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पीएम मोदी की आसियान-भारत शिखर सम्मेलन के दौरान किया जाएगा फा लाक फा राम- लाओ रामायण का प्रदर्शन

प्रधानमंत्री मोदी की लाओ पीडीआर यात्रा प्रहलाक फ्राराम या लाओ रामायण पर एक विशेष परफोर्मेंस का आयोजन किया जाएगा.

पीएम मोदी
पीएम मोदी (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 9, 2024, 7:05 PM IST

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री मोदी की लाओ पीडीआर यात्रा में संस्कृति का एक बड़ा मिश्रण देखने को मिलेगा, जो भारत और वियनतियाने के लाओ पीडीआर के बीच द्विपक्षीय संबंधों के प्रमुख एलीमेंट में से एक रहा है. पीएम मोदी की यात्रा के व्यस्त कार्यक्रम में प्रहलाक फ्राराम या लाओ रामायण पर एक विशेष परफोर्मेंस भी होनी है.

नई दिल्ली में विशेष ब्रीफिंग को संबोधित करते हुए विदेश मंत्रालय के सचिव दम्मू रवि ने कहा, "प्रधानमंत्री मोदी लाओ पीडीआर के प्रधानमंत्री सोनेक्से सिफान्डोन के निमंत्रण पर 21वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन और 19वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के लिए लाओ पीडीआर के वियनतियाने की यात्रा करेंगे. यह यात्रा 10 और 11 अक्टूबर को होगी. हम आसियान से संबंधित सभी तंत्रों को बहुत महत्व देते हैं."

उन्होंने कहा, "यह आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री की दसवीं उपस्थिति होगी...इस विशेष शिखर सम्मेलन का महत्व यह होगा कि यह प्रधानमंत्री की एक्ट ईस्ट नीति की दसवीं वर्षगांठ है...हम अध्यक्ष की थीम, जो कि कनेक्टिविटी एंड रीसाइलेंस के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करेंगे."

दम्मू रवि ने कहा, "हमें उम्मीद है कि इस साल के अंत से पहले, हम 2 और आसियान देशों के साथ सीधी फ्लाइट कनेक्टिविटी प्राप्त कर लेंगे... अब हम पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन की ओर बढ़ रहे हैं, जिसमें 10 आसियान देश और 8 भागीदार, ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, कोरिया गणराज्य, न्यूजीलैंड, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं. तिमोर-लेस्ते भी पर्यवेक्षक के रूप में इसका भागीदार होगा."

फा लाक फा ला क्या है?
फा लाक फा लाम (फ्रा लक्ष्मण फ्रा राम) प्राचीन महाकाव्य रामायण का लाओ रूपांतरण है. दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में लोकप्रिय रामायण को पहली बार बौद्ध मिशनों द्वारा सदियों पहले प्राचीन लाओ साम्राज्य लेन जांग में लाया गया था.

लाओ वर्जन ने एक स्पेसिफिक लाओ शैली अपनाई है. फलक फलम को सम्मान दिया जाता है और इसे नर्तक, संगीतकार और कलाकार विशेष अवसरों पर प्रस्तुत करते हैं, खास तौर पर वार्षिक पी माई (लाओ नव वर्ष) समारोह के हिस्से के रूप में.

स्थानीय रूप से, कुछ लोग इसकी उत्पत्ति जातक कथा के रूप में भी मानते हैं. इस मुख्य पात्र फ्रलक (लक्ष्मण), फ्रलम (राम), नांग सिदा (सीता) थोत्सखान या हपखानसौने (रावण), हनुमान, संपाती, जटायु आदि है.

सबसे बेहतरीन पारंपरिक परफोर्मेंस लुआंग प्रबांग के रॉयल बैले थिएटर (फलक फलम थिएटर) में होता है. लुआंग प्रबांग के रॉयल बैले थिएटर की मंडली ने जनवरी 2024 में ICCR के रामायण मेले में भाग लिया और फिर अयोध्या और लखनऊ में भी प्रदर्शन किया. उनके प्रदर्शन को भारत में खूब सराहा गया.

भारत-लाओस- ऐतिहासिक सांस्कृतिक संबंध
भारत और लाओस के बीच ऐतिहासिक संबंध दक्षिण-पूर्व एशिया के संबंधों के इतिहास में एक सम्मोहक अध्याय है. लाओस की भारत के साथ सदियों से एक गहन, साझा, सांस्कृतिक विरासत है, जिसमें धर्म, भाषा, कला और वास्तुकला शामिल है.

स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार यह संबंध तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक से जुड़ा है. लोककथाओं के अनुसार, अशोक के दूत, प्रया चंथाबुरी पासिथिसक, पांच भिक्षुओं के साथ, भगवान बुद्ध के अवशेषों को लाओस लाए, और उन्हें फा थाट लुआंग नामक स्तूप में स्थापित किया, जो अब लाओ पीडीआर का राष्ट्रीय स्मारक है.

लाओस का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज, ओरंगखारित्तन क्रॉनिकल, इस किंवदंती का समर्थन करता है, यह संकेत देकर कि अवशेष भारत के राजगीर से आए थे. यह क्रॉनिकल भारतीय साहित्यिक परंपराओं को स्थानीय लोक कथाओं के साथ जोड़ता है, जो गहरे सांस्कृतिक संबंधों को दर्शाता है.

लाओस में पुरातात्विक अन्वेषण ने महत्वपूर्ण खोजों को जन्म दिया है, जिसमें चंपासक प्रांत में पाया गया 5वीं शताब्दी का वट लुआंग काओ शिलालेख भी शामिल है. यह संस्कृत शिलालेख राजा महेंद्रवर्मन द्वारा शिवलिंग की स्थापना का वर्णन करता है, जो लाओ संस्कृति पर शुरुआती भारतीय प्रभाव को दर्शाता है.

इसके अलावा दक्षिणी लाओस में पल्लव लिपि में कई शिलालेख पाए गए हैं, जो भारतीय संबंध पर और अधिक जोर देते हैं. यहां 5वीं शताब्दी के राजा श्री देवानिका के शिलालेखों से राजा के संस्कृत साहित्य और अनुष्ठानों के प्रति समर्पण का पता चलता है. वाट फु में जयवर्मन प्रथम का शिलालेख, जिसमें लिंग पर्वत का उल्लेख है और 11वीं शताब्दी के अन्य शिलालेख धार्मिक प्रथाओं और स्थापत्य शैलियों सहित लाओ समाज में भारतीय संस्कृति के निरंतर संश्लेषण को दर्शाते हैं.

आज, यह साझा विरासत चल रहे सांस्कृतिक और मजबूत विकास साझेदारी सहयोग में परिलक्षित होती है. भारत विरासत स्थल बहाली और प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और कौशल सहयोग जैसी पहलों के माध्यम से लाओस का समर्थन करता है, यह सुनिश्चित करता है कि दोनों देशों के बीच प्राचीन संबंध जीवंत बने रहें.

भारत-आसियान संबंध
दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ भारत के संबंध सभ्यतागत और सांस्कृतिक संबंधों पर आधारित हैं, जो समकालीन संबंधों के सभी तत्वों को प्राप्त करने में विकसित हुए हैं. ये देश हमारी 'एक्ट ईस्ट नीति' और इंडो-पैसिफिक के हमारे विजन के स्तंभ हैं.

वर्ष 2024 भारत की एक्ट ईस्ट नीति का एक दशक पूरा होने जा रहा है और इस दशक के दौरान लोगों के बीच जुड़ाव मजबूत हुआ है और व्यापार और निवेश, रक्षा और सुरक्षा, फिन-टेक सहित कनेक्टिविटी, विरासत संरक्षण और क्षमता निर्माण में मजबूत सहयोग हुआ है. 2024 इस क्षेत्र के कई देशों के साथ भारत के राजनयिक संबंधों की स्थापना की महत्वपूर्ण वर्षगांठ भी है

यह भी पढ़ें- पीएम मोदी वियनतियाने की यात्रा पर जाएंगे, 21वें ASEAN-भारत शिखर सम्मेलन में लेंगे भाग

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री मोदी की लाओ पीडीआर यात्रा में संस्कृति का एक बड़ा मिश्रण देखने को मिलेगा, जो भारत और वियनतियाने के लाओ पीडीआर के बीच द्विपक्षीय संबंधों के प्रमुख एलीमेंट में से एक रहा है. पीएम मोदी की यात्रा के व्यस्त कार्यक्रम में प्रहलाक फ्राराम या लाओ रामायण पर एक विशेष परफोर्मेंस भी होनी है.

नई दिल्ली में विशेष ब्रीफिंग को संबोधित करते हुए विदेश मंत्रालय के सचिव दम्मू रवि ने कहा, "प्रधानमंत्री मोदी लाओ पीडीआर के प्रधानमंत्री सोनेक्से सिफान्डोन के निमंत्रण पर 21वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन और 19वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के लिए लाओ पीडीआर के वियनतियाने की यात्रा करेंगे. यह यात्रा 10 और 11 अक्टूबर को होगी. हम आसियान से संबंधित सभी तंत्रों को बहुत महत्व देते हैं."

उन्होंने कहा, "यह आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री की दसवीं उपस्थिति होगी...इस विशेष शिखर सम्मेलन का महत्व यह होगा कि यह प्रधानमंत्री की एक्ट ईस्ट नीति की दसवीं वर्षगांठ है...हम अध्यक्ष की थीम, जो कि कनेक्टिविटी एंड रीसाइलेंस के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करेंगे."

दम्मू रवि ने कहा, "हमें उम्मीद है कि इस साल के अंत से पहले, हम 2 और आसियान देशों के साथ सीधी फ्लाइट कनेक्टिविटी प्राप्त कर लेंगे... अब हम पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन की ओर बढ़ रहे हैं, जिसमें 10 आसियान देश और 8 भागीदार, ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, कोरिया गणराज्य, न्यूजीलैंड, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं. तिमोर-लेस्ते भी पर्यवेक्षक के रूप में इसका भागीदार होगा."

फा लाक फा ला क्या है?
फा लाक फा लाम (फ्रा लक्ष्मण फ्रा राम) प्राचीन महाकाव्य रामायण का लाओ रूपांतरण है. दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में लोकप्रिय रामायण को पहली बार बौद्ध मिशनों द्वारा सदियों पहले प्राचीन लाओ साम्राज्य लेन जांग में लाया गया था.

लाओ वर्जन ने एक स्पेसिफिक लाओ शैली अपनाई है. फलक फलम को सम्मान दिया जाता है और इसे नर्तक, संगीतकार और कलाकार विशेष अवसरों पर प्रस्तुत करते हैं, खास तौर पर वार्षिक पी माई (लाओ नव वर्ष) समारोह के हिस्से के रूप में.

स्थानीय रूप से, कुछ लोग इसकी उत्पत्ति जातक कथा के रूप में भी मानते हैं. इस मुख्य पात्र फ्रलक (लक्ष्मण), फ्रलम (राम), नांग सिदा (सीता) थोत्सखान या हपखानसौने (रावण), हनुमान, संपाती, जटायु आदि है.

सबसे बेहतरीन पारंपरिक परफोर्मेंस लुआंग प्रबांग के रॉयल बैले थिएटर (फलक फलम थिएटर) में होता है. लुआंग प्रबांग के रॉयल बैले थिएटर की मंडली ने जनवरी 2024 में ICCR के रामायण मेले में भाग लिया और फिर अयोध्या और लखनऊ में भी प्रदर्शन किया. उनके प्रदर्शन को भारत में खूब सराहा गया.

भारत-लाओस- ऐतिहासिक सांस्कृतिक संबंध
भारत और लाओस के बीच ऐतिहासिक संबंध दक्षिण-पूर्व एशिया के संबंधों के इतिहास में एक सम्मोहक अध्याय है. लाओस की भारत के साथ सदियों से एक गहन, साझा, सांस्कृतिक विरासत है, जिसमें धर्म, भाषा, कला और वास्तुकला शामिल है.

स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार यह संबंध तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक से जुड़ा है. लोककथाओं के अनुसार, अशोक के दूत, प्रया चंथाबुरी पासिथिसक, पांच भिक्षुओं के साथ, भगवान बुद्ध के अवशेषों को लाओस लाए, और उन्हें फा थाट लुआंग नामक स्तूप में स्थापित किया, जो अब लाओ पीडीआर का राष्ट्रीय स्मारक है.

लाओस का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज, ओरंगखारित्तन क्रॉनिकल, इस किंवदंती का समर्थन करता है, यह संकेत देकर कि अवशेष भारत के राजगीर से आए थे. यह क्रॉनिकल भारतीय साहित्यिक परंपराओं को स्थानीय लोक कथाओं के साथ जोड़ता है, जो गहरे सांस्कृतिक संबंधों को दर्शाता है.

लाओस में पुरातात्विक अन्वेषण ने महत्वपूर्ण खोजों को जन्म दिया है, जिसमें चंपासक प्रांत में पाया गया 5वीं शताब्दी का वट लुआंग काओ शिलालेख भी शामिल है. यह संस्कृत शिलालेख राजा महेंद्रवर्मन द्वारा शिवलिंग की स्थापना का वर्णन करता है, जो लाओ संस्कृति पर शुरुआती भारतीय प्रभाव को दर्शाता है.

इसके अलावा दक्षिणी लाओस में पल्लव लिपि में कई शिलालेख पाए गए हैं, जो भारतीय संबंध पर और अधिक जोर देते हैं. यहां 5वीं शताब्दी के राजा श्री देवानिका के शिलालेखों से राजा के संस्कृत साहित्य और अनुष्ठानों के प्रति समर्पण का पता चलता है. वाट फु में जयवर्मन प्रथम का शिलालेख, जिसमें लिंग पर्वत का उल्लेख है और 11वीं शताब्दी के अन्य शिलालेख धार्मिक प्रथाओं और स्थापत्य शैलियों सहित लाओ समाज में भारतीय संस्कृति के निरंतर संश्लेषण को दर्शाते हैं.

आज, यह साझा विरासत चल रहे सांस्कृतिक और मजबूत विकास साझेदारी सहयोग में परिलक्षित होती है. भारत विरासत स्थल बहाली और प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और कौशल सहयोग जैसी पहलों के माध्यम से लाओस का समर्थन करता है, यह सुनिश्चित करता है कि दोनों देशों के बीच प्राचीन संबंध जीवंत बने रहें.

भारत-आसियान संबंध
दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ भारत के संबंध सभ्यतागत और सांस्कृतिक संबंधों पर आधारित हैं, जो समकालीन संबंधों के सभी तत्वों को प्राप्त करने में विकसित हुए हैं. ये देश हमारी 'एक्ट ईस्ट नीति' और इंडो-पैसिफिक के हमारे विजन के स्तंभ हैं.

वर्ष 2024 भारत की एक्ट ईस्ट नीति का एक दशक पूरा होने जा रहा है और इस दशक के दौरान लोगों के बीच जुड़ाव मजबूत हुआ है और व्यापार और निवेश, रक्षा और सुरक्षा, फिन-टेक सहित कनेक्टिविटी, विरासत संरक्षण और क्षमता निर्माण में मजबूत सहयोग हुआ है. 2024 इस क्षेत्र के कई देशों के साथ भारत के राजनयिक संबंधों की स्थापना की महत्वपूर्ण वर्षगांठ भी है

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