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पुलिस को जमानत पर रिहा आरोपी की पर्सनल जिंदगी में झांकने की इजाजत नहीं: सुप्रीम कोर्ट - Google Location Sharing

Google Location Sharing: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गूगल पिन लोकेशन शेयरिंग मामले में बड़ा फैसला सुनाया. न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा लगाई गई जमानत की शर्त को खारिज कर दिया और कहा कि जमानत के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं हो सकती जो पुलिस को आपराधिक मामले में आरोपी के निजी जीवन में झांकने की अनुमति दे. पढ़ें पूरी खबर...

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jul 8, 2024, 1:26 PM IST

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सुप्रीम कोर्ट (ANI)

नई दिल्ली: आज के समय में लोगों की जिंदगी में टेक्नोलॉजी का दखल बढ़ता जा रहा है. टेक्नोलॉजी की मदद से इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी के लिए यह पता लगाना काफी सरल हो गया है कि आरोपी अपराध के वक्त कहा था. क्रिमिनल्स की फोन लोकेशन से यह जानकारी आसानी से मालूम चल जाता है. इसी मामले में अब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि जमानत की शर्त के तौर पर किसी आरोपी को कोई कोर्ट अपनी गूगल पिन लोकेशन इन्वेस्टिगेटिव अधिकारी के साथ शेयर करने को नहीं कह सकता.

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कोर्ट में कहा कि जमानत के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं हो सकती जो पुलिस को आपराधिक मामले में आरोपी के निजी जीवन में झांकने की अनुमति दे. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा लगाई गई जमानत की शर्त को खारिज कर दिया, जिसके तहत एक नाइजीरियाई नागरिक को ड्रग्स मामले में जांच अधिकारी के साथ अपने मोबाइल डिवाइस में गूगल मैप्स पिन साझा करना अनिवार्य था.

जस्टिस ओका ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जमानत की कोई शर्त जमानत के मूल उद्देश्य को ही खत्म नहीं कर सकती. हमने कहा है कि गूगल पिन जमानत की शर्त नहीं हो सकती. जमानत की कोई शर्त नहीं हो सकती जिससे पुलिस लगातार आरोपी की हरकतों पर नजर रख सके. पुलिस को जमानत पर आरोपी की निजी जिंदगी में झांकने की अनुमति नहीं दी जा सकती. अदालत ने एक नाइजीरियाई नागरिक फ्रैंक विटस की याचिका पर फैसला सुनाया, जिसने ड्रग्स मामले में जमानत की शर्त को चुनौती दी थी.

सुप्रिम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ याचिका पर यह आदेश पारित किया, जिसमें नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत एक मामले में आरोपी नाइजीरियाई नागरिक को जमानत दी गई थी. मामले की सुनवाई के दौरान, सुप्रिम कोर्ट ने कहा कि गूगल पिन साझा करने की शर्त संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी के निजता अधिकारों का उल्लंघन कर सकती है. याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रिम कोर्ट का रुख किया था. मई 2022 में, हाई कोर्ट ने दो सख्त शर्तें रखी थीं - एक, आरोपी को गूगल मैप पर एक पिन डालना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मामले के जांच अधिकारी को उनका स्थान उपलब्ध हो. और, दूसरी शर्त यह थी कि नाइजीरिया के उच्चायोग को यह आश्वासन देना होगा कि आरोपी देश छोड़कर नहीं जाएगा और जब भी आवश्यकता होगी, ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश होगा.

29 अप्रैल को, सुप्रिम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि वह इस बात की जांच करेगी कि क्या दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा लगाई गई शर्तों में से एक शर्त निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, जिसमें एक आरोपी को जमानत पर रहते हुए जांचकर्ताओं को उसकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए अपने मोबाइल फोन से 'गूगल पिन डालने' के लिए कहा गया है. एक ऐतिहासिक फैसले में, नौ जस्टिस की संविधान पीठ ने 24 अगस्त, 2017 को सर्वसम्मति से घोषणा की थी कि निजता का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है. हाई कोर्ट ने शर्त पर ध्यान दिया और कहा कि प्रथम दृष्टया यह जमानत पर रिहा आरोपी के निजता के अधिकार का उल्लंघन है.

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नई दिल्ली: आज के समय में लोगों की जिंदगी में टेक्नोलॉजी का दखल बढ़ता जा रहा है. टेक्नोलॉजी की मदद से इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी के लिए यह पता लगाना काफी सरल हो गया है कि आरोपी अपराध के वक्त कहा था. क्रिमिनल्स की फोन लोकेशन से यह जानकारी आसानी से मालूम चल जाता है. इसी मामले में अब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि जमानत की शर्त के तौर पर किसी आरोपी को कोई कोर्ट अपनी गूगल पिन लोकेशन इन्वेस्टिगेटिव अधिकारी के साथ शेयर करने को नहीं कह सकता.

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कोर्ट में कहा कि जमानत के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं हो सकती जो पुलिस को आपराधिक मामले में आरोपी के निजी जीवन में झांकने की अनुमति दे. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा लगाई गई जमानत की शर्त को खारिज कर दिया, जिसके तहत एक नाइजीरियाई नागरिक को ड्रग्स मामले में जांच अधिकारी के साथ अपने मोबाइल डिवाइस में गूगल मैप्स पिन साझा करना अनिवार्य था.

जस्टिस ओका ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जमानत की कोई शर्त जमानत के मूल उद्देश्य को ही खत्म नहीं कर सकती. हमने कहा है कि गूगल पिन जमानत की शर्त नहीं हो सकती. जमानत की कोई शर्त नहीं हो सकती जिससे पुलिस लगातार आरोपी की हरकतों पर नजर रख सके. पुलिस को जमानत पर आरोपी की निजी जिंदगी में झांकने की अनुमति नहीं दी जा सकती. अदालत ने एक नाइजीरियाई नागरिक फ्रैंक विटस की याचिका पर फैसला सुनाया, जिसने ड्रग्स मामले में जमानत की शर्त को चुनौती दी थी.

सुप्रिम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ याचिका पर यह आदेश पारित किया, जिसमें नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत एक मामले में आरोपी नाइजीरियाई नागरिक को जमानत दी गई थी. मामले की सुनवाई के दौरान, सुप्रिम कोर्ट ने कहा कि गूगल पिन साझा करने की शर्त संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी के निजता अधिकारों का उल्लंघन कर सकती है. याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रिम कोर्ट का रुख किया था. मई 2022 में, हाई कोर्ट ने दो सख्त शर्तें रखी थीं - एक, आरोपी को गूगल मैप पर एक पिन डालना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मामले के जांच अधिकारी को उनका स्थान उपलब्ध हो. और, दूसरी शर्त यह थी कि नाइजीरिया के उच्चायोग को यह आश्वासन देना होगा कि आरोपी देश छोड़कर नहीं जाएगा और जब भी आवश्यकता होगी, ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश होगा.

29 अप्रैल को, सुप्रिम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि वह इस बात की जांच करेगी कि क्या दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा लगाई गई शर्तों में से एक शर्त निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, जिसमें एक आरोपी को जमानत पर रहते हुए जांचकर्ताओं को उसकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए अपने मोबाइल फोन से 'गूगल पिन डालने' के लिए कहा गया है. एक ऐतिहासिक फैसले में, नौ जस्टिस की संविधान पीठ ने 24 अगस्त, 2017 को सर्वसम्मति से घोषणा की थी कि निजता का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है. हाई कोर्ट ने शर्त पर ध्यान दिया और कहा कि प्रथम दृष्टया यह जमानत पर रिहा आरोपी के निजता के अधिकार का उल्लंघन है.

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