत्र में केसीआर ने जून 2014 से पहले तेलंगाना में विद्यमान विद्युत क्षेत्र के कथित संकट को दूर करने के लिए अपनी पिछली सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर विस्तार से प्रकाश डाला, जब उनकी सरकार ने नए राज्य के गठन के साथ कार्यभार संभाला था.
यह कहते हुए कि उनकी सरकार राज्य के सभी क्षेत्रों में 24x7 बिजली की आपूर्ति करने में सफल रही है, राव ने आरोप लगाया कि वर्तमान कांग्रेस सरकार ने 'स्पष्ट राजनीतिक मकसद से और पूर्ववर्ती सरकार को बदनाम करने के लिए' जांच आयोग का आदेश दिया था.