नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि उसे नाबालिग लड़की से यौन अपराध को लेकर दिए कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले में खामियां साफ नजर आ रही हैं. हाई कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के एक यौन उत्पीड़न के मामले में आरोपी को बरी कर दिया और किशोरियों को यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखने की सलाह देते हुए आपत्तिजनक टिप्पणियां की.
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि एक जज को किसी भी मामले पर निर्णय लेना होता है, उपदेश नहीं देना होता और कोर्ट के फैसले में विभिन्न विषयों पर जज की व्यक्तिगत राय शामिल नहीं हो सकती.
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुयान की पीठ ने कहा कि आक्षेपित फैसले में कई कथन और निष्कर्ष हैं, जो बेहद चौंकाने वाले हैं. फैसले में खामिया साफ नजर आ रही हैं, जिसे फैसले के कई पैराग्राफ में देखा जा सकता है.
'टिप्पणियां पूरी तरह अप्रासंगिक'
पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने स्कूल के कोर्स में रीप्रोडक्टिव हेल्थ और स्वच्छता के पहलुओं को शामिल करने पर जोर दिया है. पीठ की ओर से 50 पन्नों का फैसला लिखने वाले जस्टिस ओका ने कहा, "विवाद को तय करने के लिए ये टिप्पणियां पूरी तरह अप्रासंगिक हैं."
जस्टिस ओका ने कहा कि निर्णय में अप्रासंगिक और अनावश्यक कंटेंट नहीं होनी चाहिए और निर्णय सरल भाषा में होना चाहिए. इसमें बहुत अधिक शब्द नहीं होने चाहिए. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हमें याद रखना चाहिए कि निर्णय न तो कोई थीसिस है और न ही साहित्य का कोई अंश.
यह एक जघन्य अपराध
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट की खंडपीठ ने आईपीसी की धारा 376(2)(एन) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराधों से निपटने के दौरान गैर-शोषणकारी यौन कृत्यों की एक बहुत ही अजीब अवधारणा को आमंत्रित किया है. जस्टिस ओका ने कहा, "हम यह समझने में विफल हैं कि एक यौन कृत्य, जो एक जघन्य अपराध है, उसे गैर-शोषणकारी कैसे कहा जा सकता है. जब चौदह साल की लड़की के साथ ऐसा भयानक कृत्य किया जाता है, तो इसे गैर-शोषणकारी कैसे कहा जा सकता है?"
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट भूल गया कि वह सोलह साल से अधिक आयु के किशोरों से संबंधित यौन कृत्यों से नहीं निपट रहा था, क्योंकि पीड़िता की आयु उस समय चौदह वर्ष थी और आरोपी की उम्र 25 साल थी. जस्टिस ओका ने कहा कि आईपीसी की धारा 375 अठारह साल से कम आयु की लड़की के साथ उसकी सहमति से या उसकी बिना इजाजत के यौन संबंध को बलात्कार का अपराध बनता है. इसलिए, क्या ऐसा अपराध किसी रोमांटिक रिश्ते से उत्पन्न होता है, यह अप्रासंगिक है. एक ऐसा कृत्य जो POCSO अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध है, उसे 'रोमांटिक संबंध' कैसे कहा जा सकता है?
पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले की आलोचना की थी और हाई कोर्ट द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों को अत्यधिक आपत्तिजनक और पूरी तरह से अनुचित करार दिया था और हाई कोर्ट की खंडपीठ द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों का संज्ञान लिया था. साथ ही सुप्रीम कोर्ट अपने आप ही एक रिट याचिका शुरू की थी. इसके अलावा पश्चिम बंगाल सरकार ने भी हाई कोर्ट के 18 अक्टूबर, 2023 के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें ये "आपत्तिजनक टिप्पणियां" की गई थीं.