नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा छात्रों को लेकर बड़ा आदेश दिया है. शीर्ष अदालत ने सोमवार को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) द्वारा जारी निर्देशों के अमल पर रोक लगा दी, जिसमें राज्यों से गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में शिफ्ट करने का आग्रह किया गया था.
यह मामला भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आया, जिसमें जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे.
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद की पैरवी की. पीठ के समक्ष यह तर्क दिया गया कि बाल अधिकार निकाय NCPCR के निर्देशों और कुछ राज्यों की कार्रवाइयों पर रोक लगाने की आवश्यकता है.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सरकारों की उस कार्रवाई को चुनौती दी है, जिसमें गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में शिफ्ट करने का निर्देश दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि इस वर्ष 7 जून और 25 जून को जारी बाल अधिकार निकाय के निर्देशों पर अमल नहीं किया जाना चाहिए तथा राज्यों के कार्रवाई आदेशों पर भी रोक रहेगी.
राज्यों को याचिका में पक्षकार बनाने की अनुमति
जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ता को याचिका में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पक्षकार बनाने की स्वतंत्रता दी जाए. सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम संगठन को उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा के अलावा अन्य राज्यों को अपनी याचिका में पक्षकार बनाने की अनुमति दी. याचिका अधिवक्ता फुजैल अहमद अय्यूबी के जरिये दायर की गई थी.
याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत में दावा किया कि ये निर्णय संविधान के अनुच्छेद 30 के अनुसार धार्मिक अल्पसंख्यकों को शिक्षा प्रदान करने के अधिकार का उल्लंघन है.
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