रामनगर (उत्तराखंड): आपने इंसानों को गुदगुदी लगाने पर हंसी आते देखी होगी. रामनगर के जंगल में एक ऐसा पेड़ है जिसे गुदगुदी लगाओ तो वो हंसता है. इलाके के लोग इसे हंसने वाला पेड़ कहते हैं. दरअसल जब इस पेड़ को सहलाया जाता है या गुदगुदी के अंदाज में इस पर हाथ लगाया जाता है तो इसकी पत्तियों में हलचल शुरू हो जाती है. इसी को स्थानीय लोग इस पेड़ का हंसना कहते हैं.
वन संपदा से समृद्ध है उत्तराखंड: उत्तराखंड के वनों में पाए जाने वाले पेड़ कई औषधियों गुणों के लिए जाने जाते हैं. पर्यावरण की शुद्धता में भी इनका अमूल्य योगदान होता है. उत्तराखंड के जंगलों में ऐसे कई पेड़ हैं, जिनकी पत्तियों से लेकर टहनियां और छाल से कई बीमारियां भी दूर हो जाती हैं. आज भी कई दवावों में इन पेड़ों की पत्तियों आदि का इस्तेमाल होता है.
रामनगर के जंगल में है हंसने वाला पेड़: आज हम आपको एक ऐसे पेड़ के बारे में बता रहे हैं, जिसको गुदगुदी करने से वह हंसने लगता है. गुदगुदी सिर्फ इंसानों को ही नहीं बल्कि पेड़ों को भी होती है. आज आपको एक ऐसे अनोखे पेड़ के बारे में बताएंगे जिसे सहलाने पर इंसानों की तरह गुदगुदी होती है. इस पेड़ के तने को गुदगुदाया जाए तो पेड़ की टहनियां खिलखिला कर हंसने लगती हैं. ऐसा नहीं है कि आपको पेड़ के हंसने की आवाज आए. बल्कि यह पेड़ छूते ही मचलने लगता है. जैसे कि कोई इंसान हो. आप इस पेड़ के तने को सहलाने पर इसकी हरकत को अपनी आंखों से साफ देख सकते हैं.
गुदगुदी करने पर हंसता है ये पेड़: उत्तराखंड के नैनीताल जिले में छोटी हल्द्वानी और कॉर्बेट नगरी रामनगर में ऐसे पेड़ का आप दीदार कर सकते हैं. इसके तने में अंगुलियां रगड़ें तो उसकी शाखाएं कांपना शुरू कर देती हैं. यह जानकर भले ही आपको हैरानी हो, लेकिन यह सच है. इस पेड़ का वानस्पतिक नाम है ‘रेंडिया डूमिटोरम’ है. इसको स्थानीय भाषा में थनैला कहा जाता है. रूबीएसी कुल का यह सदस्य 300 से 1300 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है.
पर्यटकों के पसंद आता है ये पेड़: स्थानीय नेचर गाइड मोहन पांडे बताते हैं कि कालाढुंगी, रामनगर के जंगल जैविक विविधता के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं. इन घने जंगलों में तमाम प्रकार के पेड़-पौधे पाए जाते हैं. उन्हीं में से एक पेड़ ऐसा भी है जिसको छूने पर गुदगुदी होती है. उसके तने को थोड़ा सा सहलाने यानी गुदगुदी करने पर उसकी शाखाएं अपने आप हिलना शुरू हो जाती हैं. वे कहते हैं कि इसको थनैला भी कहा जाता है. मोहम पांडे कहते हैं कि इसको पशुपालक औषधि के रूप में अपने पशुओं पर इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने बताया कि जब पशुओं के थनों में गांठ बन जाती है, तो इसकी पत्तियों को पीसकर लगाया जाता है. मोहन पांडे बताते हैं कि हम जब पर्यटकों को इस पेड़ का दीदार कराने के लिए लाते हैं, तो वो इसे देख अचंभित रह जाते हैं.
वनस्पति के प्रोफेसर ने क्या कहा: रामनगर महाविद्यालय के वनस्पति विभाग के प्रो. एसएस मौर्य ने बताया कि ये झाड़ी नुमा पेड़ कई जगह जंगलों में पाया जाता है. इसका हिंदी नाम मदनफल है और इसको थनैला का पेड़ भी कहा जाता है. यह एक औषधीय पेड़ है. इसका इस्तेमाल दमा, सर्दी, जलन जैसी कई बीमारियों से राहत में किया जाता है. ये वृक्ष दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में भी पाया जाता है. इसको छूने से इसमें कम्पन होता है. इसलिए पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र भी होता है.
डीएफओ ने क्या बताया: वहीं इस विषय में रामनगर वन प्रभाग के डीएफओ दिगंत नायक ने बताया कि यह पेड़ कालाढुंगी रेंज व रामनगर के फाटो रेंज में भी पाया जाता है. उन्होंने बताया कि बेसिकली यह पेड़ साउथ ईस्ट देशों या क्षेत्र में पाया जाता है. यह मेडिसनल प्लांट भी है. इसको सहलाने से इसकी पत्तियां कांपने लगती हैं. उन्होंने बताया कि दिसंबर से जनवरी तक का समय पेड़ों में फल आने का रहता है. इसे मेनफल, मिंदा, राधा और मदनफल का भी नाम दिया गया है.
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