नई दिल्ली/देहरादून: उत्तराखंड में जंगल आग से धधक रहे हैं, जिससे वन संपदा को नुकसान पहुंच रहा है. वहीं आज सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड में जंगल की आग के संबंध में एक याचिका पर सुनवाई हुई. मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ में हुई. उत्तराखंड में पिछले साल 1 नवंबर से अब तक 910 आग लगने की घटनाएं सामने आई हैं, जिससे करीब 1145 हेक्टेयर जंगलों को नुकसान पहुंचा है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में 8 मई की तिथि नियत की है.
गौर हो कि याचिकाकर्ता ऋतुपर्ण उनियाल ने पीठ को बताया कि उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में करीब 44 प्रतिशत जंगल जल रहे हैं. जिसमें से से 90 प्रतिशत आग मानव जनित है, जो चौंकाने वाला मामला है. पीठ ने पक्षकार के वकील से सवाल किया कि आप कह रहे हैं कि उत्तराखंड में आग की चपेट में 44 प्रतिशत जंगल हैं? जिस पर वकील ने हामी भरी. पक्षकार के वकील ने पीठ को बताया कि पूरा क्षेत्र चीड़ के पेड़ों से ढका हुआ है. जिसके बाद उत्तराखंड सरकार के वकील ने मौजूदा स्थिति के संबंध में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए अदालत से अनुमति मांगी.
सुप्रीम कोर्ट में ऋतुपर्ण उनियाल ने याचिका दायर की थी, जिसमें उत्तराखंड के जंगलों, वन्यजीवों और पक्षियों को आग से बचाने के लिए कदम उठाने की मांग की गई थी. ऋतुपर्ण उनियाल ने याचिका में बताया कि कुछ सालों में प्रदेश में जंगलों में आग लगने की घटनाओं में इजाफा हुआ है, जिस कारण पर्यावरण को बड़े पैमाने पर नुकसान होता है. वहीं याचिका में केंद्र, उत्तराखंड सरकार और उत्तराखंड मुख्य वन संरक्षक को आग से पहले की व्यवस्था करने और जंगल की आग को रोकने के लिए एक नीति बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है. साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि पर्वतीय राज्यों में गर्मियों के दौरान जंगलों में आग गंभीर समस्या है. जिसका मुख्य कारण अधिकांश क्षेत्रों में चीड़ के जंगलों की बाहुल्यता को बताया था, जो अत्यधिक ज्वलनशील होता है.
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