देहरादून: ग्लोबल वार्मिंग के खतरों को भांपते हुए हिमालय के इको सिस्टम को समझने की कोशिश की जा रही है. धरती का गर्म होना, हिमालय के लिए किन परिस्थितियों को पैदा करेगा, इस पर भी विचार किया जा रहा है. भारत में इसके लिए कई राष्ट्रीय स्तर की संस्थाएं अपने-अपने क्षेत्र के लिहाज से अध्ययन में जुटी हुई हैं. इसी कड़ी में भारतीय वन्यजीव संस्थान तापमान बढ़ने पर वन्यजीव और वनस्पतियों पर पड़ने वाले असर का आकलन कर रहा है. उधर, बाकी कुछ संस्थान हिमालय में ग्लेशियर और बुग्यालों के साथ ही पानी की स्थिति को भी भांपने में जुटे हैं.
दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग पर चिंता जता रहे वैज्ञानिक: दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग की चिंताजनक स्थितियों को महसूस किया जा रहा है. शायद यही कारण है कि दुनिया का हर देश गर्म वातावरण पर नियंत्रण को लेकर चिंतित दिख रहा है., लेकिन हैरानी की बात यह है कि आने वाले खतरे को समझते हुए भी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग के कारणों पर फुलप्रूफ काम नहीं किया जा रहा. हालांकि, समय-समय पर दुनिया भर के वैज्ञानिक इसके लिए अध्ययन को तवज्जो देते रहे हैं. अब तक ग्लोबल वार्मिंग पर कई रिपोर्ट्स भी प्रकाशित हो चुकी हैं.
भारत में हिमालयी इकोसिस्टम पर ग्लोबल वार्मिंग के पड़ने वाले असर को लेकर ऐसा ही एक वृहद अध्ययन शुरू किया जा चुका है. ये अध्ययन न केवल भविष्य में ग्लोबल वार्मिंग के चलते बढ़ने वाले तापमान की संभावना के साथ ग्लेशियर्स और बुग्याल जैसे उच्च हिमालयी क्षेत्रों की स्थिति का आकलन करेगा. बल्कि, यहां मौजूद वन्यजीवों और वनस्पतियों के भविष्य का भी निर्धारण करेगा.
इसके लिए भारत सरकार के स्तर पर जलवायु परिवर्तन को लेकर चलने वाले नेशनल एक्शन प्लान फॉर क्लाइमेट चेंज (NAPCC) कार्यक्रम की खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निगरानी करते हैं. कई मौकों पर उन्होंने इसके लिए लक्ष्य भी तय किए हैं. एनएपीसीसी के अंतर्गत नेशनल मिशन फॉर सस्टेनिंग हिमालय इकोसिस्टम कार्यक्रम में हिमालयी क्षेत्रों का अध्ययन किया जा रहा है. जिसमें भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) देहरादून के वैज्ञानिक वन्यजीव और वनस्पतियों की स्थितियों का आकलन कर रहे हैं.
इसी तरह वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून (WIGH) ग्लेशियर के अध्ययन पर काम कर रहा है. गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान (NIHE) मैदानी क्षेत्र के हालात को समझने की कोशिश कर रहा है. इतना ही नहीं नहीं राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की (NIH) की ओर से हिमालय में बर्फ और पानी पर ग्लोबल वार्मिंग के असर को देखा जा रहा है.
संवेदनशील वन्यजीव और वनस्पतियां होंगी सबसे ज्यादा प्रभावित: ग्लोबल वार्मिंग के चलते सबसे ज्यादा असर संवेदनशील वन्यजीव और वनस्पतियों पर पड़ेगा. वैज्ञानिक मानते हैं कि जिस तेजी के साथ वातावरण गर्म हो रहा है, उसके कारण जो वन्यजीव संवेदनशील हैं उन्हें या तो अपना स्थान छोड़ना होगा या फिर ऐसी प्रजातियां विलुप्त होने के खतरे की तरफ बढ़ जाएंगी.
भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिक एस साथ्यकुमार की मानें तो उच्च हिमालय क्षेत्र में कुछ वन्यजीवों के लिए बेहद पतला सा क्षेत्र ही मुफीद रहता है. ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने पर तापमान बढ़ेंगे और इसका असर उच्च हिमालय क्षेत्र पर भी पड़ेगा. ऐसे में हिम तेंदुए, कस्तूरी मृग, भूरा भालू और हिमालयन मोनल के लिए मुफीद उच्च हिमालय क्षेत्र के ठंडे इलाके डिस्टर्ब होंगे.
ऐसे में इन वन्यजीवों को और अधिक ऊंचे इलाके में पलायन करना होगा. वैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसे क्षेत्र जहां यह पलायन करेंगे, उन्हें रिफ्यूजिया हैबिटेट कहा जाता है. ऐसे स्थान का ही आकलन करते हुए उनके संरक्षण की जरूरत को रिपोर्ट में बताया जाएगा.
IPCC के मॉडल को आधार बनाकर वैज्ञानिक लगाएंगे पूर्वानुमान: इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) के मॉडल पर ही वैज्ञानिक अपना पूरा अध्ययन कर रहे हैं. इस मॉडल के तहत ग्लोबल वार्मिंग के चलते कितने समय में कितना तापमान बढ़ सकता है, ये बताया गया है. साल 2030 तक तापमान बढ़ाने की स्थिति क्या होगी और 2050 तक ग्लोबल वार्मिंग के कारण कितने डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ जाएगा? इस पर एक मॉडल तैयार किया गया है.
इतना ही नहीं साल 2070 और साल 2100 तक तापमान की स्थिति पिछले रिकॉर्ड के आधार पर कहां तक पहुंच जाएगी? यह भी प्रिडिक्ट यानी भविष्यवाणी किया गया है. बस इसी तापमान के आकलन के आधार पर वैज्ञानिक इससे ग्लेशियर, नदियों और वन्यजीवों के साथ वनस्पतियों पर असर को भांप रहे हैं.
ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय पर बदलाव का ये होगा पैटर्न: वैज्ञानिक ये स्पष्ट कर चुके हैं कि धरती गर्म होने के साथ ही हिमालय पर इसका एक अलग असर देखने को मिलेगा. इसमें जैसे-जैसे तापमान बढ़ेंगे, वैसे-वैसे हिमालय पर ट्री लाइन, बुग्याल और ग्लेशियर्स भी ऊपर की ओर खिसकेंगे. यानी हिमालय का स्वरूप बढ़ेगा और खुद को सर्वाइव करवाने के लिए अपने अनुकूल वाले तापमान को पाने के लिए हिमालय में हर वनस्पति और वन्यजीव पर ऊपर की ओर जाएंगे.
उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम और अरुणाचल तक किया जा रहा अध्ययन: वैज्ञानिकों की ओर से यह अध्ययन हिमालयी राज्यों की नदियों पर किया जा रहा है. इसमें उत्तराखंड में भागीरथी बेसिन, हिमाचल में व्यास बेसिन, सिक्किम में तीस्ता बेसिन और अरुणाचल में कमिंग बेसिन पर यह अध्ययन किया जा रहा है. अध्ययन के दौरान नदियों में मौजूद जलीय जीवों पर पड़ने वाले असर को भी देखा जाएगा.
पहले चरण में फिलहाल वैज्ञानिकों ने बेसलाइन तैयार किया है. जिसमें इन सभी जगह पर किन-किन वन्यजीवों की मौजूदगी हैं? इसमें कितने वन्यजीव और वनस्पतियां संवेदनशील हैं. इसके अलावा सभी अहम जानकारियां भी वैज्ञानिकों ने जुटा ली है. वैज्ञानिकों का दावा है कि अगले तीन से चार सालों में इस स्टडी को पूरा कर लिया जाएगा. अध्ययन के दौरान 10 से 15 मॉडल पर एक साथ काम किया जा रहा है.
अध्ययन से संवेदनशील प्रजातियों की भी मिलेगी जानकारी: वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले तीन से चार सालों के भीतर यह अध्ययन पूरा कर लिया जाएगा. अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर न केवल तापमान बढ़ने के साथ होने वाले असर को जाना जा सकेगा. बल्कि, कौन सी प्रजातियां इसमें सबसे ज्यादा प्रभावित होगी. इसकी भी जानकारी मिल सकेगी.
इतना ही नहीं हिमालय क्षेत्र में कितनी ऊंचाई पर किन-किन वन्यजीवों के संरक्षण के लिए स्थितियां बेहतर होगी. इसका भी आकलन सरकार के पास मौजूद होगा. जिसके आधार पर भविष्य के एक्शन प्लान को तैयार किया जा सकेगा. इस दौरान वैज्ञानिक कहते हैं कि उत्तराखंड में उच्च हिमालयी क्षेत्र में कई क्षेत्र को संरक्षित घोषित किया गया है, जिसके कारण प्रदेश में उच्च हिमालयी क्षेत्र की स्थिति बेहतर है.
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