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जयंती विशेष : क्या है 'पराक्रम दिवस' का इतिहास, जानें - Quotes Of Subhas Chandra Bose

Prakram Diwas : 23 जनवरी को सुभाष चंद्र बोस का जन्म दिवस है. इसे पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है. पहले उनके जन्म दिवस को देश प्रेम दिवस के रूप में मनाया जाता था. बोस क्रांतिकारी धारा के समर्थक थे. उनकी मौत पर अभी तक विवाद जारी है. कुछ लोगों का मानना है कि उनकी मौत विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी.

Subhas Chandra Bose
पराक्रम दिवस
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 22, 2024, 3:59 PM IST

Updated : Feb 4, 2024, 7:46 PM IST

हैदराबाद : सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 ओड़िशा के कटक स्थित एक संभ्रांत परिवार में हुआ था. पेशे से इनके पिता जानकीनाथ बोस इलाके के एक जाने-माने अधिवक्ता थे. उन्हें राय बहादुर की उपाधि प्राप्त थी. महान स्वतंत्रता सेनानी, आम लोगों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम से जाने जाते हैं. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनका महत्वपूर्ण योगदान है. वे क्रांतिकारी धारा के समर्थक थे. भारत को आजादी दिलाने के लिए उन्होंने आजाद हिंद फौज के नाम से अपना सैन्य दस्ता तैयार किया था. दस्ते में एक महिला बटालियन भी था, जिसका नाम रानी झांसी रेजिमेंट था. बता दें कि क्रांतिकारी गुट होने के बाद भी महात्मा गांधी से उनके काफी अच्छे संबंध थे. बोस ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने शुरुआत में महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहा था.

सुभाष चंद्र बोस जिन्हें सम्मानपूर्वक "नेताजी" के नाम से जाना जाता है, वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक क्रांतिकारी योद्धा थे. 23 जनवरी को उनके जन्मदिन पर प्रतिवर्ष सुभाष चंद्र बोस जयंती मनाई जाती है. नेताजी का जन्मदिन 'देश प्रेम दिवस' के रूप में मनाया जाता था. 23 जनवरी को देश प्रेम दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दिया गया था. 2021 में केद्र सरकार की की ओर से इसे "पराक्रम दिवस" ​​के रूप में मनाया जाने लगा. पराक्रम दिवस का अर्थ है 'साहस का दिन या शौर्य का दिन.' इस दिन का लक्ष्य देश के लोगों को प्रेरित करना है. विशेष रूप से युवाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए, उनमें देशभक्ति की भावना पैदा करना जैसा कि नेताजी का था.

Subhas Chandra Bose Birth Anniversary
पराक्रम दिवस

उनका प्रारंभिक जीवन

  1. बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक ओडिशा में हुआ था.
  2. सुभाष चंद्र बोस के पिता का जानकीनाथ बोस था. वे एक जानेमाने अधिवक्ता थे, उन्हें राय बहादुर की उपाधि प्राप्त थी.
  3. जानकीनाथ बोस और प्रभावती दत्त की चौदह संतानों में से सुभाष चंद्र बोस नौवें थे.
  4. एक धनी और प्रमुख बंगाली वकील के बेटे, बोस ने प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता (कोलकाता) में अध्ययन किया, जहां से उन्हें 1916 में राष्ट्रवादी गतिविधियों के लिए निष्कासित कर दिया गया था और स्कॉटिश चर्च कॉलेज (1919 में स्नातक) में अध्ययन किया.
  5. उसके बाद उनके माता-पिता ने उन्हें भारतीय सिविल सेवा की तैयारी के लिए इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में भेज दिया.
  6. 1920 में उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन अप्रैल 1921 में, भारत में राष्ट्रवादी उथल-पुथल के बारे में सुनने के बाद, उन्होंने अपनी उम्मीदवारी से इस्तीफा दे दिया और भारत वापस आ गये.
  7. उनकी पत्नी का नाम एमिली शेंकल है, जिनसे 1937 में विवाह हुआ था.
  8. अपने करियर के दौरान, विशेष रूप से शुरुआती दौर में, उनके एक बड़े भाई शरत ने उन्हें आर्थिक और भावनात्मक रूप से समर्थन दिया.
  9. बोस (1889-1950) कलकत्ता के एक धनी वकील और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (जिसे कांग्रेस पार्टी के नाम से भी जाना जाता है) के राजनीतिज्ञ थे.
  10. माना जाता है कि उनका निधन 18 अगस्त 1945 तपाई (ताइवान) में हुआ था.
    Subhas Chandra Bose Birth Anniversary
    पराक्रम दिवस

भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) या 'आजाद हिंद फौज':

  1. उन्होंने 1943 में भारतीय राष्ट्रीय सेना या INA की स्थापना की, जिसे लोकप्रिय रूप से 'आजाद हिंद फौज' के नाम से जाना जाता है. इसे शुरू में 1942 में रास बिहारी बोस द्वारा गठित किया गया था.
  2. भले ही यह संक्षिप्त था, ऑपरेशन रोकने और अपने क्षेत्र में लौटने के ब्रिटिश निर्णय में आईएनए के हमले की महत्वपूर्ण भूमिका थी. अंततः, इससे भारत को आजादी दिलाने में मदद मिली,
  3. सुभाष चंद्र बोस ने सेना से कहा, ''हमारे सामने एक गंभीर लड़ाई है क्योंकि दुश्मन शक्तिशाली, बेईमान और निर्दयी है.
  4. आजादी की इस अंतिम यात्रा में आपको भूख, अभाव, जबरन मार्च और मौत का सामना करना पड़ेगा. जब आप यह परीक्षा उत्तीर्ण कर लेंगे तभी स्वतंत्रता आपकी होगी.
  5. आईएनए ने भारतीय में स्वतंत्रता लाने के लिए कई लड़ाइयां और संघर्षों में हिस्सा लिया. यह सब सुभाष चंद्र बोस की उच्च बुद्धिमत्ता के कारण ही संभव हो सका.

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस:

  1. बोस उस असहयोग आंदोलन का हिस्सा बने जिसे गांधी ने शुरू किया था, जिसने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को अहिंसा में एक दुर्जेय शक्ति में बदल दिया था.
  2. बोस को गांधीजी से बंगाली राजनेता चित्तरंजन दास के लिए काम करने की सलाह मिली.
  3. बोस ने वहां एक पत्रकार, युवा शिक्षक और बंगाल कांग्रेस के स्वयंसेवक कमांडर के रूप में काम किया.
  4. 1924 में उन्हें कलकत्ता नगर निगम का मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया और दास मेयर बनाये गये. उन्होंने "स्वराज" समाचार पत्र की स्थापना की.
  5. 1927 में जेल से रिहा होने के बाद बोस, जवाहरलाल नेहरू के साथ कांग्रेस पार्टी के महासचिव के रूप में शामिल हुए और उन्होंने आजादी के लिए काम किया.
  6. 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष पद जीतने के बाद, उन्होंने एक राष्ट्रीय योजना परिषद की स्थापना की जिसने एक व्यापक औद्योगीकरण रणनीति विकसित की.
  7. हालांकि, यह गांधीवादी आर्थिक सिद्धांत के विपरीत था, जो कुटीर उद्यमों के विचार और घरेलू संसाधनों के उपयोग के फायदों पर कायम था.
  8. 1939 में पुनर्निर्वाचन के लिए एक गांधीवादी प्रतिद्वंद्वी पर बोस की जीत ने उनकी पुष्टि का काम किया.

फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन:
फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन 3 मई 1939 को सुभाष चंद्र बोस द्वारा किया गया था. बोस को पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा था क्योंकि कथित दक्षिणपंथी समर्थकों के विरोध का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस के भीतर कोई संगठित वामपंथी गुट नहीं था. परिणामस्वरूप, उन्हें बड़े कांग्रेस संगठन के भीतर एक नई वामपंथी पार्टी की तत्काल आवश्यकता महसूस हुई. अत: उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया.

सुभाष चंद्र बोस के प्रमुख उद्धरण:

आजादी दी नहीं जाती - ली जाती है.

तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा.

इतिहास में कोई भी वास्तविक परिवर्तन चर्चाओं से कभी हासिल नहीं हुआ है.

राजनीतिक सौदेबाजी का रहस्य यह है कि आप जो हैं उससे अधिक मजबूत दिखें.

यदि संघर्ष न हो, यदि जोखिम न उठाया जाए, तो जीवन अपना आधा हित खो देता है.

एक व्यक्ति किसी विचार के लिए मर सकता है, लेकिन वह विचार, उसकी मृत्यु के बाद, हजारों जिंदगियों में अवतरित होगा.

जो सैनिक हमेशा अपने राष्ट्र के प्रति वफादार रहते हैं, जो अपने जीवन का बलिदान देने के लिए तैयार रहते हैं, वे हमेशा अजेय-अमर होते हैं.

जब हम खड़े होते हैं, तो आजाद हिंद फौज को ग्रेनाइट की दीवार की तरह होना पड़ता है; जब हम मार्च करते हैं, आजाद हिंद फौज को स्टीमर की तरह बनना होगा.

आदमी, पैसा और सामग्री अपने आप में जीत या स्वतंत्रता नहीं ला सकते. हमारे पास होना ही चाहिए. प्रेरणा-शक्ति जो हमें बहादुर कार्यों और वीरतापूर्ण कारनामों के लिए प्रेरित करेगी.

आज हमारी केवल एक ही इच्छा होनी चाहिए - मरने की इच्छा ताकि भारत जीवित रह सके. सामना करने की इच्छा शहीद की मृत्यु, ताकि शहीद के खून से आजादी का मार्ग प्रशस्त हो सके.

यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता की कीमत अपने खून से चुकाएं. जिस स्वतंत्रता को हम अपने त्याग और परिश्रम से प्राप्त करेंगे, उसे हम अपनी शक्ति से सुरक्षित रख सकेंगे.

सुभाष चंद्र बोस के निधन पर विवाद
सुभाष चंद्र बोस का निधन के मामले को आज भी कई लोग रहस्य मानते हैं. कई लोग मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि उनका निधन विमान हादसे में हुआ था. इनके निधन की गत्थी को सुलझाने के लिए कई आयोगों का गठन किया गया. ज्यादातर लोगों का मानना है कि बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइवान में एक विमान हादसे में जलने से हुई थी. सरकारों की ओर से कई जांच समितियों का गठन किया, जिन्हें यह काम सौंपा गया कि विमान हादसे वाले दिन दिन आखिर क्या हुआ था. फिगेस रिपोर्ट (1946) व शाह नवाज समिति (1956) की रिपोर्ट के अनुसार बोस की मृत्यु ताइवान में विमान दुर्घटना हो गई थी. खोसला आयोग (1970) भी पिछली रिपोर्टों से सहमत थे. वहीं मुखर्जी आयोग (2005) के अनुसार बोस की मृत्यु को साबित नहीं किया जा सका. इस कारण रिपोर्ट को सरकार ने खारिज कर दिया था.

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हैदराबाद : सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 ओड़िशा के कटक स्थित एक संभ्रांत परिवार में हुआ था. पेशे से इनके पिता जानकीनाथ बोस इलाके के एक जाने-माने अधिवक्ता थे. उन्हें राय बहादुर की उपाधि प्राप्त थी. महान स्वतंत्रता सेनानी, आम लोगों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम से जाने जाते हैं. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनका महत्वपूर्ण योगदान है. वे क्रांतिकारी धारा के समर्थक थे. भारत को आजादी दिलाने के लिए उन्होंने आजाद हिंद फौज के नाम से अपना सैन्य दस्ता तैयार किया था. दस्ते में एक महिला बटालियन भी था, जिसका नाम रानी झांसी रेजिमेंट था. बता दें कि क्रांतिकारी गुट होने के बाद भी महात्मा गांधी से उनके काफी अच्छे संबंध थे. बोस ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने शुरुआत में महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहा था.

सुभाष चंद्र बोस जिन्हें सम्मानपूर्वक "नेताजी" के नाम से जाना जाता है, वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक क्रांतिकारी योद्धा थे. 23 जनवरी को उनके जन्मदिन पर प्रतिवर्ष सुभाष चंद्र बोस जयंती मनाई जाती है. नेताजी का जन्मदिन 'देश प्रेम दिवस' के रूप में मनाया जाता था. 23 जनवरी को देश प्रेम दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दिया गया था. 2021 में केद्र सरकार की की ओर से इसे "पराक्रम दिवस" ​​के रूप में मनाया जाने लगा. पराक्रम दिवस का अर्थ है 'साहस का दिन या शौर्य का दिन.' इस दिन का लक्ष्य देश के लोगों को प्रेरित करना है. विशेष रूप से युवाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए, उनमें देशभक्ति की भावना पैदा करना जैसा कि नेताजी का था.

Subhas Chandra Bose Birth Anniversary
पराक्रम दिवस

उनका प्रारंभिक जीवन

  1. बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक ओडिशा में हुआ था.
  2. सुभाष चंद्र बोस के पिता का जानकीनाथ बोस था. वे एक जानेमाने अधिवक्ता थे, उन्हें राय बहादुर की उपाधि प्राप्त थी.
  3. जानकीनाथ बोस और प्रभावती दत्त की चौदह संतानों में से सुभाष चंद्र बोस नौवें थे.
  4. एक धनी और प्रमुख बंगाली वकील के बेटे, बोस ने प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता (कोलकाता) में अध्ययन किया, जहां से उन्हें 1916 में राष्ट्रवादी गतिविधियों के लिए निष्कासित कर दिया गया था और स्कॉटिश चर्च कॉलेज (1919 में स्नातक) में अध्ययन किया.
  5. उसके बाद उनके माता-पिता ने उन्हें भारतीय सिविल सेवा की तैयारी के लिए इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में भेज दिया.
  6. 1920 में उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन अप्रैल 1921 में, भारत में राष्ट्रवादी उथल-पुथल के बारे में सुनने के बाद, उन्होंने अपनी उम्मीदवारी से इस्तीफा दे दिया और भारत वापस आ गये.
  7. उनकी पत्नी का नाम एमिली शेंकल है, जिनसे 1937 में विवाह हुआ था.
  8. अपने करियर के दौरान, विशेष रूप से शुरुआती दौर में, उनके एक बड़े भाई शरत ने उन्हें आर्थिक और भावनात्मक रूप से समर्थन दिया.
  9. बोस (1889-1950) कलकत्ता के एक धनी वकील और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (जिसे कांग्रेस पार्टी के नाम से भी जाना जाता है) के राजनीतिज्ञ थे.
  10. माना जाता है कि उनका निधन 18 अगस्त 1945 तपाई (ताइवान) में हुआ था.
    Subhas Chandra Bose Birth Anniversary
    पराक्रम दिवस

भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) या 'आजाद हिंद फौज':

  1. उन्होंने 1943 में भारतीय राष्ट्रीय सेना या INA की स्थापना की, जिसे लोकप्रिय रूप से 'आजाद हिंद फौज' के नाम से जाना जाता है. इसे शुरू में 1942 में रास बिहारी बोस द्वारा गठित किया गया था.
  2. भले ही यह संक्षिप्त था, ऑपरेशन रोकने और अपने क्षेत्र में लौटने के ब्रिटिश निर्णय में आईएनए के हमले की महत्वपूर्ण भूमिका थी. अंततः, इससे भारत को आजादी दिलाने में मदद मिली,
  3. सुभाष चंद्र बोस ने सेना से कहा, ''हमारे सामने एक गंभीर लड़ाई है क्योंकि दुश्मन शक्तिशाली, बेईमान और निर्दयी है.
  4. आजादी की इस अंतिम यात्रा में आपको भूख, अभाव, जबरन मार्च और मौत का सामना करना पड़ेगा. जब आप यह परीक्षा उत्तीर्ण कर लेंगे तभी स्वतंत्रता आपकी होगी.
  5. आईएनए ने भारतीय में स्वतंत्रता लाने के लिए कई लड़ाइयां और संघर्षों में हिस्सा लिया. यह सब सुभाष चंद्र बोस की उच्च बुद्धिमत्ता के कारण ही संभव हो सका.

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस:

  1. बोस उस असहयोग आंदोलन का हिस्सा बने जिसे गांधी ने शुरू किया था, जिसने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को अहिंसा में एक दुर्जेय शक्ति में बदल दिया था.
  2. बोस को गांधीजी से बंगाली राजनेता चित्तरंजन दास के लिए काम करने की सलाह मिली.
  3. बोस ने वहां एक पत्रकार, युवा शिक्षक और बंगाल कांग्रेस के स्वयंसेवक कमांडर के रूप में काम किया.
  4. 1924 में उन्हें कलकत्ता नगर निगम का मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया और दास मेयर बनाये गये. उन्होंने "स्वराज" समाचार पत्र की स्थापना की.
  5. 1927 में जेल से रिहा होने के बाद बोस, जवाहरलाल नेहरू के साथ कांग्रेस पार्टी के महासचिव के रूप में शामिल हुए और उन्होंने आजादी के लिए काम किया.
  6. 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष पद जीतने के बाद, उन्होंने एक राष्ट्रीय योजना परिषद की स्थापना की जिसने एक व्यापक औद्योगीकरण रणनीति विकसित की.
  7. हालांकि, यह गांधीवादी आर्थिक सिद्धांत के विपरीत था, जो कुटीर उद्यमों के विचार और घरेलू संसाधनों के उपयोग के फायदों पर कायम था.
  8. 1939 में पुनर्निर्वाचन के लिए एक गांधीवादी प्रतिद्वंद्वी पर बोस की जीत ने उनकी पुष्टि का काम किया.

फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन:
फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन 3 मई 1939 को सुभाष चंद्र बोस द्वारा किया गया था. बोस को पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा था क्योंकि कथित दक्षिणपंथी समर्थकों के विरोध का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस के भीतर कोई संगठित वामपंथी गुट नहीं था. परिणामस्वरूप, उन्हें बड़े कांग्रेस संगठन के भीतर एक नई वामपंथी पार्टी की तत्काल आवश्यकता महसूस हुई. अत: उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया.

सुभाष चंद्र बोस के प्रमुख उद्धरण:

आजादी दी नहीं जाती - ली जाती है.

तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा.

इतिहास में कोई भी वास्तविक परिवर्तन चर्चाओं से कभी हासिल नहीं हुआ है.

राजनीतिक सौदेबाजी का रहस्य यह है कि आप जो हैं उससे अधिक मजबूत दिखें.

यदि संघर्ष न हो, यदि जोखिम न उठाया जाए, तो जीवन अपना आधा हित खो देता है.

एक व्यक्ति किसी विचार के लिए मर सकता है, लेकिन वह विचार, उसकी मृत्यु के बाद, हजारों जिंदगियों में अवतरित होगा.

जो सैनिक हमेशा अपने राष्ट्र के प्रति वफादार रहते हैं, जो अपने जीवन का बलिदान देने के लिए तैयार रहते हैं, वे हमेशा अजेय-अमर होते हैं.

जब हम खड़े होते हैं, तो आजाद हिंद फौज को ग्रेनाइट की दीवार की तरह होना पड़ता है; जब हम मार्च करते हैं, आजाद हिंद फौज को स्टीमर की तरह बनना होगा.

आदमी, पैसा और सामग्री अपने आप में जीत या स्वतंत्रता नहीं ला सकते. हमारे पास होना ही चाहिए. प्रेरणा-शक्ति जो हमें बहादुर कार्यों और वीरतापूर्ण कारनामों के लिए प्रेरित करेगी.

आज हमारी केवल एक ही इच्छा होनी चाहिए - मरने की इच्छा ताकि भारत जीवित रह सके. सामना करने की इच्छा शहीद की मृत्यु, ताकि शहीद के खून से आजादी का मार्ग प्रशस्त हो सके.

यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता की कीमत अपने खून से चुकाएं. जिस स्वतंत्रता को हम अपने त्याग और परिश्रम से प्राप्त करेंगे, उसे हम अपनी शक्ति से सुरक्षित रख सकेंगे.

सुभाष चंद्र बोस के निधन पर विवाद
सुभाष चंद्र बोस का निधन के मामले को आज भी कई लोग रहस्य मानते हैं. कई लोग मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि उनका निधन विमान हादसे में हुआ था. इनके निधन की गत्थी को सुलझाने के लिए कई आयोगों का गठन किया गया. ज्यादातर लोगों का मानना है कि बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइवान में एक विमान हादसे में जलने से हुई थी. सरकारों की ओर से कई जांच समितियों का गठन किया, जिन्हें यह काम सौंपा गया कि विमान हादसे वाले दिन दिन आखिर क्या हुआ था. फिगेस रिपोर्ट (1946) व शाह नवाज समिति (1956) की रिपोर्ट के अनुसार बोस की मृत्यु ताइवान में विमान दुर्घटना हो गई थी. खोसला आयोग (1970) भी पिछली रिपोर्टों से सहमत थे. वहीं मुखर्जी आयोग (2005) के अनुसार बोस की मृत्यु को साबित नहीं किया जा सका. इस कारण रिपोर्ट को सरकार ने खारिज कर दिया था.

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Last Updated : Feb 4, 2024, 7:46 PM IST
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