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हत्या मामले में अरुण गवली की समय पूर्व रिहाई पर SC ने लगाई रोक - Gangster Arun Gawli case

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jun 3, 2024, 7:41 PM IST

Gangster Arun Gawli Premature Release:सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के एक मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे गैंगस्टर अरुण गवली की समय पूर्व रिहाई पर अगले आदेश तक रोक लगा दी. पीठ ने बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी, जिसने राज्य के अधिकारियों को गवली की समय पूर्व रिहाई के आवेदन पर 2006 की सजा माफी नीति के तहत विचार करने का आदेश दिया था.

Supreme Court of India
सुप्रीम कोर्ट (IANS)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे गैंगस्टर से राजनेता बने अरुण गवली की समयपूर्व रिहाई पर अगले आदेश तक रोक लगा दी. न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और संदीप मेहता की पीठ ने 5 अप्रैल को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ द्वारा पारित आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी. हाईकोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को 2006 की छूट नीति के तहत गवली की समयपूर्व रिहाई के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया था.

महाराष्ट्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने शीर्ष अदालत के समक्ष हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की दलील दी. वकील ने कहा कि गवली, जो हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है और मकोका के प्रावधानों के तहत दोषी है, राज्य की 2006 की छूट नीति का लाभ मांग रहा है. दलीलें सुनने के बाद पीठ ने गवली को नोटिस जारी किया, जो मुंबई के शिवसेना पार्षद कमलाकर जामसांडेकर की 2007 की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है.

गवली ने हाईकोर्ट के समक्ष दावा किया था कि उसने 2006 की नीति की सभी शर्तों का पालन किया है. राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसमें गवली की याचिका को स्वीकार कर लिया गया था. इसमें उसने 10 जनवरी, 2006 की छूट नीति के आधार पर राज्य सरकार को उसकी समयपूर्व रिहाई के लिए निर्देश देने की मांग की थी, जो 31 अगस्त, 2012 को उसकी दोषसिद्धि की तिथि पर प्रचलित थी.

उच्च न्यायालय में गवली ने कहा कि राज्य प्राधिकारियों द्वारा समय पूर्व रिहाई के लिए उसके आवेदन को खारिज करना अन्यायपूर्ण, मनमाना है. इसे खारिज किया जाना चाहिए. उसने अपनी अधिक उम्र का हवाला देकर बताया था कि मेडिकल बोर्ड ने उसे कमजोर घोषित कर दिया है. इससे वह नीति का लाभ उठा सकता है. राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के समक्ष गवली की याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि समयपूर्व रिहाई के लिए 18 मार्च, 2010 के संशोधित दिशा-निर्देशों में यह विचार किया गया है कि संगठित अपराध के दोषी को तब तक समयपूर्व रिहाई नहीं दी जाएगी, जब तक कि वह वास्तव में 40 वर्ष का कारावास न काट ले.

पढ़ें: दिल्ली के जल सकंट पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर, 5 जून को UYRB की आपात बैठक करने का आदेश

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे गैंगस्टर से राजनेता बने अरुण गवली की समयपूर्व रिहाई पर अगले आदेश तक रोक लगा दी. न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और संदीप मेहता की पीठ ने 5 अप्रैल को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ द्वारा पारित आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी. हाईकोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को 2006 की छूट नीति के तहत गवली की समयपूर्व रिहाई के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया था.

महाराष्ट्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने शीर्ष अदालत के समक्ष हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की दलील दी. वकील ने कहा कि गवली, जो हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है और मकोका के प्रावधानों के तहत दोषी है, राज्य की 2006 की छूट नीति का लाभ मांग रहा है. दलीलें सुनने के बाद पीठ ने गवली को नोटिस जारी किया, जो मुंबई के शिवसेना पार्षद कमलाकर जामसांडेकर की 2007 की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है.

गवली ने हाईकोर्ट के समक्ष दावा किया था कि उसने 2006 की नीति की सभी शर्तों का पालन किया है. राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसमें गवली की याचिका को स्वीकार कर लिया गया था. इसमें उसने 10 जनवरी, 2006 की छूट नीति के आधार पर राज्य सरकार को उसकी समयपूर्व रिहाई के लिए निर्देश देने की मांग की थी, जो 31 अगस्त, 2012 को उसकी दोषसिद्धि की तिथि पर प्रचलित थी.

उच्च न्यायालय में गवली ने कहा कि राज्य प्राधिकारियों द्वारा समय पूर्व रिहाई के लिए उसके आवेदन को खारिज करना अन्यायपूर्ण, मनमाना है. इसे खारिज किया जाना चाहिए. उसने अपनी अधिक उम्र का हवाला देकर बताया था कि मेडिकल बोर्ड ने उसे कमजोर घोषित कर दिया है. इससे वह नीति का लाभ उठा सकता है. राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के समक्ष गवली की याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि समयपूर्व रिहाई के लिए 18 मार्च, 2010 के संशोधित दिशा-निर्देशों में यह विचार किया गया है कि संगठित अपराध के दोषी को तब तक समयपूर्व रिहाई नहीं दी जाएगी, जब तक कि वह वास्तव में 40 वर्ष का कारावास न काट ले.

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