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तेजी से पिघलते ग्लेशियरों को लेकर विशेषज्ञ चिंतित, गढ़वाल यूनिवर्सिटी में विश्वभर के वैज्ञानिकों का मंथन शुरू

तेजी से पिघलते ग्लेशियर्स पर गढ़वाल यूनिवर्सिटी में विश्वभर के वैज्ञानिक तीन दिन तक करेंगे मंथन

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 2 hours ago

Updated : 1 hours ago

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गढ़वाल विवि में सेमिनार (ETV Bharat)

श्रीनगर: ग्लोबल वार्मिंग के कारण तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर्स पर पूरी दुनिया के वैज्ञानिक स्टडी कर रहे हैं. इसी को लेकर उत्तराखंड के हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल में विश्वभर के वैज्ञानिक एकत्र हुए हैं. ये वैज्ञानिक तीन दिन तक तेजी से पिघल रहे ग्लेशियरों पर मंथन करेंगे.

गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के चौरास परिसर में 15 से 17 अक्टूबर तक पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय भारत सरकार के वित्त पोषिण के जरिए डी-आइस प्रोजेक्ट कार्यशाला आयोजित की जा रही है. इस कार्यशाला में यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिख, ग्राज़े यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी ऑस्ट्रिया, इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमेटिकल साइंस चेन्नई, आइज़र पुणे, आईआईटी बॉम्बे, जेआईवाईएस कोलकाता, गढ़वाल विवि के भूगर्भ विभाग के संकाय सदस्य, भौतिकी विभाग और भूगोल विभाग के संकाय सदस्य एवं शोध छात्र प्रतिभाग कर रहे हैं.

Garhwal University
गढ़वाल यूनिवर्सिटी में आयोजित किया गया सेमिनार. (ETV Bharat)

इस कार्यशाला का उद्देश्य ग्लेशियरों पर होने वाले प्रभावों, जलवायु परिवर्तन और उनके भीतर होने वाले देवरिस (पिघले हुए पानी, बर्फ, और अन्य सामग्री) की सांद्रता का अध्ययन किया जाएगा. कार्यशाला में वैज्ञानिक ग्लेशियरों पर डीप स्टडी करेंगे, जिसमें हिमालय ओर आल्प्स पर्वतमाला मुख्य केंद्र बिंदु में रहेंगे. अध्ययन के मुख्य बिंदु कुछ इस प्रकार हैं.

  • ग्लेशियरों का गठन और संरचना: ग्लेशियरों के निर्माण की प्रक्रिया और उनकी संरचना का अध्ययन.
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की चर्चा, जैसे पिघलने की दर में वृद्धि.
  • देवरिस की सांद्रता: ग्लेशियरों में देवरिस के घटकों का अध्ययन, उनकी सांद्रता और पर्यावरणीय प्रभाव.
  • ग्लेशियर की गतिकी: ग्लेशियरों के आंदोलन, गति और प्रवाह की प्रक्रिया का विश्लेषण.

इस दौरान गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के ग्लेशियर वैज्ञानिक एचसी नैनवाल ने बताया कि वैज्ञानिक यूरोप और एशिया की प्रमुख पर्वतमालाओं के मुख्य ग्लेशियरों का अध्धयन कर रहे हैं. वैज्ञानिक इन ग्लेशियरों की जलवायु, पारिस्थितिकी और स्थानीय जल संसाधनों पर अत्यधिक महत्व के सम्बद्ध में अध्ययन कर रहे हैं.

Garhwal University
गढ़वाल यूनिवर्सिटी में जुटे दुनिया भर के वैज्ञानिक. (ETV Bharat)

बुग्यालों में परिवर्तनों के बारे वैज्ञानिकों की चिंता: उन्होंने बताया कि इंडो-स्विस डी-आइस प्रोजेक्ट कार्यशाला उत्तराखंड के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है. विश्व में आ रहे वातावरण के प्रभाव एवं हिमनदों के अचानक ग्लोफ जैसी घटनाओं से आम जनमानस को बचाने के लिए चर्चा की जा रही है. यूरोप के बुग्यालों के साथ-साथ हिमालयन बुग्यालों में हो रहे परिवर्तनों के बारे में गहन चर्चा कर वैज्ञानिकों ने चिंता व्यक्त की है.

वहीं, ग्राजे यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी ऑस्ट्रिया के वैज्ञानिक डॉ. टोबियास बलोच ने बताया कि हिमालय की तरह यूरोप में भी ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिनका मुख्य कारण ग्लोबल वॉर्मिग ही है. अब ग्लेशियर के आसपास भी निर्माण कार्य हो रहे हैं, जिससे प्रदूषण ग्लेशियर की तरफ पहुंच रहा है. उसी कारण से ग्लेशियर पिघल रहे हैं. अगर इसी तरह ग्लेशियर पिघले तो एक वक्त ऐसा आएगा, जब पानी का संकट भी बढ़ जाएगा.

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श्रीनगर: ग्लोबल वार्मिंग के कारण तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर्स पर पूरी दुनिया के वैज्ञानिक स्टडी कर रहे हैं. इसी को लेकर उत्तराखंड के हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल में विश्वभर के वैज्ञानिक एकत्र हुए हैं. ये वैज्ञानिक तीन दिन तक तेजी से पिघल रहे ग्लेशियरों पर मंथन करेंगे.

गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के चौरास परिसर में 15 से 17 अक्टूबर तक पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय भारत सरकार के वित्त पोषिण के जरिए डी-आइस प्रोजेक्ट कार्यशाला आयोजित की जा रही है. इस कार्यशाला में यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिख, ग्राज़े यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी ऑस्ट्रिया, इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमेटिकल साइंस चेन्नई, आइज़र पुणे, आईआईटी बॉम्बे, जेआईवाईएस कोलकाता, गढ़वाल विवि के भूगर्भ विभाग के संकाय सदस्य, भौतिकी विभाग और भूगोल विभाग के संकाय सदस्य एवं शोध छात्र प्रतिभाग कर रहे हैं.

Garhwal University
गढ़वाल यूनिवर्सिटी में आयोजित किया गया सेमिनार. (ETV Bharat)

इस कार्यशाला का उद्देश्य ग्लेशियरों पर होने वाले प्रभावों, जलवायु परिवर्तन और उनके भीतर होने वाले देवरिस (पिघले हुए पानी, बर्फ, और अन्य सामग्री) की सांद्रता का अध्ययन किया जाएगा. कार्यशाला में वैज्ञानिक ग्लेशियरों पर डीप स्टडी करेंगे, जिसमें हिमालय ओर आल्प्स पर्वतमाला मुख्य केंद्र बिंदु में रहेंगे. अध्ययन के मुख्य बिंदु कुछ इस प्रकार हैं.

  • ग्लेशियरों का गठन और संरचना: ग्लेशियरों के निर्माण की प्रक्रिया और उनकी संरचना का अध्ययन.
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की चर्चा, जैसे पिघलने की दर में वृद्धि.
  • देवरिस की सांद्रता: ग्लेशियरों में देवरिस के घटकों का अध्ययन, उनकी सांद्रता और पर्यावरणीय प्रभाव.
  • ग्लेशियर की गतिकी: ग्लेशियरों के आंदोलन, गति और प्रवाह की प्रक्रिया का विश्लेषण.

इस दौरान गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के ग्लेशियर वैज्ञानिक एचसी नैनवाल ने बताया कि वैज्ञानिक यूरोप और एशिया की प्रमुख पर्वतमालाओं के मुख्य ग्लेशियरों का अध्धयन कर रहे हैं. वैज्ञानिक इन ग्लेशियरों की जलवायु, पारिस्थितिकी और स्थानीय जल संसाधनों पर अत्यधिक महत्व के सम्बद्ध में अध्ययन कर रहे हैं.

Garhwal University
गढ़वाल यूनिवर्सिटी में जुटे दुनिया भर के वैज्ञानिक. (ETV Bharat)

बुग्यालों में परिवर्तनों के बारे वैज्ञानिकों की चिंता: उन्होंने बताया कि इंडो-स्विस डी-आइस प्रोजेक्ट कार्यशाला उत्तराखंड के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है. विश्व में आ रहे वातावरण के प्रभाव एवं हिमनदों के अचानक ग्लोफ जैसी घटनाओं से आम जनमानस को बचाने के लिए चर्चा की जा रही है. यूरोप के बुग्यालों के साथ-साथ हिमालयन बुग्यालों में हो रहे परिवर्तनों के बारे में गहन चर्चा कर वैज्ञानिकों ने चिंता व्यक्त की है.

वहीं, ग्राजे यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी ऑस्ट्रिया के वैज्ञानिक डॉ. टोबियास बलोच ने बताया कि हिमालय की तरह यूरोप में भी ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिनका मुख्य कारण ग्लोबल वॉर्मिग ही है. अब ग्लेशियर के आसपास भी निर्माण कार्य हो रहे हैं, जिससे प्रदूषण ग्लेशियर की तरफ पहुंच रहा है. उसी कारण से ग्लेशियर पिघल रहे हैं. अगर इसी तरह ग्लेशियर पिघले तो एक वक्त ऐसा आएगा, जब पानी का संकट भी बढ़ जाएगा.

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