नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दायर उस मुकदमे को तत्काल सूचीबद्ध करने पर आदेश पारित करने से बुधवार को इनकार कर दिया जिसमें केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) पर कानून के तहत राज्य से पूर्व अनुमति लिए बगैर चुनाव के बाद हिंसा के मामलों की जांच जारी रखने का आरोप लगाया गया है. मामले में पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ को बताया कि मामले में नौ बार सुनवाई स्थगित की गयी है.
सिब्बल ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि यह मामला न्यायमूर्ति बी आर गवई के नेतृत्व वाली एक पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था. सिब्बल ने कहा, 'मामले को सूचीबद्ध किया जा रहा है लेकिन हम संविधान पीठ के पास आए हैं. क्या इस पर बुधवार या बृहस्पतिवार को सुनवाई हो सकती है.' सीजेआई ने इस पर कोई भी आदेश देने से इनकार करते हुए कहा, 'मैं इस मामले का प्रभारी नहीं हूं. आप उस पीठ के पास जाइए, वे निर्णय लेंगे. हम कोई आदेश नहीं दे रहे हैं.'
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस मामले पर तत्काल सुनवाई की आवश्यकता नहीं है और कुछ दिन इंतजार किया जा सकता है. सिब्बल ने कहा, 'इंतजार नहीं किया जा सकता. मुकदमा 2021 में दायर किया गया था और अब वर्ष 2024 आ गया है.' पश्चिम बंगाल सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत केंद्र के खिलाफ शीर्ष अदालत में एक मूल मुकदमा दायर किया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) पश्चिम बंगाल के न्यायाधिकार क्षेत्र के भीतर प्राथमिकियां दर्ज कर रहा है और अपनी जांच आगे बढ़ा रहा है जबकि संघीय एजेंसी को दी गई जांच करने की मंजूरी वापस ली जा चुकी है.
अनुच्छेद 131 किसी भी राज्य को केंद्र या किसी अन्य राज्य के साथ विवाद की स्थिति में सीधे सर्वोच्च न्यायालय में जाने का अधिकार देता है. पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य में जांच करने और छापे मारने के लिए सीबीआई को दी गई 'आम सहमति' 16 नवंबर 2018 को वापस ले ली थी.
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