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सुप्रीम कोर्ट पहुंचा राजभवन यौन उत्पीड़न मामला, पीड़ित महिला ने राज्यपाल की छूट को दी चुनौती - West Bengal Raj Bhavan

Supreme Court: पश्चिम बंगाल राजभवन की महिला कर्मचारी ने राज्यपाल सीवी आनंद बोस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. महिला ने याचिका में कहा है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट (ANI)
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By Sumit Saxena

Published : Jul 4, 2024, 12:10 PM IST

Updated : Jul 4, 2024, 1:31 PM IST

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल राजभवन की एक महिला कर्मचारी ने राज्यपाल सीवी आनंद बोस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. महिला कर्मचारी ने आरोप लगाया है कि राज्यपाल ने उसके साथ यौन उत्पीड़न किया और राज्यपाल को दी गई संवैधानिक छूट के कारण उसे कोई राहत नहीं मिली.

याचिकाकर्ता ने कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अपने अधिकार का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रही है, क्योंकि वह राजभवन परिसर में ही राज्यपाल के किए यौन उत्पीड़न से पीड़ित है.

याचिका में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत दी गई व्यापक छूट के कारण याचिकाकर्ता को कोई राहत नहीं मिली है और इसलिए वह सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए बाध्य है. बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 361 (2) के अनुसार राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत में कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू या जारी नहीं रखी जा सकती है.

'ऐसी शक्तियों को पूर्ण नहीं समझा जा सकता'
याचिका में अनुच्छेद 361 का हवाला देते हुए दलील दी गई है कि ऐसी शक्तियों को पूर्ण नहीं समझा जा सकता है, जिससे राज्यपाल को ऐसे कार्य करने का अधिकार मिल जाए जो अवैध हैं या जो संविधान के भाग III पर हमला करते हैं. यह छूट पुलिस की अपराध की जांच करने या शिकायत/एफआईआर में अपराधी का नाम दर्ज करने की शक्तियों को कम नहीं कर सकती.

राज्यपाल के लिए लिए दिशानिर्देश निर्धारित की जाएं
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि राज्यपाल अनुच्छेद 361 के तहत दी गई छूट का प्रयोग किस सीमा तक कर सकता है, इसके लिए दिशानिर्देश और योग्यताएं निर्धारित की जाएं. महिला ने बताया कि उसने इस संबंध में राजभवन को एक शिकायत भी लिखी थी, जिसमें उसने अपनी शिकायतों को उजागर किया था, लेकिन संबंधित अधिकारियों ने उसे अपमानित किया और मीडिया में भी उसका मजाक उड़ाया गया. इतना ही नहीं उसे एक पॉलिटिक्ल टूल करार दिया गया, जिसमें उसके आत्म-सम्मान की कोई सुरक्षा नहीं की गई

'राज्यपाल को लैंगिक हिंसा करने की अनुमति नहीं'
याचिका में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है और संवैधानिक प्रतिरक्षा की आड़ में राज्यपाल को किसी भी तरह से अनुचित तरीके से कार्य करने और लैंगिक हिंसा करने की अनुमति नहीं है, जबकि देश के हर दूसरे नागरिक को ऐसा करने से प्रतिबंधित किया गया है और जो सीधे संविधान के तहत याचिकाकर्ता सहित प्रत्येक व्यक्ति को दिए गए मौलिक अधिकारों पर आघात करता है.

यह भी पढ़ें- राज्यपाल बोस ने सीएम ममता के खिलाफ दायर किया मानहानि का मुकदमा, जानें क्या है मामला

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल राजभवन की एक महिला कर्मचारी ने राज्यपाल सीवी आनंद बोस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. महिला कर्मचारी ने आरोप लगाया है कि राज्यपाल ने उसके साथ यौन उत्पीड़न किया और राज्यपाल को दी गई संवैधानिक छूट के कारण उसे कोई राहत नहीं मिली.

याचिकाकर्ता ने कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अपने अधिकार का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रही है, क्योंकि वह राजभवन परिसर में ही राज्यपाल के किए यौन उत्पीड़न से पीड़ित है.

याचिका में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत दी गई व्यापक छूट के कारण याचिकाकर्ता को कोई राहत नहीं मिली है और इसलिए वह सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए बाध्य है. बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 361 (2) के अनुसार राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत में कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू या जारी नहीं रखी जा सकती है.

'ऐसी शक्तियों को पूर्ण नहीं समझा जा सकता'
याचिका में अनुच्छेद 361 का हवाला देते हुए दलील दी गई है कि ऐसी शक्तियों को पूर्ण नहीं समझा जा सकता है, जिससे राज्यपाल को ऐसे कार्य करने का अधिकार मिल जाए जो अवैध हैं या जो संविधान के भाग III पर हमला करते हैं. यह छूट पुलिस की अपराध की जांच करने या शिकायत/एफआईआर में अपराधी का नाम दर्ज करने की शक्तियों को कम नहीं कर सकती.

राज्यपाल के लिए लिए दिशानिर्देश निर्धारित की जाएं
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि राज्यपाल अनुच्छेद 361 के तहत दी गई छूट का प्रयोग किस सीमा तक कर सकता है, इसके लिए दिशानिर्देश और योग्यताएं निर्धारित की जाएं. महिला ने बताया कि उसने इस संबंध में राजभवन को एक शिकायत भी लिखी थी, जिसमें उसने अपनी शिकायतों को उजागर किया था, लेकिन संबंधित अधिकारियों ने उसे अपमानित किया और मीडिया में भी उसका मजाक उड़ाया गया. इतना ही नहीं उसे एक पॉलिटिक्ल टूल करार दिया गया, जिसमें उसके आत्म-सम्मान की कोई सुरक्षा नहीं की गई

'राज्यपाल को लैंगिक हिंसा करने की अनुमति नहीं'
याचिका में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है और संवैधानिक प्रतिरक्षा की आड़ में राज्यपाल को किसी भी तरह से अनुचित तरीके से कार्य करने और लैंगिक हिंसा करने की अनुमति नहीं है, जबकि देश के हर दूसरे नागरिक को ऐसा करने से प्रतिबंधित किया गया है और जो सीधे संविधान के तहत याचिकाकर्ता सहित प्रत्येक व्यक्ति को दिए गए मौलिक अधिकारों पर आघात करता है.

यह भी पढ़ें- राज्यपाल बोस ने सीएम ममता के खिलाफ दायर किया मानहानि का मुकदमा, जानें क्या है मामला

Last Updated : Jul 4, 2024, 1:31 PM IST
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